गुजरात के बोटाड ज़िला के देवालिया
गांव में कांसे और स्टील के बर्तनों से सजे कमरे में एक चारपाई पर वह चुपचाप लेटी
हुई हैं और उसके बच्चे उसके पास बैठे हैं.
वह उन्हें खेलते हुए देखती रहती हैं
और सिर्फ़ रोज़मर्रा के कामकाज निपटाने या अपनी आठ महीने की दर्दनाक कहानी पुलिस
या मीडिया वालों को सुनाने के लिए ही उठती हैं.
सामूहिक बलात्कार की शिकार 23 साल की यह युवती बताती हैं, "उन्होंने करीब आठ
महीने तक रोज़ मेरा बलात्कार किया. चार लोग तो नियमित थे, बाकी
आते-जाते रहते थे. अगर मैं कुछ ऐसा करती जो उन्हें पसंद न आता तो वह मुझे पीटते.
मुझे रोने में भी डर लगता था."
कभी एक ख़ुश बेटी, बीवी और मां रही इस युवती के सात माह के गर्भ को गिराने की याचिका को
पिछले हफ़्ते गुजरात उच्च न्यायालय ने ख़ारिज कर दिया.
वह कहती हैं,
"यह मेरे बलात्कारियों का बच्चा है. मैं इसकी मां हूं लेकिन
अगर यह बच्चा मेरे साथ रहेगा तो कोई भी मुझे और मेरे परिवार को स्वीकार नहीं
करेगा. अदालत ने गर्भपात की इजाज़त नहीं दी. मैं सरकार से प्रार्थना करती हूं कि
वह इस बच्चे को अपने सरंक्षण में ले ले और किसी अनाथालय में दे दे."
परिवार के अंदर बेचैनी साफ़ नज़र आती
है. पीड़िता अपने गर्भ में पल रहे बच्चे को त्यागने के विचार से शायद पूरी तरह
सहमत नहीं है.
बच्चे को अपने पास रखने के सवाल पर वह
चुप हो जाती हैं और धीरे से अपनी मां की ओर देखती हैं. उनकी मां जवाब देती हैं,
"यह बच्चे को कैसे रख सकती है? अगर यह
ऐसा करेगी तो समाज और गांव हमें बहिष्कृत कर देगा. मेरे दो और बच्चे हैं. मेरा 14 साल का लड़का कुंवारा रह जाएगा. कोई भी हमारी इज़्ज़त नहीं करेगा."
वो कहती हैं,
"यह मां है लेकिन बच्चा बलात्कारियों का है, हम उसे नहीं रख सकते."
जब मां यह कह रही थी तो पीड़िता एक
कुर्सी पर सिर झुकाए और पल्ला ओढ़े बैठी हुई थीं.
वह उस दहशत और सदमे के बारे में बात
भी मुश्किल से ही कर पाती हैं. उन दिनों का ज़िक्र उसकी आँखों में आँसू ले आता है.
अपने 18 महीने के बेटे को खेलता देखते हुए वह कहती हैं, "रात को वह जंगल में ख़रगोश और काले हिरने का शिकार करने जाते. दो लोग मेरे
साथ रुक जाते और गलत काम (बलात्कार) करते. फिर उन दो की जगह दूसरे दो आ जाते.
महीनों तक हर रात यही होता रहा."
पीड़िता के ससुरालवालों ने उसे घर में
घुसने से रोका तो उसके पति भी घर छोड़कर साथ ही आ गए.
वह कहती हैं,
"एक रात जब मेरे अपहरणकर्ताओं ने एक खरगोश को काटा तो उसके पेट
में से दो नन्हें ख़रगोश निकले. मैं खुद को रोक नहीं पाई और तुरंत उनमें से एक को
उठा लिया जिसने मेरी उंगलियां कुतरनी शुरू कर दीं. इससे मुझे अपने बच्चों की याद आ
गई और मैंने रोना शुरू कर दिया."
बात करते हुए उसके हाथ और ज़बान
कांपते हैं.
