मुस्लिम महिलाओं का हिजाब, बुर्का या पर्दा आज के दौर में एक बहुचर्चित विषय रहा है. अन्तरार्ष्ट्रीय स्तर पे इस मुद्दे को हमेशा उठाया जाता रहा है। मैं यह कभी नहीं समझ सका कि यह मसला तो मुसलमानों का है, इसका विश्व के दूसरे मज़हब के लोगों से क्या मतलब है? यकीनन इस्लाम किसी ग़ैर मुस्लिम पे यह जब्र नहीं करता कि वोह भी हिजाब मैं रहे। एक औरत का किसी समाज मैं हिजाब मैं रहना भला किस तरह से किसी दूसरे इंसान को परेशान कर सकता है? केवल एक बात समझ मैं आती है , की यह एक अंतर्राष्ट्रीय स्तर की इस्लाम विरोधी साजिश है जिसमें मीडिया और पैसों का भरपूर इस्तेमाल इस्लाम के खिलाफ किया जा रहा है। इसका विश्व के किसी भी कोने मैं रहने वाले आम इंसान से कुछ लेना देना नहीं है। इन साजिश करने वालों का हमला हमेशा इस्लामिक शरीयत , इस्लाम के कानून हुआ करते हैं, फिर चाहे वो पर्दा हो, दाढ़ी हो,या मुल्लाओं का फतवा हो ।
मैं इस बात से इनकार नहीं करता कि जिस परदे का हुक्म कुरान मैं आया है, वोह अधिकतर मुसलमान समझ ही नहीं सके और इसका कारण अशिक्षा और कुछ कट्टरपंथी कठ मुल्ला हैं। इस्लाम मैं चेहरे का पर्दा नहीं है और अगर कोई औरत शरीर और सर के बाल ढक के तस्वीर खिंचाती है, ज़रुरत होने पे बाहर निकल के नौकरी करती है तो इसमें कोई हर्ज नहीं है. और इस परदे के साथ मैं नहीं समझता कि कोई भी ऐसा सही काम है, जो औरत नहीं कर सकती ।
फ्रांस व नीदरलैंड और ब्रिटेन मैं अक्सर हिजाब पे विवादित फैसले और बयान दिए जाते हैं. लेकिन इन्साफ कि नजर से कोई भी आज तक इसका सही कारण नहीं बता सका। जैसा मैं पहले भी कह चुका हूँ कि इस्लाम मैं चेहरे का पर्दा नहीं और अगर कोई देश इस चेहरे छुपाने कि प्रथा के खिलाफ कानून बनाता है, तो मैं उसे ग़लत नहीं कहता । अक्सर लोगों का मानना है कि सभी धर्मों में धार्मिक नियम व धार्मिक कायदे कानून बनाए जाने में पुरुष समाज की ही प्रमुख भूमिका रही है। अगर यह सत्य होता तो इस्लाम मैं मर्दों का पर्दा ना होता। हाँ पश्चिमी सभ्यता मैं यह अवश्य देखने को मिला है कि उनके बनाये कानून पुरुषप्रधान है. मर्द का शौक है औरत को कम कपड़ों मैं देखना, और इसी कारण से औरत का कम से कम कपड़ों मैं रहना शिक्षित और परदे मैं रहना अशिक्षित होने का सुबूत मना जाता है।
इस्लाम को बदनाम करने कि एक विश्वव्यापी साजिश जो पश्चिमी देशो के द्वारा चलाई जा रही है, उसमें हर मुसलमान को आतंकवादी, साबित करने की नाकाम कोशिश की जाती रही है, जिस प्रकार अमेरिका, बि्रटेन, नीदरलैंड अथवा डेनमार्क से इस्लाम के खिलाफ कभी हज़रत मुहम्मद (स.अ.व) के कार्टून आते हैं, कभी कुरआन शरीफ फाड़ने या जलाने कि अफवाह फैलाई जाती है, कभी कुरान जलाए जाने के विवादित विडियो डाले जाते हैं. कभी कोड़े मारने कि सजा के झूठे विडियो आते हैं। यह खुद अपने आप मैं दलील है, कि दुनिया मैं इस्लाम कि शक्ल बिगाड़ने की और दूसरों के दिलों मैं मुसलामानों के लिए नफरत पैदा करने की नाकाम कोशिश की जा रही है।
यह भी सत्य है कि कुछ मुसलमान ,जाने या अनजाने मैं पश्चिमी देशों कि इस साजिश मैं शामिल हैं। एक हैं नीम हाकिम कट्टरपंथी हैं और दूसरे वोह जो हीनता का शिकार हैं. क्योंकि इन्ही के बेबुनियाद फतवों और सोंच को सहारा बना के , इस्लाम को हमेशा बदनाम किया जाता रहा है।
यह भी सत्य है कि मुसलमान औरतों मैं शिक्षा के अभाव के कारण, पर्दा है क्या यह सही तरीके से समझा ही नहीं गया और नतीजे मैं, , हिजाब कि आड़ लेके कट्टरपंथी मुल्लाओं ने औरत को कैदी जैसा बना डाला? इस्लाम मैं जब चेहरे का पर्दा नहीं है , औरत को ज़रुरत पे घर से बाहर जाने कि इजाज़त है, नौकरी करने, पढने, कॉलेज जाने कि आज़ादी है, तो यह कौन से मुसलमान हैं जो औरत को कैदी बना के रखना चाहते है?
