तुम्हें ले-दे के सारी दास्तां में याद है इतना।
कि औरंगज़ेब हिन्दू-कुश था, ज़ालिम था, सितमगर था।।
पुस्तक: ‘‘इतिहास के साथ यह अन्याय‘‘
लेखक: प्रो. बी. एन पाण्डेय, भूतपूर्व राज्यपाल उडीसा, राज्यसभा के सदस्य, इलाहाबाद नगरपालिका के चेयरमैन एवं इतिहासकार
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जब में इलाहाबाद नगरपालिका का चेयरमैन था (1948 ई. से 1953 ई. तक) तो मेरे सामने दाखिल-खारिज का एक मामला लाया गया। यह मामला सोमेश्वर नाथ महादेव मन्दिर से संबंधित जायदाद के बारे में था। मन्दिर के महंत की मृत्यु के बाद उस जायदाद के दो दावेदार खड़े हो गए थे। एक दावेदार ने कुछ दस्तावेज़ दाखिल किये जो उसके खानदान में बहुत दिनों से चले आ रहे थे। इन दस्तावेज़ों में शहंशाह औरंगज़ेब के फ़रमान भी थे। औरंगज़ेब ने इस मन्दिर को जागीर और नक़द अनुदान दिया था। मैंने सोचा कि ये फ़रमान जाली होंगे। मुझे आश्चर्य हुआ कि यह कैसे हो सकता है कि औरंगज़ेब जो मन्दिरों को तोडने के लिए प्रसिद्ध है, वह एक मन्दिर को यह कह कर जागीर दे सकता हे यह जागीर पूजा और भोग के लिए दी जा रही है। आखि़र औरंगज़ेब कैस बुतपरस्ती के साथ अपने को शरीक कर सकता था। मुझे यक़ीन था कि ये दस्तावेज़ जाली हैं, परन्तु कोई निर्णय लेने से पहले मैंने डा. सर तेज बहादुर सप्रु से राय लेना उचित समझा। वे अरबी और फ़ारसी के अच्छे जानकार थे। मैंने दस्तावेज़ें उनके सामने पेश करके उनकी राय मालूम की तो उन्होंने दस्तावेज़ों का अध्ययन करने के बाद कहा कि औरंगजे़ब के ये फ़रमान असली और वास्तविक हैं। इसके बाद उन्होंने अपने मुन्शी से बनारस के जंगमबाडी शिव मन्दिर की फ़ाइल लाने को कहा। यह मुक़दमा इलाहाबाद हाईकोर्ट में 15 साल से विचाराधीन था। जंगमबाड़ी मन्दिर के महंत के पास भी औरंगज़ेब के कई फ़रमान थे, जिनमें मन्दिर को जागीर दी गई थी।
इन दस्तावेज़ों ने औरंगज़ेब की एक नई तस्वीर मेरे सामने पेश की, उससे मैं आश्चर्य में पड़ गया। डाक्टर सप्रू की सलाह पर मैंने भारत के पिभिन्न प्रमुख मन्दिरों के महंतो के पास पत्र भेजकर उनसे निवेदन किया कि यदि उनके पास औरंगज़ेब के कुछ फ़रमान हों जिनमें उन मन्दिरों को जागीरें दी गई हों तो वे कृपा करके उनकी फोटो-स्टेट कापियां मेरे पास भेज दें। अब मेरे सामने एक और आश्चर्य की बात आई। उज्जैन के महाकालेश्वर मन्दिर, चित्रकूट के बालाजी मन्दिर, गौहाटी के उमानन्द मन्दिर, शत्रुन्जाई के जैन मन्दिर और उत्तर भारत में फैले हुए अन्य प्रमुख मन्दिरों एवं गुरूद्वारों से सम्बन्धित जागीरों के लिए औरंगज़ेब के फरमानों की नक़लें मुझे प्राप्त हुई। यह फ़रमान 1065 हि. से 1091 हि., अर्थात 1659 से 1685 ई. के बीच जारी किए गए थे। हालांकि हिन्दुओं और उनके मन्दिरों के प्रति औरंगज़ेब के उदार रवैये की ये कुछ मिसालें हैं, फिर भी इनसे यह प्रमाण्ति हो जाता है कि इतिहासकारों ने उसके सम्बन्ध में जो कुछ लिखा है, वह पक्षपात पर आधारित है और इससे उसकी तस्वीर का एक ही रूख सामने लाया गया है। भारत एक विशाल देश है, जिसमें हज़ारों मन्दिर चारों ओर फैले हुए हैं। यदि सही ढ़ंग से खोजबीन की जाए तो मुझे विश्वास है कि और बहुत-से ऐसे उदाहरण मिल जाऐंगे जिनसे औरंगज़ेब का गै़र-मुस्लिमों के प्रति उदार व्यवहार का पता चलेगा। औरंगज़ेब के फरमानों की जांच-पड़ताल के सिलसिले में मेरा सम्पर्क श्री ज्ञानचंद और पटना म्यूजियम के भूतपूर्व क्यूरेटर डा. पी एल. गुप्ता से हुआ। ये महानुभाव भी औरंगज़ेब के विषय में ऐतिहासिक दृस्टि से अति महत्वपूर्ण रिसर्च कर रहे थे। मुझे खुशी हुई कि कुछ अन्य अनुसन्धानकर्ता भी सच्चाई को तलाश करने में व्यस्त हैं और काफ़ी बदनाम औरंगज़ेब की तस्वीर को साफ़ करने में अपना योगदान दे रहे हैं। औरंगज़ेब, जिसे पक्षपाती इतिहासकारों ने भारत में मुस्लिम हकूमत का प्रतीक मान रखा है। उसके बारें में वे क्या विचार रखते हैं इसके विषय में यहां तक कि ‘शिबली’ जैसे इतिहास गवेषी कवि को कहना पड़ाः
