Tuesday, January 11, 2011

वेद,पुराण,और उपनिषद में पैगम्बर मोहम्मद(स.अ.व्.)

वेद,उपनिषद,और पुराणों में मोहम्मद(स.अ.व्.)
                        
                      
                           कुरआन की एक आयत का अनुवाद है,जिसमें भगवान्(खुदा) कहता है- ‘‘कोई क़ौम ऐसी नहीं गुजरी, जिसमें कोई सचेत करने वाला न आया हो।’’ (35: 24) लगभग हर धर्मग्रन्थ में कुछ इसी के समानार्थी उद्दरण दिए गए हैं,और धर्मशास्त्रों के गहन और सूक्ष्म अवलोकन करने पर,पुष्टित होता है,कि सभी धर्म एक ही मूल से जुड़े हुए हैं, देश,काल,भाषा,जाति,और समाज के प्रभावों से उनमें इतना परिवर्तन आ गया,कि हर धर्म एक दुसरे से जुदा (अलग-अलग) नज़र आता है,….आइये हम हिन्दू(वैदिक) धर्मग्रंथों और इस्लाम में समानताओं पर नज़र डालते हैं.
                                               

                                     संसार का हर धर्म,एक अंतिम पैगम्बर) देवता के धरती पर जन्म लेने कि भविष्यवाणी करता है,……………हिन्दू धर्मग्रंथों में “कल्कि” अवतार और “नरासंश” के जन्म लेने कि भविष्यवानियाँ कि गयी हैं…..तो बौध धर्मग्रंथों में “मैत्रेई बुद्ध” के पदार्पण होने का उल्लेख किया गया है,….इसाई धर्म और यहूदी धर्म कि पुस्तकों में भी लगभग ऐसे ही भविष्यवानियाँ कि गयी हैं.
                                               