अब ज़रा हीनता के शिकार मुसलमानों पे नज़र डालें. जब तक यह मुसलमान ग़रीब होता है, कम पढ़ा लिखा होता है, तब तक तो यह बड़ी पाबन्दी से नमाज़, रोज़ा, हिजाब, दाढ़ी ,जैसे कानून पे अमल करता है। लेकिन जैसी ही इसके पास दौलत आती है, पढ़ लिख जाता है ,वैसे ही दाढ़ी रखने और हिजाब मैं इसको शर्म आने लगती है। इस इंसान को अल्लाह कि समझ से ज्यादा अपनी समझ पे यकीन होने लगता है। कुरान मैं कहा गया है की इंसान अल्लाह से बग़ावत करता है जब इसका पेट भरता है । यह सत्य भी है. आप देख लें इंसान अल्लाह से बग़ावत दुनिया की लज्ज़त ,जैसे दौलत, शोहरत और औरत या मर्द (नामहरम) पाने के लिए किया करता है।
मैं यह जानता हूँ कि बहुत से लोग मेरी इस बात से सहमत नहीं होंगे. लेकिन सत्य फिर सत्य ही हुआ करता है. धयान दें, एक समय था जब मुसलमान कि दाढ़ी रखने पे बहुत बहस हुआ करती थी. कुछ हीन भावना के शिकार मुसलमान भी इसके खिलाफ थे। कुरान मैं दाढ़ी कहां है सवाल उठाए जाते थे। आज जब से फिल्म, धारावाहिकों मैं हर दूसरा अभिनेता दाढ़ी रखने लगा है , तब से इस दाढ़ी पे बहस भी बंद हो गयी है और यही हीन भावना का शिकार मुसलमान शान से दाढ़ी रखता है। यह कौन सा मुस्लमान है जो अपने नबी, पैग़म्बर और इमाम के जगह अभिनेता अभिनेत्रिओं पे ईमान रखता है?
