मोहाली में भारत के साथ सेमीफाइनल मैच से ठीक पहले पाकिस्तानी कप्तान शाहिद अफरीदी ने सचिन तेंडुलकर को फिर ललकारा है। उन्होंने कहा कि सचिन अगर बुधवार को सेंचुरी बना भी लेते हैं, तो भी जरूरी नहीं है कि भारत जीतेगा ही। ऐसा पहले भी कई बार हो चुका है। गौरतलब है कि इससे कुछ दिन पहले ही अफरीदी ने बयान दिया था कि वह मोहाली में सचिन की 100वीं सेंचुरी नहीं बनने देंगे। अफरीदी ने इस बार कहा, 'सचिन की महानता में कोई संदेह नहीं है। लेकिन कोई अगर मुझसे सचिन और बुधवार को हो रहे सेमीफाइनल मुकाबले के बारे में पूछे, तो इतना तय है कि हम उन्हें रन नहीं बनाने देंगे। और अगर वह सेंचुरी बना भी लेते हैं तो कई ऐसे उदाहरण हैं जब सचिन ने सेंचुरी बनाई है और भारत मैच हारा है।' उधर, शोएब अख्तर पर अफरीदी ने कहा कि इस पर अभी अंतिम फैसला नहीं लिया गया है। हम इस पर बुधवार को फैसला लेंगे। उन्होंने कहा कि शोएब 100% फिट नहीं हैं। हम चाहते हैं कि शोएब पांच-छह ओवर नहीं, पूरे 10 ओवर डालें।
"Allah will not be merciful to those who are not merciful to mankind" (Sahih Bukhari-7376)
Tuesday, March 29, 2011
सबसे अमीर दिल्ली वक़्फ बोर्ड को कर दिया कंगाल
(अनवर चौहान की खास रिपोर्ट) पुर्खों ने जायदाद इसलिए वक्फ की थी कि ग़रीबों और यतीमों के काम आएगी। तब ये बात किसी के ख्वाबो-ख्यालों भी नहीं होगी कि उनकी जायदाद का नाजायज़ इस्तेमाल होगा। वरना तो कोई भी अपनी जायदाद को वक्फ नहीं करता। नाजायज़ शब्द पर चौकिए मत...दिल थाम कर वक्फ बोर्ड के काले कारनामों की कार गुज़ारी जानिए। वक्फ जायदाद के लुटेरों की दास्तान एक ख़बर में समेटी नहीं जा सकती। पढ़िए इसकी सिलसिलेवार किश्त...
वक्फ जायदाद के लुटेरे- पहली किश्त
केंद्र में कांग्रेस का राज, जिसकी सर्वे-सर्वा सोनियां गांधी, दिल्ली में कांग्रेस की सरकार, जिसकी मुखिया शीला दीक्षित। वक्फ की जायदाद की देख-रेख का ज़िम्मा था कांग्रेसी विधायक चौधरी मतीन के पास। एक तरफ सरकारी रिपोर्ट कह रही है देश में मुसलमानों की हालत खस्ता है। लेकिन इसकी किस को परवाह है। आप खुद अंदाज़ा लगाइये।
बाहरी दिल्ली में वक्फ बोर्ड की 62 बीघा ज़मीन 38 लोगों को किराए पर दी गई। किरायदार नंबर 1 राकेश कुमार, ज़मीन 1018 गज़, किराया 255 रुपए। किरायदार नंबर 2 संजय अरोड़ा, ज़मीन 1000 गज़, किराया 255 रूपए। किरायदार नंबर तीन सतीश कुमार गुप्ता, ज़मीन 1000 गज़, किराया 250 रूपए। किरायदार नंबर 4 राजेंद्र कुमार, ज़मीन 1000 गज़, किराया 250 रूपए। किरायदार नंबर 5 नीलम बुधराज, ज़मीन 920 गज़, किराया 230 रूपए। किरायदार नंबर 6 संजीव पुरी, ज़मीन 1000 गज़, किराया 250 रूपए। किरायदार नंबर 7 इंदर दूआ, ज़मीन 1000 गज़, किराया 250 रूपए। किरायदार नंबर 8 हरिंदर सिंह, ज़मीन 1000 गज़, 250 रूपए। किरायदार नंबर 9 आदर्श टंडन, ज़मीन 1000 गज़, किराया 250 रूपए। किरायदार नंबर 10 वंदना अरोड़ा, ज़मीन 1000 गज़, किराया 250 रूपए। किरायदार नंबर 11 नंदिता अरोड़ा, ज़मीन 1000 गज़, किराया 250 रूपए। किरायदार नंबर 11, ज़मीन 1000 गज़, किराया 250 रूपए। किरायदार नंबर 12 अरूण कुमार, ज़मीन 1000 गज़, किराया 250 रूपए। किरायदार नंबर 13 अरण कुमार, ज़मीन 1000 गज़, किराया 250 रूपए। किरायदार नंबर 14 ओमप्रकाश, ज़मीन 1000 गज़, किराया 250 रूपए। किरायदार नंबर 15 रजनीश धींगड़ा, ज़मीन 1000 गज़, किराया 250 रूपए। किरायदार नंबर 16 सतीश कुमार गुप्ता, ज़मीन 1000 गज़, किराया 250 रूपए। किरायदार नंबर 17 नरेश चंद अग्रवाल, ज़मीन 1000 गज़, किराया 250 रूपए। किरायदार नंबर 18, ज़मीन 1055 गज़, किराया 264 रूपए। किरायदार नंबर 19 शिखा चावला, ज़मीन 1000 गज़, किराया 250 रूपए। किरायदार नंबर 20, ज़मीन 1000 गज़, किराया 250 रूपए। किरायदार नंबर 21 लक्ष्मी अरोड़ा, ज़मीन 1000 गज़, किराया 250 रूपए। किरायदार 22 मदन गुप्ता, ज़मीन 1000 गज़, किराया 250 रूपए। किरायदार नंबर 23 पुष्प लता, ज़मीन 1000 गज़, किराया 250 रूपए। किरायदार नंबर 24 इंदर पॉल सिंह, ज़मीन 1000 गज़, किराया 250 रूपए। किरायदार नंबर 25 जतिंदर पाल सिंह, ज़मीन 1000 गज़, किराया 250 रूपए। किरायदार नंबर 26 जतिंदर पाल सिंह, ज़मीन 1000 गज़, किराया 250 रूपए। किरायदार नंबर 27 निर्मल यादव ज़मीन 1007 गज़, किराया 252 रूपए। किरायदार नंबर 28 सौरभ यादव, ज़मीन 1006 गज़, किराया 252 रूपए। किरायदार