इस वर्ष 2011 के शुरू मे धड़ाधड़ भ्रष्टाचार के
मामलों का खुलासा CAG के प्रयासों के फल स्वरूप हुआ
था।एक एक कर राजनेता जेल भेजे गए। तह मे जाने पर जैसे ही लाभार्थियों मे रत्न टाटा, अनिल अंबानी, नीरा राडिया जैसे उद्योगपतियों और
दलालों के नाम सामने आए और उनके विरुद्ध कारवाई की संभावना बनते दिखी वैसे ही
कारपोरेट घरानों ने अपने अमेरिकी संपर्कों के सहयोग से पहले रामदेव फिर अन्ना को
आगे करके भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन शुरू करा दिया। जम कर राजनेताओं और संसदीय
संस्थाओं को कोसा गया। ऐसा वातावरण सृजित किया गया जैसे सभी भ्रष्टाचार की जड़ यह
संसदीय लोकतन्त्र और राजनेता ही हैं। खाता-पीता सम्पन्न वर्ग जो एयर कंडीशंड कमरों
मे बैठ कर आराम फरमाता है और वोट डालने भी नहीं जाता है नेताओं के पीछे हाथ धोकर
पड़ गया। कारपोरेट मीडिया ने इसी आराम तलब वर्ग के जमावड़े को जन-आंदोलन की संज्ञा
दी। परंतु मैंने इसे देश मे तानाशाही लाने का उपक्रम बताया था।
उस समय अमेरिकी प्रशासन ने खुल कर अन्ना आंदोलन
का समर्थन किया था। भाजपा सरकार से नियम/कानून विरुद्ध हिमाचल प्रदेश मे चाय बागान
लेने वाले वकील साहब ने तब अमेरिकी सरकार के निर्णय का बड़ी ही बेशर्मी से स्वागत
किया था। लेकिन अब 20 दिसंबर 2011 को उसी अमेरिकी सरकार के गुप्तचर संगठन CIA ने अन्ना को आर एस एस
/हुर्रियत कान्फरेंस के समक्ष तौल दिया है।
जो लोग और खासकर वे विद्वान जो अन्ना/रामदेव का
समर्थन करते रहे हैं इस बदलाव का कारण बता सकते हैं? शायद नहीं। जब अमेरिका अर्थ संकट से घिरा था उसके नागरिक
असंतोष व्यक्त कर रहे थे -आकूपाई वाल स्ट्रीट उभार पर था तो अमेरिका ने बड़ी ही
चतुराई से भारतीय कारपोरेट घरानों से मिल कर भारत मे रामदेव/अन्ना आंदोलन शुरू करा
दिये जिससे यहाँ के लोग यहीं उलझे रहें और अमेरिका की आंतरिक दुर्दशा देख कर उससे
खिचे नहीं। जून 2011 मे साईबेरिया की एक अदालत मे ISCON के
संस्थापक द्वारा व्याख्यायित गीता जो योगीराज श्री कृष्ण की गीता से कहीं से भी
मेल नहीं खाती है के विरुद्ध केस वहाँ की सरकार ने चला दिया। ISCON कोई धार्मिक संगठन नहीं है वह तो CIA की ही एक इकाई
है लेकिन भारत के बुद्धिमान लोगों की बुद्धि का कमाल देखिये संसद मे
भाजपा/सपा/राजद सभी के सांसद उस कृष्ण विरोधी/धर्म विरोधी गीता के बचाव मे एकत्र
हो गए और हमारे विदेश मंत्री एस एम कृष्णा साहब ने रूसी सरकार पर दबाव डाला की
अदालत उस गीता पर प्रतिबंध न लगाए। इत्तिफ़ाक से रूस मे प्रधानमंत्री ब्लादीमीर
पुतिन साहब की चुनावों मे जीत को वहाँ की जनता ने धांधली करार दिया। भारत से संबंध
मधुर बनाए रखने के लिए परेशान रूसी सरकार ने अदालत मे कमजोर पैरवी की और अदालत ने
रूसी सरकार की याचिका खारिज कर दी। यह जीत भारत की जनता की नहीं अमेरिकी CIA
की जीत है कि उसके सहयोगी संगठन को निर्बाध छूट मिल गई। इन्हीं दलों
के साथ यू पी मे लोकायुक्त से परेशान बसपा ने भी 'संवैधानिक
लोकपाल' का गठन नहीं होने दिया।
अन्ना आंदोलन के दौरान सभी भ्रष्टाचार
-अभियुक्त जमानत पर रिहा हो गए। अब इस आंदोलन की जरूरत भी नहीं रह गई। अमेरिकी
प्रशासन और CIA ने अन्ना
टीम से हाथ खींच लिया। अतः यह पूरी तरह से कारपोरेट घरानों और अमेरिकी नीतियों की
जीत है। देश की जनता की यह हार है। लोकपाल मे NGOs और
कारपोरेट घरानों को जब तक नहीं शामिल किया जाता तब तक उसका गठन बेमानी ही है।