यही कारण हिजाब ना करने का भी है. ध्यान से देखें और बताएं, जिस औरत ने हिजाब करना बंद किया, उसके क्या दिखाया? यकीनन अपनी खूबसूरती को दिखाया और खूबसूरती ग़ैर मर्द को दिखाने का कोई कारण मेरी समझ मैं नहीं आता। आज के फैशन को ज़रा ध्यान से देखें , एक औरत के लिए शर्म उसका जेवर हुआ करता है. आज के फैशन मैं सलवार सूट है तो दुपट्टा ग़ायब, गला बड़ा, तंग पजामा, कुरता कमर से ऊपर तक कटा। साफ़ तौर पे दिखाई देता है कि औरत के जिन जिन हिस्सों को देख मर्द आकर्षित हो सकता है, उसी को पूरे कपड़ों मैं दिखाने कि भरपूर कोशिश कि जाती है। अगर इनसे पूछ लिया जाए कि अभिनेत्रियाँ तो आपका दिल बहलाने के लिए ऐसे कपडे पहनती हैं, आप क्यों पहनती हैं तो कोई सही जवाब नहीं आएगा।
भारतीय नारी तो नारीत्व का, ममता का, करुणा का मूर्तिमान रूप है और पश्चिम कि सभ्यता औरत को एक नुमाइश कि चीज़ समझती है। अफ़सोस की बात है की आज हम भी इसी पश्चिम कि सभ्यता को अपनाने मैं गर्व महसूस करते हैं और जनाब ए मरियम, खदीजा, फातिमा(स), और जैनब कि नसीहतों और किरदार को अपनाने मैं ज़िल्लत महसूस करते हैं।
आज आवश्यकता है की इस्लाम को इन कठमुल्लाओं से आज़ाद करवाया जाए और हीन भावना से ग्रस्त मुस्लमान को इस्लाम की सही शिक्षा दी जाए, जिससे वोह इस्लाम के कानून को सही ढंग से माने और अल्लाह के बनाए बेहतरीन कानून को मानने मैं गर्व महसूस करे।
इसी प्रकार से इस्लाम मैं मर्द को पर स्त्री से दूर रहने को कहा गया है. लेकिन हम किसी ना किसी बहाने पर स्त्री के करीब पहुँच ही जाते हैं.और पूछने पे जवाब की अरे नहीं वो तो बेटी जैसी है, बहन जैसी है और जब इनसे पूछ लिया जाए की कुरान मैं तो ऐसा कोई कानून नहीं की, किसी नामहरम को बहन मान लो, या बेटी मान लो तो वो आपके लिए महरम जैसी हो गयी. तो जवाब मैं आपके ही दिमाग को गन्दा साबित कर देंगे।
क्या यह बात कोई भी समझदार इंसान मान लेगा की कोई ईसाई कुरान जलाने की बात सोंच भी सकता है? ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि कुरआन मैं हज़रत ईसा ,मूसा ,हारुन, इब्राहीम ,नुह जैसे बहुत से नबिओं का ज़िक्र है, जिसपे सभी ईसाई ईमान रखते हैं ।
यह सत्य है कि ऐसे कट्टरपंथी और हीनभावना के शिकार मुसलमान बहुत कम हैं , आज का अधिकतर मुसलमान इस्लाम के दिए शांति सन्देश और इंसानियत पे पैग़ाम पे अमल करता है और आज के अधिकतर पढेलिखे और पैसे वाले मुसलमानों कि औरतें अमरीका से ले के हिन्दुस्तान तक, हिजाब के कानून पे अमल करती हुई दिखाई देती हैं। ऐसे ही मुसलमानों के कारण इस्लाम को बदनाम करने वाले कामयाब हैं।
यह सत्य है कि ऐसे कट्टरपंथी और हीनभावना के शिकार मुसलमान बहुत कम हैं , आज का अधिकतर मुसलमान इस्लाम के दिए शांति सन्देश और इंसानियत पे पैग़ाम पे अमल करता है और आज के अधिकतर पढेलिखे और पैसे वाले मुसलमानों कि औरतें अमरीका से ले के हिन्दुस्तान तक, हिजाब के कानून पे अमल करती हुई दिखाई देती हैं। ऐसे ही मुसलमानों के कारण इस्लाम को बदनाम करने वाले कामयाब हैं।
इस्लाम अमन का मज़हब है. इसका कानून है की अगर एक बेगुनाह की जान ली तो ऐसा हैं जैसे सारी इंसानियत का क़त्ल किया। लेकिन पकिस्तान मैं देख लें आतंकवाद पूरे ज़ोर पे है. यह कौन सा मुसलमान है जो,इस्लाम के अमन के पैग़ाम पे अमल नहीं करता? ज़रा ग़ौर से देखें तो आप को मिलेगा, इनकी आतंकवादी हरकतों का शिकार दूसरे धर्म वाले कम और मुसलमान अधिक हुए हैं।
इस्लाम के सच्चे व वास्तविक स्वरूप को ,मानवीय पक्ष को दुनिया के समक्ष पेश कर के ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चलने वाली इस्लाम विरोधी साजिश ,जिसका मकसद मुसलमानों के लिए लोगों के दिलों में नफरत पैदा करना है ,बेनकाब किया जा सकता है।
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