नंबर 29 पुनीत यादव, ज़मीन 1006 गज़, किराया 252 रूपए। किरायदार नंबर 30 संदीप कालिया, ज़मीन 1120 गज़, किराया 280 रूपए। किरायदार नंबर 31 सुनीता कालिया, ज़मीन 1098 गज़, किराया 275 रूपए। किरायदार नंबर 32 आतित्य दुआ, ज़मीन 1000 गज़, किराया 250 रूपए। किरायदार नंबर 33 अरविंद कुमार, ज़मीन 1000 गज़, किराया 250 रूपए। किरायदार नंबर 34 राम अवतार, ज़मीन 1000 गज़, किराया 250 रूपए। किरायदार नंबर 35 सुमन दुआ, ज़मीन 1000 गज़, किराया 250 रूपए। किरायदार नंबर 36 अजीत सिंह, ज़मीन 1016 गज़, किराया 254 रूपए। किरायदार नंबर 37, ज़मीन 1007 गज़, किराया 252 रूपए। किरायदार नंबर 38 सुनीता कालिया, ज़मीन 1000 गज़, किराया 250 रूपए।
ये फेहरिस्त पढ़ने के बाद क्या लगता है आपको ? लगता नहीं रखवाल ने ही उजाड़ दिया चमन।
वक्फ जायदाद के लुटेरे....किश्त दो
वक्फ बोर्ड के चैयरमेन रहे चौधरी मतीन के कार्यकाल में जो भी ज़मीनें, प्लाट और दूसरी जायदाद किराए पर दी गईं। या दूसरे कार्य हुए उसकी जानकारी आरटीआई के ज़रिए निकलवाई गई। आरटीआई ने जो जानकारी दी है यक़ीनन चौंका देने वाली है। लेकिन कई जगह वक्फ बोर्ड ने सवालों का जवाब तो दिया है लेकिन बात गोल-मोल की। जवाब पढ़ने के बाद साफ हो जाता है कि वक्फ बोर्ड बहुत कुछ छुपाने की कोशिश कर रहा है। लेकिन इसी आईटीआई को आधार बनाकर दिल्ली की अली सेना पार्टी, इस मामले को लोकायुक्त के यहां ले गई है। उसने मुकदमे में कांग्रेसी विधायक चौधरी मतीन और दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को पार्टी बनाया है। तहरीर में कहा गया है कि वक्फ बोर्ड में करोड़ों का नहीं अरबों का घोटाला हुआ है। इसकी जांच के आदेश होने चाहिए। अर्ज़ी के साथ दस्तावेज़ी सबूत लगाए गए हैं। इन्हीं दस्वेज़ों के आधार पर अली सेना ने चौधरी मतीन और दिल्ली की मुखिया शीला दीक्षित के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज करने की भी मांग की है। इमामों की तंज़ीम के सदर कहलाए जाने वाले मरहूम जमील इल्यासी के बेटे शुएब इल्यासी को काका नगर में दी गई 462.44 वर्ग गज़ जमीन का भी जिक्र है। ये ज़मीन बिना एडवांस लिए 5000 रूपए प्रतिमाह की दर से दी गई है। जबकि इस इलाके में एक लाख रूपए प्रति गज़ किराए के दाम चल रहे हैं। अर्जी से हटकर एक बात लिखनी पड़ रही कि जमील इल्यासी और अब उनकी जगह इमामत कर रहे उनके बड़े बेटे उमैर इल्यासी तो लालकृष्ण आड़वानी और आरएसएस के खास लोगों में रहे हैं। उनके पास अब भी संघ के लोगों का खासा आना जाना है। लेकिन कांग्रेसियों ने भाजपाइयों पर कैसे एहसान कर दिया,बात समझ से परे है। खैर इसकी असलियत चौधरी मतीन जानते हैं या फिर शीला दीक्षित। कि वो उन पर क्यों मेहरबान हैं। अली सेना के अध्यक्ष एमचांद ने कहा कि है कि वक्फ की जायदाद मुसलमानों की जायदाद है। इस पर से सरकारी दखल हटाना चाहिए। वक्फ की ज़मीनों की देख-रेख का ज़िम्मा सिर्फ और सिर्फ मुसलमानों की तंज़ीम के पास होना चाहिए। और तंज़ीम से हिसाब मांगने का अख्तियार हर मुसलमान के पास होना चाहिए।
लुट गई वक्फ की जायदाद........किश्त 3
किराएदार नंबर 1 सतबीर सिंह, ज़मीन 273.65 गज़, चंदा लिया 219200, ज़मीन का किराया 822 रूपए महीना। बाकी 45 किराएदारों से वक्फ बोर्ड कोई चंदा नहीं वसूला। किराएदार नंबर 2 रवीद्र पाल सिंह, किराया 252 रूपए, किराएदार नंबर 3 काशीराम, किराया 141 रूपए, किरायदार नंबर 4 महोहिंदर, किराया 96 रूपए, किरायदार नंबर 5 रवींद्र कुमार, किराया 81 रूपए, किरायदार नंबर 6 मोहिंदर, किराया 129 रूपए, किरायदार नंबर 7 बल्लू किराया 75 रूपए, किरायदार नंबर 8 राम कुमार, किराया 81 रूपए, किरायदार नंबर 9 डाली राम, किराया 75 रूपए, किरायदार नंबर 10 जोगंद्र, किराया 78 रूपए, किरायदार नंबर 11 दीवान, किराया 75 रूपए, किरायदार नंबर 12 प्रकाश, किराया 75 रूपए, किरायदार नंबर 13 प्रकाश, किराया 102 रूपए, किरायदार नंबर 14 कर्मबीर, किराया 96 रूपए, किरायदार नंबर 15 प्रकाश , किराया 141 रूपए,किरायदार नंबर 16 होशियारे, किराया 90 रूपए, किरायदार नंबर 17 बलजीत, किराया 90 रूपए, किरायदार नंबर 18 रमेश, किराया 75 रूपए, किरायदार नंबर 19 प्रीतम, किराया 96 रूपए,किरायदार नंबर 20 इंदिरा किराया 96 रूपए, किरायदार नंबर 21 संजय, किराया 75 रूपए, किरायदार नंबर 22 संजय, किराया 96 रूपए,किरायदार नंबर 23, सत्यवान, किराया 96 रूपए,किरायदार नंबर 24 गोपी, किराया 72 रूपए,किरायदार नंबर 25 केला, किराया 78 रूपए, किरायदार नंबर 26 रवींद्र, किराया 277 रूपए,किरायदार नंबर 27 काशीराम, किराया 155 रूपए,किरायदार नंबर 28 रवींद्र, किराया 89 रूपए,किरायदार नंबर 29 मोहिंदर, किराया 142 रूपए,
