Tuesday, February 08, 2011

इस्लामिक बैंकिंग से कौन डरता है?





अर्थथास्त्रियों के अनुमानों को सही माना जाए तो अगले पांचबरसों में दुनिया का इकॉनमिक सिस्टम इस्लामी और गैरइस्लामी में पूरी तरह बंट जाएगा। इस्लामी बैंकिंग का  सिर्फतेजी से विस्तार हो रहा हैबल्कि उसे गैर मुस्लिमों कासमर्थन भी बढ़ता जा रहा है। आज जब इस्लामी कट्टरता नेबहुत से लोगों की नींद उड़ा रखी हैतो यह सवाल भी उठनेलगा है कि क्या इस्लामी बैंकिंग किसी खतरे को जन्म देगी?इस बारे में कोई अंदाजा लगाना और इस्लामी बैंकिंग कोइस्लामी जेहाद से जोड़ना गलत होगालेकिन तो भी इसपरिघटना के असर दुनिया के भावी स्वरूप पर बेहद गहरे पड़ेंगेजिनका आकलन अभी होना बाकी है। अर्थ पर धर्म का असर पहले भीरहा हैलेकिन यह पहली बार हैजब ग्लोबल पैमाने पर एक मजहबी वित्तीय सिस्टम विकल्प के तौर पर उभर रहा है। पूंजीवादीअर्थशास्त्र से इसकी जबर्दस्त टक्कर होगी और नतीजे चौंकाने वाले होंगे।
फिलहाल तो इस्लामी बैंकिंग एक बड़ी लहर की तरह उठ रहा है। अमेरिका और यूरोप के लगभग सभी बैंक और वित्तीय संस्थान इसेअपना रहे हैं। भारत में भी इसकी शुरुआत हो गई है। दिल्ली की एक एसेट मैनेजमेंट कम्पनी ने सेबी से इस्लामी म्यूचुअल फंड लॉन्चकरने के लिए संपर्क किया है। इस कम्पनी का दावा है कि मुसलमानों से ज्यादा गैर मुसलमानों में यह फंड पॉपुलर होगा। यह कम्पनीउन्हीं धंधों में पैसा निवेश करेगीजिनकी शरीयत में इजाजत दी गई है। कम्पनी के मुताबिक बीएसई-100 में 71 और बीएसई-500 में366 शेयर ऐसे हैं जो इस्लामी बैंकिंग में बताए गए कायदों पर खरे उतरते हैं। इस्लामी बैंकिंग को लेकर अमेरिकाब्रिटेनजापानयूरोपके कुछ देशों और थाइलैंड में भी उत्साह है। ब्याज रहित लोन तो सभी के लिए सबसे बड़ा आकर्षण है। कुवैत में एक मलयेशियाई बैंकमें 40 फीसदी जमाकर्ता और 60 फीसदी कर्ज लेने वाले गैर मुस्लिम हैं।
दरअसल हुआ यह है कि 9/11 के बाद से मिडल ईस्ट के सभी मुस्लिम देशों ने अमेरिका ओर यूरोप के बैंकों में अपना पैसा जमा करनालगभग बंद कर दिया। यही नहींअमेरिका और यूरोप के बैंकों से मुस्लिम देशों की लगभग 800 अरब डॉलर की रकम निकाल ली गई।तेल के लगातार बढ़ते दामों से मिडल ईस्ट के खजाने भरते जा रहे हैं। अब मुस्लिम देशों ने अपनी रकम अपनी पहुंच के देशों यानीमुस्लिम देशों में ही जमा करनी शुरू कर दी है। इसी का नतीजा है कि हर साल दस फीसदी की दर से बढ़ते करीब पांच सौ अरब डॉलरके एसेट्स के साथ तीन सौ से ज्यादा इस्लामी वित्तीय संस्थान पनप चुके हैं।
इस्लामी बैंकिंग और गैर इस्लामी बैंकिंग में बुनियादी फर्क यह है कि इस्लामी वित्तीय संस्थान अपना पैसा ऐसी किसी फर्म में नहींलगातेजो अल्कोहलजुआतम्बाकूहथियारसूअर या पोर्नोग्राफी का कारोबार करती हों। इसके अलावा ब्याज रहित कारोबार उसकासबसे बड़ा आकर्षण है ही। इस्लामी वित्तीय व्यवस्था में बैंकों से अपेक्षा की जाती है कि वे ‘फंड मैनेजमेन्ट कंसेप्ट‘ के जरिए धन जमाकरेंपैसे पर ब्याज बटोर कर नहीं। मसलनचार साल तक कुछ लोगों का पैसा एक पूल में जमा किया जाएउससे कोई निर्माण कियाजाएफिर उस प्रॉपर्टी को बेचकर पैसा सभी जमाकर्ताओं में बांट दिया जाए। जाहिर है यह काम बैंक का नहीं कारोबारी का हैबैंक उन्हेंबिना व्याज कर्ज देता हैपूरा मुनाफा लेता हैबिल्डर्स को मेहनताना देता है।
