मिस्र, लीबिया और बहरीन के संदर्भ में लिखा गया कल का लेख ख़ासा लम्बा हो गया था, इसलिए जो समाचार इन देशों के बारे में बहुत महत्वपूर्ण थे और जिन्हें लेख के साथ शामिल किया जाना चाहिए था जगह नहीं पा सके। अतः आज के लेख को थोड़ा संक्षिप्त रखना होगा ताकि वह समाचार जो कल छूट गए थे उन्हें आज हम अपने पाठकों के सामने रख सकें जो विभिन्न स्रोतों से हम तक पहुंचे हैं और जिन समाचारों से स्पष्ट होता है कि अमेरिका में अब एक नया ड्रामा शुरू हो चुका है जैसा कि इराक़ के संदर्भ में हुआ था। आपको याद होगा, पहले इराक़ पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए गए जिससे वहां की जनता का जीना दूभर हो गया, फिर सद्दाम हुसैन को तानाशाह डिक्लेयर किया गया, विनाशकारी हथियारों के ज़ख़ीरे का आरोप लगाया गया, जो कि बरामद न होने पर बाद में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जाॅर्ज वाकर बुश के द्वारा माफ़ी मांगी गई, लेकिन इस बीच इराक़ के हज़ारों बेगुनाह क़त्ल किए जा चुके थे, लाखों बेघर हो चुके थे और इराक़ के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन को फांसी दी जा चुकी थी। इस सबके जवाब में अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश की माफ़ी और बस। अब फिर अमेरिका में यह माहौल पैदा किया जा रहा है जैसे अमेरिकी सरकार दबाव में है, उसे अमेरिकी मूल्यों का ध्यान रखना है। उसे लीबिया में जनता के ऊपर होने वाली ज़ियादतियों को नज़रअंदाज़ नहीं करना है, अतः लीबिया पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए जाने की ज़रूरत है। अर्थात वही जो इराक़ के साथ हुआ था अब लीबिया के साथ किए जाने का माहौल तैयार किया जा रहा है। आजके इस लेख के साथ विस्तृत ख़बर आपकी ख़िदमत में पेश की जाएगी जिसमें यह भी दर्ज है कि लीबिया में व्हाइट हाउस को संबोधित करते हुए नारे लगाए जा रहे हैं कि ‘व्हाइट हाउस तुम कहां हो, हमें तुम्हारी आवश्यकता है’ ऐसा इसलिए कि कल अगर अमेरिका को लीबिया पर हमला करना पड़े तो वह यह कह सके कि हमने लीबियाई जनता की पुकार पर लब्बैक कहा था, उनके ऊपर होने वाले जुल्म को रोकने का यही एक तरीक़ा था। कर्नल क़ज़्ज़ाफ़ी के जुल्म से निजात दिलाने और उसे क़ाबू में करने का बस यही एक तरीक़ा था। अब यह कौन साबित करेगा कि यह नारे लगाने वाले लीबियाई अवाम क्या वास्तव में इसी भावना के साथ अमेरिका को पुकार रहे थे जैसा कि ज़ाहिर किया जा रहा है या फिर उनका इंतिज़ाम अमेरिका ने किया था ताकि उसे हस्तक्षेप का औचित्य मिल सके। इसी तरह अन्य ख़बरों के अनुसार अमेरिकी सदर ओबामा पर जिन दबाव डालने वालों का हवाला पेश किया जा रहा है क्या यह उनकी रणनीति का एक भाग है। किसको किस तरह का रोल अदा करना है। किसे माहौल साज़ी करनी है, किसे दबाव बनाना है, फिर किसे कार्रवाई को अंजाम देना है ताकि अफ़ग़ानिस्तान और इराक़ की तरह कठपुतली सरकारें बिठाई जा सकें और यह सब कुछ पहले से तय है बस सारी दुनिया के सामने