किरायदार नंबर 30 बल्लू, किराया 83 रूपए,किरायदार नंबर 31 रामकुमार, किराया 89 रूपए,किरायदार नंबर 32, डाली राम, किराया 83 रूपए, किरायदार नंबर 33 जोगिंदर, किराया 86 रूपए, किरायदार नंबर 34 दीवन, किराया 83 रूपए,किरायदार नंबर 35 प्रकाश, किराया 83 रूपए,किरायदार नंबर 36 प्रकाश, किराया 112 रूपए, किरायदार नंबर 37 कर्मबीर, किराया 106 रूपए, किरायदार नंबर 38 प्रकाश किराया 116 रूपए,किरायदार नंबर 39, होशियारे, किराया 99 रूपए,किरायदार नंबर 40, बलजीत, किराया 99 रूपए,किरायदार नंबर 41, रमेश, किराया 83 रूपए, किरायदार नंबर 42 संते, किराया 83 रूपए,किरायदार नंबर 43 संजय, किराया 106 रूपए,किरायदार नंबर 44, पीतराम, किराया 106 रूपए,किरायदार नंबर 45, इंदिरा, किराया 106 रूपए, किरायदार नंबर 46, सत्यवान, किराया 106 रूपए, फेहरिस्त यदि ग़ौर से न पढ़ी हो तो दोबारा ध्यान से देखें। वक्फ बोर्ड किसी पर मेहरबान हुआ तो कई-कई बार हुआ। फेहरिस्त के मुताबिक रवींद्र को चार जगह किराए पर दी गई हैं। जबकि मोहिंदर को तीन, प्रकाश को 5, संजय को 3 और 13 लोगों को दो-दो बार जगह मिली है। फेहरिस्त में किसी मुसलमान का नाम नहीं है। शायद चैयरमेन की नज़र में कोई मुसलमान वक्फ बोर्ड की ज़मीन का हक़दार नहीं था। या फिर दिल्ली में इतने-खाते-पीते मुसलमान हैं कि उन्हें वक्फ बोर्ड की ज़मीन किराए पर चाहिए नहीं। या फिर चैयरमे साहब ने अपने आप को वफादार कांग्रेसी साबित करने के लिए इस फेहरिस्त में किसी मुसलमान को शामिल नहीं किया। मेरा काम लिखने का था और बाक़ी मुसलमानों का काम इस मामले को गंभीरता से सोचने का है। क्या वक्फ बोर्ड पर पहले हक़ किस का था।
लुट गई वक्फ की जायदाद....किश्त 4
वक्फ जायदाद, दुकान नंबर 1270, फखरुल, मस्जिद कश्मीरी गेट दिल्ली, किरायदार सोहन लाल, किराया 35 रूपए,दुकान नंबर 1272 वक्फ फखरुल, मस्जिद कश्मीरी गेट, किरायदार सुरेश चंद्र अग्रवाल, 1100 रुपए, दुकान नंबर 1273 वक्फ फखरुल, मस्जिद कश्मीरी गेट, किरायदार प्रेम लता, किराया 75। दुकान नंबर 1274, वक्फ फखरुल,मस्जिद कश्मीरी गेट, किरायदार मुरली मनोहर कपूर, किराया 439। दुकान नंबर 1275, 1276, वक्फ फखरुल, मस्जिद कश्मीरी गेट, किरायदार मोहित लाल बंसल, किराया 1500। स्टोर नंबर 1277, वक्फ फखरुल, मस्जिद कश्मीरी गेट, किराएदार अमित लाल बंसल, किराया 3000। दुकान नंबर 902, छोटी मस्जिद हैमिल्टन रोड कश्मीरी गेट, किरायदार चरणजीत मदन, किराया 32 रूपए। दुकान नंबर 903, छोटी मस्जिद हैमिल्टन रोड कश्मीरी गेट, किरायदार रामकिशन नाजवानी, किराया 195 रुपए। दुकान नंबर 1014, छोटी मस्जिद हैमिल्टन रोड कश्मीरी गेट, किरायदार मनोहर सिंह, किराया 322 रुपए। बाला खाना नंबर 694, वक्फ की वज़ीरुननिसा कश्मीरी गेट, किरायदार अनिल अरोड़ा, किराया 1210 रूपए। दुकान नंबर 697, वक्फ की वज़ीरुननिसा कश्मीरी गेट ने, किरायदार श्याम सुंदर बब्बर, किराया 354 रूपए, दुकान नंबर 697, वक्फ की वज़ीरुननिसा कश्मीरी गेट ने, किरायदार अनिल गाबा,सुनील गाबा, दिनेश गाबा,किराया 733 रूपए। दुकान नंबर 698, वक्फ की वज़ीरुननिसा कश्मीरी गेट ने, किरायदार विजय आर्य, राजीव आर्य,किराया 1000 रूपए। दुकान नंबर 699, वक्फ की वज़ीरुननिसा कश्मीरी गेट ने, किरायदार विनोद कुमार, किराया 215 रुपए। दुकान नंबर 700, वक्फ की वज़ीरुननिसा कश्मीरी गेट ने, किरायदार हरीश चंद्र अरोड़ा, किराया 1210 रुपए। दुकान नंबर 700ए, वक्फ की वज़ीरुननिसा कश्मीरी गेट ने, किरायदार अनिल अरोड़ा, किराया 1210। दुकान नंबर 701, वक्फ की वज़ीरुननिसा कश्मीरी गेट ने, किरायदार ओमप्रकाश, किराया 64 रूपए। दुकान नंबर 2789, मस्जिद काकवान कश्मीरी गेट दिल्ली, किरायदार कुनाल जैन, किराया 2500। दुकान नंबर 460, मस्जिद जीनतबरी कश्मीरी गेट, किरायदार नरेंद्र सेठी, किराया 322। दुकान नंबर 460, किरायदार मीरा कुमारी, किराया 531 रुपए। दुकान नंबर 460, मस्जिद जीनतबरी कश्मीरी गेट, किरायदार गुरमुख मल्होत्रा, किराया 880 रुपए। दुकान नंबर 460, मस्जिद जीनतबरी कश्मीरी गेट, किरायदार गीता भंडारी, किराया 483, दुकान