- चौथी दुनिया का खुलासा
- 15 साल से फरार हैं भाजपा विधायक प्रेम कुमार
- नीतीश सरकार में हैं शहरी विकास एवं आवास मंत्री
- सीजेएम अदालत, गया ने 1996 में उन्हें भगोड़ा घोषित किया
- प्रेम कुमार ने नामांकन पत्र में भी नहीं किया है इसका जिक्र
- रिप्रजेंटेशन ऑफ पीपल एक्ट का सरासर किया उल्लंघन
चौथी दुनिया के पास उपलब्ध दस्तावेज के मुताबिक गया टाउन से भाजपा विधायक एवं शहरी विकास एवं आवास मंत्री प्रेम कुमार को सीजेएम अदालत, गया ने एक केस के मामले में 23-3-1996 को फरार घोषित किया था. और वो आदेश अभी तक लागू है यानी वो आदेश अभी तक निरस्त नहीं हुआ है.
आखिर बिहार में यह कैसा सुशासन है. अभी सहकारिता मंत्री रामाधार सिंह को अदालत द्वारा भगोड़ा घोषित करने और इस वजह से उनका इस्तीफा देने का मामला अभी ठंडा भी नहीं प़डा था कि एक और मामला सामने आ गया. चौथी दुनिया की खास पड़ताल में एक हाई प्रोफाइल मंत्री महोदय के बारे में पता चला है कि वो भी पिछले 15 साल से फरार चल रहे है लेकिन नीतीश सरकार में बाकायदा शहरी विकास एवं आवास मंत्री बने हुए है.
दरअसल, कोतवाली थाना, गया में दिनांक 7-12-1991 को धारा 147/ 323/ 337/ 353 आईपीसी के अंतर्गत प्रेम कुमार के खिलाफ एक मुकदमा दर्ज किया गया (केस संख्या-3218/91, टीआर संख्या 118/96). यह मुकदमा राजाराम सिंह, हवलदार के द्वारा दर्ज कराया गया, जो उस समय सदर अड्डा टीओपी रूप में पदास्थापित थे. यह मुकदमा प्रेम कुमार एवं अन्य के विरुद्ध इसलिए दर्ज किया गया कि वे लोग जिस जुलूस का नेतृत्व कर रहे थे, वो बाद में अनियंत्रित हो गया था और टीओपी पर पथराव करने लगा था. इस पथराव में टीओपी के कई जवानों को चोटें भी आई थीं. यह मुकदमा सीजेएम की अदालत में गया, जहां इनके विरुद्ध मुकदमा शुरू हुआ. कई बार सम्मन और जमानती और गैर जमानती वारंट निर्गत करने के बावजूद प्रेम कुमार अदालत में उपस्थित नहीं हुए. तब न्यायालय ने दिनांक 23-3-1996 को प्रेम कुमार को भगोड़ा घोषित कर दिया गया.
फरारी की अवधि में प्रेम कुमार 2005 से 2010 के बीच सरकार के कई विभागों में मंत्री भी रहे. राजग के दूसरे शासन काल में भी मंत्री बने हुए हैं. इस प्रकार न्यायालय से भगोड़ा घोषित प्रेम कुमार राजग के पहल शासन काल में मंत्री भी बने. जाहिर है मंत्री बनने के लिए एक विधायक को संविधान के नाम पर शपथ भी लेनी होती है, सो प्रेम कुमार भी जब नीतीश कुमार के नेतृत्व में बनने वाली पहली सरकार में बतौर मंत्री शामिल हुए तो उसी संविधान की शपथ ली जिस संविधान के मुताबिक अदालत ने उन्हें भगोड़ा घोषित किया था.
इस पूरे मामले का गंभीर पहलू यह भी है कि प्रेमकुमार ने चुनाव लड़ते वक्त जो नामांकन पत्र भरा था उसमें इस बात का जिक्र नहीं किया था कि अदालत ने उन्हें भगोड़ा घोषित किया हुआ है. जाहिर है ऐसा करना सरासर रिप्रजेंटेशन ऑफ पीपल एक्ट की धारा 33 ए, 125 ए का उल्लंघन है. आरपी एक्ट की धारा 33 ए के मुताबिक उम्मीदवार को अपने नामांकन पत्र के साथ दिए जाने वाले शपथ पत्र में उन मुकदमों का जिक्र करना जरूरी है, जिसमें उसे दो वर्ष या उससे अधिक सजा का प्रावधान हो. गौरतलब है कि इन धाराओं के उल्लंघन की वजह से सदस्यता तक रद्द की जा सकती है.
वर्ष 2010 के विधानसभा चुनाव के दौरान जब प्रेम कुमार अपना नामांकन भर रहे थे तब उनके प्रतिद्वंद्वी ने यह मामला उठाया और उनकी गिरफ्तारी की मांग की. तब तत्कालीन जिला अधिकारी एवं अनुमंडल पदाधिकारी ने प्रेम कुमार को चुपके से पिछले दरवाजे से बाहर निकलने में मदद की. उसके बाद प्रेम कुमार ने सीजेएम गया द्वारा भगोड़ा घोषित किए गए आदेश के विरुद्ध उच्च न्यायलय पटना में एक याचिका दायर कर उक्त आदेश को निरस्त करने की प्रार्थना की. यह मामला अभी भी विचाराधीन है और सीजेएम गया द्वारा पारित दिनांक 23 मार्च 1996 के आदेश को अभी तक निरस्त नहीं किया गया है. हालांकि, उच्च न्यायालय ने अपने अंतरिम आदेश में यह कहा है कि इस बीच याचिकाकर्ता (प्रेम कुमार) के विरूद्ध कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी.
सवाल यह है कि आखिर सुशासन की दुहाई देने वाले नीतीश कुमार को क्या प्रेम कुमार की इस हकीकत का पता नही था? अगर था तो आखिर किस दबाव में नीतीश कुमार ने उन्हें मंत्री बनाया, और अगर उन्हें इसकर जानकारी नहीं थी तो यह और भी ज्यादा दुख की बात है. क्योंकि कानून का राज स्थापित करने का दावा करने वाले नीतीश कुमार से जनता यह उम्मीद नहीं कर सकती कि वो एक ऐसे व्यक्ति को कैबिनेट मंत्री बनाए जिसे अदालत ने भगोड़ा घोषित किया हो.
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