भारतीय जनता पार्टी पिछले लगभग सात वर्षों से मध्यप्रदेश में राज कर रही है। मध्यप्रदेश में भाजपा और उसके पूर्ववर्ती जनसंघ का लंबे समय से गहरा प्रभाव रहा है। पिछले कुछ सालों से इस राज्य में शासन कर रही भाजपा,लगातार ऐसे कदम उठा रही है जिनसे अल्पसंख्यकों में भय व्याप्त हो रहा है। भाजपा के सहयोगी संगठन, अत्यंत मुखर व आक्रामक हो गए हैं। सरकार खुलेआम हिन्दू संस्कृति प्रदेश पर लाद रही है। इस राज्य में संघ परिवार के आतंकी समूहों को अपनी मनमानी करने की छूट मिली हुई है।
हाल में (मार्च 2011), प्रदेश के पुलिस थानों में पुलिस मुख्यालय द्वारा जारी एक परिपत्र पहुँचा, जिसमें ईसाईयों के बारे में जानकारियाँ इकट्ठी करने का निर्देष था। चाही गई जानकारियों में ईसाई समुदाय की सामाजिक गतिविधियाँ भी शामिल थीं। परिपत्र में ईसाईयों के विभिन्न पंथों के संबंध में विस्तृत जानकारी एकत्र करने का निर्देष था। इनमें शामिल थीं पादरियों की संख्या, ईसाई समुदाय द्वारा संचालित स्कूलों व अन्य संस्थाओं का विस्तृत विवरण व उन्हें मिल रहे राजनैतिक संरक्षण के बारे में जानकारी। जब एक पादरी ने ये जानकारियाँ देने से इंकार किया तो उसे पुलिस स्टेशन ले जाया गया। ईसाई समुदाय के नेताओं ने इस संबंध में वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से संपर्क किया। उन्होंने इस परिपत्र के संबंध में अनभिज्ञता जाहिर की। यह नो वन किल्ड जेसिका लाल जैसा मामला था। स्पष्टतः जिसने भी यह गैरकानूनी परिपत्र जारी किया था, उसका बचाव किया जा रहा था।
इस घटनाक्रम से एकबारगी फिर यह उजागर हुआ कि संघ-नियंत्रित प्रषासनिक तंत्र, किस तरह दबे-छुपे ढंग से अपना काम करता है।
भाजपा के सत्ता में होने से संघ परिवार के सदस्य संगठनों की हिम्मत बढ गई है। वे ऐसे “धार्मिक“ कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं, जिनका उद्देष्य अल्पसंख्यकों को परेशान व आतंकित करना है।
गुजरात की तरह, मध्यप्रदेश के आदिवासी इलाकों में भी आर.एस.एस. लंबे समय से सक्रिय है। गुजरात की तरह ही, ईसाई मिशनरियों पर “धर्मान्तरण“ का आरोप लगाकर, उनके विरूद्ध हिंसा की जा रही है। हम सबको याद है कि मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले में ननों के साथ हुए बलात्कार को संघ परिवार के सदस्य बी.एल.षर्मा “प्रेम“ ने बड़े गर्व से “राष्ट्रवादी कार्यवाही“ की संज्ञा दी थी। आदिवासी इलाको में आसाराम बापू के अनुयायी भी अल्पसंख्यकों के विरूद्ध जहर फैला रहे हैं।
इसी अभियान के तहत, फरवरी 2011 में मध्यप्रदेश में गुजरात के डाँग जिले की तर्ज पर “नर्मदा सामाजिक कुम्भ“आयोजित किया गया। ये कुंभ ईसाई अल्पसंख्यकों में असुरक्षा का भाव उत्पन्न कर रहे हैं। “घर वापसी“ अर्थात ईसाई आदिवासियों पर परोक्ष या प्रत्यक्ष दबाव डालकर उन्हें हिन्दू धर्म अपनाने पर मजबूर करना, इन आयोजनों का अनिवार्य हिस्सा रहता है। “नर्मदा कुंभ“ को भरपूर सरकारी सहायता मुहैय्या करवाई गई। इस तरह के “कुंभों“ में अल्पसंख्यक-विरोधी पोस्टरों, पर्चों व अन्य साहित्य का जमकर प्रयोग किया जाता है। इससे आदिवासी इलाकों में शिक्षा व स्वास्थ्य के क्षेत्र में मिशनरियों द्वारा किए जा रहे कार्य पर विपरीत असर पड़ना स्वभाविक है।
मध्यप्रदेश के मुसलमानों को साफ तौर पर बता दिया गया है कि सच्चर समिति की सिफारिषें लागू करने का सरकार का कोई इरादा नहीं है। इन सिफारिषों को गरीब मुसलमानों की बेहतरी की दिशा में एक अपरिहार्य कदम मानने की बजाय, राज्य सरकार इन्हें सांप्रदायिक अलगाव का सबब साबित करने पर तुली हुई है।