नंबर 460, मस्जिद जीनतबरी कश्मीरी गेट, किरायदार मोहन लाल छाबड़ा, किराया 77 रुपए। दुकान नंबर 711,ऊंची मस्जिद कश्मीरी गेट, किरायदार भोला राम, किराया 85 रूपए। दुकान नंबर 712,ऊंची मस्जिद कश्मीरी गेट, किरायदार अनिल कुमार गुप्ता, किराया 550, दुकान नंबर 713-14,ऊंची मस्जिद कश्मीरी गेट, किरायदार घासी राम, किराया 26 रुपए। दुकान नंबर 715,ऊंची मस्जिद कश्मीरी गेट, किरायदार ओमप्रकाश, किराया 243 रपए। दुकान नंबर 718,ऊंची मस्जिद कश्मीरी गेट, किरायदार साधू राम, किराया 44 रूपए। दुकान नंबर 720,ऊंची मस्जिद कश्मीरी गेट, किरायदार राधे श्याम, किराया 322 रुपए। दुकान नंबर 721,ऊंची मस्जिद कश्मीरी गेट, किरायदार बलदेव राज, किराया 17 रुपए। दुकान नंबर 722,ऊंची मस्जिद कश्मीरी गेट, किरायदार राजन छाबड़ा, किराया 880 रुपए। फेहरिस्त बहुत लंबी है....अगली किश्त लिखना मजूबरी है। फेहरिस्त अपने आप बहुत कुछ कहती है। जिन लोगों के पास वक्फ की ये जायदाद है आज वो हैसियतमंद लोग कहलाते हैं। और जिनकी ये कभी जायदाद हुआ करती थी उनके वारिसों की हालत खस्ता है। एक बड़ी तादात ऐसे लोगों की है जो दो वक्त की रोटी के लिए जद्दो-जहद कर रहे हैं। सिरीज़ जारी होने के बाद से लेकर अब तक हमें हज़ारों लोगों ने मेल पर अपनी राय भेजी है। लगता है पाठकों की राय भी किश्तों में जारी करनी पड़ेगी। लेकिन ज़्यादातर पाठकों की एक ही राय है कि वक्फ की जायदाद पर सिर्फ मुसलमानों का हक होना चाहिए। और वक्फ बोर्ड को सरकार से मुक्त कराना चाहिए। वरना जायदाद की लूट जारी रहेगी।
जारी रहेगी अगली किश्त
लीबिया-सलीबी जंग के नर्ग़े में - अज़ीज़ बर्नी
यादगार लम्हा, इमाम-ए-हरम की इक़्ितदा में नमाज़ पढ़ने का सौभाग्य, नमाज़े इशा, स्थान 28 अकबर रोड, मक़ाम रिहाइश जनाब के॰ रहमान, डिप्टी चेयरमैन राज्य सभा, तारीख़ 27 मार्च 2011 तदानुसार 22 रबीउस्सानी 1432 हिजरी। यह उल्लेख इसलिए कि यह ऐतिहासिक क्षण था, लिहाज़ा दिल चाहता है कि इसे इतिहास के पन्नों में दर्ज कर दिया जाए कि गत तीन दिनों में कई बार फ़रज़ंदान-ए-तौहीद को भारत की धरती पर इमाम-ए-हरम की इमामत में नमाज़ पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ और उनमें लेखक भी शामिल था। नमाज़ से फ़ारिग़ होने के बाद जब सामना हुआ जस्टिस फ़ख़रुद्दीन अहमद और दिल्ली विधानसभा में जामा मस्जिद क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले विधायक हाजी मुहम्मद शुऐब इक़बाल से तो चर्चा हुई रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा में प्रकाशित होने वाले मेरे सिलसिलेवार लेखों की, दिलों पर इसके प्रभाव की और फिर शिकवा यह भी कि आख़िर यह सिलसिला रुक क्यों गया है। जब उनके इस प्रश्न को मैंने स्वयं अपने आप से किया तो आवश्यक लगा कि जो उत्तर मुझे मेरे दिल व दिमाग़ ने दिया, वह पूरी ईमानदारी के साथ आपके सामने रख दूं, इस बीच मैं स्वयं अपने लेख को पढ़ता रहा हूं। बदलते परिदृश्य पर उन लेखों का प्रभाव देखता रहा हूं। बहुत उत्साहवर्धक है परंतु कहीं कुछ प्यास का एहसास भी है। कभी-कभी तो कुछ ऐसा लगता है जैसे अंधेरी रातों में एक पहरेदार अपने एक हाथ में मद्धिम सी रोशनी की लालटेन और दूसरे हाथ में एक मोटा सा डंडा लिए आवाज़ लगाता जाता है ‘‘जागते रहो’’ और बस्ती के लोग गहरी नींद में सो जाते हैं। उसके क़दमों की आहट, कानों को जानी पहचानी उसके डंडे के ज़मीन के टकराने की आवाज़ और बस उसके अपने अस्तित्व के दायरे में सिमट कर रह जाने वाली उसकी लालटेन की रोशनी न जाने क्यों भयानक अंधेरी रातों में भी हमें यह एहसास दिलाती है कि अब कोई ख़तरा नहीं है, हम गहरी नींद में सो सकते हैं। जबकि वह बेचारा ग़रीब तो हर क्षण चीख़-चीख़ कर कह रहा होता है ‘‘जागते रहो’’। फिर हम सो क्यों जाते हैं। कहीं मेरा क़लम उस डंडे की भांति कानों को परिचित एक आवाज़ मात्र बन कर रह गया है, कहीं मेरा संदेश उस मद्धिम सी रोशनी वाली लालटेन का रूप तो धारण नहीं कर गया है। जिसकी रोशनी बस उसके अस्तित्व तक सिमट कर रह गई है जिसके वह हाथ में है उसकी आवाज़ जगाने के प्रतीक के बजाए गहरी नींद में सोे जाने का संदेश तो नहीं बन गई है। अगर ऐसा है तो कुछ दिन के लिए इस पहरेदार के क़दमों की आहट रोक देते हैं शायद अब बस्ती के लोग ख़ुद जागने की ज़रूरत महसूस करने लगें, उस बस्ती के पहरेदार के क़दमों की आहट क्यों रुक गई इस