इंफाल (मणिपुर). शहर का जवाहरलाल नेहरू अस्पताल।
एक कॉरिडोर के चैनल परताला लगा है। यह जेल में तब्दील है। भीतर छोटे से वार्ड में हैं
34 वर्षीय इरोम चानूशर्मिला। 11 बरस बीत गए। पानी की एक बूंद तक गले से नहीं उतरी।
नाक में लगी फीडिंग टच्यूब के जरिये तरल भोजन पर जिंदा यह औरत हड्डियों के ढांचे में
ही बची है।
इरोम एकदम अकेली हैं। किसी से मिल तक नहीं सकतीं।
घरवालों और साथी आंदोलनकारियों से भी नहीं। उनकी मांग एक ही है- आम्र्ड फोर्स (स्पेशल
पॉवर्स) एक्ट 1958 खत्म हो। इसके उलट सरकार ने खुदकशी की कोशिश (आईपीसी की धारा
309) के आरोप में उन्हें कैद कर रखा है। अन्ना ने अपने आंदोलन में इरोम को भी बुलावा
भेजा। इरोम ने जवाब भेजा- मैं इस वक्त कैद में हूं। निकल नहीं सकती। यहीं से समर्थन
दूंगी।
इरोम कॉरिडोर में धीरे-धीरे टहल रही हैं। चैनल की
तरफ देखा। मुस्कराईं। वापस मुड़ गईं। पुलिस हर 14 दिन में हिरासत बढ़ाने के लिए अदालत
ले जाती है। एक साल से ज्यादा जेल में कैद नहीं रख सकते, इसलिए पुलिस बीच-बीच में दो-तीन
दिन के लिए छोड़ने की रस्म भी बदस्तूर निभाती रही है। इस दौरान भी वे आधा किलोमीटर दूर
स्थित घर नहीं जातीं। वहीं एक टेंट में रहती हैं। बांस की खपच्चियों और टीन का बना टेंट
उनके समर्थकों का ठिकाना है।
दो-तीन दिन बाद पुलिस उन्हें फिर जेल में डाल देती
है। वह भले ही मकसद में अन्ना जैसी कामयाब न हो पाई हों लेकिन दो वर्ल्ड रिकॉर्ड जरूर
बन गए हैं - सबसे लंबी भूख हड़ताल का और सबसे ज्यादा बार जेल जाकर रिहा होने का। वह
पढ़ने की शौकीन हैं। कविताएं लिखती हैं। योग करती हैं।
पानी पीती नहीं इसलिए ब्रश की जगह सूखी रूई से दांत
साफ करती हैं। कमरे में एक ही खिड़की है, घंटों वहां बैठ बाहर ताकती हैं। चार घंटे सोती हैं। बाकी समय किताबें।
मां ने बताया-उसका प्रण है कि जब तक मांग पूरी नहीं होगी, घर में
दाखिल नहीं होऊंगी। भा ईसिंघाजीत को एग्रीकल्चर अधिकारी की नौकरी छोड़नी पड़ी। मां ने
भी फैसला किया है भूख हड़ताल खत्म होने तक वह बेटी से नहीं मिलेंगी ताकि, उसका जज्बा कमजोर न हो।
इसलिए अनशन पर सुरक्षा बलों द्वारा 10 लोगों की
हत्या की प्रत्यक्षदर्शी शर्मिला की मांग है कि आम्र्ड फोर्स (स्पेशल पॉवर्स) एक्ट
1958 को हटाया जाए, क्योंकि
यह कानून सुरक्षाबलों को बिना किसी कानूनी कार्रवाई के गोली मारने का अधिकार देता है।
अन्ना ----------------- शर्मिला
अनशन के दिन - 10 दिन - दस साल 9 महीने
समर्थन - लाखों की भीड़ - मुट्ठी भर लोग
खास समर्थक - देश के युवा - कुछ बूढ़ी महिलाएं
अनशन कैसा - पानी पीकर - बिना पानी पिए
प्रचार - टोपी, पोस्टर, बैनर - चुनिंदा पोस्टर
इरोम के नाम दो वर्ल्ड रिकॉर्ड हैं-
एक सबसे लंबी भूख हड़ताल
दूसरा सबसे ज्यादा बार जेल से रिहा होने और मजिस्ट्रेट
के सामने पेश होने।
इरोम को पढ़कर, देखकर और सुनकर, सरकार की संवेदना तो नही
जगी, क्या इस देश से मानवता नाम की चीज खत्म हो गयी? सरकार भी अजीब है, इसे सिर्फ वोट और भीड़ का भय होता है|
सरकार के संविधान में नैतिकता, मानवता और इंसानियत
के लिए कोई जगह नही, सिर्फ उनका अजेंडा लागू होना चाहिए|
लेकिन मीडिया के टीम से मैं जानना चाहता हूँ कि क्या वे ३ महीने लगातार
इरोम के मुद्दों को लेकर लाइव टेलेकास्ट दुनिया को दिखायेंगे?
३४ वर्ष की संवेदनशील क्रन्तिकारी नायिका जो १०
साल से पानी तक नहीं पी है, क्या उसके
लिए कभी टीम अन्ना जैसी संस्था या किसी अन्य की ऑंखें खुलेगी या नहीं? यह एक सच है कि जहाँ मीडिया और ग्लैमर नहीं, धन का समागम
नहीं, वहाँ इस देश के नौजवान नज़र नहीं आते| आज ने नौजवानों को चाहिए ग्लैमर और पैसे| मीडिया को आप
किसी हिस्से से हटा दीजिए और कोई बड़ी आंदोलन कर के दिखा दीजिए तो मैं राजनीति छोड़
दूँगा| मैं खास तौर पर मनमोहन सिंह, सोमनाथ
चटर्जी, मेघा पाटेकर, अब्दुल कलाम,
अरुंधती रॉय, स्वामी अग्निवेश और मानवाधिकार के
टीम से आग्रह करूँगा की मानवता और मणिपुर के लिए इस मुद्दे का हल निकलने का प्रयास करें|
नोबेल प्राइज बांटने वालों को गांधी की तरह की तरह इरोम शर्मीला भी नजर नहीं आती | कम से कम उन्हें पहले जैसी गलती नहीं करनी चाहिये औरशान्ति का नोबल पुरस्कार देकर इस शांति प्रिय और अहिंसक वीरांगना का सम्मान करना चाहिये |
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