तुम्हें ले-दे के सारी दास्तां में याद है इतना।
कि औरंगज़ेब हिन्दू-कुश था, ज़ालिम था, सितमगर था।।
औरंगज़ेब पर हिन्दू-दुश्मनी के आरोप के सम्बन्ध में जिस फरमान को बहुत उछाला गया है, वह ‘फ़रमाने-बनारस’ के नाम से प्रसिद्ध है। यह फ़रमान बनारस के मुहल्ला गौरी के एक ब्राहमण परिवार से संबंधित है। 1905 ई. में इसे गोपी उपाघ्याय के नवासे मंगल पाण्डेय ने सिटि मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया था। एसे पहली बार ‘एसियाटिक- सोसाइटी’ बंगाल के जर्नल (पत्रिका) ने 1911 ई. में प्रकाशित किया था। फलस्वरूप रिसर्च करनेवालों का ध्यान इधर गया। तब से इतिहासकार प्रायः इसका हवाला देते आ रहे हैं और वे इसके आधार पर औरंगज़ेब पर आरोप लगाते हैं कि उसने हिन्दू मन्दिरों के निर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया था, जबकि इस फ़रमान का वास्तविक महत्व उनकी निगाहों से आझल रह जाता है। यह लिखित फ़रमान औरंगज़ेब ने 15 जुमादुल-अव्वल 1065 हि. (10 मार्च 1659 ई.) को बनारस के स्थानिय अधिकारी के नाम भेजा था जो एक ब्राहम्ण की शिकायत के सिलसिले में जारी किया गया था। वह ब्राहमण एक मन्दिर का महंत था और कुछ लोग उसे परेशान कर रहे थे। फ़रमान में कहा गया हैः ‘‘अबुल हसन को हमारी शाही उदारता का क़ायल रहते हुए यह जानना चाहिए कि हमारी स्वाभाविक दयालुता और प्राकृतिक न्याय के अनुसार हमारा सारा अनथक संघर्ष और न्यायप्रिय इरादों का उद्देश्य जन-कल्याण को बढ़ावा देना है और प्रत्येक उच्च एवं निम्न वर्गों के हालात को बेहतर बनाना है। अपने पवित्र कानून के अनुसार हमने फैसला किया है कि प्राचीन मन्दिरों को तबाह और बर्बाद नहीं किया जाएँ, अलबत्ता नए मन्दिर न बनए जाएँ। हमारे इस न्याय पर आधारित काल में हमारे प्रतिष्ठित एवं पवित्र दरबार में यह सूचना पहुंची है कि कुछ लोग बनारस शहर और उसके आस-पास के हिन्दू नागरिकों और मन्दिरों के ब्राहम्णों-पुरोहितों को परेशान कर रहे हैं तथा उनके मामलों में दख़ल दे रहे हैं, जबकि ये प्राचीन मन्दिर उन्हीं की देख-रेख में हैं। इसके अतिरिक्त वे चाहते हैं कि इन ब्राहम्णों को इनके पुराने पदों से हटा दें। यह दखलंदाज़ी इस समुदाय के लिए परेशानी का कारण है। इसलिए यह हमारा फ़रमान है कि हमारा शाही हुक्म पहुंचते ही तुम हिदायत जारी कर दो कि कोई भी व्यक्ति ग़ैर-कानूनी रूप से दखलंदाजी न करे और न उन स्थानों के ब्राहम्णों एवं अन्य हिन्दु नागरिकों को परेशान करे। ताकि पहले की तरह उनका क़ब्ज़ा बरक़रार रहे और पूरे मनोयोग से वे हमारी ईश-प्रदत्त सल्तनत के लिए प्रार्थना करते रहें। इस हुक्म को तुरन्त लागू किया जाये।’’
इस फरमान से बिल्कुल स्पष्ट हैं कि औरंगज़ेब ने नए मन्दिरों के निर्माण के विरूद्ध कोई नया हुक्म जारी नहीं किया, बल्कि उसने केवल पहले से चली आ रही परम्परा का हवाला दिया और उस परम्परा की पाबन्दी पर ज़ोर दिया। पहले से मौजूद मन्दिरों को ध्वस्त करने का उसने कठोरता से विरोध किया। इस फ़रमान से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि वह हिन्दू प्रजा को सुख-शान्ति से जीवन व्यतीत करने का अवसर देने का इच्छुक था। यह अपने जैसा केवल एक ही फरमान नहीं है। बनारस में ही एक और फरमान मिलता है, जिससे स्पष्ट होता है कि औरंगज़ेब वास्तव में चाहता था कि