Saturday, June 18, 2011

एक ऐसा क़बीला जिसका कोई सरदार नहीं



आप यूसुफ सही ये मिस्र का बाज़ार नहीं,
जाइये आपका अब कोई खरीदार नहीं। 
एक मुद्दत से भटकने का अमल जारी है। 
वो क़बीला हूं के जिसका कोई सरदार नहीं।   

हां..मुसलमानों का ऐसा क़बीला है जिसका कोई सरदार नहीं है। उत्तर प्रदेश का चुनाव अब कोई ज़्यादा दूर नहीं। बस यही वोट ऐसा है जो अलग-अलग थालियों में बंटा नज़र आ रहा रहा है। वजह साफ है इसका कोई रहबर नहीं। दोष इसमें मुसलमान का नहीं उसके रहबरों का है। जिसने इसे कभी बसपा के दरवाज़े पर तो कभी सपा के तो कभी कांग्रेस के दरवाज़े पर ले जाकर बेचा। नेताओं के स्वार्थ ने इसे बर्बाद कर दिया। और बार्बादी के आलम में इसने दूसरों को अपना क़ायद मान लिया। उत्तर प्रदेश में चार फीसदी जाट, उनका भी नेता अजित सिंह। 28 लाख लोधे उनका भी नेता कल्याण सिंह। नौ फीसदी यादव उनका भी नेता मुलायम सिंह यादव। नौ फीसदी हरिजन उनकी भी नेता मायावती। मुसलमान 21 फीसदी मगर इसका कोई नेता नहीं। प्रदेश में इसकी तादात पौने चार करोड़। मगर इसने नौ फीसदी वाले मुलायम सिंह को 20 साल राज करा दिया। नौ फीसदी हरिजन मगर इसने मायावती की भी सरकार बनवा दी। मुसलमानों ने ये कभी सोचा ही नहीं कि प्रदेश में उसकी तादात सबसे भारी है। वो भी किसी से हाथ मिलाकर अपनी सरकार बना सकता है। 
इसमें दोष मुसलमान का नहीं उसके नेताओं का है। नेताओं के कहने पर मुसलमान 63 साल से सिर्फ भाजपा को हरवाने के लिए वोट करता रहा। मुसलमान अपने लिए कोई योजना नहीं बना पाया। मुस्लिम नेता उसे भाजपा की दुकान में आग लगाने के लिए उकसाते रहे। भाजपा की दुकान में तो आग नहीं लगा पाए। अलबत्ता अपना घर ज़रूर बर्बाद कर लिया। आज मुसलमान के हाथ में भीख का कटोरा है। इसके नेता भी भिखारी बन गए हैं। दामन फैलाए आज वो टिकट मांगने वाले भिखारियों की कतार में खड़े नज़र आ रहे हैं। छुटभय्ये मुस्लिम नेता छोटे-छोटे दलों की दुकान सजाने में जुटे हैं। मक़सद इनका भी क़ौम को बेचना ही है। मैं पिछले दो साल से उत्तर प्रदेश की सड़कों पर खाक छान रहा हूं। कोई नेता ऐसा नज़र नहीं आया जिसके पास कम से कम क़ौम के लिए सही प्लानिंग भी हो। अमली जामा पहनाना तो बाद की बात है। हर कोई इस जुगाड़ में लगा है थोड़ी अपनी ताक़त दिखा दूं। तो फिर कहीं न कहीं दाल गल ही जाएगी। रहबर के भेस में रहज़न घूम रहे हैं। मुसलमान खामोश है। मगर समझ सब कुछ रहा है। नेताओं के रूप में बेहरूपिए बहुत घूम रहे हैं।  मगर मुसलमान को इंतज़ार है किसी सही दिशा दिखाने वाले का। नेता बनने की कोशिश बहुत कर रहे हैं। मगर मैं इनको पते की बात बताए देता हूं। क़ौम अब किसी खादिम को ही क़ायद तसलीम करेगी। रहबर को परखने का हुनर अब क़ौम ने सीख लिया है।

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