पिछले कुछ महिनों में भारत में पहली बार जनता भ्रष्टाचार के विरुद्ध आक्रोशित दिखी है| पहले जनता को अन्ना हजारे में अपना हितैषी नजर आया और जनता उनके साथ रोड पर उतर आयी, उसके कुछ समय बाद ही बाबा रामदेव ने भी अन्ना से भी बड़ा जनान्दोलन खड़ा करने के इरादे से देशभर में घूम-घूम कर आम जनता को अपने साथ आने के लिये आमन्त्रित किया| जिसके परिणामस्वरूप बाबा रामदेव के साथ भीड़ तो एकजुट हुई, लेकिन आम जनता नहीं आयी|
यदि इसके कारणों की पड़ताल करें तो पहले हमें यह जानना होगा कि जहॉं अन्ना के साथ देशभर के आम लोग बिना बुलाये आये थे, वहीं बाबा के बुलावे पर भी देश के निष्पक्ष और देशभक्त लोगों ने उनके साथ सड़क पर उतरना जरूरी क्यों नहीं समझा? इसके अलावा यह भी समझने वाली महत्वपूर्ण बात है कि अन्ना का आन्दोलन खतम होते-होते अन्ना-मण्डली का छुपा चेहरा भी लोगों के सामने आ गया और बचा खुचा जन लोकपाल समिति की बैठकों के दौरान पता चल गया| अन्ना की ओर से नियुक्त सदस्यों पर और स्वयं अन्ना पर अनेक संगीन आरोप सामने आ गये, जिनकी सच्चाई तो भविष्य के गर्भ में छिपी है, लेकिन इन सबके चलते अन्ना की निष्कलंक छवि धूमिल अवश्य दिखने लगी|
अन्ना अनशन के बाद देश की आम जनता अपने आपको ठगा हुआ और आहत अनुभव कर रही थी, ऐसे समय में बाबा रामदेव ने भ्रष्टाचार एवं कालेधन को लेकर देश की राजधानी स्थित रामलीला मैदान में अनशन शुरू किया तो केन्द्र सरकार के मन्त्रियों ने उनकी अगवानी की और मन्त्रियों के समूह से चर्चा करके आमराय पर पहुँचकर समझौता कर लेने के बाद भी बाबा ने अपना अनशन नहीं तोड़ा| इसके विपरीत बाबा के मंच पर साम्प्रदायिक ताकतों और देश के अमन चैन को बार-बार नुकसान पहुँचाने वाले लोग लगातार दिखने लगे, जिससे जनता को इस बात में कोई भ्रम नहीं रहा कि बाबा का अनशन भ्रष्टाचार या कालेधन के खिलाफ नहीं, बल्कि एक विचारधारा और दल विशेष द्वारा प्रायोजित था, जिसकी अनशन खतम होते-होते प्रमाणिक रूप से पुष्टि भी हो गयी|
बाबा के आन्दोलन से देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ आम लोगों की मुहिम को बहुत बड़ा घक्का लगा है| बाबा योगी से समाज सेवक और अन्त में राजनेता बनते-बनते कहीं के भी नहीं रहे| उनकी शाख बुरी तरह से गिर चुकी है| इस प्रकार के लोगों के कारण जहॉं भ्रष्ट और तानाशाही प्रवृत्तियॉं ताकतवर होती हैं, वहीं दूसरी ओर आम लोगों की संगठित और एकजुट ताकत को घहरे घाव लगते हैं| आम लोग जो अन्ना की मण्डली की करतूतों के कारण पहले से ही खुद को लुटा-पिटा और ठगा हुआ अनुभव कर रहे थे, वहीं बाबा के ड्रामा ब्राण्ड अनशन के कारण स्वयं बाबा के अनुयायी भी अपने आपको मायूस और हताशा से घिरा हुआ पा रहे हैं|
बाबा ने हजारों लोगों को शस्त्र शिक्षा देने का ऐलान करके समाज के बहुत बड़े निष्प्क्ष तबके को एक झटके में ही नाराज और अपने आप से दूर कर दिया और देश की धर्मनिरपेक्ष छवि को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर तालिबानी छबि में बदलने का तोगड़िया-ब्राण्ड अपराध अंजाम देने का इरादा जगजाहिर करके अपने गुप्त ऐजेण्डे को सरेआम कर दिया| रही सही कसर भारतीय जनता पार्टी की डॉंस-मण्डली ने सत्याग्रह के नाम पर पूरी कर दी|
इन सब बातों से केन्द्र सरकार को भ्रष्टाचार के समक्ष झुकाने और कठोर कानून बनवाने की देशव्यापी मुहिम को बहुत बड़ा झटका लगा है| आम लोग तो प्रशासन, सरकार और राजनेताओं के भ्रष्टाचार, मनमानी और अत्याचारों से निजात पाने के लिये अन्ना और बाबा का साथ देना चाहते हैं, लेकिन इनके इरादे समाजहित से राजनैतिक हितों में तब्दील होने लगें, विशेषकर यदि बाबा खुलकर साम्प्रदायिक ताकतों के हाथों की कठपुतली बनकर देश को तालिबानी लोगों की फौज से संचालित करने का इरादा जताते हैं तो इसे भारत जैसे परिपक्व धर्मनिरपेक्ष लोकतन्त्र में किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जा सकता| कुल मिलाकर अन्ना और बाबा रामदेव के आन्दोलनों और अनशनों के बाद आम व्यथित और उत्पीड़ित जनता को सोचना होगा कि उन्हें इंसाफ चाहिये तो न तो विदेशों के अनुदान के सहारे आन्दोलन चलाने वालों से न्याय की उम्मीद की जा सकती है और न हीं भ्रष्ट लोगों से अपार धन जमा करके भ्रष्टारियों के विरुद्ध आन्दोलन चलाने की हुंकार भरने वाले बाबा रामदेव से कोई आशा की जा सकती है
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