हिन्दू सुख-शान्ति के साथ जीवन व्यतीत कर सकें। यह फरमान इस प्रकार हैः ‘‘रामनगर (बनारस) के महाराजाधिराज राजा रामसिंह ने हमारे दरबार में अर्ज़ी पेश की हैं कि उनके पिता ने गंगा नदी के किनारे अपने धार्मिक गुरू भगवत गोसाईं के निवास के लिए एक मकान बनवाया था। अब कुछ लोग गोसाईं को परेशान कर रहे हैं। अतः यह शाही फ़रमान जारी किया जाता है कि इस फरमान के पहुंचते ही सभी वर्तमान एवं आने वाले अधिकारी इस बात का पूरा ध्यान रखें कि कोई भी व्यक्ति गोसाईं को परेशान एवं डरा-धमका न सके, और न उनके मामलें में हस्तक्षेप करे, ताकि वे पूरे मनोयोग के साथ हमारी ईश-प्रदत्त सल्तनत के स्थायित्व के लिए प्रार्थना करते रहें। इस फरमान पर तुरं अमल गिया जाए।’’ (तीरीख-17 बबी उस्सानी 1091 हिजरी) जंगमबाड़ी मठ के महंत के पास मौजूद कुछ फरमानों से पता चलता है कि
औरंगज़ैब कभी यह सहन नहीं करता था कि उसकी प्रजा के अधिकार किसी प्रकार से भी छीने जाएँ, चाहे वे हिन्दू हों या मुसलमान। वह अपराधियों के साथ सख़्ती से पेश आता था। इन फरमानों में एक जंगम लोंगों (शैव सम्प्रदाय के एक मत के लोग) की ओर से एक मुसलमान नागरिक के दरबार में लाया गया, जिस पर शाही हुक्म दिया गया कि बनारस सूबा इलाहाबाद के अफ़सरों को सूचित किया जाता है कि पुराना बनारस के नागरिकों अर्जुनमल और जंगमियों ने शिकायत की है कि बनारस के एक नागरिक नज़ीर बेग ने क़स्बा बनारस में उनकी पांच हवेलियों पर क़ब्जा कर लिया है। उन्हें हुक्म दिया जाता है कि यदि शिकायत सच्ची पाई जाए और जायदा की मिल्कियत का अधिकार प्रमानिण हो जाए तो नज़ीर बेग को उन हवेलियों में दाखि़ल न होने दया जाए, ताकि जंगमियों को भविष्य में अपनी शिकायत दूर करवाने के लिएए हमारे दरबार में ने आना पडे। इस फ़रमान पर 11 शाबान, 13 जुलूस (1672 ई.) की तारीख़ दर्ज है। इसी मठ के पास मौजूद एक-दूसरे फ़रमान में जिस पर पहली नबीउल-अव्वल 1078 हि. की तारीख दर्ज़ है, यह उल्लेख है कि ज़मीन का क़ब्ज़ा जंगमियों को दया गया। फ़रमान में है- ‘‘परगना हवेली बनारस के सभी वर्तमान और भावी जागीरदारों एवं करोडियों को सूचित किया जाता है कि शहंशाह के हुक्म से 178 बीघा ज़मीन जंगमियों (शैव सम्प्रदाय के एक मत के लोग) को दी गई। पुराने अफसरों ने इसकी पुष्टि की थी और उस समय के परगना के मालिक की मुहर के साथ यह सबूत पेश किया है कि ज़मीन पर उन्हीं का हक़ है। अतः शहंशाह की जान के सदक़े के रूप में यह ज़मीन उन्हें दे दी गई। ख़रीफ की फसल के प्रारम्भ से ज़मीन पर उनका क़ब्ज़ा बहाल किया जाय और फिर किसीप्रकार की दखलंदाज़ी न होने दी जाए, ताकि जंगमी लोग(शैव सम्प्रदाय के एक मत के लोग) उसकी आमदनी से अपने देख-रेख कर सकें।’’ इस फ़रमान से केवल यही ता नहीं चलता कि औरंगज़ेब स्वभाव से न्यायप्रिय था, बल्कि यह भी साफ़ नज़र आता है कि वह इस तरह की जायदादों के बंटवारे में हिन्दू धार्मिक सेवकों के साथ कोई भेदभाव नहीं बरता था। जंगमियों को 178 बीघा ज़मीन संभवतः स्वयं औरंगज़ेब ही ने प्रदान की थी, क्योंकि एक दूसरे फ़रमान (तिथि 5 रमज़ान, 1071 हि.) में इसका स्पष्टीकरण किया गया है कि यह ज़मीन मालगुज़ारी मुक्त है।
