अमेठी के सांसद राहुल गांधी के ऊपर कुछ अर्नगल आरोप लगाते हुए उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्डपीठ में दायर दो याचिकाओं का निस्तारण हो चुका है। माननीय न्यायालय ने याचिका कर्ताओं पर 50 लाख रुपये का जुर्माना करते हुए केन्द्रीय जांच ब्यूरो को मामले की तह तक जाने के लिये जांच करने का आदेश दिया है। जांच का विषय यह है कि मनगढ़न्त आरोप लगाकर राहुल गांधी को बदनाम करने और अमेठी के एक संभ्रान्त व्यक्ति ठाकुर बलराम सिंह को परेशानी में डालने के पीछे किसकी साजिश है। शुरू करते हैं इन्टरनेट पर प्रचारित उस कपोल कल्पित कथा से जो हिन्दू यूनिटी डाट आर्ग नामक बेबसाइट पर जनवरी 2007 पर पहली बार देखी गई। उस समय उत्तर प्रदेश विधान सभा के लिये चुनाव की प्रक्रिया चल रही थी। मतदान फरवरी में होना था।
कहानी में राहुल गांधी के ऊपर जो कथित बलात्कार का झूठा आरोप था, उसे घिनौनी राजनीतिक चाल ही कहा जा सकता था। उसके बाद इन्टरनेट पर बहुत कुछ लोड हो चुका है। संक्षेप में यही कह सकते हैं कि इन्टरनेट पर फर्जी ढंग से कोई भी बेबसाइट बनाया जा सकता है। किसी को बदनाम करने के लिये कोई भी लेख या फोटो या वीडियो लोड किया जा सकता है। इस कुकृत्य को रोकने के लिये कोई कारगर कानून नहीं है। कोई तकनीकी व्यवस्था भी नहीं है। इन्टरनेट का प्रयोग करने वाले इस जंजाल को अच्छी तरह जानते हैं और समझते हैं।
अब आते हैं असली बात पर। बेबसाइट पर तथाकथित लड़की का नाम सुकन्या, पिता का नाम बलराम सिंह और माता का नाम सुमित्रा देवी लिखा गया था। पता लिखा था मेडिकल चैराहा, संजय गांधी मार्ग अमेठी। घटना स्थल था वीआईपी गेस्ट हाउस। कहानी यहीं से झूठी साबित हो गयी। अमेठी के सांसद राहुल गांधी जिस गेस्ट हाउस में रूकते हैं वह अमेठी से 7 किमी दूर अमेठी मुसाफिरखाना रोड पर मुंशी गंज के पास स्थित है। अमेठी कस्बा बहुत छोटा सा तहसील मुख्यालय है। यहां मेडिकल चैराहा अथवा संजय गांधी मार्ग जैसा कोई स्थान नहीं है। कस्बे में कोई वीआईपी गेस्ट हाउस भी नहीं है। कथित लड़की का नाम सुकन्या लिखा गया था। ऐसा नाम बंगाली महिलाओं का होता है। अमेठी विधान सभा क्षेत्र की मतदाता सूची में एक भी सुकन्या नहीं मिली। बलराम सिंह नाम के 25 लोग जरूर मिले हैं। यह बात तब सामने आई जब हाई कोर्ट के आदेश पर अमेठी पुलिस सक्रिय हुई और मतदाता सूची को जांच का हथियार बनाया।
हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ में फरवरी के अन्तिम सप्ताह में मध्यप्रदेश के एक पूर्व विधायक किशोर सेमरेते की ओर से उक्त बेबसाइट का हवाला देकर बन्दी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की गयी थी। उस याचिका में शायद कोई कमी थी इसलिये 4 मार्च 2011 का दूसरी याचिका दायर की गयी। दूसरी याचिका में वादी बने ठाकुर गजेन्द्र पाल सिंह तथा वकील थे इन्द्रबहादुर सिंह। इसमें कथित बलराम सिंह का पता बदलकर निकट गुरूद्वारा अमेठी लिखा गया। लड़की का नाम सुकन्या उर्फ कीर्ति सिंह तथा उसकी माता का नाम सुमित्रा उर्फ मोहिनी देवी कर दिया गया। ज्ञात हुआ है कि उक्त गजेन्द्र पाल सिंह अमेठी के ही पुराने कांग्रेसी हैं। संजय गांधी मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा मुंशीगंज में स्थापित अस्पताल में प्रशासनिक अधिकारी हैं। उनके द्वारा रिट दायर किया जाना अमेठी में चर्चा का विषय बना है।