                                               वेदों के अनुसार उष्ट्रारोही का नाम ‘नराशंस’ होगा। ‘नराशंस’ का अरबी अनुवाद ‘मुहम्मद’ होता है।
 नराशंस: यो नरै: प्रशस्यते। (सायण भाष्य, ऋग्वेद संहिता, 5/5/2)।
मूल मंत्र इस प्रकार है –
‘‘नराशंस: सुषूदतीमं यज्ञामदाभ्यः ।
कविर्हि ऋग्वेद में भी कहा गया है कि
अहमिद्धि पितुष्परि मेधामृतस्य जग्रभ। अहं सूर्य इवाजनि।।’
 सामवेद में भी है:
‘आहमिधि पितुः परिमेधामृतस्य जग्रभ। अहं सूर्य इवाजनि।। (सामवेद प्र. 2 द. 6 मं. 8)
                                                अर्थात, अहमद (मुहम्मद) ने अपने रब से हिकमत से भरी जीवन व्यवस्था को हासिल किया। मैं सूरज की तरह रौशन हो रहा हूं।’ जबकि इसमें तो मोहम्मद के दुसरे नाम “अहमद” को भी स्पष्ट किया गया है.
उष्ट्रा यस्य प्रवाहिणो वधूमन्तों द्विर्दश। वर्ष्‍मा रथस्य नि जिहीडते दिव ईषमाण उपस्पृशः। -अथर्ववेद कुन्ताप सूक्त 20/127/२
                                              अर्थात, जिसकी सवारी में दो खूबसूरत ऊंटनियां हैं। या तो अपनी बारह पत्नियों समेत ऊंटों पर सवारी करता है उकसी मान-प्रतिष्ठा की ऊंचाई अपनी तेज़ रफ्तार से आसमान को छूकर नीचे उतरती है। पैगम्बर मोहम्मद ऊंट कि सबारीही किया करते है,और अपने लिए ख़ास तौर पर दो ऊंटनियाँ रखते थे,और आश्चर्य जनक रूप से उनकी भी बारह पत्नियां थीं.
                       आप (सल्ल.) की पत्नियों के नाम क्रम से इस प्रकार हैं – 1. हज़रत ख़दीजा (रज़ि), 2. हज़रत सौदा (रजि.), 3. हज़रत आइशा (रजि.), 4. हज़रत हफ़्सा (रजि.), 5. हज़रत उम्मे सलमा (सल्ल.), 6. हज़रत उम्मे हबीब (रजि.), 7. हज़रत ज़ैनब बिन्त जहश (रजि.), 8. हज़रत ज़ैनब बिन्त खुज़ैमा (रजि.), 9. हज़रत जुवैरिया (रजि.), 10. सफ़ीया (रजि.), 11. हज़रत रैहाना (रजि.), और 12. हज़रत मैमूना (रजि.)
                                        भविष्य पुराण के अनुसार, शालिवाहन (सात वाहन) वंशी राजा भोज दिग्विजय करता हुआ समुद्र पार (अरब) पहुंचेगा। इसी दौरान (उच्च कोटि के) आचार्य शिष्यों से घिरे हुए महामद (मुहम्मद सल्ल.) नाम से विख्यात आचार्य को देखेगा। (प्रतिसर्ग पर्व 3, अध्याय 3, खंड 3, कलियुगीतिहास समुच्चय)
भविष्य पुराण में कहा गया है-
लिंड्गच्छेदी शिखाहीनः श्मश्रुधारी स दूषकः। उच्चालापी सर्वभक्षी भविष्यति जनो मम। 25। विना कौलं च पश्वस्तेषां भक्ष्या मता मम। मुसलेनैव संस्कारः कुशैरिव भविष्यति। 26।। तस्मान्मुसलवन्तो हि जातयो धर्मदूषकाः। इति पैशाचधर्मश्च भविष्यति मया कृतः । 27 ।। (भ.पु. पर्व 3, खण्ड 3, अध्याय 1, श्लोक 25, 26, 27)
                                       इन श्लोकों का भावार्थ इस प्रकार है-‘हमार लोगों का ख़तना होगा, वे शिखाहीन होंगे, वे दाढ़ी रखेंगे, ऊंचे स्वर में आलाप करेंगे यानी अज़ान देंगे। शाकाहारी मांसाहारी (दोनों) होंगे, किन्तु उनके लिए बिना कौल यान मंत्र से पवित्र किए बिना कोई पशु भक्ष्य (खाने) योग्य नहीं होगा (वे हलाल मांस खाएंगे)। इसक प्रकार हमारे मत के अनुसार हमारे अनुयायियों का मुस्लिम संस्कार होगा। उन्हीं से मुसलवन्त यानी निष्ठावानों का धर्म फैलेगा और ऐसा मेरे कहने से पैशाच धर्म का अंत होगा।’ अर्थात उनके सर पर “बालों की छोटी/चुटिया” नहीं होगी,अर्थात वे सनातन हिन्दू धर्म की मान्यताओं से अलग…….शिखाहीन होंगे,
पुराण में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि ‘एक दूसरे देश में एक आचार्य अपने मित्रों के साथ आएंगे। उनका नाम महामद होगा। वे रेगिस्तानी क्षेत्र में आएंगे।
(एतस्मिन्नन्तिरे म्लेच्छ आचाय्र्येण समन्वितः।। महामद इति ख्यातः शिष्यशाखा समन्वितः।।)’
इस अध्याय का श्लोक 6,7,8 भी मुहम्मद साहब के विषय में है।
 नागेंद्र नाथ बसु द्वारा संपादित विश्वकोष के द्वितीय खण्ड में उपनिषदों के वे श्लोक दिए गए हैं
अस्माल्लां इल्ले मित्रावरुणा दिव्यानि धत्त इल्लल्ले वरुणो राजा पुनर्दुदः।
हयामित्रो इल्लां इल्लां वरुणो मित्रास्तेजस्कामः ।। 1
 ।। होतारमिन्द्रो होतारमिन्द्र महासुरिन्द्राः।
अल्लो ज्येष्ठं श्रेष्ठं परमं पूर्ण बह्माणं अल्लाम् ।।