औरंगज़ेब ने एक दूसरे फरमान (1098 हि.) के द्वारा एक-दूसरी हिन्दू धार्मिक संस्था को भी जागीर प्रदान की। फ़रमान में कहा गया हैः ‘‘बनारस में गंगा नदी के किनारे बेनी-माधो घाट पर दो प्लाट खाली हैं एक मर्क़जी मस्जिद के किनारे रामजीवन गोसाईं के घर के सामने और दूसरा उससे पहले। ये प्लाट बैतुल-माल की मिल्कियत है। हमने यह प्लाट रामजीवन गोसाईं और उनके लड़के को ‘इनाम’ के रूप में प्रदान किया, ताकि उक्त प्लाटों पर बाहम्णें एवं फ़क़ीरों के लिए रिहायशी मकान बनाने के बाद वे खुदा की इबादत और हमारी ईश-प्रदत्त सल्तनत के स्थायित्व के लिए दूआ और प्रार्थना कने में लग जाएं। हमारे बेटों, वज़ीरों, अमीरों, उच्च पदाधिकारियों, दरोग़ा और वर्तमान एवं भावी कोतवालों के अनिवार्य है कि वे इस आदेश के पालन का ध्यान रखें और उक्त प्लाट, उपर्युक्त व्यक्ति और उसके वारिसों के क़ब्ज़े ही मे रहने दें और उनसे न कोई मालगुज़ारी या टैक्स लिया जसए और न उनसे हर साल नई सनद मांगी जाए।’’ लगता है औरंगज़ेब को अपनी प्रजा की धार्मिक भावनाओं के सम्मान का बहुत अधिक ध्यान रहता था।
हमारे पास औरंगज़ेब का एक फ़रमान (2 सफ़र, 9 जुलूस) है जो असम के शह गोहाटी के उमानन्द मन्दिर के पुजारी सुदामन ब्राहम्ण के नाम है। असम के हिन्दू राजाओं की ओर से इस मन्दिर और उसके पुजारी को ज़मीन का एक टुकड़ा और कुछ जंगलों की आमदनी जागीर के रूप में दी गई थी, ताकि भोग का खर्च पूरा किया जा सके और पुजारी की आजीविका चल सके। जब यह प्रांत औरंगजेब के शासन-क्षेत्र में आया, तो उसने तुरंत ही एक फरमान के द्वारा इस जागीर को यथावत रखने का आदेश दिया। हिन्दुओं और उनके धर्म के साथ औरंगज़ेब की सहिष्ण्ता और उदारता का एक और सबूत उज्जैन के महाकालेश्वर मन्दिर के पुजारियों से मिलता है। यह शिवजी के प्रमुख मन्दिरों में से एक है, जहां दिन-रात दीप प्रज्वलित रहता है। इसके लिए काफ़ी दिनों से पतिदिन चार सेर घी वहां की सरकार की ओर से उपलब्ध कराया जाथा था और पुजारी कहते हैं कि यह सिलसिला मुगल काल में भी जारी रहा। औरंगजेब ने भी इस परम्परा का सम्मान किया। इस सिलसिले में पुजारियों के पास दुर्भाग्य से कोई फ़रमान तो उपलब्ध नहीं है, परन्तु एक आदेश की नक़ल ज़रूर है जो औरंगज़ब के काल में शहज़ादा मुराद बख़्श की तरफ से जारी किया गया था। 5 शव्वाल 1061 हि. को यह आदेश शहंशाह की ओर से शहज़ादा ने मन्दिर के पुजारी देव नारायण के एक आवेदन पर जारी किया था। वास्तविकता की पुष्टि के बाद इस आदेश में कहा गया हैं कि मन्दिर के दीप के लिए चबूतरा कोतवाल के तहसीलदार चार सेर अकबरी घी प्रतिदिन के हिसाब से उपल्ब्ध कराएँ। इसकी नक़ल मूल आदेश के जारी होने के 93 साल बाद (1153 हिजरी) में मुहम्मद सअदुल्लाह ने पुनः जारी की। साधारण्तः इतिहासकार इसका बहुत उल्लेख करते हैं कि अहमदाबाद में नागर सेठ के बनवाए हुए चिन्तामणि मन्दिर को ध्वस्त किया गया, परन्तु इस वास्तविकता पर पर्दा डाल देते हैं कि उसी औरंगज़ेब ने उसी नागर सेठ के बनवाए हुए शत्रुन्जया और आबू मन्दिरों को काफ़ी बड़ी जागीरें प्रदान कीं।
मन्दिर तोड़ने की घट्ना
निःसंदेह इतिहास से यह प्रमाण्ति होता हैं कि औरंगजेब ने बनारस के विश्वनाथ मन्दिर और गोलकुण्डा की जामा-मस्जिद को ढा देने का आदेश दिया था, परन्तु इसका कारण कुछ और ही था। विश्वनाथ मन्दिर के सिलसिले में घटनाक्रम यह बयान किया जाता है कि जब औरंगज़ेब बंगाल जाते हुए बनारस के पास से गुज़र रहा था, तो उसके काफिले में शामिल हिन्दू राजाओं ने बादशाह से निवेदन किया कि वहा। क़ाफ़िला एक दिन ठहर जाए तो उनकी रानियां बनारस जा कर गंगा दनी में स्नान कर लेंगी और विश्वनाथ जी के मन्दिर में श्रद्धा सुमन भी अर्पित कर आएँगी। औरंगज़ेब ने तुरंत ही यह निवेदन स्वीकार कर लिया और क़ाफिले के पडाव से बनारस तक पांच मील के रास्ते पर फ़ौजी पहरा बैठा दिया। रानियां पालकियों में सवार होकर गईं और स्नान एवं पूजा के बाद वापस आ गईं, परन्तु एक रानी (कच्छ की महारानी) वापस नहीं आई, तो उनकी बडी तलाश हुई, लेकिन पता नहीं चल सका। जब औरंगजै़ब को मालूम हुआ तो उसे बहुत गुस्सा आया और उसने