Monday, June 20, 2011

सोने चांदी के सत्य साईं




यजुर निवास: जहां रहते थे सत्य साईं
यजुर निवास: जहां रहते थे सत्य साईं

24 अप्रैल 2011 को सत्य साईं बाबा के निधन के बाद उनसे जुड़ी यह ऐसी पहली बड़ी खबर है जिसपर विवाद न सही संवाद तो होना ही चाहिए. शुक्रवार को सत्य साईं बाबा का वह भवन खुला जिसमें उनके जीते जी किसी के भी जाने की अनुमति नहीं थी. सत्य साईं बाबा के निजी आवास यजुर मंदिर दो न्यायाधीशों की मौजूदगी में बैंकवालों के लिए खोला गया ताकि ये बैंक अधिकारी वहां मौजूद संपत्तियों का व्यौरा तैयार कर सकें और उसे ट्रस्ट के खातों में जमा कर दें. सत्य साईं के निजी आवास का दरवाजा खुला तो बाबा के आवास यजुर मंदिर से इतना कुछ मिला कि सुनकर किसी का भी मुंह खुला रह जाए.
98 किग्रा सोना, 307 किग्रा चांदी के अलावा 11.56 करोड़ रुपए नगद मिले हैं. सेंट्रल सत्य साई ट्रस्ट ने शुक्रवार शाम इसकी घोषणा की। इस पूरे सामान का आकलन उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत न्यायाधीश न्यायमूर्ति एपी मिश्रा और कर्नाटक हाईकोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश न्यायमूर्ति वैद्यनाथ की मौजूदगी में किया गया। सत्य साईं के अस्वस्थ होने पर 28 मार्च को उन्हें अस्पताल में भर्ती गया था। 28 मार्च को यजुर मंदिर से सत्य साईं अस्पताल गये तो लौटकर नहीं आये.24 अप्रैल को उन्होंने महा समाधि ले ली. उसके करीब डेढ़ महीने बाद बाबा का कमरा खोला गया.
सत्य साईं ट्रस्ट के पास अकूत संपत्तियां हैं. ऐसा नहीं हैं कि संपत्तियां होना ट्रस्ट के ऊपर कोई सवालिया निशान खड़ा करता है. सत्य साईं खुद संपत्तियों को परोपकार के लिए खर्च करते थे और ट्रस्ट द्वारा शुरू की गयी पेयजल परियोजना की प्रशंसा हर कोई करता है. लेकिन यह तो ट्रस्टों का मामला है. खुद सत्य साईं के निजी आवास से इतनी संपत्ति मिलने का क्या तुक है? सत्य साईं की जगह अगर कोई व्यापारी मर जाए, नेता चला जाए और उसके कमरे की जांच पड़ताल में इतनी संपत्तियां मिलें तो हमारी पहली प्रतिक्रिया क्या होगी? क्या हम उसके ऊपर शक नहीं करेंगे? व्यापार, कारोबार, साम्राज्य यह सब बाहरी व्यवस्था हैं. निजी तौर पर किसी सन्यासी का इस प्रकार अपने घर में धन छिपाकर रखना क्या संकेत करता है?
जिस यजुर निवास में सत्य साईं रहते थे उसका निर्माण 2001 में देश की मशबूर निर्माण कंपनी लार्सन एण्ड टुब्रो ने किया था. दो मंजिले इस आवास के निचले तल पर सत्य साईं की बैठक थी और ऊपरी तल पर वे रहते थे. दो कमरे के इस एकांतवास तक सिर्फ सत्यजीत को आने जाने की अनुमति थी जो एक दो अन्य नौजवान शिष्यों के साथ बाबा की सेवा करने के लिए आते थे. सत्य साईं ट्रस्ट के ट्रस्टी तक को वहां जाने की अनुमति नहीं होती थी. उन सबसे सत्य साईं नीचे ही मिलते थे. साईं बाबा के देशी विदेशी भक्त जो भी उपहार उन्हें देते थे वह सब यजुर मंदिर पहुंचा दिया जाता था, और जैसा कि सूत्रों के हवाले से दावा किया जा रहा है कि बाबा खुद सारे उपहारों का हिसाब किताब रखते थे. इस काम में वे अपने ही कुछ एमबीए छात्रों की मदद लेते थे और रूपये पैसे, उपहारों का पाई पाई का हिसाब रखते थे. यह सारा काम यजुर मंदिर में ही संपूर्ण किया जाता था.
कबीर ने कहा है- माया महाठगिनी हम जानी. इसके बाद वे सब स्थान कबीर गिनाते हैं कि माया कहां कहां जा बैठी है. सत्य साईं बाबा के कमरे में इतनी संपत्ति का जखीरा दिखे और उसे बैंकवाले उठाकर ले जाएं तो क्या कहना चाहिए? जब्ती, बरामदगी या फिर प्राप्ति? धर्म इस देश के कमजोर मनुष्यों की सबसे ताकतवर व्यवस्था है इसलिए इस पर कोई कुछ बोलने से भी कतराएगा. लेकिन जिस यजुर मंदिर के आवास में सत्य साईं रहते थे क्या उसमें इसीलिए लोगों का प्रवेश वर्जित था कि वह मंदिर नहीं बल्कि सत्य साईं की टकसाल थी? आध्यात्मिकता भी एकांत खोजती है. नाना प्रकार के विचार, भावनाएं आध्यात्मिकता को क्षीण करती हैं इसलिए आध्यात्मिक पुरुष को एकांतवासी तो होना ही चाहिए. लेकिन उस एकांतवास से अगर 98 किलो सोना, 307 किलो चांदी मिले तो?
सवाल तो नहीं खड़ा कर रहा लेकिन इस धर्मभीरू समाज से इतना तो जरूर जानना चाहिए कि वह किसी संत महात्मा से क्या पाने और उसे क्या देने जाती है? एक सवाल उनसे भी जो लोग अंदर गये थे, सत्य साईं की संपत्तियों की खाक छानने, उन्हें यह भी बताना चाहिए कि सत्य साईं की आध्यात्मिक आभा कितनी प्राप्त हुई और उस आभा तक आम जन के पहुंचने के रास्ते कैसे खुलेंगे?

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