2 ।। अल्लो रसूल महामद रकबरस्य अल्लो अल्लाम् ।।
3 ।। (अल्लोपनिषद 1, 2, 3)
                                              अर्थात, ‘‘इस देवता का नाम अल्लाह है। वह एक है। मित्रा वरुण आदि उसकी विशेषताएँ हैं। वास्तव में अल्लाह वरुण है जो तमाम सृष्टि का बादशाह है। मित्रो! उस अल्लाह को अपना पूज्य समझो। यह वरुण है और एक दोस्त की तरह वह तमाम लोगों के काम संवारता है। वह इंद्र है, श्रेष्ठ इंद्र। अल्लाह सबसे बड़ा, सबसे बेहतर, सबसे ज़्यादा पूर्ण और सबसे ज़्यादा पवित्रा है। मुहम्मद (सल्ल.) अल्लाह के श्रेष्ठतर रसूल हैं। अल्लाह आदि, अंत और सारे संसार का पालनहार है। तमाम अच्छे काम अल्लाह के लिए ही हैं। वास्तव में अल्लाह ही ने सूरज, चांद और सितारे पैदा किए हैं।’’
उपनिषद में आगे कहा गया है-
 फट ।। 9 ।। असुरसंहारिणी हृं द्दीं अल्लो रसूल महमदरकबरस्य अल्लो अल्लाम् इल्लल्लेति इल्लल्ला ।। 10 ।। इति अल्लोपनिषद आदल्ला बूक मेककम्। अल्लबूक निखादकम् ।। 4 ।। अलो यज्ञेन हुत हुत्वा अल्ला सूय्र्य चन्द्र सर्वनक्षत्राः ।। 5 ।। अल्लो ऋषीणां सर्व दिव्यां इन्द्राय पूर्व माया परमन्तरिक्षा ।। 6 ।। अल्लः पृथिव्या अन्तरिक्ष्ज्ञं विश्वरूपम् ।। 7 ।। इल्लांकबर इल्लांकबर इल्लां इल्लल्लेति इल्लल्लाः ।। 8 ।। ओम् अल्ला इल्लल्ला अनादि स्वरूपाय अथर्वण श्यामा हुद्दी जनान पशून सिद्धांत जलवरान् अदृष्टं कुरु कुरु
                                       अर्थात् ‘‘अल्लाह ने सब ऋषि भेजे और चंद्रमा, सूर्य एवं तारों को पैदा किया। उसी ने सारे ऋषि भेजे और आकाश को पैदा किया। अल्लाह ने ब्रह्माण्ड (ज़मीन और आकाश) को बनाया। अल्लाह श्रेष्ठ है, उसके सिवा कोई पूज्य नहीं। वह सारे विश्व का पालनहार है। वह तमाम बुराइयों और मुसीबतों को दूर करने वाला है। मुहम्मद अल्लाह के रसूल (संदेष्टा) हैं, जो इस संसार का पालनहार है। अतः घोषणा करो कि अल्लाह एक है और उसके सिवा कोई पूज्य नहीं।’’
कल्कि पुराण में अंतिम अवतार के जन्म का भी उल्लेख किया गया है। इस पुराण के द्वितीय अध्याय के श्लोक 15 में वर्णित है-
‘‘द्वादश्यां शुक्ल पक्षस्य, माधवे मासि माधवम्। जातो ददृशतुः पुत्रं पितरौ ह्रष्टमानसौ।। अर्थात ‘‘जिसके जन्म लेने से दुखी मानवता का कल्याण होगा, उसका जन्म मधुमास के शुक्ल पक्ष और रबी फसल में चंद्रमा की 12वीं तिथि को होगा।’’
 एक अन्य श्लोक में है कि कल्कि शम्भल में विष्णुयश नामक पुरोहित के यहां जन्म लेंगे।
 (शम्भलग्राममुख्यस्य ब्राह्मणस्य महात्मनः। भवने विष्णुयशसः कल्किः प्रादुर्भविष्यति।।) (भागवत पुराण, द्वादश स्कंध, 2 अध्याय, 18वाँ श्लोक)
मुहम्मद साहब (सल्ल.) का जन्म 12 रबीउल अव्वल को हुआ। रबीउल अव्वल का अर्थ होता हैः मधुमास का हर्षोल्लास का महीना। आप मक्का में पैदा हुए। विष्णुयशसः कल्कि के पिता का नाम है, जबकि मुहम्मद साहब के पिता का नाम अब्दुल्लाह था। जो अर्थ विष्णुयश का होता है वही अब्दुल्लाह का। विष्णु यानी अल्लाह और यश यानी बन्दा = अर्थात अल्लाह का बन्दा = अब्दुल्लाह। इसी तरह कल्कि की माता का नाम सुमति (सोमवती) आया है जिसका अर्थ है – शांति एवं मननशील स्वभाववाली। आप (सल्ल.) की माता का नाम भी आमिना था जिसका अर्थ है शांतिवाली।
                                      हिटलर की आत्मकथा “मेन -कैम्फ” (मेरी जीवन गाथा) से साभार उद्धृत ‘‘इस धरती पर एक ही व्यक्ति सिद्धांतशास्त्री भी हो, संयोजक भी हो और नेता भी, यह दुर्लभ है। किन्तु महानता इसी में निहित है।’’पैग़म्बरे-इस्लाम मुहम्मद के व्यक्तित्व में संसार ने इस दुर्लभतम उपलब्धि को सजीव एवं साकार देखा है.
                            बास्वर्थ स्मिथ के विचार ‘‘ वे जैसे सांसारिक राजसत्ता के प्रमुख थे, वैसे ही दीनी पेशवा भी थे। मानो पोप और क़ेसर दोनों का व्यक्तित्व उन अकेले में एकीभूत हो गया था। वे सीज़र (बादशाह) भी थे पोप (धर्मगुरु) भी। वे पोप थे किन्तु पोप के आडम्बर से मुक्त। और वे ऐसे क़ेसर थे, जिनके पास राजसी ठाट-बाट, आगे-पीछे अंगरक्षक और राजमहल न थे, राजस्व-प्राप्ति की विशिष्ट व्यवस्था। यदि कोई व्यक्ति यह कहने का अधिकारी है कि उसने दैवी 


