हिन्दू स्का्लर हरिद्वार निवासी डा. अनूप गौड़ की पुस्तक “क्या हिन्दुत्व का सूर्य डूब जाएगा” का सूक्ष्म जवाब
डा. गौड़ अपनी इसी पुस्तक में लिखते हैं:
‘‘मुहम्मद सल्ल. ने स्वयं अपने जीवन काल में 82 युद्ध किए इन युद्धों में से कई युद्धों का उन्होंने स्वयं नेतृत्व किया था ......इसी लिए जेहाद अर्थात ख़ूनी आन्दोलन का इस्लाम में सर्वाधिक महत्व है।’’ पेज 33डा. गौड़ अपनी इसी पुस्तक में लिखते हैं:
प्रिय डा. अनूप गौड साहब आपने बिल्कुल गलत समझा है। मुहम्मद सल्ल. ने कोई युद्ध नही किया, केवल आप समझने में गलती कर रहे हैं। वह कैसे? आइए समझें।
निश्चित रूप से आपने पढ़ा होगा कि जब मुहम्मद सल्ल. ने अरब के मक्का नगर में इस्लाम धर्म का प्रचार आरम्भ किया तो मक्का नगर के बडे़-बडे़ सरदार उनके शत्रु हो गए। उन्होंने मुहम्मद सल्ल. को एवं जो भी उनका अनुयाई हो जाता था उसको भाँति-भाँति की यातनाएं देनी आरम्भ कर दी। तीन वर्ष तक तो मुहम्मद सल्ल. एवं उनके अनुयाइयों का हर प्रकार से बहिष्कार भी किए रखा, जब मुहम्मद साहब एवं उनके अनुयाइयों को दी जाने वाली यातनाएं, उनकी बर्दाशत से बाहर हो गयीं तो मुहम्मद सा. सल्ल. ने अपने साथियों को मक्का छोड़कर किसी अन्य स्थान पर चले जाने की राय दी। फलस्वरूप उनके करीब सवा सौ अनुयाई अलग-अलग समय में मक्का छोड़कर “ऐथोपिया” चले गए। इसे ही इस्लामी इतिहास में “हिजरत” कहा जाता है, परन्तु जब मक्के वालों ने देखा कि प्रतिदिन लोग मुहम्मद सल्ल. की शिक्षाओं से
प्रभावित होकर इस्लाम धर्म स्वीकार कर रहे हैं तो उन्होंने सुनियोजित तरीक़े से मुहम्मद साहब को जान से मारने का निश्चय किया, एवं रात्रि में उनको पकड़ने के लिए उनके घर को चारों ओर से घेर लिया, तो मुहम्मद सा. सल्ल. ने भी मक्का छोड़कर मदीना चले जाने का निश्चय किया एवं शत्रुओं की निगाहों से बचते हुए रात के अन्धेरे में अपने घर से निकलकर अपने एक अनुयाई को साथ लेकर मक्का छोड़ मदीना आ गए। हिजरत की इसी घटना से इस्लामी सन् ‘‘हिजरी’’ का आरम्भ हुआ। ख़्याल रहे कि मक्के से मदीने की दूरी 433 कि.मी. है। परन्तु जब मक्के वालों ने देखा कि मुहम्मद सा. सल्ल. मदीने में अमन चैन के साथ इस्लाम धर्म का प्रचार प्रसार कर रहे हैं एवं दिन प्रतिदिन उनके अनुयाइयों की संख्या बढ़ रही है, तो वह आग बगूला हो गए एवं हथियार बन्द लाव लश्कर लेकर मदीने पर आक्रमण करने के लिए निकल पडे़। मुहम्मद सल्ल. ने अपने साथियों के साथ मदीने से बाहर उनका रास्ता रोक लिया, इस समय मुसलमानों की संख्या 313 थी, जिनके पास बहुत कम मात्रा में हथियार एवं सवारी थी। जबकि शत्रु हर पहलू से दोगुनी से अधिक शक्ति रखता था। यहाँ पर घमासान युद्ध हुआ एवं शत्रु सेना के सत्तर व्यक्ति मारे गए।
अब प्रश्न यह है कि मुहम्मद सा. सल्ल. अपना घर बार एवं रिश्तेदारों को छोड़, चार सौ कि.मी. से भी अधिक दूरी पर स्थित मदीना नगर में जाकर रहने लगे थे, परन्तु शत्रु को यह बात भी पसन्द न आयी, एवं वह एक शक्तिशाली फौज लेकर इतनी दूरी पर भी आक्रमण करने के लिए चढ़ आया, तो ऐसी स्थिति में मुहम्मद सा. सल्ल. एवं उनके साथियों ने जो कुछ किया उसे युद्ध कहेंगे या आत्मरक्षा का प्रयास, यह फैसला आपके हाथ है - यहीं पर यह पुष्टि करना भी बेहतर होगा कि जिहाद शब्द का मूल अर्थ भी प्रयास करना ही है, युद्ध करना बिल्कुल नहीं है जबकि ऐसी कुछ विशेष परिस्थितियां भी आती हैं, जहाँ युद्ध भी करना पड़ता है एवं युद्ध करना ही धर्म हो जाता है। क्या श्री कृष्ण ने वीर अर्जुन को युद्ध करने पर प्रेरित करते हुए यह उपदेश नहीं दिए थे कि, इस समय युद्ध करना ही धर्म है, युद्ध नहीं करोगे तो अधर्म हो जाएगा। जबकि वह अपना अधिकार छोडने को भी तैयार थे।
और दुनिया में कौन सा समाज ऐसा है जो अपने अधिकार प्राप्त करने के लिए युद्ध करने की अनुमति नहीं देता।
स्वयं डा. अनूप गौड़ जी लिखते है:
”हिन्दू इतिहास भी महापुरूषों का इतिहास रहा है। इसमें अधर्म के विरूद्व धर्म की लड़ाई लड़ी जाती थी। स्वयं हिन्दू गौरव को पुनः जागृत करने का सर्वोच्च माध्यम है धर्मयुद्ध, अधर्म के विरूद्ध धर्मयुद्ध करने की परिपाटी बनी रहनी चाहिए।” पेज 35 - 36
लेखक के उक्त विचारों पर कोई टिप्पणी न करते हुए केवल यह कहना प्रयाप्त है कि इसे ही कहते है, ”उलटा चोर कोतवाल को डाँटे“
जारी...................................................................
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