अपने फ़ौज के बड़े-बड़े अफ़सरों को तलाश के लिए भेजा। आखिर में उन अफ़सरों ने देखा कि गणेश की मूर्ति जो दीवार में जड़ी हुई है, हिलती है। उन्होंने मूर्ति हटवा कर देख तो तहखाने की सीढी मिली और गुमशुदा रानी उसी में पड़ी रो रही थी। उसकी इज़्ज़त भी लूटी गई थी और उसके आभूषण भी छीन लिए गए थे। यह तहखाना विश्वनाथ जी की मूर्ति के ठीक नीचे था। राजाओं ने इस हरकत पर अपनी नाराज़गी जताई और विरोघ प्रकट किया। चूंकि यह बहुत घिनौना अपराध था, इसलिए उन्होंने कड़ी से कड़ी कार्रवाई कने की मांग की। उनकी मांग पर औरंगज़ेब ने आदेश दिया कि चूंकि पवित्र-स्थल को अपवित्र किया जा चुका है। अतः विश्नाथ जी की मूर्ति को कहीं और लेजा कर स्थापित कर दिया जाए और मन्दिर को गिरा कर ज़मीन को बराबर कर दिया जाए और महंत को गिरफ्तार कर लिया जाए। डाक्टर पट्ठाभि सीता रमैया ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘द फ़ेदर्स एण्ड द स्टोन्स’ मे इस घटना को दस्तावेजों के आधार पर प्रमाणित किया है। पटना म्यूज़ियम के पूर्व क्यूरेटर डा. पी. एल. गुप्ता ने भी इस घटना की पुस्टि की है।
मस्जिद तोड़ने की घटना
गोलकुण्डा की जामा-मस्जिद की घटना यह है कि वहां के राजा जो तानाशाह के नाम से प्रसिद्ध थे, रियासत की मालगुज़ारी वसूल करने के बाद दिल्ली का हिस्सा नहीं भेजते थे। कुछ ही वर्षों में यह रक़म करोड़ों की हो गई। तानाशाह न यह ख़ज़ाना एक जगह ज़मीन में गाड़ कर उस पर मस्जिद बनवा दी। जब औरंज़ेब को इसका पता चला तो उसने आदेश दे दिया कि यह मस्जिद गिरा दी जाए। अतः गड़ा हुआ खज़ाना निकाल कर उसे जन-कल्याण के कामों मकें ख़र्च किया गया। ये दोनों मिसालें यह साबित करने के लिए काफ़ी हैं कि औरंगज़ेब न्याय के मामले में मन्दिर और मस्जिद में कोई फ़र्क़ नहीं समझता था। ‘‘दर्भाग्य से मध्यकाल और आधुनिक काल के भारतीय इतिहास की घटनाओं एवं चरित्रों को इस प्रकार तोड़-मरोड़ कर मनगढंत अंदाज़ में पेश किया जाता रहा है कि झूठ ही ईश्वरीय आदेश की सच्चाई की तरह स्वीकार किया जाने लगा, और उन लोगों को दोषी ठहराया जाने लगा जो तथ्य और मनगढंत बातों में अन्तर करते हैं। आज भी साम्प्रदायिक एवं स्वार्थी तत्व इतिहास को तोड़ने-मरोड़ने और उसे ग़लत रंग देने में लगे हुए हैं।
साभार पुस्तक ‘‘इतिहास के साथ यह अन्याय‘‘ प्रो. बी. एन पाण्डेय, मधुर संदेश संगम, अबुल फज़्ल इन्कलेव, दिल्ली-2
http://islaminhindi.blogspot.com/
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Aap Se yahi Umid hai Aap bas itna hi mat karna ke Aurangjeb ko khud ya masiha na bana dena
ReplyDeleteyogesh ji ham musalman h ham kisi insan ko ya Pathar ko khuda nhi banate aap ki tarah
Deleteazam ..comment अच्छा है है कि तुम पत्थर को खुदा नही बनाते , तो आप बिल्कुल सही है क्योंकि में खुदा को जनता ही नही , और ...... अगर तुम पत्थर को नही मानते तो बस एक कम कर के दोखो एक कागज पर अल्लाह लिख के लात मार के दिखा दे में मूर्ति पूजा छोड दूँगा >............
Deletetum ye batao tumhare pita ager zinda hain tum uski izzat nahi karte ho lekin tum apni pitah ki tasveer pe mala aur ager batti dekhate ho to kiya tumhara pita tumse khus hoga
Delete
ReplyDeleteऔरँगज़ेब को लेकर अतिशयोक्तियाँ गढ़ी गयी हैं इसमें कोई दो राय नहीं, पर बेहतर होता कि इन दस्तावेज़ों में कुछेक की स्कैन कॉपी यहाँ उपलब्ध होती ।
YOGESH JI ALI JI AISA TO HARGIZ NAHIN KARENGE. AUR UNHONE JO KUCH LIKHA HAI AUR USPAR APKO YAKIN NAHIN HAI TO ISKI KHOJ KAREN AUR UNHE GALAT SABIT KAAREN!