5 comments:

  1. लजबाब भाई

    जजाक अल्लाह

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  2. This prove that you know 0 % about Sanskrit language

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  3. वेद कोई बाइबिल या क़ुरान के समान कोई इतिहास पुस्तक नहीं हैं। इसलिए वेदों में मुहम्मद का वर्णन होना नितांत कल्पना है।







    दूसरी वेदों में एक पत्नी से विवाह करने के अनेक प्रमाण हैं। बहुविवाह का स्पष्ट निषेध है। वेदों का कोई भी भद्रपुरुष बारह स्त्रियों को नहीं रख सकता है। वेदों में भी केवल एक पत्नी रखने का विधान है। ऋग्वेद १०/८५ को विवाह सूक्त के नाम से जाना चाहता है। इस सूक्त के मंत्र ४२ में कहा गया है कि तुम दोनों इस संसार व गृहस्थ आश्रम में सुख पूर्वक निवास करो। तुम्हारा कभी परस्पर वियोग न हो। सदा प्रसन्नतापूर्वक अपने घर में रहो।







    ऋग्वेद १०/८५/४७ मंत्र में हम दोनों (वर-वधु) सब विद्वानों के सम्मुख घोषणा करते हैं की हम दोनों के ह्रदय जल के समान शांत और परस्पर मिले हुए रहेंगे।







    अथर्ववेद ७/३५/४ में पति पत्नी के मुख से कहलाया गया है कि तुम मुझे अपने ह्रदय में बैठा लो , हम दोनों का मन एक ही हो जाये।







    अथर्ववेद ७/३८/४ पत्नी कहती है तुम केवल मेरे बनकर रहो। अन्य स्त्रियों का कभी कीर्तन व व्यर्थ प्रशंसा आदि भी न करो।







    ऋग्वेद १०/१०१/११ में बहु विवाह की निंदा करते हुए वेद कहते हैं जिस प्रकार रथ का घोड़ा दोनों धुराओं के मध्य में दबा हुआ चलता है, वैसे ही एक समय में दो स्त्रियाँ करनेवाला पति दबा हुआ होता है। अर्थात परतंत्र हो जाता है। इसलिए एक समय दो व अधिक पत्नियाँ करना उचित नहीं हैं।