भारतीय संविधान की आत्मा को कुचलने के एक अभिनव प्रयास में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ने सरकारी कर्मचारियों से आव्हान किया है कि वे आर.एस.एस. की सदस्यता लें। बहुत समय नहीं हुआ जब नरेन्द्र मोदी ने भी ऐसा ही आव्हान किया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी इस आव्हान से असहमत थे और उनके कड़े निर्देष पर गुजरात सरकार ने वह परिपत्र रद्द किया, जिसके द्वारा सरकारी कर्मचारियों को संघ का सदस्य बनने की इजाजत दी गई थी। इस सिलसिले में यह महत्वपूर्ण है कि संघ के प्रचारक न केवल भाजपा में महत्वपूर्ण पदों पर काम करते हैं वरन् संघ, कई अन्य तरीकों से राजनीति में सक्रिय रहता है व भाजपा की निर्णय प्रक्रिया में हस्तक्षेप करता है। इस तर्क में कोई दम नहीं है कि संघ, राजनैतिक संगठन नहीं है। संघ अपने विभिन्न अनुषांगिक संगठनों के जरिए, हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के अपने राजनैतिक लक्ष्य की पूर्ति के लिए काम करता है। यह साफ है कि मध्यप्रदेश सरकार, शासकीय कर्मियों पर राजनैतिक गतिविधियों में भाग लेने पर लगे प्रतिबंध का मखौल बना रही है।
गुजरात में हिन्दू राष्ट्र का आगाज़, पहले मुस्लिम-विरोधी हिंसा और उसके बाद सांस्कृतिक जोड़-तोड़ के रास्ते हुआ था। मध्यप्रदेश में प्रत्यक्ष हिंसा की बजाय, हिन्दू संस्कृति को पिछले दरवाजे से जनता पर लादने का तरीका अपनाया जा रहा है। हर मौके का इस्तेमाल हिन्दू धार्मिक शब्दावली को शासकीय शब्दावली का भाग बनाने के लिए किया जा रहा है। स्कूल शिक्षकों के लिए ऋषि संबोधन चुना गया। दिलचस्प बात यह है कि चूंकि ऋषि षब्द पुल्लिंग है इसलिए महिला शिक्षिकाएं इस “सम्मान“ से वंचित रह गईं। और भी दिलचस्प यह है कि प्रदेश भर के ऋषि जब अधिक वेतन की माँग को लेकर राजधानी में इकट्ठा हुए, तो पुलिस ने लाठियों से उनकी जोरदार पूजा की।
इसी तरह, राज्य की बालिका कल्याण योजना का नाम है लाडली लक्ष्मी, बाल पोषण योजना का अन्नप्राशन, व जल संरक्षण कार्यक्रम का जलाभिषेक। स्कूलों में “सूर्य नमस्कार“ करवाया जाता है। सरकारी अधिकारी दशहरे पर खुलेआम “शस्त्र पूजा“ करते हैं। इसके लिए पुलिस के शस्त्रागार से निकाली गई बंदूके व स्वचलित राईफिलें इस्तेमाल की जाती हैं। यह निष्चय ही गैरकानूनी है। राज्य के स्कूलों में योग अनिवार्य कर दिया गया था। बाद में उसे ऐच्छिक विषय बना दिया गया। परंतु चूंकि अधिकांश हिन्दू विद्यार्थी योग सीखते हैं अतः अल्पसंख्यक छात्र-छात्राओं का स्वयं को अलग-थलग महसूस करना स्वभाविक है।
मध्यप्रदेश, संघी आतंकवादियों की शरणस्थली व गढ़ के रूप में भी उभरा है। सुनील जोशी, प्रज्ञा सिंह ठाकुर, कालसांगरा, देवेन्द्र शर्मा, संदीप डांगे व अन्य हिंदुत्ववादी आतंकी, मध्यप्रदेश में बेखौफ अपना काम करते रहे। उन्हें पता था कि भगवा सरकार उनकी गतिविधियों को नजरअंदाज करेगी।
राज्य सरकार ने संघ परिवार के संगठनों व संस्थाओं को मुफ्त के भाव जमीनें आवंटित कर उन्हें रातों-रात करोड़ों की संपत्ति का मालिक बना दिया है। उच्चतम न्यायालय ने हाल में “कुशाभाऊ ठाकरे ट्रस्ट“ को भोपाल में 25 एकड़ बेशकीमती जमीन आवंटित करने का आदेश रद्द कर दिया। मध्यप्रदेश में भाजपा की जमीन तैयार करने वाले कुशाभाऊ ठाकरे के नाम पर स्थापित इस ट्रस्ट के सदस्यों में लालकृष्ण आडवाणी व मुरली मनोहर जोशी शामिल हैं।
मध्यप्रदेश सरकार राज्य का हिन्दूकरण करने का सुनियोजित प्रयास कर रही है। इसके लिए आतंक का प्रत्यक्ष व परोक्ष इस्तेमाल तो किया ही जा रहा है, सांस्कृतिक जोडतोड भी जारी है। राज्य तंत्र व संघ परिवार के इस संयुक्त अभियान से अल्पसंख्यक स्वयं को असुरक्षित महसूस कर रहे है।
कई राज्य, गुजरात “मॉडल“ को लागू करने के लिए आतुर हैं। ऐसा लगता है कि मध्यप्रदेश ने इस दौड में बाजी मारी ली है।
-राम पुनियानी
(लेखक आई.आई.टी. मुंबई में पढ़ाते थे, और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं।)
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