संशोधित याचिका का शिकार हुए फैजाबाद जिले की मिल्कीपुर तहसील के मूल निवासी ठाकुर बलराम सिंह जिनको उत्तर प्रदेश पुलिस के महानिदेशक कर्मवीर सिंह ने 7 फरवरी 2011 को साथ में बलराम सिंह की पत्नी सुशीला देवी तथा उनकी 22 वर्षीया पुत्री कीर्ति सिंह भी न्यायालय में हाजिर हुईं। इस परिवार के साथ बेबसाइट या याचिका में वर्णित जैसी कोई घटना हुई नहीं थी इसलिये परिवार के तीनों सदस्यों ने न्यायालय में वही कहा जो सच्चाई थी। न्यायालय में बलराम सिंह की पत्नी ने यह भी कह दिया कि राहुल गांधी के ऊपर झूठा आरोप लगाने और मेरे परिवार तथा मेरी पुत्री पर लांछन लगाने का काम जिन लोगों ने किया है, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। संभवत: इसी आधार या अपने विवेक से माननीय उच्च न्यायालय ने याचिका खारिज करते हुए याचिकाकर्ताओं पर 50 लाख रुपये का जुर्माना किया तथा षडयंत्रकारियों का पता लगाने के लिये सीबीआई को जांच का आदेश दिया।
हाई कोर्ट में हाजिर हुए बलराम सिंह अमेठी में रहते है किन्तु यहां उनकी ससुराल है। उनका मूल निवास तहसील मिल्कीपुर जिला फैजाबाद है। 2 जुलाई 1965 उनकी जन्मतिथि है। सन 1987 में उनका विवाह अमेठी के ठाकुर चन्द्रभान सिंह की बेटी सुशीला सिंह से हुआ था। बलराम सिंह ने लखनऊ विश्वविद्यालय से एमए तथा वहीं के क्रिश्चियन कालेज से बीपीएड किया था। विद्यार्थी जीवन से ही कांग्रेस के छात्र संगठन में सक्रिय थे। पत्रकारिता में भी रूचि थी और विवाह के समय फैजाबाद से प्रकाशित सांध्य दैनिक अवध शोभा के संपादकीय टीम के सदस्य थे। विवाह के बाद बलराम सिंह अमेठी आने-जाने लगे तो उनको राजनीति व पत्रकारिता के लिये अमेठी अनुकूल लगा। वे अमेठी में रहने लगे। सन 1988 में उन्होने एक प्रिंटिंग प्रेस लगाया और यहीं से ‘‘अमेठीकीर्ति‘‘ नाम से साप्ताहिक समाचार पत्र शुरू किया।
उस समय राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। वीपी सिंह द्वारा उछाला गया बोफोर्स प्रकरण चरम पर था। प्रदेश के अनेक कांग्रेसी अलग होकर जनमोर्चा में शामिल हो गये थे जो बाद मे जनता दल बना। अमेठी के तत्कालीन कांग्रेसी विधायक और प्रदेश सरकार के मंत्री राजा संजय सिंह भी वीपी सिंह से रिश्तेदारी निभाते हुए दलबल के साथ जनमोर्चा में शामिल हो गये थे। ऐसे माहौल में 23-24 वर्ष के नौजवान बलराम सिंह ने ठाकुर जाति के नवयुवकों को संगठित करके वीपी सिंह के खिलाफ मोर्चा खोला। इससे अमेठी के कांग्रेसियों में ही नहीं बल्कि राजीव गांधी के नजदीकीयों में भी बलराम सिंह की पहुंच हो गयी।
उस समय मैं (लेखक-हरीराम त्रिपाठी) पीटीआई का संवाददाता था और रायबरेली तथा अमेठी संसदीय क्षेत्र मेरे कार्यक्षेत्र के अन्तर्गत आते थे। मैं इस बात का गवाह हूं कि अपने संसदीय क्षेत्र का दौरा करने के लिये राजीव गांधी फुर्सतगंज हवाई अड्डे पर जहाज से उतरते थे तो उनका स्वागत करने वालो में बलराम सिंह ‘अमेठी कीर्ति‘ का साप्ताहिक का ताजा अंक लेकर सबसे आगे रहते थे।
राजीव गांधी के प्रति बलराम सिंह कितने निष्ठावान व समर्पित हैं इसका एक उदाहरण यह है कि उनके अमेठी स्थित आवास मे पूजा करने के स्थान पर अन्य देवी देवताओं के साथ स्व. राजीव गांधी का भी चित्र है। आज भी कांग्रेस पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता हैं। उन्होंने मुझे खुद बताया कि वे जबसे अमेठी मे रहने लगे तबसे यहीं के मतदाता हैं और सन 1989 से लेकर 2009 तक के लोक सभा व विधान सभा चुनाओं में अपने पोलिंग बूथ पर कांग्रेस प्रत्याशी के पोलिंग एजेन्ट बनते रहे हैं। बलराम सिंह ने दिसम्बर 1990 में सर्वांगीण विकास सेवा समिति के नाम से एक स्वयं सेवी संस्था का पंजीकरण कराया था। इसके माध्यम से उनकी पत्नी भी समाज सेवा मे सक्रिय हैं। नवम्बर 2006 में उन्होंने ‘‘राजीव गांधी स्मारक निधि‘‘ नाम से एक ट्रस्ट का भी पंजीकरण कराया, जिसमें वह स्वयं मैनेजिंग ट्रस्टी हैं।