    इसलिए 12 पत्नियों का होना वेदविरुद्ध कल्पना है।















    तीसरे वेदों के सभी शब्द यौगिक होते हैं। नराशंस शब्द का प्रयोग निरुक्त 8/7 में हुआ हैं।







    यजुर्वेद में स्वामी दयानन्द नराशंस का अर्थ करते है-







    स्वामिन- यजुर्वेद 21/31, योग्य व्यवहार करने वाला-29/27, विद्वान जन-यजुर्वेद 27/13, ऐश्वर्या इच्छुक जीव-यजुर्वेद 28/19, विदुष जन-यजुर्वेद 21/55, विद्वत्जन-यजुर्वेद 20/37







    ऋग्वेद में स्वामी दयानन्द नराशंस का अर्थ करते है-







    अग्निम- ऋग्वेद 1/13/3, सभाध्यक्ष- ऋग्वेद 1/106/4, अन्नपानादिकस्य- ऋग्वेद 7/2/2, विद्वतजन- ऋग्वेद 1/142/3, मेधावी मनुष्य-ऋग्वेद 5/5/2, अग्नि- ऋग्वेद 3/29/11







    पंडित क्षेमकरण जी अपने अथर्ववेद 20/127/1 में नराशंस का अर्थ मनुष्यों में प्रशंसा वाला पुरुष इस प्रकार से करते है। जबकि अथर्ववेद 20/127/2-3 में राजा ने उद्योगी पुरुष को सौ स्वर्ण मुद्रा, दस मालायें , तीन सौ घोड़े और दस सहस्त्र गौयें दान दी। ऐसा अर्थ किया है।







    उपाध्याय जी की संस्कृत के प्रति अनभिज्ञता एवं जबरदस्ती खींचातानी का प्रमाण देखिये। आपने द्विदर्श का अर्थ बारह किया है जबकि इसका अर्थ 20 होता हैं। चूँकि मुहम्मद साहिब की 12 बीवियां थी। इसलिए उन्होंने ऐसा असत्य कथन जुगाड़ बैठाने के लिए किया होगा। वेद मंत्र में ऊंटनियों की चर्चा है जबकि उपाध्याय जी ने स्त्रियां अर्थ कर दिया है। जहाँ दस सहस्त्र गौओं के दान देने की चर्चा है। वहाँ मुहम्मद साहिब के सहयोगी अर्थ कर दिया है। कुल मिलाकर कुछ भी लिख दो। अनपढ़ गुलाम भेड़ों को तो आप ऐसे हाक लेंगे। मगर आर्यों का तो कार्य ही बुद्धिपूर्वक परीक्षा कर सत्य को ग्रहण करना है।







    निष्कर्ष यह है कि नराशंसी उन मन्त्रों के नाम है जो यज्ञपरक है। नराशंस नाम यज्ञ का है। मनुष्य प्रशंसा परक मन्त्रों का अर्थ नराशंसी हैं।







    अंततः अथर्ववेद के मन्त्रों के आधार पर वेदों में मुहम्मद साहिब का वर्णन एक कोरी कल्पना सिद्ध होता हैं।

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  4. total fake see the real

    उष्ट्रा यस्य प्रवाहणो वधूमन्तो द्विर्दश ।
    वर्ष्मा रथस्य नि जिहीडते दिव ईषमाणा उपस्पृश: ॥
    (अथर्ववेद , काण्ड २० , अनुवाक ९ , सूक्त १२७ , मन्त्र २)
    मंत्रार्थ(मन्त्र का शाब्दिक अर्थ) – जिस वधू वाले रथ को बारह ऊंट खींचते हैं वह आकाश का स्पर्श करते हुए चलता हैं ।

    श्रीमद्भागवत-महापुराण के 12वे स्कंद के अनुसार-

    सम्भलग्राममुख्यस्य ब्राह्मणस्य महात्मनः।

    भवने विष्णुयशसः कल्किः प्रादुर्भविष्यति।।

    अर्थ- शम्भल ग्राम में विष्णुयश नाम के एक ब्राह्मण होंगे। उनका ह्रदय बड़ा उदार और भगवतभक्ति पूर्ण होगा। उन्हीं के घर कल्कि भगवान अवतार ग्रहण करेंगे।