पर विचार करने लगें और यह क्षण उन्हें सर जोड़ कर बैठने के लिए आमादा कर दे। जस्टिस फ़ख़रुद्दीन अहमद और हाजी शुऐब इक़बाल की गुफ़्तुगू मुझे सिर जोड़ कर बैठने का एक प्रयास नज़र आया। शायद अब हम अपने और आसपास के हालात पर विचार करने की आवश्यकता महसूस करने लगे हैं। माना कि वह बस्ती ज़रा दूर है जो इस समय ख़तरे में है, परंतु यह ख़तरा कल हमारी चैखट तक नहीं पहुंचेगा इसकी क्या गारंटी है। अगर हम आज उसकी मदद के लिए आगे नहीं आएंगे जिसे हमारी मदद की आवश्यकता है तो फिर कल हमारी मदद के लिए कौन आयगा। इराक़ और अफ़ग़ानिस्तान की तबाही ने हमें जागरुक क्यों नहीं किया। मिस्र, लीबिया और बहरीन के हालात हमें सोचने के लिए मजबूर क्यों नहीं करते, एक-एक करके मुस्लिम देश तबाह होते जाएंगे और हम सब केवल तमाशा देखते रह जाएंगे, फिर यह आग हमारे दामन तक पहुंचेगी और हम उसे बुझा नहीं पाएंगे। इस्लाम पर कहीं तानाशाही के हवाले से हमलें, कहीं आतंकवाद के हवाले से है तो कहीं कट्टरपंथ को बहाना बनाकर है और हम ह्न और हम बस अपने दायरे में गुम हैं। पहरेदार का काम है वह आवाज़ लगाए ‘‘जागते रहो’’ और हमारा काम है
मैंने एक बार फिर पन्ने पलटे उन लेखों के, जहां से यह सिलसिला टूटा था। अगर अन्य विषयों पर लिखे गए लेखों की चर्चा इस समय न करूं तो लीबिया, मिस्र तथा बहरीन के हालात पर लिखे गए दो लेख ‘‘मिस्र, लीबिया, बहरीन, जमहूरी अमल या अमेरिकी दख़ल’’ (25 फ़रवरी 2011 क़िस्त न॰ 215) और ‘‘क्या कर्नल क़ज़्ज़ाफ़ी का अंजाम भी सद्दाम हुसैन की तरह ह्न’’ (26 फ़रवरी 2011, क़िस्त न॰216) का उल्लेख करना आवश्यक लगात है। क्योंकि यह कुछ सोचने पर मजबूर करते थे एक आन्दोलन चलाने पर आमादा करते थे परंतु क्या ऐसा हुआ ह्न? लिखा इसके बाद भी परंतु वह ऐसे विषय हैं जिन पर हम बाद में भी विचार कर सकते हैं लेकिन लीबिया!
लगभग एक महीने की अवधि बीत गई लीबिया तथा बहरीन के हालात हमाने सामने हैं। मुझे आवश्यक लगता है कि इस सिलसिले में लिखे अपने दोनों लेखों की कुछ पंक्तियां एक बार फिर पाठकों की सेवा में प्रस्तुत करूं और उनसे यह निवेदन करूं कि इस बीच प्रकट होने वाली परिस्थितियों पर एक नज़र डालें। क्या जो आशंकाएं हमने अपने लेख में व्यक्त की थीं, वह दुरुस्त साबित नहीं हुईं। फिर एक प्रश्न अपने आप से करें कि अगर हमने समय रहते ध्यान दिया होता, इन आशंकाओं को ध्यान में रख कर आंदोलन चलाने का फ़ैसला कर लिया होता तो शायद ‘लीबिया’ आज ‘इराक’़ जैसे हालात से न गुज़र रहा होता। यही कहा था मैंने जनाब मुहम्मद शुऐब इक़बाल से और केवल उनसे ही नहीं, बल्कि अपने लेखों द्वारा अपने सभी पाठकों से भी कि क्या पर्याप्त है ऐसे नाज़्ाुक हालात में केवल मेरा लिख देना और आपका पढ़ लेना। क्या ज़रूरी नहीं है कि हम एक ऐसा आन्दोलन चलाएं, जिससे कि इस्लाम विरोधी ताक़तें अपने हर उस क़दम के बारे में सौ बार सोचने पर मजबूर हों कि जो मुस्लिम देशों की तबाही की दिशा में उठाने का इरादा रखते हों।
निश्चय ही यह एक सुखद संदेश है। भारत के इतिहास में पिछले तीन दिनों की घटनाएं गवाह रहेंगी कि भारत की धरती पर इमाम-ए-हरम के आगमन ने जो भावनात्मक स्थिति पैदा की वह पिछले सैकड़ों बरसों में इस धरती पर क़दम रखने वाले किसी भी राष्ट्राध्यक्ष के आगमन पर नहीं हुई। यह स्पष्ट इशारा है हमारी धार्मिक भावनाओं का। बस इसी हवाले से यह कुछ पंक्तियां लिखने का साहस कर रहा हूं कि हम अपनी इस भावना को क़ायम रखें। ऐसे सभी अवसरों के लिए भी और पूरी दुनिया में कहीं भी अगर मानवता पर अत्याचार हो रहा हो या इस्लाम विरोधी ताक़तें मुस्लिम देशों पर आक्रमण कर रही हों तो हम इसी भावना और उत्साह का प्रदर्शन करें। अभी भी समय है, अगर हम लेख को लेख तक सीमित न रहने दें, बल्कि उसे आंदोलन का रूप दे दें तो आज लीबिया और बहरीन को बचाया जा सकता है और आने वाले कल में इस सूचि में शामिल हो सकने वाले अन्य देशों को भी बचाया जा सकता है। दरअसल अफ़ग़ानिस्तान और इराक़ की तबाही के बाद ही हमें यह सबक़ सीख लेना चाहिए था और जब मिस्र में बग़ावत के हालात पैदा हुए तो समझ लेना चाहिए था कि इस बग़ावत का कारण क्या वही है जो नज़र आ रहा है या परदे के पीछे षड़यंत्र कुछ और भी है। हम यह नहीं चाहते कि मुस्लिम देशों में लोकतंत्र मज़बूत न हो, अवश्य हो, परंतु यह अमेरिकी हस्तक्षेप के बिना हो। हम इस दिशा में गहराई से न सोच कर