राजीव गांधी के प्रति बलराम सिंह कितने निष्ठावान व समर्पित हैं इसका एक उदाहरण यह है कि उनके अमेठी स्थित आवास मे पूजा करने के स्थान पर अन्य देवी देवताओं के साथ स्व. राजीव गांधी का भी चित्र है। आज भी कांग्रेस पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता हैं। उन्होंने मुझे खुद बताया कि वे जबसे अमेठी मे रहने लगे तबसे यहीं के मतदाता हैं और सन 1989 से लेकर 2009 तक के लोक सभा व विधान सभा चुनाओं में अपने पोलिंग बूथ पर कांग्रेस प्रत्याशी के पोलिंग एजेन्ट बनते रहे हैं। बलराम सिंह ने दिसम्बर 1990 में सर्वांगीण विकास सेवा समिति के नाम से एक स्वयं सेवी संस्था का पंजीकरण कराया था। इसके माध्यम से उनकी पत्नी भी समाज सेवा मे सक्रिय हैं। नवम्बर 2006 में उन्होंने ‘‘राजीव गांधी स्मारक निधि‘‘ नाम से एक ट्रस्ट का भी पंजीकरण कराया, जिसमें वह स्वयं मैनेजिंग ट्रस्टी हैं।
न्यायालय के आदेश पर जब उत्तर प्रदेश पुलिस के सामने तथाकथित पीडि़त परिवार को हाजिर करने की समस्या पैदा हुई, जो कहीं था ही नहीं, तो यही बलराम सिंह पुलिस के लिये संकट मोचक साबित हुए। उन्हें बताया गया कि उनके न्यायालय में उपस्थित होकर बयान देने से राहुल गांधी बदनामी से बच जाऐंगे। गांधी परिवार की भलाई के लिये बलराम सिंह कुछ भी करने को तैयार हो गये। हुआ भी ऐसा ही। बलराम सिंह का कांग्रेस और गांधी परिवार से कितना लगाव है, इसकी पूरी जानकारी हो सकता है कि राहुल गांधी को न हो किन्तु उनके नजदीकी कैप्टन सतीश शर्मा, किशोरी लाल शर्मा और मनोज मट्टू यह सब अच्छी तरह जानते हैं। बलराम सिंह ने बातचीत में अपनी व्यथा भी व्यक्त किया। न्यायालय में प्रकरण समाप्त हो जाने के एक सप्ताह बाद भी राहुल गांधी की ओर से अभी तक बलराम सिंह के प्रति साधुवाद, धन्यवाद या आभार व्यक्त करने का कोई संदेश भी नहीं आया।
अन्त में एक बात उस अखबार पर जिसने राहुल गांधी से संबंधित व उनको बदनाम करने वाले समाचार को अपने अखबार में छाप कर वाहवाही लूटा था। इस अखबार डीएनए के मालिक निशीथ राय समाजवादी पार्टी के समर्थक हैं। याचिकाकर्ता किशोर समरेते भी मध्यप्रदेश में समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक बताये गये हैं। लखनऊ में अन्य अखबारों ने इसे नही छापा क्योंकि संभवतः सभी को लखनऊ के भूगोल और घटना के झूठे होने की जानकारी थी। डीएनए के मुख्य पृष्ठ पर छपी उस खबर से यही अनुमान होता है कि समाचार पत्र का विधि संवाददाता नौसिखिया है और संपादकीय विभाग लापरवाह। किसी अखबार में मोटे अक्षरों में यह छपे कि ‘‘कल लखनऊ के कनॉट प्लेस के पास गंगा नदी में नहाते हुए ओसामा बिन लादिन डूब कर मर गया'' तो इसे झूठा नहीं तो और क्या कहेंगे। उपरोक्त वाक्य को अमेठी के वीआईपी गेस्ट हाउस, मेडिकल चैराहा, संजय गांधी मार्ग आदि से जोड़कर पढ़े तो मेरा आशय समझ मे आ जाऐगा।
लेखक डा. हरीराम त्रिपाठी वरिष्ठ पत्रकार हैं.
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