
भाजपा अपने आप को सच्चा धर्म निरपेक्ष बताती है और दूसरी पार्टियों को छद्म धर्म निरपेक्ष कहती है, किंतु उसके सहयोगी संगठनों के यहाँ सेक्युलर होना एक गाली है, जिनसे उन्होंने कभी असहमति भी व्यक्त नहीं की है। उसके सहयोगी संगठन मुसलमानों से नफरत करते हैं किंतु वोटों के लिए भाजपा अपने यहाँ अलग से अल्पसंख्यक मोर्चा बनाये हुये है और जब तब उसके सम्मेलन करती रहती है। बीबीसी समेत सारी निष्पक्ष प्रैस भाजपा को भारत का एक दक्षिणपंथी हिन्दूवादी दल बताती है, क्योंकि उसकी चिंताएं भी राष्ट्रीय होकर हिन्दू जाति के लिए सीमित होकर उभरती हैं। रोचक यह है कि पिचासी प्रतिशत हिन्दू आबादी में से उन्हें 16 से 23 प्रतिशत के बीच वोट मिलते रहे हैं पर फिर भी वे समस्त हिन्दू समाज के प्रतिनिधित्व का दावा करते रहते हैं। क्या कोई हिन्दू साधु वही है जिसे या भाजपा हिन्दू साधु माने? क्या कोई हिन्दू साधु वही है जिसे विश्व हिन्दू परिषद साधु माने? क्या हिन्दू साधु वही है जिसे बजरंगदल साधु माने?
क्या हिन्दू साधु वही है जिसे उपरोक्त संस्थाओं की पितृ मातृ संस्था आरएसएस साधु माने? भाजपा अपनी राजनीति मुखौटों के माध्यम से करती है और उसके द्वारा केवल फिल्मी कलाकार, खिलाड़ी या पूर्व राज परिवार के सदस्य ही मुखौटों की तरह स्तेमाल नहीं होते अपितु साधु संत की वेषभूषा धारी भी आते हैं। 1985 के लोकसभा चुनाव में दो सीटों तक सिमिट जाने के बाद उसने साधु संत वेषधारियों के प्रति परम्परा से चली आ रही श्रद्धा का विदोहन करने के लिए बड़ी संख्या में उन्हें उम्मीदवार बनाया था जिनमें से अनेक लोकसभा और विधान सभाओं में पहुँचे। इन गैर राजनीतिक लोगों ने उन राजनीतिकों का स्थान हथियाया जो अपने विचारों सिद्धांतों और कार्यक्रमों से देश के लोकतंत्र को परिपक्व बनाने का काम निरंतर कर रहे थे। यही वह समय है जब देश से समाजवादी आन्दोलन हाशिए पर आ गया। दूसरी ओर इनके संगठनों द्वारा फैलायी जा रही नफरत से आतंकित मुसलमानों ने इन्हें हरा सकने वाले को वोट देना शुरू कर दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि 15 प्रतिशत मुस्लिम वोट गैर राजनीतिक होगया व अपने विकास के लिए वोट न देकर भय मुक्ति के लिए वोट देने लगा जिससे विकास के मुद्दे पीछे छूटते गये। इस तरह मुसलमानों का वोट बिना प्रयास के पा लेने वाले दलों ने भी राजनीतिक मुद्दों को हाशिए पर धकेलना शुरू कर दिया, तथा मौखिक सहानिभूति दिखाते रहे। इसने हमारे लोकतंत्र को गलत दिशा में प्रभावित किया है।
पिछले दिनों टीवी पर अपने योग प्रशिक्षण कार्यक्रमों से लोकप्रिय हुए बाबा रामदेव को भाजपा ने नये माडल की तरह चुना था। बीच में जब बाबा ने अपनी अलग पार्टी बनाने और चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी थी तो सबसे अधिक चिंता भाजपा ने ही व्यक्त की थी व वे उन्हें अलग दल बनाने से रोकने के लिए निरंतर सक्रिय रहे। किंतु जब अन्ना हजारे के अनशन के दौरान उनके समर्थकों ने बाबा रामदेव को मंच पर स्थान नहीं लेने दिया तो भाजपा ने उसका लाभ उठाया और दो दिन तक लगातार उनके