एक बहुत बड़े ख़तरे को दावत दे रहे हैं। मैं निराश तो नहीं हूं, हां परंतु यह एहसास अवश्य है कि बावजूद क़दम-क़दम पर सराहे जाने के अभी भी इन लेखों में वह बात पैदा नहीं कर पाया हूं कि यह आन्दोलन का रूप धारण कर सकें। मेरे सामने है पिछले एक माह में लीबिया के हालात और मेरे वह दो लेख भी, जिनका उल्लेख मैंने अपने इस लेख के आरंभ में किया था। मैं चाहता हूँ कि अपने पाठकों के सामने संक्षिप्तरूप से आज के हालात भी रख दूं और इस सिलसिले में लिखे गए अपने लेखों के कुछ अंश भी, ताकि यह यक़ीन दिला सकूं कि जो कुछ आज हम देख रहे हैं इसका अंदाज़ा बहुत पहले ही कर लिया गया था और आपके सामने रख भी दिया गया था। काश उसी समय हमने लीबिया को अमेरिकी शिकंजे से बचाने का फै़सला कर लिया होता।
मिस्र, लीबिया, बहरीन, जम्हूरी अमल या अमेरिकी दख़ल
25 फरवरी 2011, क़िस्त 215
सद्दाम हुसैन-हुसनी मुबारक - कर्नल क़ज़्ज़ाफ़ी अपने-अपने देश की पहचान माने जाते रहे हैं और इसमें भी कोई संदेह नहीं कि यह सभी अत्यंत शक्तिशाली शासक रहे हैं। सद्दाम हुसैन ने 24 वर्ष इराक़ पर शासन किया, हुसनी मुबारक ने 30 वर्ष और कर्नल क़ज़्ज़ाफ़ी ने 41 वर्ष। सद्दाम हुसैन की हत्या, हुसनी मुबारक की सत्ता से बेदख़ली और कर्नल क़ज़्ज़्ााफ़ी के विरूद्ध बग़ावत। शाह अब्दुल्ला बिन अब्दुल अज़ीज़ पर अमेरिकी नियंत्रण, कुवैत की अर्थ व्यवस्था पर अमेरिकी क़ब्ज़ा, इराक़ और अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी कठपुतली शासक, ईरान में महमूद अहमदी नज़ाद सरकार को निरंतर धमकियां और जाॅर्डन जैसे देश अमेरिकी काॅलोनी का रूप धारण कर चुके हैं। बहरीन के हालात अब किसी से छुपे नहीं हैं। फ़लस्तीन की तबाही हमारी निगाहों के सामने है। रक्त रंजित पाकिस्तान अब इतना निर्बल तथा विवश हो चुका है कि अपने नागरिकों के हत्यारे रेमंड डेविस को किसी भी तरह की सज़ा देना तो दूर इस अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसी सीआईए के एजेंट के विरुद्ध ज़ुबान खोलने के जुर्म में अपने विदेश मंत्री शाह मुहमूद क़ुरैशी को उनके पद से हटाने के लिए मजबूर हो चुका है। बंग्लादेश जो कभी भारत का हिस्सा था, आज एक बेहैसियत देश बन कर रह गया है और इन सबके पीछे है केवल और केवल एक ताक़त अमेरिका। हम सब जानते हैं, परंतु ख़ामोश हैं, लाचार तथा बेबस हैं। अगर किसी का ध्यान इस ओर आकर्षित किया जाए तो एक ही उत्तर मिलता है आख़िर हम कर ही क्या सकते हैं?
अरब देशों की सबसे बड़ी ताक़त है पैट्रोल जो परवरदिगारे आलम का एक वरदान है। बहुत तेज़ी से अब इस दौलत पर अमेरिका का क़ब्ज़ा होता जा रहा है परंतु सब चुप हैं कोई अमेरिका के विरुद्ध बोलने का साहस करता ही नहीं।
अमेरिका अपने राजनयिकों की आड़ में सीआईए का एक सशक्त जाल बिछा रहा है। इस ओर अगर समय रहते ध्यान न दिया गया तो अतिशीघ्र अमेरिकी शासन का दायरा इतना बढ़ जाएगा कि जिन्हें आज आप मुस्लिम देशों के रूप में देख रहे हैं, वह सब आने वाले कल में अमेरिका और ब्रिटेन की छोटी-छोटी कालोनियां होंगी। कल अरब के पैट्रोल पर इन बड़ी ताक़तों का क़ब्ज़ा होगा। पाकिस्तान जैसे देश अपना अस्तित्व खो देंगे और भारत जिसे आतंकवाद द्वारा गृहयुद्ध का शिकार बनाया जा रहा है, कमज़ोर से कमज़ोर होता चला जाएगा। अगर हम रेमंड डेविस (पाकिस्तान में), डेविड कोलमैन हैडली (हिन्दुस्तान में) जैसे सीआईए/एफ़बीआई के एजेंटों की गतिविधियों को सरसरीतौर पर लेना बंद कर दें, तालिबान और लशकर-ए-तैय्यबा से उनके संबंधों की तह तक जाने का प्रयास करें, सीआईए का तालिबान और एफ़बीआई का लशकर-ए-तैय्यबा से कितना घनिष्ट संबंध है, या कितने अलग-अलग संगठन हैं और आंतरिकरूप से इनमें कितना घन्ष्टि संबंध है, अगर इस सच को जान लें तो शायद हम अरब देशों पर बढ़ते अमेरिकी क़ब्ज़े को भी रोक सकेंगे पाकिस्तान को और अधिक तबाही से बचा सकेंगे और इस सबके बाद भारत को संभावित ख़तरे से भी छुटकारा पा सकेंगे।
ब्रिटेन के एक अख़बार के अनुसार डेविड रेमंड अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसी सी.आई.ए का एजेंट है। ईरान के प्रेस टीवी के अनुसार वह न केवल सी.आई.ए का एजेंट था बल्कि उसके तालिबान से भी संबंध हैं और वह पाकिस्तान में तोड़-फोड़ मिशन याने सरकार को अस्थिर करने के इरादे से भेजा गया था।
क्या कर्नल क़ज़्ज़ाफ़ी का अंजाम भी सद्दाम हुसैन की तरह......