    लिंड्गच्छेदी शिखाहीनः श्मश्रुधारी स दूषकः। उच्चालापी सर्वभक्षी भविष्यति जनो मम। 25। विना कौलं च पश्वस्तेषां भक्ष्या मता मम। मुसलेनैव संस्कारः कुशैरिव भविष्यति। 26।। तस्मान्मुसलवन्तो हि जातयो धर्मदूषकाः। इति पैशाचधर्मश्च भविष्यति मया कृतः । 27 ।। (भ.पु. पर्व 3, खण्ड 3, अध्याय 1, श्लोक 25, 26, 27)
    5 हज़ार साल पहले भविष्य पुराण में साफ लिखा है और उसका हिंदी अनुवाद :-

    रेगिस्तान की धरती पर एक "पिसाच" जन्म लेगा जिसका नाम महामाद होगा , वो एक ऐसे धर्म की नीव रखेगा जिसकी वजह से मानव जाती त्राहि माम करेगी वो असुर कुल सभी मनवो को ख़त्म करने की चेष्ठा करेगा, उस धर्म के लोग अपने लिंग के काटेंगे , उनकी शिखा (चोटि ) नही होगी , वो दाढ़ी रखेंगे , वो बहुत शोर करेंगे और मानव जाती को नाश करने की चेष्टा करेंगे और राक्षस जाती को बढ़ावा देंगे ! और वे अपनें को मुसलमान कहेंगे ।

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  5. total fake see the real

    उष्ट्रा यस्य प्रवाहणो वधूमन्तो द्विर्दश ।
    वर्ष्मा रथस्य नि जिहीडते दिव ईषमाणा उपस्पृश: ॥
    (अथर्ववेद , काण्ड २० , अनुवाक ९ , सूक्त १२७ , मन्त्र २)
    मंत्रार्थ(मन्त्र का शाब्दिक अर्थ) – जिस वधू वाले रथ को बारह ऊंट खींचते हैं वह आकाश का स्पर्श करते हुए चलता हैं ।

    श्रीमद्भागवत-महापुराण के 12वे स्कंद के अनुसार-

    सम्भलग्राममुख्यस्य ब्राह्मणस्य महात्मनः।

    भवने विष्णुयशसः कल्किः प्रादुर्भविष्यति।।

    अर्थ- शम्भल ग्राम में विष्णुयश नाम के एक ब्राह्मण होंगे। उनका ह्रदय बड़ा उदार और भगवतभक्ति पूर्ण होगा। उन्हीं के घर कल्कि भगवान अवतार ग्रहण करेंगे।



    लिंड्गच्छेदी शिखाहीनः श्मश्रुधारी स दूषकः। उच्चालापी सर्वभक्षी भविष्यति जनो मम। 25। विना कौलं च पश्वस्तेषां भक्ष्या मता मम। मुसलेनैव संस्कारः कुशैरिव भविष्यति। 26।। तस्मान्मुसलवन्तो हि जातयो धर्मदूषकाः। इति पैशाचधर्मश्च भविष्यति मया कृतः । 27 ।। (भ.पु. पर्व 3, खण्ड 3, अध्याय 1, श्लोक 25, 26, 27)
    5 हज़ार साल पहले भविष्य पुराण में साफ लिखा है और उसका हिंदी अनुवाद :-

    रेगिस्तान की धरती पर एक "पिसाच" जन्म लेगा जिसका नाम महामाद होगा , वो एक ऐसे धर्म की नीव रखेगा जिसकी वजह से मानव जाती त्राहि माम करेगी वो असुर कुल सभी मनवो को ख़त्म करने की चेष्ठा करेगा, उस धर्म के लोग अपने लिंग के काटेंगे , उनकी शिखा (चोटि ) नही होगी , वो दाढ़ी रखेंगे , वो बहुत शोर करेंगे और मानव जाती को नाश करने की चेष्टा करेंगे और राक्षस जाती को बढ़ावा देंगे ! और वे अपनें को मुसलमान कहेंगे ।

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