साथ बैठकें कर के अलग पार्टी न बनाने तथा परस्पर सहयोगी बनने का समझौता कर लिया। वे एक दूसरे के पूरक बनने को तैयार हो गये थे। अब पिछले कुछ दिनों से भाजपा के प्रचार संस्थान निरंतर यह हवा बनाने में लगे हैं जैसे कि रामदेव ही अकेले हिन्दुत्व के सबसे बड़े प्रतीक हों और पूरा हिन्दू समाज उनके साथ खड़ा है। जबकि सच यह है कि हिन्दू साधुओं का एक बड़ा वर्ग बाबा रामदेव के व्यापारिक राजनैतिक अभियानों से नाराज है। कुछ नमूने निम्नांकित हैं-
• हरिद्वार, 25 फरबरी 2011\ अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद [ज्ञानदासपुर], अखिल भारतीय संत समिति, अखिल भारतीय हरिजन लीग, कई संस्थाओं व राजनेताओं ने रामदेव की सम्पत्ति की जाँच की माँग की है।
• हरिद्वार 11 अप्रैल 2011\ अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय प्रवक्ता बाबा हठयोगी ने योगगुरु बाबा रामदेव को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि रामदेव साधु से उद्द्योगपति बन गये हैं। वे साधु के भेष में जनता को बेबकूफ बना रहे हैं। उन्होंने अन्ना हजारे को असली संत बताया जिन्होंने अपनी सारी सम्पत्ति समाज सेवा के लिए दे दी। उन्होंने कहा कि आचार्य बालकृष्ण खुद फर्जी पासपोर्ट मामले में फँसे हुये हैं। बाबा रामदेव को सन्यास दिलाने वाले स्वामी शंकरदेव रहस्यमय रूप से कहाँ गायब हो गये। उनका कहना था कि रामदेव हरिद्वार के हसन अली हैं।
• होशंगाबाद, बाबा रामदेव और पूर्वमुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के बीच जारी वाकयुद्ध में परमार्थ आश्रम के स्वामी चिन्मयानन्द सरस्वती भी कूद पड़े हैं। होशंगाबाद में पाँच दिवसीय ज्ञान सत्र में मुख्य वक्ता के रूप में आये एनडीए सरकार में पूर्व ग्रह राज्यमंत्री रहे चिन्मयानन्द सरस्वती ने कहा कि योगगुरु रामदेव भ्रष्टाचार के नाम पर अपनी पब्लिसिटी कर रहे हैं। उन्हें योग शिक्षा और दवाओं के बेचने के काम से मतलब रखना चाहिए और सोच समझ कर बोलना चाहिए। पहले भी उन्होंने कहा था कि किसी मंत्री ने उनसे दो करोड़ रुपये मांगे, लेकिन जब उनसे मंत्री का नाम पूछा गया तो वे बयान से पलट गये।
• हरिद्वार, 2 जून 2011,\समाजसेवी वीरेन्द्र चौहान ने बताया कि ढाई साल पहले विश्व हिन्दू परिषद व संघ परिवार ने हरिद्वार से गंगा को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने के लिए आन्दोलन शुरू किया था और बाबा रामदेव की लोकप्रियता के आधार पर समर्थन जुटाने के लिए हरिद्वार –बहराबाद के पातंजलि योग पीठ में आन्दोलन के लिए सभा आयोजित की थी। उसी समय भाजपा के वरिष्ठ नेता अशोक त्रिपाठी ने रामदेव के इरादों को भाँप कर अशोक सिंघल को आगाह किया था कि रामदेव इस आन्दोलन को हाईजैक कर सकते हैं। आशंका सही साबित हुयी थी और कुछ दिनों बाद रामदेव ने कानपुर में गंगा में बढ रहे प्रदूषण के खिलाफ और गंगा को राष्ट्रीय धरोहर बनाये जाने की माँग पर विहिप से अलग हट कर धरना दिया और केन्द्रीय मंत्री प्रकाश जायसवाल के माध्यम से प्रधानमंत्री से भेंट की जिसमें प्रधानमंत्री ने उनकी गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित कर गंगा बेसिन अथोरिटी बनाने का एलान कर दिया। इस तरह गंगा का मुद्दा हथिया रामदेव ने श्रेय ले लिया और संघ टापता रह गया। अपने इस करतब को भुनाने के लिए उन्होंने प्रधानमंत्री का संतों से अभिनन्दन कराने का कार्याक्रम बनाया किंतु तब संघ परिवार ने रामानन्द हंस देवाचार्य को आगे कर प्रज्ञा की गिरफ्तारी के बहाने कार्यक्रम विफल करवा दिया। स्वामी हंसदेव कहते हैं कि साधु का कोई परिवार नहीं होता किंतु रामदेव का परिवार उनके साथ रहता है। रामदेव के भाई रामभरत, बहनोई यशदेव शास्त्री उनके साथ रहते हैं। उनके मातापिता भी उनके साथ रहते हैं। रामदेव साधु नहीं व्यापारी हैं।
•हरिद्वार 3 जून। अखिल भारतीय संत समिति के अध्यक्ष हंसदेवाचार्य और महंत श्वानदास तथा ज्योतिपीठ्के जगदगुरु शंकराचार्य माधवाश्रम ने रामदेव के अनशन को लेकर मोर्चा खोल लिया है। उनका कहना है कि रामदेव अगर गौरक्षा, मठरक्षा, हिन्दुत्व रक्षा जैसे मुद्दों पर आन्दोलन छेड़ते तो संत समाज उनका समर्थन करता। मायावती सरकार ने जैन साधुओं पर अत्याचार किये हैं इसलिए देश के संतों को मायावती के खिलाफ उठ खड़े होना चाहिए। उन्हें बताना चाहिए कि उनके उद्द्योगों में किन किन पूंजीपतियों का धन लगा हुआ है।
• मेरठ, 4जून 2011\ जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती ने कहा कि योगगुरु रामदेव कोई साधु या सन्यासी नहीं हैं वे तो व्यापारी हैं। उनका अनशन व्यापार चमकाने का हथकण्डा है। उन्होंने अनशन के नाम पर भी मोटी रकम इकट्ठा की है, इसलिए उस धन का खर्च दिखाने के लिए अनशन करना मजबूरी थी। साधु संतों ने उनके कारनामों पर राष्ट्रपति को ज्ञापन दिया था, उस ज्ञापन के आरोपों की जाँच की जाना चाहिए।
• हरिद्वार, 18 जून 2011 \शारदा व ज्योतिर्पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती ने कहा कि स्वामी रामदेव भगोड़ा सबित हुए हैं। अगर वे वास्तविक साधु या सत्याग्रही थे तो क्यों भागे? क्या सत्याग्रही अपने समर्थकों को पिटता छोड़कर और उनकी जान जोखिम में डालकर कभी भागता है। रामदेव काले धन भ्रष्टाचार और व्यवस्था परिवर्तन की बातें कर रहे हैं पर खुद उनका कारोबार किस धन से खड़ा हुआ है? उन्होंने कहा कि सधनहीन स्वामी निगामनन्द भी हिमालय अस्पताल में रामदेव के पास वाले कमरे में ही भर्ती थे पर उन्हें देखने कोई नहीं गया। उनका कहना था कि साधु का काम राजनीति करना नहीं अपितु उन्हें गंगा, गाय और राममन्दिर के लिए आन्दोलन करना चाहिए।
पर भाजपा के प्रचार के लिए उन्हीं साधुओं का कथन धर्म बनता है जिनका वे चुनावी स्तेमाल कर सकें। भगवा वेषधारी अग्निवेश के अपमान पर भाजपा कि किसी भी नेता ने कोई बयान नहीं दिया था, किंतु आतंकवादी आरोपों में गिरफ्तार प्रज्ञा से मिलने उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष जेल में पहुँचे थे। देश में राजनीति दलों द्वारा धर्म के दुरुपयोग को रोकने से देश की बहुत सारी समस्याएं दूर की जा सकेंगीं।
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