26 फरवरी 2011, 216
अमेरिका में अब एक नया ड्रामा शुरू हो चुका है जैसा कि इराक़ के संदर्भ में हुआ था। आपको याद होगा, पहले इराक़ पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए गए जिससे वहां की जनता का जीना दूभर हो गया, फिर सद्दाम हुसैन को तानाशाह डिक्लेयर किया गया, विनाशकारी हथियारों के ज़ख़ीरे का आरोप लगाया गया, जो कि बरामद न होने पर बाद में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जाॅर्ज वाकर बुश के द्वारा माफ़ी मांगी गई, लेकिन इस बीच इराक़ के हज़ारों बेगुनाह क़त्ल किए जा चुके थे, लाखों बेघर हो चुके थे और इराक़ के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन को फांसी दी जा चुकी थी। इस सबके जवाब में अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश की माफ़ी और बस। अब फिर अमेरिका में यह माहौल पैदा किया जा रहा है जैसे अमेरिकी सरकार दबाव में है, उसे अमेरिकी मूल्यों का ध्यान रखना है। उसे लीबिया में जनता के ऊपर होने वाली ज़्यादतियों को नज़रअंदाज़ नहीं करना है, अतः लीबिया पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए जाने की ज़रूरत है। अर्थात वही जो इराक़ के साथ हुआ था अब लीबिया के साथ किए जाने का माहौल तैयार किया जा रहा है।
किसको किस तरह का रोल अदा करना है। किसे माहौल साज़ी करनी है, किसे दबाव बनाना है, फिर किसे कार्रवाई को अंजाम देना है ताकि अफ़ग़ानिस्तान और इराक़ की तरह कठपुतली सरकारें बिठाई जा सकें और यह सब कुछ पहले से तय है। हो सकता है फिर कर्नल क़ज़्ज़ाफ़ी पर भी सद्दाम हुसैन की तरह अमेरिकी इशारे पर क़ायम की गई एक अदालत में मुक़दमा चले और उन्हें भी फांसी की सज़ा सुना दी जाए। विश्व बिरादरी क्या इसी तरह अमेेरिका को खुली छूट देने की हामी है कि उसे किसी भी देश में अपनी मर्ज़ी से, अपने अंदाज़ में हस्तक्षेप का अधिकार है। क्या यह आश्चर्यजनक नहीं है कि हज़ारों बेगुनाह इराक़ियों और अफ़ग़ानियों के क़त्ल के जुर्म में जार्ज वाकर बुश पर मुक़दमा चलाए जाने की बात किसी ने नहीं की। क्या अपनी ग़लती को मान लेना और माफ़ी मांग लेना ही काफ़ी है।
इस बीच लीबिया पर गठबंधन सेनाओं का हमला हो चुका है। बड़ी संख्या में लीबियाई नागरिक हताहत और बेघर हो चुके हैं। कर्नल क़ज़्ज़ाफ़ी के एक बेटे की मृत्यु हो चुकी है। संक्षिप्त में हम लीबिया में इराक़ की कहानी दोहराई जाते देख रहे हैं और चुप हैं। आख़िर हमारी ज़्ाुबानों पर यह ताले किसने लगा दिए हैं। क्या यह प्रश्न करेंगे हम अपने आप से।
Monday, March 28, 2011
बीजेपी ने हिन्दू राष्ट्रवाद को इस्तेमाल किया है अब तक
विकीलीक्स ने अमरीकी दूतावास के संदेशों को पब्लिक डोमेन में लाकर भारतीय राजनीति का बहुत उपकार किया है . विकीलीक्स की कृपा से ही हम जानते हैं कि बीजेपी की नज़र में हिंदुत्व एक अवसरवादी राजनीति है. बीजेपी के बड़े नेता और टाप पद के प्रमुख दावेदार अरुण जेटली ने यह बात अमरीकी अफसर राबर्ट ब्लेक को एक अन्तरंग बातचीत में बतायी थी .श्री जेटली ने उसको भरोसे के साथ बताया था कि हिन्दू राष्ट्रवाद एक अवसरवादी मुद्दा है . उन्होंने समझाया कि बातचीत शुरू करने के लिए यह ठीक तरीका है .इस से ज्यादा कुछ नहीं . आज से करीब छः साल पहले हुई इस बातचीत में अरुण जेटली ने अमरीका को बता दिया था कि लाल कृष्ण आडवानी कुछ वर्षों के बाद बीजेपी की राजनीति के हाशिये पर आ जायेगें और अगली पीढी के लोग काम संभाल लेगें. अगर आडवाणी को उस वक़्त मालूम होता कि अरुण जेटली उनके बारे में इस तरह की बात करते हैं तो आज अरुण जेटली का राजनीतिक जीवन बिलकुल अलग होता .यह जिस दौर की बात चीत है उसके बारे में सबको मालूम है अरुण जेटली को बीजेपी के आडवाणी गुट ख़ास नेता माना जाता था . आडवाणी से पिछले पांच वर्षों में अरुण जेटली को बहुत समर्थन मिला है . जानकार बताते हैं कि अरुण जेटली को राज्यसभा का सदस्य बनवाने में भी आडवानी की प्रमुख भूमिका रही है . उनको राज्यसभा में बीजेपी का नेता भी आडवाणी ने ही बनवाया था. २००९ में लाल कृष्णा आडवाणी पूरे देश में प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बन कर घूमते फिर रहे थे और अरुण जेटली उनको उसके चार साल पहले ही रिटायर करवाने की तैयारी में थे . . बाद में मीडिया को अरुण जेटली ने बताया कि उन्होंने ऐसा कुछ नहीं कहा था . यहाँ उनसे यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि जब पहले दिन विकीलीक्स के