पिछले तीस साल से वाशिंगटन आमराय की घोषणा पत्र के बाद
भूमण्डलीकरण, उदारीकरण और निजीकरण की
नीतियों को विश्व बैक, अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष, विश्व व्यापार संगठन और दुनिया की ताकतवर तिकड़ी संयुक्त राज्य अमरीका,
यूरोपीय संघ और जापान ने दुनिया पर लादा है और जो कारपोरेटी कहर
दुनिया ने झेला है, उसके खिलाफ अब पूरी दुनिया में एक एक
करके विरोध की आवाजे उठने लगी है। 1984 में दुनिया की सबसे बडी कारपोरेट त्रासदी
भोपाल गैस काण्ड में प्रकट हुई तभी से भारत के कुछ संवेदनशील समाजकर्मी आजादी बचाओ
आंदोलन के नाम से कारपोरेट जगत का लगातार विरोध कर रहे है और जहां उनकी ताकत बन
जाती है वहां से कारपोरेटों को उखाड भी रहे हैं। 1995 में मैक्सीको में मुद्रा
संकट के आते ही लातिनी अमरीका में एक के बाद एक देश में कारपोरेटों के खिलाफ
संघर्ष तेज हुए और महाद्वीप ने कारपोरेट समर्थक सत्ताओं का सफाया करके नयी जन
समर्थक सरकारें गठित की उस महाद्वीप में तो कारपोरेटों ने एक देश अर्जेण्टीना को
दिवालिया देश घोषित करा दिया था। कारपोरेट विकास माॅडल ने दुनिया में मन्दी,
महंगाई, बेरोजगारी, भुखमरी
और गैर बराबरी फैला दी है। पिछले 10 महीने से कारपोरेट विरोधी लहर उत्तरी अफ्रीका,
मध्य एशिया और लातिनी अमरीका में फैल गयी है। ट्यूनीशिया से शुरू
हुआ महंगाई, बेरोजगारी और अधिनायकवाद के खिलाफ युवाओं का
आंदोलन मिश्र, यमन, सीरिया और लीबिया
तक फैल गया है। ट्यूनीशिया, मिस्र और लीबिया में
आंदोलनकारियों ने तानाशाहों की गददी उखाड दी है और उन्हें देश से बाहर भागने या
जेल में सीकचों में बंद करने या मौत के घाट उतारने के लिए मजबूर कर दिया है।
इजराइल में लाखों लोग महगाई के खिलाफ सडकों पर निकल आये हैं। जापान में फुकूशिमा
हादसे के लिए जिम्मेदार न्यूक्लियर कंपनी के खिलाफ दसियों हजार जापानी नागरिकों की
सड़कों पर उतर पडें है। पिछले पाँच महीने से चिली में विद्यार्थी कुशिक्षा और
महंगाई के खिलाफ आदोलन कर रहे हैं। यूरोप में तो इन दिनों घमासान मचा हुआ है।
कारपोरेट कंपनियों और बैंकों की बदौलत ग्रीस, पुर्तगाल,
आयरलैड, स्पेन, इटली
जैसे देश दिवालिया होने के कगार पर है। एक तरफ महंगाई बेरोजगारी से आम आदमी की
जिंदगी दूभर कर दी है तो दूसरी तरफ डूबती बैंकों कम्पनियों को बेल आउट किया जा रहा
है। दुनिया के अन्य कोनों से भी ऐसी खबरे आ रही है हांलांकि कारपोरेट नियंत्रित
मीडिया ऐसी खबरों को दबाता है।
कारपोरेट विरोध की ताजी नयी कड़ी
भस्मासुर को सिर पर हाथ रखते ही भस्म करने की ताकत देने के
बाद जब भस्मासुर ने शिव के ही सिर पर हाथ रखने की अजमायश की तो शिव इधर उधर भागने
लगे। ठीक वैसे ही संयुक्त राज्य अमरीका ने कारपोरेटों को लालच फैलाकर लूट करने की
ताकत दी, वे ही कारपोरेट अब अमरीका पर ही अपना जादू
अजमाने लगे है और अब अमरीकी सड़क पर निकलने लगे हैं। कारपोरेटों का मक्का न्यूयार्क
की वाल स्ट्रीट है। सभी बडी कम्पनियां वाल स्ट्रीट के स्टाॅक मार्केट में रजिस्टर
होती है और वहीं से उनकी ताकत नापी जाती है। वाल स्ट्रीट की कम्पनियां ही अमरीकी
और पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को तो नियंत्रित करती ही है, वे अमरीका की राजनीति को भी चलाती है। जो वाल स्ट्रीट कम्पनियां जार्ज बुश
के शासन को नियंत्रित कर रही थीं वे ही बराक ओबामा के शासन पर हावी है। इसलिए मंदी