ReplyDeleteYOGESH JI ALI JI AISA TO HARGIZ NAHIN KARENGE. AUR UNHONE JO KUCH LIKHA HAI AUR USPAR APKO YAKIN NAHIN HAI TO ISKI KHOJ KAREN AUR UNHE GALAT SABIT KAAREN!
ReplyDeleteऔरंगजेब एक क्रूर और निर्दयी शासक था और मूर्तियाँ तोड़ता था, सभ्यता तोड़ता था, बस !
ReplyDeleteइसे दस्तावेज समय समय पर प्रकाशित करते रहना चाहिए |
ReplyDeleteisme koi 2 rai nahi ki 1 asli muslim kabhi bhi kisi dusre mazhab ki burai ya usko nuksaan nahi pahuncha sakta .jab tak uske upar koi attack nahi karta tab tak islam me sakhti se manadi kari gai hai kisi se bhi fite ya nuksaan dene ko.nahi to quraan sharif ko translate ke sath acchi tarah se read kara jai to sari asliyat samne a jaigi ki us 1 diva jyoti (allah)ki aradhna hi islam batata hai jiski koi murat koi surat koi parchai ya koi uski zaat me shareek nahi hai.
ReplyDeleteI AM VERY GLAD TO READ YOUR COMMENT, IF SUCH TYPEOFVIEW, POCITIVE VIEW LOG RAKHE TOO BEHTAR HOOGA AUR DESH HIT ME HOGA
DeleteAarti ji sirf muslim dharm mein hi murti ki pooja karna mana nahi hai balki hidu dharm mein bi murti pooja mana ki gai hai magar pata nahi kaan se aap ke pandito ko kamai karne ke liye murti puja ka Idea mila hai. kyon ki vedon mein likha hai Ekaw brahma dwatiy naasti............. natasya pratimasti.
Deletepoora shlok likhunga to baut lamba ho jayega bas saransh lik diya ke ishwar ek ai doosra nahi aur uski koi pratima yan murti nahi hai.
Aarti ji...!!! Aapne ekdam sahi bat kahi hai..,ALLAH aapko Hidayat ata farmaye...Aameen...
DeleteIF such kind of documents is published in multilanguage like Urdu and English also , I think many of unknown like us will be benifited greatly.
ReplyDeletei m very greet full to Mr Ali...may be some people will nt believe such type of positive information for the great King AURANGJEB but you should never giveup, and one thing i will suggest you that pleased what you got document (farmaan of Aurangjeb) you should published it..
ReplyDeleteAnd thank you Arti jii, for making comment on Islam really its not only a religion its a guide line for every human being...
Quran is a holly book of islam, and its learns us a lot of thing for our survival...
thank you!!!!
gud ali for this article...
ReplyDeleteसोहराब साहब ने जो बताया है वो सच है,यदि इसका प्रमाण देखना है तो काशी हिन्दु विश्वबिधालय(बी एच यु ) बनारस के भारत कला भवन मे देखा जा सकता है,औरंगजेब का काशी मे मन्दिर तोडने की मनाही का फरमान यन्हा मौजुद है
ReplyDeleteMrityunjay yehi sach he jo aap ne kaha aur log mane ya na mane par haqiqat se muh fair nahi sakte
Deleteme ali sahab aur aap ki bat ki qadar karta hoon
(raj bhutta_
Mrityunjay yehi sach he jo aap ne kaha aur log mane ya na mane par haqiqat se muh fair nahi sakte
Deleteme ali sahab aur aap ki bat ki qadar karta hoon
(raj bhutta_
Mrityunjay u r right.
DeleteMrityunjay You are right.
Deleteali sohrab sb aur panday sb i m thankful to you that u had provided the right information about aurangjeb(r.a).
ReplyDeleteI know every religious person who may be Hindu or Muslim can’t do anything wrong. If we talk about Aurangzeb yes he was the person who create a real kingdom in this world here I can quote only one example.
ReplyDeleteShahjehan he was the father of Aurangzeb and he made Tajmehal a tomb on Mumtaz mehal graveyard(Qabra) by the public tax money just because of this Aurangzeb appose to his father & went him to jail.
I know every religious person who may be Hindu or Muslim can’t do anything wrong. If we talk about Aurangzeb yes he was the person who create a real kingdom in this world here I can quote only one example.
ReplyDeleteShahjehan he was the father of Aurangzeb and he made Tajmehal a tomb on Mumtaz mehal graveyard(Qabra) by the public tax money just because of this Aurangzeb appose to his father & sent him to jail.
I know every religious person who may be Hindu or Muslim can’t do anything wrong. If we talk about Aurangzeb yes he was the person who create a real kingdom in this world here I can quote only one example.
ReplyDeleteShahjehan he was the father of Aurangzeb and he made Tajmehal a tomb on Mumtaz mehal graveyard(Qabra) by the public tax money just because of this Aurangzeb appose to his father & sent him to jail.
I know every religious person who may be Hindu or Muslim can’t do anything wrong. If we talk about Aurangzeb yes he was the person who create a real kingdom in this world here I can quote only one example.
ReplyDeleteShahjehan he was the father of Aurangzeb and he made Tajmehal a tomb on Mumtaz mehal graveyard(Qabra) by the public tax money just because of this Aurangzeb appose to his father & sent him to jail.
