Friday, December 24, 2010

देश के लिए देशद्रोही

माओवादी नेता नारायण सान्याल से मुलाकातों को लेकर वह हमेशा कहते रहे हैं कि मैं इसे गुनाह नहीं मानता। एक डॉक्टर और मानवाधिकार कार्यकर्ता होने के नाते मेरा फर्ज है कि मैं कानून की सहायता चाहने वालों और अस्वस्थ्य लोगों से मिलूं...

जनज्वार टीम. सामाजिक कार्यकर्ता डॉक्टर विनायक सेन को छत्तीसगढ़ की एक कोर्ट ने देशद्रोह का अपराधी बताते हुए शुक्रवार को आजीवन कारावास की सजा सुनायी है। विनायक सेन के साथ सीपीआइ(माओवादी)के बुजूर्ग नेता नारायण सान्याल और पीयूष गुहा को भी उम्रकैद की सजा हुई है। इन सभी पर आइपीसी की धारा 124ए,124बी और छत्तीसगढ़ जनसुरक्षा अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज है।


विनायक सेन : हार की जीत                 फोटो -शैलेन्द्र

विनायक सेन को यह सजा जेल में बंद माओवादी नेता नारायण सान्याल की चिट्ठयां जेल से बाहर ले जाने, चिट्ठियां भूमिगत माओवादियों तक पहुंचाने और इन चिट्ठियों के जरिये माओवादी आधार क्षेत्रों का विस्तार किये जाने के अपराध में दी गयी है। नारायन सान्याल माओवादी पार्टी के पोलित ब्यूरो सदस्य हैं और उनकी उम्र करीब 80 वर्ष है।


 मुकदमें की सुनवाई करते हुए जिला और सत्र न्यायधीश बीपी वर्मा ने इन सभी को षड़यंत्र और देशद्रोह का अभियुक्त माना है। अदालत ने नारायण सान्याल और पीयूष गुहा को माओवादी होने के नाते आजीवन कारावास की सजा मुकर्रर की है। विनायक सेन अदालत में नारायण सान्याल और पीयूष गुहा के साथ ही उपस्थित हुए थे।

डॉक्टर विनायक सेन गिरफ्तारी 14 मई 2007 को बिलासपुर में हुई थी। जेल में दो वर्ष की सजा काटने के बाद 58 वर्षीय विनायक सेन को सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद मई 2009 में स्वास्थ्य कारणों से छोड़ दिया गया था जिन्हें फिर एक बार छत्तीसगढ़ पुलिस ने हिरासत में ले लिया है।

विनायक सेन सरकार के आरोपों अब सजा मुकर्रर होने की प्रक्रिया को मनगढंत और मानवाधिकार के खिलाफ साजिश मानते हैं। पेशे से डॉक्टर विनायक सेन छत्तीसगढ़ में उस समय चर्चा में आये थे जब उन्होंने माओवादियों से निपटने के बहाने छत्तीसगढ़ के आदिवासियों को सलवा जुडूम अभियान के बहाने तबाह-बर्बाद किया जा रहा था।

विनायक देश के पहले शख्सियत थे जिन्होंने सलवा-जुडूम के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक अभियान चलाया था। उसी अभियान का असर रहा कि उसे सर्वोच्च न्यायालय ने छत्तीसगढ़ सरकार को बंद करने का आदेश दिया था। विनायक सेन का कहना है कि ‘यह सजा सरकार के अत्याचारों के खिलाफ मुखर होने का प्रतिफल है।’माओवादी नेता नारायण सान्याल से मुलाकातों को लेकर वह हमेशा कहते रहे हैं कि ‘मैं इसे गुनाह नहीं मानता। एक डॉक्टर और मानवाधिकार कार्यकर्ता होने के नाते मेरा फर्ज है कि मैं कानून की सहायता चाहने वालों और अस्वस्थ्य लोगों से मिलूं। नारायण सान्याल से हुई मेरी मुलाकातें भी इन्हीं संदर्भों में हुई थीं।’


विनायक सेन के साथ नारायण सान्याल

जहां तक चिट्ठयों को जेल से बाहर ले जाने का सवाल है तो इस बारे में विनायक सेन कहते रहे हैं कि ‘मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल का पदाधिकारी होने के नाते मैं यह क्यों नहीं कर सकता था?जेल से नारायण सान्याल के लिखे जो भी पत्र मैं ले गया हूं उन सब पर जेल प्रशासन की मूहर है।’

प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षक इलीना सेन ने इसे लोकतंत्र का काला दिन कहा। इलीना सेन विनायक सेन की पत्नी हैं और गांधी हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा में डीन हैं। उन्होंने पति की गिरफ्तारी पर कहा कि ‘देश में गुंडे खुलेआम घूमते हैं और आदिवासियों और गरीबों के बीच जीवन गुजार देने वाले विनायक सेन को देशद्रोही करार दिया जाता है।’इलीना ने कहा कि जिला और सत्र न्यायालय के इस फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील करेंगी।

विनायक सेन की स्वास्थ्य के क्षेत्र में की गयी सेवाओं की दुनिया भर में बेहद कद्र है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्य और मानवाधिकार क्षेत्र में काम के लिए उन्हें जोनाथन मैन सम्मान और पॉल हैरिसन पुरस्कार से नवाजा गया है। छत्तीसगढ़ के श्रमिक नेता शंकर गुहानी योगी के साथ सामाजिक कामों की शुरूआत करने वाले विनायक सेन दल्ली राजहरा स्थित अस्पताल के प्रमुख डाक्टरों में रहे हैं और वे बाद में मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बने. गौरतलब है कि जब वे गिरफ्तार किये गए तो वह उपाध्यक्ष थे.

छत्तीसगढ़ सरकार की निगाह में देशद्रोही और माओवादियों के शुभचिन्तक करार दिए गए विनायक सेन जब जेल से बाहर थे तब राज्य सरकार की सलाहकार समिति के सदस्य थे.सलाहकार रहने के दौरान उन्होंने छत्तीसगढ़ में गरीबों की बेहतर स्वस्थ सेवा के लिए जो सुझाव दिए थे बाद में उसी आधार पर सरकार ने वहां बहुचर्चित और सफल स्वस्थ सेवा 'मितानिन ' शुरू किया था.

विनायक सेन डॉक्टरों की उस परंपरा से आते हैं जो सिर्फ दवा देना ही अपना कर्तव्य नहीं मानते बल्कि सामाजिक-आर्थिक हालात बदलने पर भी जोर देते हैं। यही वजह रही कि छत्तीसगढ़ में जब सलवा जुडूम के बहाने आदिवासियों के खिलाफ कॉरपोरेट और सरकारी साजिश शुरू हुई तो उन्होंने मुकम्मिल विरोध को सर्वाधिक बुलंदी के साथ राष्ट्रीय स्तर पर उठाया, जिसका खामियाजा उन्हें आज भूगतना पड़ रहा है।



सभार:
http://www.janjwar.com/

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