ब्याज को बाइबल ने भी प्रतिबंधित किया है। अरस्तू ने ब्याज की निंदा की थी। रोमन साम्राज्य ने ब्याज को सीमित किया था। शुरुआतमें कई ईसाई राज्यों ने ब्याज पर पाबंदी लगाई थी। लेकिन 1875 में जब मिस विदेशी कर्ज के बोझ से दब गया तो इसी का फायदाब्रिटेन ने उठाया। उसने मिस पर कब्जा कर लिया और स्वेज कैनाल में लगे उसके शेयर हथिया लिए। इस घटना से पूरी इस्लामीदुनिया में कोहराम मच गया। मुस्लिम देशों के लिए यह वह मोड़ था जिसने ब्याज रहित इस्लामी बैंकिंग को लगभग ध्वस्त करदिया। पूरी दुनिया में ब्याज सिस्टम ने अपनी जड़ें जमा लीं।
लेकिन अब वक्त पलट रहा है। विश्व पूंजीवाद के लीडर अमेरिका की ताकत घट रही है। 9/11 के बाद से उसकी लगातार गिरती इकॉनमीको बड़ा झटका इस साल तब लगा जब सब प्राइम संकट से उसका हाउसिंग मार्केट धराशायी हो गया। ऐसे में अमेरिका और यूरोप केअग्रणी वित्तीय संस्थानों ने हवा के रुख के साथ चलने का फैसला किया। बदलते अर्थतंत्र में अपनी जगह सभी को बचानी है। मुस्लिमदेशों के पैसे से अमेरिका धीरे-धीरे महरूम हो रहा है। उसके पास और विकल्प ही क्या बचता है कि वह उन्हीं के तौर-तरीकों कोअपनाए। यह बात यूरोप पर भी लागू होती है। इसीलिए इन लोगों ने इस्लामी बैंकिंग को फिलहाल मुनाफे का काम मानकर इस दिशामें काम करना शुरू कर दिया है। इसीलिए सिटी बैंक ग्रुप ने बाकायदा एक अलग विभाग ‘इस्लामिक बैंकिंग इन एशिया फॉर सिटीग्रुपबना दिया है। सबसे पहले सिटी गुप की इसी ब्रांच ने प्राइवेट इक्विटी को इस्लामी कंसेप्ट बताया और पूरी दुनिया के इस्लामी देशों मेंअपना कारोबार बढ़ा लिया। सिटी बैंक ग्रुप और एचएसबीसी के बोर्ड में इस्लामी बैंकिंग के जानकारों को शामिल किया जा रहा है। लंदन,तोक्यो और हांगकांग के संस्थान भी इस्लामी बैंकिंग अपनाने को मजबूर दिख रहे हैं। मलयेशिया और कुवैत के अलावा अब तुर्की भीइस्लामी बैंकिंग के अग्रणी देशों में शुमार हो रहा है। माना जा रहा है कि जल्दी ही ऑस्ट्रेलियाचीन सेंट्रल एशिया के देशों में भीइस्लामी बैंकिंग का विस्तार हो जाएगा।
इस्लामी बैंकिंग को मजबूत आधार देने के लिए मलयेशिया में काफी बड़े पैमाने पर काम हो रहा है। इसके लिए स्कॉलरशिप औरट्रेनिंग प्रोग्राम चलाए जा रहे हैं। मलयेशिया में 1962 में ही आधुनिक इस्लामी बैंक की स्थापना हो गई थी। बाद में मलयेशिया सरकारने पूरे देश में इस्लामी बैंक खोले। सन् 2001 में सरकार ने टैक्स छूट देने की स्कीम शुरू की। इसका मकसद 2010 तक देश के कुलएसटे्स के कम से कम पांचवें हिस्से को इस्लामी वित्त व्यवस्था का अंग बनाना है। इस साल सऊदी अरब के नैशनल कमर्शल बैंक नेतूनीशिया और मोरक्को में अपनी इस्लामी बैंकिंग की शुरुआत कर दी। 
 लेखक: सुहेल वहीद, जर्मन रेडियो डाउचे वैले

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