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‘जब देश के राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री मेरे चरणों में बैठते हों फिर आखिर मैं प्रधानमंत्री क्यों बनना चाहूंगा’? दंभ व अहंकार भरे यह शब्द अभी कुछ ही समय पूर्व बाबा रामदेव ने बिहार के बेतिया जि़ले में अपने एक योग शिविर में कहे। सत्ता की चूलें हिला देने तथा देश की 121 करोड़ जनता का समर्थन अपने साथ होने की बात तो वे आमतौर पर करते ही रहे हैं। बहरहाल गत् 5 वर्षों में भगवा वस्त्र धारण कर लगभग पूरे देश में योग शिविर आयोजित करने के नाम पर घूम-घूम अपने अनुयाईयों की अच्छी-खासी फौज खड़ी कर लेने वाले योग गुरु बाबा रामदेव को ऐसा महसूस होने लगा था कि देश की यदि पूरी नहीं तो अधिकांश जनता तो उनके साथ है ही।
कुछ विपक्षी राजनैतिक दलों विशेषकर भारतीय जनत पार्टी ने अपना समर्थन देकर उन्हें और भी गलतफहमी में डाल दिया। बहरहाल गत् 4 जून को दिल्ली के रामलीला मैदान में बाबा रामदेव का कथित योग शिविर राजनीति का अखाड़ा बन गया। और सरकार की पुलिसिया कार्रवाई के रूप में उस भयानक एवं काली रात में बाबा रामदेव ने राजनीति का वह वास्तविक व भयानक चेहरा देखा कि चंद ही लम्हों में वे उसी विशाल मंच से कूदकर भागते नज़र आए जिस मंच पर बैठकर वे तथा उनके कुछ समर्थक सरकार के घुटने टिकवाने तथा नाक रगड़वाने के दावे कर रहे थे।
राजनीति के इस सीधे साक्षात्कार ने बाबा रामदेव को मंच से अपनी जान बचाने के डर से न केवल छलांग लगाकर भागने के लिए मजबूर किया बल्कि उन्हें आत्मरक्षा के लिए महिलाओं के मध्य जाकर शरण भी लेनी पड़ी। इतना ही नहीं बल्कि कभी सिले हुए कपड़े न पहनने का प्रण करने वाले रामदेव ने उस रात एक महिला के सिले हुए पुराने कपड़े पहनकर लुकछिप कर व भेष बदलकर अपनी जान बचाने में ही अकलमंदी में अपनी भलाई समझी।
भ्रष्टाचार व काला धन संग्रह नि:संदेह देश के लिए एक नासूर है। विदेशों में जमा काला धन निश्चित रूप से अपने देश में यथाशीघ्र वापस आना चाहिए। सरकार को बेशक यह भी चाहिए कि वह विदेशों में जमा काले धन को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करे। काला धन संग्रह करने वालों के विरुद्ध कड़ी सज़ा का प्रावधान भी होना चाहिए। परंतु क्या किन्हीं सरकारी कार्रवाईयों को अमल में लाने के लिए सरकार पर इस प्रकार दबाव डालना उचित है कि
अपनी मांगों को मनवाने के लिए आमरण अनशन का सहारा लिया जाए? इतना ही नहीं बल्कि इस प्रकार के आयोजन के लिए सरकार की आंख में धूल झोंक कर तथा उसे गुमराह कर योग शिविर के आयोजन के नाम पर अनुमति ली जाए तथा बाद में उस योग शिविर को आमरण अनशन तथा राजनैतिक मंच का रूप दे दिया जाए?योग गुरु दरअसल अपने योग शिविर में दिए जाने वाले राजनैतिक भाषण में काला धन मुद्दे की बात कर आम लोगों की भावनाओं से खेलने का प्रयास करते हैं।
बहरहाल काला धन जमा करने वालों को फांसी हो या उम्रकैद या फिर पूर्ववत् जारी रहने वाली नाममात्र सज़ाएं, यह तो अब बाद का विषय बन गया है। फिलहाल तो राजनीति में पदार्पण कर चुके बाबा रामदेव को सरकार से दो-दो हाथ करने का संभवत: पहले तो खामियाज़ा भुगतना पड़ेगा। कुछ समय पूर्व उनके द्वारा संचलित दिव्य फार्मेसी द्वारा तैयार की जाने वाली दवाईयों में मानवअंगों के भस्म की मिलावट के समाचार आए थे।
परंतु बाबा जी अपने रसूख के बल पर उन आरोपों से उबर गए। परंतु अब जबकि भारतीय जनता पार्टी तथा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ व उनके सहयोगी दलों के हाथों का खिलौना बनते हुए वे सीधे तौर पर केंद्र सरकार से टकरा रहे हैं तो ऐसे में निश्चित रूप से सर्वप्रथम उन्हें मात्र दस वर्षों में स्थापित किए गए अपने लगभग 11,00 करोड़ रूपये के विशाल साम्राज्य का हिसाब ज़रूर देना होगा।
बहरहाल बाबा रामदेव की राजनीति में पदार्पण की पहली पारी अब शुरु हो चुकी है। इसमें जहां अन्ना हज़ारे ने रामदेव के पक्ष में खुलकर आकर तथा उनपर हुए अत्याचार के विरुद्ध राजघाट पर सफल अनशन कर जहां अपना क़द एक बार फिर उनसे ऊंचा कर लिया है वहीं राजनीति के इसी पहले पाठ ने बाबा जी को भगवा वस्त्र उतार फेंकने तथा दूसरी महिला के कपड़े पहनकर तथा भेष बदलकर अपनी जान बचाने का भी मार्ग दिखा दिया है।
बाबा तथा उनके एक परम सहयोगी जिस प्रकार मीडिया के समक्ष रो-रो कर अपना अंतिम ब्रह्मास्त्र राजनीति के प्रथम पाठ के बाद चला दिया है इससे भी उनके ‘बुलंद हौसलों’ का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। बाबा जी ने राजनीति में प्रवेश कर तथा राजनीतिज्ञों से विशेषकर सरकार से पंगा मोल लेकर अच्छा किया या नहीं यह तो या तो उनकी आत्मा बेहतर समझ रही होगी या फिर 4 जून के बाद से उनके चेहरे के भाव बता रहे हैं।
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