संदेशों को द हिन्दू अखबार ने छापा था और पता चला था कि कांग्रेस की मनमोहन सरकार को बचाने के लिए २००८ में पैसे चले थे ,तो क्यों उसको अंतिम सत्य मानकर संसद नहीं चलने दिया था . सच्चाई यह है सारा देश जानता है कि २००८ में परमाणु बिल के मुद्दे पर पैसे चले थे और उस काण्ड में लाल कृष्ण आडवाणी सहित बीजेपी के कई नेता किसी न किसी रूप में शामिल थे . लेकिन बीजेपी का यह आग्रह कि मनमोहन सिंह इस्तीफ़ा दें बिलकुल तर्कसंगत नहीं लगा था . अब नए खुलासे के बाद तो बीजेपी को उन सभी लोगों से माफी मांगनी चाहिए जिन्होंने हिन्दू राष्ट्रवाद की पक्षधर पार्टी के रूप में बीजेपी को सम्मान दिया है और अपनाया है . बीजेपी की वैचारिक सोच की नियंता पार्टी आर एस एस है . आर एस एस की राजनीति का मकसद घोषित रूप से हिन्दू राष्ट्रवाद है . १९८० में आर एस एस ने तत्कालीन जनता पार्टी को इसीलिये तोडा था कि पार्टी के बड़े नेता और समाजवादी चिन्तक मधु लिमये ने मांग कर दी थी कि जनता पार्टी में जो लोग भी शामिल थे, वे किसी अन्य राजनीतिक संगठन में न रहें . मधु लिमये ने हमेशा यही माना कि आर एस एस एक राजनीतिक संगठन है और हिन्दू राष्ट्रवाद उसकी मूल राजनीतिक अवधारणा है . आर एस एस ने अपने लोगों को पार्टी से अलग कर लिया और भारतीय जनता पार्टी का गठन कर दिया .शुरू में इस नई पार्टी ने उदारतावादी राजनीतिक सोच को अपनाने की कोशिश की . दीन दयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद और गांधीवादी समाजवाद जैसे राजनीतिक दर्शन को अपनी बुनियादी सोच का आधार बनाने की कोशिश की . लेकिन जब १९८४ के लोकसभा चुनाव में ५४२ सीटों वाली लोकसभा में बीजेपी को दो सीटें मिलीं तो उदार राजनीतिक संगठन बनने का विचार हमेशा के लिए दफन कर दिया गया . जनवरी १९८५ में कलकत्ता में आर एस एस के टाप नेताओं की बैठक हुई जिसमें अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी को भी बुलाया गया और साफ़ बता दिया गया कि अब हिन्दू राष्ट्रवाद की राजनीति को चलाया जाएगा . वहीं तय कर लिया गया कि अयोध्या की बाबरी मस्जिद को रामजन्मभूमि बता कर राजनीतिक मोबिलाइज़ेशन किया जाएगा . आर एस एस के दो संगठनों, विश्व हिन्दू परिषद् और बजरंग दल को इस प्रोजेक्ट को चलाने का जिम्मा दिया गया. विश्व हिन्दू परिषद् की स्थापना १९६६ में हो चुकी थी लेकिन वह सक्रिय नहीं था. १९८५ के बाद उसे सक्रिय किया गया और कई बार तो यह भी लगने लगा कि आर एस एस वाले बीजेपी को पीछे धकेल कर वी एच पी से ही राजनीतिक काम करवाने की सोच रहे थे . लेकिन ऐसा नहीं हुआ और चुनाव लड़ने का काम बीजेपी के जिम्मे ही रहा . १९८५ से अब तक बीजेपी हिन्दू राष्ट्रवाद की राजनीति को ही अपना स्थायी भाव मानकर चल रही है ..कांग्रेस और अन्य सेकुलर पार्टियों ने अपना राजनीतिक काम ठीक से नहीं किया है इसलिए देश में हिन्दू राष्ट्रवाद का खूब प्रचार प्रसार हो गया है . जब बीजेपी ने हिन्दू राष्ट्रवाद को अपने राजनीतिक दर्शन के रूप में प्रचारित करना शुरू कर दिया तो उस विचारधारा को मानने वाले बड़ी संख्या में उसके साथ जुड़ गए .वही लोग १९९१ में अयोध्या आये थे जब उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी . बाबरी मस्जिद को तबाह करने पर आमादा इन लोगों के ऊपर गोलियां भी चली थीं .वही लोग १९९२ में अयोध्या आये थे जिनकी मौजूदगी में बाबरी मस्जिद का ध्वंस हुआ , वही लोग साबरमती एक्सप्रेस में सवार थे जब गोधरा रेलवे स्टेशन पर उन्हें जिंदा जला दिया गया . . अब जब निजी बातचीत के आधार पर दुनिया को मालूम चल गया है कि बीजेपी हिन्दू राष्ट्रवाद को केवल बातचीत का प्वाइंट मानती है तो उनके परिवार वालों पर क्या गुज़र रही होगी जो हिन्दू राष्ट्रवाद के चक्कर में मारे जा चुके हैं . . सबको मालूम है हिन्दू राष्ट्रवाद की राजनीति के बल पर देश का नेतृत्व नहीं किया जा सकता . इसलिए बीजेपी के राष्ट्र को नेतृत्व देने की इच्छा रखने वाले नेताओं में अपने आपको हिन्दू राष्ट्रवाद की राजनीति से दूर रखने की प्रवृत्ति पायी जाने लगी है . इसी सोच के तहत लाल कृष्ण आडवाणी ने जिन्ना की तारीफ़ की थी और अब अरुण जेटली इसको बोगस विचारधारा के रूप में पेश कर रहे हैं . लेकिन विकीलीक्स के खुलासों ने इस अहम जानकारी को पब्लिक डोमेन में डालकर भारतीय राजनीति के टाप नेताओं की सोच को उजागर किया है जिसकी सराहना के जानी चाहिए...........
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