I would like to suggest to inform through all sort of communications to all INDIANS AND THEY SHOULD REALIZE THE FACT OF THE MATTER.FIVE YEARS BACK ONE OF MY FRIEND MR.JAIMNI KUMAR GARG EX-DGM BHEL BHOPAL HE TOLD ABOUT THIS BOOK OF MR.PANDEY AND ADMIRING AURANGZEB RULING AND AWARDING STIPEN TO VARIOUS TEMPLES INCLUDING MAHAKAAL UJJAIN AND ONE MORE TEMPLE IN GWALIOR ON HILL WHOSE MAHANT HAS GIVEN THE MEDICINE TO AURANGZEB FOR SEVERE HEADACHE WHEN HE WAS PASSING THROUGH THAT WAY,HOWEVER WHEN I HAVE GONE THROUGH THIS MESSAGE I FOUND IT'S AUTHENTICITY.INFACT GOVTS(ANY WHETHER BJP OR CONGRESS )THEY SHOULD TAKE THE HELP IN CREATING PEACE,HARMONY,BROTHER HOOD AMONGST THE COMMUNITIES FOR TBETTER UNDER STANDING AND LOYALITY WITH EACH OTHER SO THAT COUNTRY SHOULD HAVE A BOOST IN SOCIAL,FINANCIAL DEVELOPMENT.iN FACT WE SHOULD BE THANKFULL TO AURANGZEB FOR GIVING US A LARGEST SIZE OF POWER FUL COUNTRY.THIS IS ALSO CORRECT BEING A CENTER ADMINISTRATOR/RULER HE WAS SUPPRESSING THE REBA LION ACTIVITIES IN SURROUNDINGS WHICH PEOPLE OF THAT PLACE UNDERSTOOD FREEDOM FOR THEIR CULTURE AND VICINITY.IT HAPPEND EVERY WHERE IN OTHER COUNTRIES OF THE WORLD. AT LAST I AM VERY MUCH THANKFUL TO THE GENTLE PEOPLE WHO HAVE EXTENDED THIS INFORMATION AND ALSO WILL NOT FORGET TO APPRECIATE THE PROFESSOR PANDEY WHO HAS GOT A REALISTIC SIGHT AND COURAGE TO CARRY OUT THE WORK FROM DIFFERENT PEOPLE AND PRESENTED IT TO US. THANKS A LOT .MOHAMMAD NASEEM QURESHI./BHOPAL
ReplyDeleteAurangzeb 1 Bhot Bde Badsha Hai Un Ki Bra Bri Koi Bhi Nhi Krskta Rhi Bat Unki Hukumat Ki Unone Bade Imandari Se Hukumat Kre Hai Ye Our Rhi Bat Mandir our Masjid ki wo To Hr Dour Me Kamine Logo Ne Uchale Hai " JO LOG NAMAZ PADTE HAI OR PUJA KRTE HAI WO LOG KHAS HOTE HAI " JO LOG NHI KRTE HAI WHI LOGE MANDIR OR MASJID KI BATE KRTE RHETE HAI.....AB AAP LOG YE SOCHO KON KITNE ""UPER WALE""KO YAD KRTA HAI..........
ReplyDeleteise tarah ki kahaniya nazariya badlti hai jo kuch bate hum galat samz te hai. ispe aur study honi chahiye.
ReplyDeleteise tarah ki kahaniya nazariya badlti hai jo kuch bate hum galat samz te hai. ispe aur study honi chahiye.
ReplyDeleteMost men are not finding truth through their knowledge but find from their tendency.Wrong history leads men towards wrong notions.
ReplyDeletekuch yeh bhi milta he
ReplyDeletehttp://tiwari11.blogspot.in/2010/10/blog-post.html
Tiwari11: चित्रकूट में औरंगजेब ने बनवाया था बालाजी का मंदिर
iqbal sb guru gobind singh ji k parivaar pe kiye atyacharo k bare me b batao
DeleteMainey almost saarey comments padhey hain..Hindu - Muslims dono key... ek baat jo mujhey samajh mein aayi hai ki hum sab apney-2 dharam ko lekar chinta mein doobey hue hain; jo ki bewajah hai....ham sab key dharam behad majboot hain....musalman islam key baarey mein chintit hain....hindu sanatan dharam key baarey mein aur sikh sikhism key baareymein par kya koi desh key baarey mein bhi chintit hai...Have faith in your religion....Trust your religion, its not weak....uski buniyaad behad majboot hai....yeh main hindu - muslim dono ko keh raha hooon....
ReplyDeleteHumein nahin pata aurangzeb ney kya kiya kya nahin kiya....woh rakshas thaa yaa devta......hamein toh aaj apney desh / watan key bareey mein chinta karni chhahiye jiska ek common dushman America hai.....joh chhahta hi nahin hai ki hum ikathey ho jayein....kyunki jiss din hindu-muslim bhartiya ekatha ho gayei America nahin bachega......yeh woh nahin chhata hai....toh mere bhaiyon kripya karkey Swami Ramdev Ji ka saath dijiye.....watan hai toh ham hain.....hum hain to dharam bhi hai aur rahega.....