रखने का एक तरीक़ा है ताकि विश्व बिरादरी का स्कायू मुख्या यह अधिकार प्राप्त कर ले कि वह दुनिया के जिस देश में चाहे हस्तक्षेप कर सकता है, जो चाहे निर्णय ले सकता है, हम इस बहस में शामिल अमेरिकी शासकों से एक सवाल करना चाहते हैं कि अगर उन्हें चिंता है लीबियाई जनता पर होने वाले जुल्म की, वहां मारे जाने वाले शहरियों की और आप चाहते हैं कि आलमी लीडरान को एक हो कर क़ज़्ज़ाफ़ी को यह विश्वास दिलाने का प्रयास करना चाहिए कि उसका अंजाम अच्छा नहीं होगा और यह बयान है निचले सदन की नेता जो अपोज़िशन से संबंध रखती हैं रिपब्लिकन पार्टी की अलीना रोज़ का, जिन्होंने यहां तक कह दिया कि अमेरिका और अन्य देशों पर पैट्रोल प्रतिबंध लगाने के साथ-साथ उसकी सम्पत्तियां सील करने और लीबिया के अधिकारियों, हुकमरानों और उनके परिवार वालों पर सफ़र करने की पाबंदी लगा देनी चाहिए। दूसरे शब्दों में उन्हें उनके घरों में नज़रबंद कर देना चाहिए। हो सकता है फिर कर्नल क़ज़्ज़ाफ़ी पर भी सद्दाम हुसैन की तरह अमेरिकी इशारे पर क़ायम की गई एक अदालत में मुक़दमा चले और उन्हें भी फांसी की सज़ा सुना दी जाए। विश्व बिरादरी क्या इसी तरह अमेरिका को खुली छूट देने की हामी है कि उसे किसी भी देश में अपनी मर्ज़ी से, अपने अंदाज़ में हस्तक्षेप का अधिकार है। क्या यह आश्चर्यजनक नहीं है कि हज़ारों बेगुनाह इराक़ियों और अफ़ग़ानियों के क़त्ल के जुर्म में जार्ज वाकर बुश पर मुक़दमा चलाए जाने की बात किसी ने नहीं की। क्या अपनी ग़लती को मान लेना और माफ़ी मांग लेना ही काफ़ी है। हो सकता है कि इस विषय पर बदलते हुए हालात की रोशनी में आगे फिर लिखना पड़े लेकिन इस समय हम चाहते हैं कि वह समाचार जो अमेरिका में जारी उन सरगर्मियों को आप तक पहुंचा सकें। हम इस लेख में शामिल कर देना ज़रूरी समझते हैं मुलाहिज़ा करें:
लीबिया के संबंध में ओबामा पर हस्तक्षेप के लिए दबाव:
वांशिंगटन(रायटर), लीबिया में मुअम्मर क़ज़्ज़ाफ़ी के द्वारा लोतंत्र समर्थक प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ हिंसा रोकने के लिए हस्तक्षेप करने के सिलसिले में व्हाइट हाउस पर दबाव बढ़ कया है, क्यों राष्ट्रपति बराक ओबामा के क़ानूनी सलाहकार ने लीबिया में तेल कंपनियां बंद करने पर ज़ोर दिया है। इसके अतिरिक्त अमेरिकी प्रशासन को फ़ौजी कार्रवाई सहित लीबिया के हवाई अड्डों पर बम्बारी, निशेध वायु क्षेत्र ;छव थ्सल ्रवदमद्ध जैसी मांगों का भी सामना करना पड़ रहा है इसके साथ ही राष्ट्रपति बराक ओबामा को यह कहते हुए आलोचना का निशाना बनाया जा रहा है कि लीबिया में हिंसा के दौरान जहां सैकड़ों व्यक्ति हताहत हुए हैं वह चुप्पी क्यों साधे हुए हैं।
सीनेट की विदेशी मामलों से संबंधित कमेटी के चेयरमैन सिनेटर जाॅन केरी ने राष्ट्रपति बराक ओबामा से यह मांग भी कर दी है कि वह लीबिया पर कठोर पाबन्दियाँ लगाने पर दोबारा गौर करें। केरी ने आगे कहा है कि विश्व नेताओं को एक हो कर क़ज़्ज़ाफ़ी को यह बताने का प्रयास करना चाहिए कि वह जो कुछ भी कर रहे हैं उसका अंजाम अच्छा नहीं होगा।
