Sunday, November 14, 2010

क्या वन्देमातरम गाना देशप्रेम का सर्टिफ़िकेट है?

"क्या वन्देमातरम गाना देशप्रेम का सर्टिफ़िकेट है?" "क्या वन्देमातरम को ना गाने वाला देशद्रोही है?" "अगर कोई मुस्लमान फ़ौजी "वन्देमातरम" नही गायेगा तो क्या वो भी देशद्रोही कहलायेगा?"

जो लोग वन्दे मातरम को लेकर इतना शोर करतें है उनमें से किसको "वन्दे मातरम" मुंह ज़बानी याद है??? किसको उसका अर्थ याद है??? भारत के किस शख्स ने "वन्दे मातरम" के अर्थ को अपनी ज़िन्दगी मे उतारा है??? "वन्देमातरम" हो, "जन गण मन" हो, या "सारे जहां से अच्छा" कौन इनके ऊपर अमल कर रहा है??? सबको बस हराम का पैसा चाहिये एक छोटा सा डाकिया भी कोई ज़रुरी कागज़ देने के लिये बीस से तीस रुपये मांगता है और जब भी कोई बेवकुफ़ उलेमा कोई फ़तवा देता है तो यही लोग देशभक्त और देशप्रेमी बनकर खडे हो जाते है गाली देने के लिये!

कहां चला जाता है तुम्हारा देशप्रेम? कहां चली जाती है देशभक्ति? इसी देश के लोगों का खुन चुसते हो तब याद नही रहता की "अपनी मां के बेटों का खुन चुस रहे हो?" तब कहां चली जाती है तुम्हारी (कथित) मातर्भक्ति????

मैं एक भारतीय मुसलमान हूं और मुझे अपने भारतीय होने पर फ़ख्र है..! मैं मुल्क से प्यार करता हुं और उसके लिये जान दे सकता हूं और ले भी सकता हुं और मुझे इस जज़्बे को साबित करने के लिये किसी से सर्टिफ़िकेट नही चाहिये।

हम भारतीय मुसलमान अपने देश से प्रेम करते है "हम देशप्रेमी है देशभक्त नही" हम अपने देश से प्यार करते है और हमेशा करते रहेंगे लेकिन हम उसकी इबादत नही कर सकते है...

अल्लाह के रसुल सल्लाहो अलैह वसल्लम ने मां के पैरों में जन्नत, और बाप को जन्नत का चौकीदार कहा है... और ये भी कहा है की अल्लाह के बाद अगर किसी को सज्दा जाइज़ होता तो वो मां-बाप को होता लेकिन उनके पैर छुने की भी इजाज़त नही है...अगर मां-बाप तुम्हारे साथ जुल्म करें तुम्हे मारें-पिटे तब भी तुम उफ़्फ़ मत करों, उनको इज़्ज़त दो और उनकी फ़रमाबरदारी करो.... मां-बाप का हुक्म तुम्हारे लिये सब-कुछ है लेकिन अगर वो अल्लाह के अलावा किसी और की इबादत करने को कहें तो उस हुक्म को मत मानों लेकिन तब भी उनके साथ अच्छा सुलुक करों..... ये है मां-बाप का ओहदा इस्लाम में........लेकिन इबादत उनकी भी नही है..

अल्लाह के अलावा कोई पुज्य नही है......यही इस्लाम का मूल मन्त्र है...।

इबादत और मोहब्बत में बहुत मामुली सा फ़र्क है.........मोहब्बत अगर हद से बढ जाये तो इबादत बन जाती है और इबादत भी एक मोहब्बत है क्यौंकि जब तक बन्दा अपने खुदा से, अपने भगवान से मुहब्बत नही करेगा वो इबादत नही कर सकता।

ये हमारे देश के उलेमा, राजनेताओं के हाथ की कठपुतली है...ये हमेशा उस बात पर फ़तवा देते है जिस पर विवाद पैदा हो और दुसरों को बोलने का मौका मिलें..!!! सिर्फ़  उलेमा के कहने से क्या मुसलमान "वन्दे मातरम" गाना बन्द कर देंगे???
 
वन्दे मातरम" को गाने से कोई देशप्रेमी नही हो जाता है और ना ही उसको ना गाने वाला गद्दार है।


-"इस्लाम और कुरआन".

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