MR CYBORG agar aap is blog ka mazmoon samajhte to itna lamba comment na karte waise main apke khayalat ki qadra karta hun. lekin yahan bhi wohi kia ja raha hai jiski aap baat kar rahe hain. jhooti kahania garh kar nafrat failane walon ke kaale chehre ujagar kiye ja rahe hain.maqsad samajhiye
DeleteEvery ruler has take decisions , which naturally can not be appreciated by every one .....Aurangzeb could'nt be the exception .....Modern/ ancient/ British Indian rulers , no ruler can be awarded a clean chit for quite fair and just rule...But as they say rising smoke is an indication of fire ....some thing somewhere did go wrong from the side of Aurangzeb that caused so much resentment among the Hindus ...and paved the way for British rule in India
ReplyDeleteEvery ruler has take decisions , which naturally can not be appreciated by every one .....Aurangzeb could'nt be the exception .....Modern/ ancient/ British Indian rulers , no ruler can be awarded a clean chit for quite fair and just rule...But as they say rising smoke is an indication of fire ....some thing somewhere did go wrong from the side of Aurangzeb that caused so much resentment among the Hindus ...and paved the way for British rule in India
ReplyDeletejiske hath mai power hoti h itihas wahi likhta h acha ya bura kesa bhi ho aise hi angrejo ne bharat ke itihas ko tod marod kar likha h taki aane wale time mai alag alag majhab ke logo mai ladai hoti rahe.so be carefull all people kisi bhi bat ko ya kam ko karne se pahle thoda sa soche
ReplyDeletebahot acha lekh hai . . Jo log bina kuch soche algaaw wadi netaao ki jhuti kahaniyan sunkar Aurangzeb se nafrat karne lagte hain un logo ko ek baar apne dimagh ka stemaal kr ke sochna chahiye ki jo raja in logo ke hisaab se zaalim hai, ghair muslimo ka khoon krta rhta hai wo chitrkoot me bhala hanumaan mandir kyu banwaega? ye mandir aaj bhi apne itihas ke sath maujood hai chitrkoot me .
ReplyDeleteइतिहास की घटनाओं को नितांत काल्पनिक शायद इसलिए बनाकर देखा जाता है कि तथ्यों को तोड़ मरोड़कर अपने संगठन की राजनीति के लिए इस्तेमाल किया जा सके. औरंगजेब खास तौर से निशाना बनाया जाता है ताकि उसके बहाने मुसलमान को लांछित किया जा सके.
ReplyDeletehttp://sohrabali1979.blogspot.com/2012/09/blog-post_5.html
Ali Sohrab Aurangzeb ne sikh guru gobind singh ji k parivaar par jo atyachaar kiye 2 nirdosh bachho ka katl karva diya. unko manne valo ko ubalte tel me talavaya. kya ye hevaniyat ki misal ni hai
DeleteThis article is published by Aurangzeb lovers.... history can't go totally out of track that a good man was portrayed as bad. It's not about hindu or muslim , it's about mankind and humanity and this aurangzeb doesn't fit here.
ReplyDeleteMedia can never show the reality bcz it is being handled by Indian so called patriotic leader so the history of india is being changed so many organization is involved to change the history bcz they don't want to see the Muslims & Hindus together.When the unity will come among all Hindus and Muslims these political leaders will not get there chair.
ReplyDeletemay be usne zindgi me ek acha kaam kar diya ho per wo tha Zalim ..Zaziya Tax usi ne lagaya tha !
ReplyDeleteUsne zindgi me shayad yahi ek acha kaam kiya hoga , woh ek Zalim Sultan tha...usne Hindus pe Zulm ki Inteha kar rakhi thee. Zaziya Tax kisne laga rakha tha ?
ReplyDeleteBro ye sarkaar kya kar rahi hai wo to muslim sarkaar nahi hai.
DeleteTax isliye liya jata tha ki muslim ko har saal zakaat dena farz hai but kisi aur mazhab me aisa nahi hai muslimo se zakaat li jati thi aur bakiyo se jaziya
Wah wah wah
ReplyDeleteWah janab
ReplyDeleteWah
ReplyDeleteVery Useful information ...................
ReplyDeleteक्या टीपू सुल्तान और औरंगजेब न्याय प्रिय शासक थे ?
ReplyDeleteअपने आपको सेक्युलर सिद्ध करने की होड़ में इतिहास के साथ छेड़ छाड़ करना बुद्धिमानों का कार्य नहीं है। टीपू सुल्तान और औरंगजेब को सेक्युलर, धर्म निरपेक्ष, हिन्दू हितेषी,हिन्दू मंदिरों और मठों को दान देने वाला, न्याय प्रिय और प्रजा पालक सिद्ध करने के लिए मुस्लिम संप्रदाय लेख पर लेख प्रकाशित कर रहा है। उनके लेखों में इतिहास की दृष्टी से प्रमाण कम हैं,शब्द जाल का प्रयोग अधिक किया गया है। परन्तु हज़ार बार चिल्लाने से भी असत्य सत्य सिद्ध नहीं हो जाता। इस लेख के माध्यम से यह सिद्ध किया गया हैं की औरंगज़ेब और टीपू सुल्तान मतान्ध एवं अत्याचारी शासक थे। मुसलमानों द्वारा हिन्दू युवकों को भ्रमित करने के लिए की जा रही यह कवायद निरर्थक एवं निष्फल सिद्ध होगी।
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