केरी को भी पीछे छोड़ते हुए उनकी विरोधी व निचले सदन की रिपब्लिकन सदस्य अलीना रोज़लहती नैनी ने तो यहां तक कह दिया कि अमेरिका व अन्य देशों को लीबिया पर कठोर आर्थिक पाबंदियां लगाने के साथ-साथ उसकी सम्पत्तियों को ब्लाक करने और लीबिया के अधिकारियों को उनके परिवार वालों पर यात्रा करने की पाबंदी लगा देनी चाहिए।
वाशिंगटन पोस्ट अख़बार ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि लीबिया में नई सरकार के लिए अवाम की मांग सहित लीबिया के विरुद्ध कठोर कार्रवाई करने की आवश्यकता है। अख़बार आगे लिखता है कि क़ज़्ज़ाफ़ी का 41 वर्ष का शासनकाल अधिकतर अमेरिका के ख़िलाफ़ रहा है।
लेकिन अमेरिका में अपोज़िशन का दृष्टिकोण मिस्र और बहरीन की तुलना में लीबिया में कमज़ोर है, क्योंकि मिस्र और बहरीन में वाशिंगटन अपने सहयोगियों के साथ दबाव बनाए रखने में सफल था- जब अमेरिका की विदेशमंत्री हिलेरी क्लिंटन से यह पूछा गया कि क्या वह विरोध बर्दाश्त करने के लिए तैयार हैं तो उन्होंने कहा कि अमेरिकी अधिकारी ‘उचित’ कार्रवाई के सिलसिले में फ़ैसला करने के लिए विश्व बिरादरी के साथ विचार-विमर्श कर रहे हैं।
हिलेरी क्लिंटन ने स्पष्टरूप से कहा कि लीबिया में अमेरिकी नागरिकों की सुरक्षा के संबंध में वाशिंगटन का रवैया सावधानी भरा है। उन्होंने कहा कि अमेरिकियों की ख़ैरियत और उनकी सुरक्षा हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है। इससे पूर्व अमेरिकी विदेशमंत्रालय ने कहा था कि अनावश्यक राजनयिकों और उनके परिवार वालों को लीबिया से वापस बुलाना मश्किल काम है। इसके बाद सरकार के प्रवक्ता पीजे क्रावले ने कहा था कि 35 कर्मियों और उनके परिवार वालों को और कुछ दिनों के लिए वहां छोड़ दिया गया है।
क़ज़्ज़ाफी विरोधी बहुत से प्रदर्शनकारी व्हाइट हाउस के बाहर जमा हुए और उन्होंने यह नारे लगाए ‘व्हाइट हाउस तुम कहां हो, अब लीबिया को तुम्हारी आवश्यकता है’।
कांग्रेस के एक स्टाफ़ ने इस बात का रहस्योदघाटन किया कि वर्ष 2010 में लीबिया को अमेरिकी सहायता 1 मिलियन डाॅलर से कम थी, फिर भी व्यापार की प्रगति उस समय शुरू हुई जब वर्ष 2004 में पाबंदियां हटा ली गईं। स्पष्ट रहे कि लीबिया को अमेरिकी स्पोर्ट 665 मिलियन डाॅलर का था जबकि इम्पोर्ट 2.12 मिलियन डाॅलर का था।
इस समय मध्यपूर्व और पूर्वी अफ़रीक़ा में उभरने वाली अवामी बग़ावतों से ओबामा प्रशासन जूझ रहा है। हर एक देश ने वाशिंगटन के सामने अपनी-अपनी समस्याएं और चैलेंज पेश कर दिए हैं, इसलिए ऐसा महसूस होता है कि मध्यपूर्व की दशकों पुरानी यह पाॅलीसी ऐसा मामला नहीं है जो एक दो सप्ताह में हल हो जाए।
व्हाइट हाउस के प्रवक्ता जे॰कारनी ने कहा है कि वाशिंगटन बढ़ती हुई हिंसा की आलोचना करता है, जिसके कारण अमेरिका में तेल के मूल्य ढाई वर्ष की अवधि में सबसे ऊंची सतह तक पहुंच गए हैं।
