Sunday, December 26, 2010

जिहाद या फ़साद (भाग-१)

(हिन्‍दू स्‍कालर हरिद्वार निवासी डा. अनूप गौड़ की पुस्‍तक “क्या हिन्दुत्व का सूर्य डूब जाएगा”  का सूक्ष्म जवाब)

हरिद्वार निवासी डा. अनूप गौड़ के द्वारा लिखित पुस्तिका ”क्या हिन्दुत्व का सूर्य डूब जाएगा” प्रकाशक “जागृति प्रकाशन हरिद्वार, उत्तरांचल” के अध्ययन का अवसर प्राप्त हुआ। जैसा कि उक्त पुस्तिका के नाम से ही प्रतीत होता है कि लेखक हिन्दुत्व के संबंध में चिन्तनशील हैं, उन्हें भय है कि कहीं हिन्दुत्व का सूर्य डूब न जाए। अतः उन्होंने हिन्दू भाइयों को मुसलमानों से चेताते हुए आग्रह किया है कि-

‘‘हिन्दुओं को एक बार मुसलमानों के साथ युद्ध करना ही पड़ेगा और इसके लिए हिन्दुओं को अपनी ओर से तैयारी कर लेनी चाहिए।’’ पृष्ठ 75

प्रश्न यह है कि डा. गौड़ को मुसलमानों के प्रति इतना गुस्सा क्यों है कि वह हिन्दुओं को उनसे लड़ मरने की सलाह दे रहे हैं। डा. गौड़ की उक्त पुस्तिका को पढ़कर यह कहना उचित लगता है कि इस्लाम धर्म के संबंध से उसमें लिखी बातों को अगर सत्य मान लिया जाए, तो हर बुद्धिमान व्यक्ति को उतना ही गुस्सा आना चाहिए, जितना उक्त लेख से प्रकट हो रहा है परन्तु इसे क्या कहा जाए कि जिन बातों को सत्य जानकर उक्त लेखक नाराज़ हैं, वह निश्चित रूप से असत्य हैं, निराधार हैं, एवं सरासर आरोप हैं। लेखक महोदय स्वयं इतिहास को पढ़ें तो यह बात उनके सामने आएगी कि सच्चाई क्या है? उक्त पुस्तिका में इस्लाम एवं मुसलमानों पर अनेक बेबुनियाद इल्ज़ाम लगाए गए हैं। उनमें से कुछ पर सूक्ष्म टिप्पणी आपके सामने प्रस्तुत है।

उदाहरण के तौर पर डा. गौड़ लिखते हैं।

‘‘इस्लाम का मानना है कि नारी में जीवन नहीं होता है अतः वह वस्तु है, भोगने योग्य है।’’ .......पृष्ठ 32

तौबा-तौबा! इतना बड़ा इल्ज़ाम उस धर्म के ऊपर जिसने चैदह सौ साल पहले के उस समय में जब लड़की के पैदा होने पर मातम होता था, जब नारी को पुरूष की सम्पत्ति माना जाता था, जब उसे पैदा होते ही ज़िन्दा ज़मीन में गाड़ देने का रिवाज आम था। वह स्वयं अपने नाम से कोई सम्पत्ति नहीं ख़रीद सकती थी, (ख़्याल रहे कि ब्रिटेन में नारी को यह अधिकार 1817 में प्राप्त हुआ) और हाँ उस समय में जब महिला को अपने पति की चिता के साथ ज़िन्दा जल जाना पड़ता था, जब एक नारी का हाथ किसी के भी हाथ में पकड़ाकर उसे चाहे अनचाहे पुरूष की पत्नी बना देने का अधिकार केवल पुरूष को था। उस समय इस्लाम ने उसे सर उठा कर जीने का अधिकार दिया। किसी पुरूष के साथ उसके विवाह में उस की रज़ामन्दी को शर्त ही नहीं रखा बल्कि यह आदेश भी दिया कि विवाह के समय भी लड़की से पूछा जाए।, यही नही बल्कि यह भी आदेश किया कि विवाह के समय एक पर्याप्त धन पुरूष महिला को दे जिसे “महर” कहा जाता है, जिस पर केवल महिला का अधिकार है। उसे सम्पत्ति रखने-बेचने खरीदने का पूरा अधिकार दिया। माता-पिता एवं पति की सम्पत्ति में उसका निश्चित हिस्सा निर्धारित किया, जब कि भारत में यह अधिकार नारी को 2006 में दिया गया है। इस्लाम में जहाँ जहाँ भी पुरूष व महिला की बात आई है, वहाँ पुरूष की तुलना में महिला को अधिक आदर एवं सम्मान दिया गया। कुरआन की यह आयत देखें -

‘‘और हमने मनुष्य को अपने माता-पिता के साथ अच्छा बरताव करने की नसीहत की, उसकी माँ ने कठिनाइयाँ झेल कर उसे पेट में रखा एवं कठिनाइयाँ झेल कर ही उसे जन्मा एवं उसके गर्भ और दूध छुडाने में 2 साल लगे।’’ सूरह लुकमान आयत नं. 14

और कुरआन में स्पष्ट रूप सें पुरूषों और महिलाओं को एक-दूसरे के प्रति समान अधिकार का वर्णन करते हुए कहा गया है -

''और महिलाओं को भी मारूफ़ तरीके़ पर वही अधिकार प्राप्त है जैसे पुरूषों के महिलाओं पर हैं।'' सूरह बकर आयत नं. 228

जिस धर्म ने नारी को यह सम्मान दिया है उस पर इतना बड़ा इल्ज़ाम लगाना कि वह नारी को निर्जीव मानता है, कितना बड़ा अन्याय है?

मान्य “डा. अनूप गौड़” अगर यह पुष्टि भी कर देते कि उन्होंने उक्त राय किन बुनियादों पर क़ायम की है तो अच्छा होता।



जरी...............................

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