की तरफ से बडे़ बडे़ कारपोरेटों, बैकों और कंपनियों को बचाने
के लिए बुश ने बेलआउट में हजारों अरब डालर दिये, ओबामा ने भी
वही किया। एक तरफ बैंको और कंपनियों को सरकारी मदद दी जा रही है मंदी से बचाने के
लिए, वहीं आज अमरीकी बेरोजगारी की मार झेल रहा है। तीन साल
तक अमरीकियों ने सहा पर अब सब्र का बंध टूट गया है। १५ सितम्बर से वालस्टीट घेरो
आन्दोलन शुरू कर दिया है। आन्दोलनकारी कह रहे है कि वाल स्ट्रीट यानी उसकी
कंपनीयों से कारपोरेटी लालच, बेरोजगारी और महंगाई अमरीका में
फैली है जिससे जनजीवन तबाह हो गया है। यह आंदोलन अमरीका के अन्य शहरों वाशिंगटन
डीसी, बोस्टन, सान फ्रान्सिस्कों,
लास एंजलिस, बाल्टीमोर, मेमफिस
में भी फैल गया है। पिछले 3-4 दिन से वाल स्ट्रीट घेरों की तर्ज पर डीसी का विरोध
करो आंदोलन वाशिंगटन से शुरू हो गया है। पहले दिन कोई 200 प्रदर्शनकारियों ने
व्हाइट हाउस पर मार्च किया पर अब पूरे देश से लोग वाशिंगटन आने लगे है।
आंदोलनकारियों ने ऐलान किया है कि यह आंदोलन 4 महीने तो चलेगा ही। अमरीका से शुरू
हुआ कारपोरेट विरोधी आन्दोलन दुनिया के 82 देशों के 941 शहरों में फैल गया है। सब
जगह आन्दोलन अहिंसक है, केवल रोम में हिंसा भड़क उठी है।
विश्वभर में एक राग, भारत में एक बेसुरा राग: भारत में
कारपोरेटी लूट और गुलामी के खिलाफ आजादी बचाओ आंदोलन और अन्य कई संगठन संघर्ष कर
रहे हैं। न्यूक्लियर प्लांटों के खिलाफ फतेहाबाद (हरियाणा) कूडनकुलम (तमिलनाडु),
जैतापुर (महाराष्ट्र), मीठीबिरडी (गुजरात) में
आंदोलन चल रहे है। हजारीबाग नेल्लोर (आंध्र प्रदेश), छिदंवाडा
(म0प्र0), चन्द्रनगर (विदर्भ), और कटनी
(म0प्र0) मे थर्मल पावर प्लाटों और कोयले की खदानों के खिलाफ किसान संघर्षरत है
; पोस्कों के खिलाफ उडीसा में आंदोलन चल रहा है तो भूमि अधिग्रहण के
खिलाफ ग्रेटर नोयडा बडे़ बांधों के खिलाफ उत्तरखण्ड में आंदोलन चल रहे हैं। जगह
जगह किसान अपनी जमीन बचाने के लिए लड़ रहे हैं और पुलिस की गोली से शहीद हो रहे
हैं। ऐसे परिदृश्य में एक कानून बनवाने के लिए बेसुरा राज अन्ना टीम ने छेड़ दिया
है और देश केन मध्यवर्गीय क्षेत्र में भटकाव की स्थिति पैदा कर दी है। कारपोरेटी
मीडिया के समर्थन पर खड़ा किया गया यह भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन बडी चतुराई से
भ्रष्टाचार की जननी कारपोरेट को बचाता हुआ भ्रष्टाचार की दाई की ओर निशाना साध रहा
है। उदाहरण के लिए हाल के हिसार लोकसभा उपचुनाव में अन्ना की टीम के सरकारी दिमाग
वाले और एन.जी.ओ. संस्कृति वाले नेता वहां के जीवन के हमेशा के लिए संकट में डालने
वाले परमाणु प्लांट के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोले जबकि पिछले 425 दिनों से किसान
वहां धरने पर बैठे हुए हैं और तीन किसान शहीद हो गये हैं। भ्रष्टाचार हटाने का कोई
कार्यक्रम देने में असफल नेता एक पार्टी को हराने का एकमात्र कार्यक्रम कर रहे है।
मजे की बात यह है कि बीच बीच में कारपोरेट घरानों के संगठन भी भ्रष्टाचार खत्म
करने की आवाज उठाते हैं। यह सही है कि अन्ना के आंदोलन ने देश में चल रहे जमीनी
आंदोलनों को क्षति पहुंचायी है। जमीनी आंदोलन दुनिया में उठी कारपोरेट विरोधी लहर
में शामिल होकर निर्णायक लडाई में कामयाब होंगे।
(अन्तरराष्ट्रीय ख्याति के गणितज्ञ प्रो0 बनवारी लाल शर्मा, आजादी बचाओ अन्दोलन के राष्ट्रीय संयोजक
हैं)
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