जाॅन केरी ने इस बात को भी स्पष्ट किया है कि लीबिया के संबंध में अमेरिका के पास सीमित व्चजपवद हैं फिर भी ओबामा प्रशासन को लीबिया पर दोबारा पाबंदियां लगाने के बारे में सोचना चाहिए और ऊर्जा की कंपनियों को भी इसी तरह का क़दम उठाना चाहिए। अपने एक बयान में उन्होंने आगे कहा कि तमाम अमेरिकी और अंतरराष्ट्रीय तेल कंपनियों को उस समय तक लीबिया में काम रोक देना चाहिए जब तक कि जनता के विरुद्ध हिंसा न रोक दी जाए।
इटली की एनी ने कहा कि लीबिया से उनके देश को अधिक मात्रा में प्राप्त होने वाली तेल की सप्लाई को रोक दिया गया है। इस जनआंदोलन का असर विल्टर शैल ;ॅपदमत ैींससद्ध की इकाई बीएएसएफ़ पर भी पड़ा है जो लीबिया की तेल पैदावार को प्रभावित करना चाहती है। इसके अलावा बीपीओ और राॅयल डच मिशैल सहित अन्य बहुत सी फ़र्मों ने विश्व स्टाॅफ को वापस बुला लिया है। कोनोको फ़िलिप्स और मराथन आॅयल और हेस ;भ्मेेद्ध ऐसी अमेरिकी फ़र्में हैं जिनका लीबियन नैशनल आॅयल कार्पोरेशन के संयुक्त उद्यम में 40 प्रतिशत से अधिक हिस्सा है जोकि वहां ;ॅ।भ्।द्ध विशेषरूप के तहत 350000 बैरल तेल रोज़ पैदा करती हैं।
‘आक्सी डेंटल पैट्रोलियम’ अमेरिका की ऐसी पहली फ़र्म है जिसने प्रतिबंध हटाए जाने के बाद सबसे पहले लीबिया में तेल पैदा करने का काम शुरू किया। तेल के क्षेत्र में वापस आने से पूर्व उसने दो दशक पहले काम शुरू किया था।
ऐसा महसूस होता है कि प्रभावी होने के लिए नई पाबंदियां लगाने में अभी समय लगेगा क्योंकि उसके तेल विशेषज्ञों ने तेल को ‘हार्ड करंसी’ का रूप दे दिया है। व्हाइट हाउस के सूत्रों के अनुयार जाॅन केरी के प्रस्ताव का अध्ययन किया जा रहा है। लेकिन इस समय प्रशासन का ध्यान ख़ून-ख़राबा बंद कराने पर टिका हुआ है। वाशिंगटन स्थ्ति ‘ब्रोकिंग्स इंस्टीट्यूशन’ के विचारक डैनियल बाइमैन का कहना है कि लीबिया में अमेरिका का तुलनात्मक प्रभाव मामूली है।
इसमें कोई शक नहीं कि इससे अमेरिकी हित जुड़े हैं लेकिन यह हित अधिकतर अंतरराष्ट्रीय हैं और वह भी विशेषरूप से तेल।
प्रयेवक्षकों का विचार है कि फ़ौजी कार्रवाई से देश में तेल का संकट पैदा हो सकता है। हालांकि अमेरिका ने पूर्व में क़ज़्ज़ाफ़ी के विरुद्ध फ़ोर्स प्रयोग करने में गुरेज़ नहीं किया था।
अमेरिकी फ़ौजी अधिकारियों के लिए स्थापित किए गए वैस्ट बर्लिंग डिस्को पर बम्बारी की सज़ा में अमेरिका ने 1986 में त्रिपोली और दूसरे बड़े नगर बिन-ग़ाज़ी में बम्बारी की थी और उस समय 40 से अधिक लीबियाई नागरिक मारे गए थे जिसमें क़ज़्ज़ाफ़ी की गोद ली हुई लड़की भी शामिल थी।
लीबिया के द्वारा आतंकवादियों का समर्थन करने के कारण कई दशकों तक संबंध ख़राब रहने के बाद जब 2003 में क़ज़्ज़ाफ़ी ने विनाश्कारी हथियारों का प्रोग्राम छोड़ दिया तो अमेरिका ने आहिस्ता-आहिस्ता संबंध बेहतर करने शुरू कर दिए। 1968 में जब स्काॅटलैंड ने पान-एम-103 जहाज़ पर बम्बारी करने की लीबिया ने ज़िम्मेदारी स्वीकार की तो अमेरिका ने आहिस्ता-आहिस्ता आर्थिक प्रतिबंघ हटा लिए थे।
No comments:
Post a Comment