वो कहती है,
"मुझे रोता देखकर एक को ग़ुस्सा आ गया और वो अपनी बंदूक से
मुझे पीटने लगा जिसमें बाकी भी शामिल हो गए. उस घटना के बाद उन्होंने कुछ दिन तक
मुझे भूखा रखा. मैंने खाना मांगा तो उन्होंने मुझे ख़रगोश का गोश्त दिया, जो मैं खा नहीं पाई."
पीड़िता के पति ने पिछले साल जुलाई
में सूरत में अपनी पत्नी के लापता होने की पुलिस रिपोर्ट दर्ज करवाई थी. पीड़िता
के अपहरण से पहले शहर में उनकी ज़िंदगी आराम से गुज़र रही थी.
पीड़िता के परिवार को उन्हें ढूंढने
के लिए पुलिस और नेताओं के चक्कर काटने पड़े लेकिन कोई मदद नहीं मिली.
अभियुक्त दाफ़र समुदाय से हैं जो
गुजरात की ख़ानाबदोश जाति है. पीड़िता गुजरात के देवी पूजक समुदाय की हैं.
सात नामजद अभियुक्तों में से पांच को
गिरफ़्तार कर लिया गया है. इस मामले में गुजरात पुलिस की भूमिका पर भी गंभीर सवाल
उठे.
पीड़िता की मां कहती हैं,
"उसके ग़ायब होने के कुछ दिन बाद मुझे उसके अपहरणकर्ताओं के
बारे में पता चला. मैंने पुलिस को बताया तो उन्होंने कहा कि वह अपनी मर्ज़ी से
उनके साथ रह रही है और उसने यह लिखकर दिया है कि उसके लिव-इन संबंध हैं. लेकिन कौन
क़ैद रहने और बलात्कार किए जाने के लिए अपनी मर्ज़ी से काग़ज़ पर दस्तखत करता है.
पुलिस ने मेरी बात पर यकीन नहीं किया."
लेकिन इस मामले के जांच अधिकारी पुलिस
उपाध्यक्ष तेजस पटेल इससे अनभिज्ञता जताते हैं, "पीड़िता या उसके परिवार के साथ इस तरह के व्यवहार के बारे में मुझे नहीं
पता. हमने पांच अभियुक्तों को गिरफ़्तार कर लिया है. एक अभियुक्त, गांव के सरपंच ने अपनी गिरफ़्तारी के ख़िलाफ़ अदालत से स्टे ऑर्डर ले लिया
है और एक फ़रार है."
लेकिन पीड़िता और उनके परिजन पुलिस पर
गंभीर आरोप लगाते हैं. पीड़िता के पारिवारिक दोस्त सरदारसिंह
मोरी कहते हैं, "अपहर्ताओं के कब्ज़े से बच
निकलने में कामयाब होने पर पीड़िता और उनकी मां घंटों तक जंगल में छुपे रहे,
उसके बाद हिम्मत जुटाकर वह पुलिस के पास गए. लेकिन जैसी आशंका थी
स्थानीय पुलिसकर्मियों ने शिकायत लिखने से इनकार कर दिया और फिर हमने महिला पुलिस
हेल्पलाइन को फ़ोन किया जिसके बाद न चाहते हुए भी हमारी शिकायत लिखी गई."
पीड़िता को मेडिकल जांच के लिए
एफ़आईआर के 48 घंटे बाद ले जाया गया. हालांकि
मामले के कोर्ट में जाने और राष्ट्रीय अख़बारों की सुर्खियां बनने के बाद गुजरात
पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों ने मामले का निरीक्षण शुरू किया.
इस मामले में पुलिस अधिकारियों की
भूमिका को लेकर रोष का सामना कर रही गुजरात सरकार ने गुरुवार को पीड़िता को 20,000 रुपये की आर्थिक सहायता दी.
उसके लिए अब बलात्कार और गर्भ में पल
रहे बच्चे को पैदा करने की मुश्किल से ज्यादा बड़ी चुनौती है 'पवित्र' होने की कवायद को पार करना.
क्या होता है पवित्र करने का ये तरीका….??