Thursday, April 10, 2014

तीन लोगों की हत्या, फिरौती समेत कई और गंभीर जुर्म का आरोपी अमित शाह सियासत में कैसे....??


नरेंद्र मोदी और अमित शाह
कुछ कहते हैं कि अमित शाह चेहरा हैं और नरेंद्र मोदी सोच. कुछ मानते हैं कि मोदी चेहरा हैं और शाह दिमाग हैं. कई कहते हैं कि शाह मोदी का वो मुखौटा हैं जो वह ख़ुद पहनकर नहीं घूम सकते.

खैर, इस पहेली को भी कई दूसरी जटिल राजनीतिक पहेलियों की तरह लोगों ने वक़्त पर छोड़ दिया है. पर आज जब अमित शाह का चेहरा और उनकी सोच — 'बटन से बदला' — दोनों सुर्ख़ियों में हैं, तब नरेंद्र मोदी के इस संटकमोचक पर लगे तमाम आरोप एक बार फिर चर्चा में हैं.

भारतीय राजनीति में यह नई बात नहीं कि गंभीर आरोपों के बावजूद नेता सियासत में बने रहते हैं. पर मोदी के क़रीबी और भाजपा महासचिव शाह जैसे उदाहरण कम ही हैं. शाह पर तीन लोगों की हत्या और फिरौती मांगने के अलावा कई और गंभीर आरोप हैं.

शाह को साल 2010 में सोहराबुद्दीन शेख फ़र्ज़ी एनकाउंटर में गिरफ़्तार किया गया था.

गुजरात के पूर्व गृह राज्य मंत्री अमित शाह पर साल 2005 में सोहराबुद्दीन शेख के फ़र्ज़ी एनकाउंटर और उनकी पत्नी कौसर बी और सोहराबुद्दीन के सहयोगी तुलसीराम प्रजापति की हत्या, अपहरण, आपराधिक षड्यंत्र और वसूली समेत अन्य आरोप के चलते हिरासत में लिया गया था.

साजिश के सूत्रधार
गुजरात के आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) ने सोहराबुद्दीन शेख और उसकी पत्नी कौसर बी का हैदराबाद से कथित तौर पर अपहरण कर लिया था और नवंबर 2005 में गांधीनगर के समीप फ़र्ज़ी मुठभेड़ में उन्हें मार डाला था. सीबीआई ने आरोप लगाया कि शाह इस साजिश के सूत्रधार थे.
इस मामले में ज़मानत मिलने के पहले शाह अहमदाबाद की साबरमती जेल में तीन माह से अधिक समय बंद रहे.

अदालत ने शाह को गुजरात छोड़ने की शर्त पर ज़मानत पर छोड़ दिया था. हालांकि क़रीब एक साल बाद कोर्ट ने शाह पर लगाया हुआ यह प्रतिबंध हटा लिया था.
एक छुटभैये नेता से भाजपा के सेनापति बने अमित शाह पर इशरत जहाँ फ़र्ज़ी एनकाउंटर में शामिल होने के भी आरोप लगते रहे हैं.
सीबीआई इस मामले में शाह से पूछताछ कर चुकी है. गुजरात हाई कोर्ट के वकील और सामाजिक कार्यकर्ता मुकुल सिन्हा ने पिछले हफ़्ते ही इस मामले में कोर्ट में याचिका दायर की है. सिन्हा का दावा है कि सबूत होने के बावजूद सीबीआई शाह को इस मामले में गिरफ़्तार नहीं कर रही.

यह दावा करते हुए कि कुछ चरमपंथी नरेंद्र मोदी की हत्या करने गुजरात में आए हैं, 15 जून 2004 को अहमदाबाद में गुजरात पुलिस ने इशरत जहाँ, जावेद शेख उर्फ प्राणेश पिल्लै, दो कथित पाकिस्तानी नागरिकों जीशान जौहर और अमजद अली राणा को मार गिराया था.

एसआईटी का गठन
इस एनकाउंटर के बारे में इशरत जहाँ की मां की शिकायत के बाद गुजरात हाई कोर्ट ने एक विशेष जांच दल-एसआईटी का गठन किया था जिसने कहा था कि यह मुठभेड़ फ़र्ज़ी थी.

इस मामले में सीबीआई ने अब तक दो आरोप पत्र दाखिल किए हैं और कई वरिष्ठ पुलिस अफ़सरों को हिरासत में लिया है. आरोप पत्र में हालांकि शाह का नाम नहीं है.
सिन्हा का कहना है, "सीबीआई ने शाह के ख़िलाफ़ इस मामले में कई सबूत कोर्ट के सामने नहीं रखे है. शाह न्यायिक प्रक्रिया और जाँच एजेंसियों को अपनी तरफ करने में माहिर है. जहां भाजपा सीबीआई को कांग्रेस ब्यूरो ऑफ़ इंवेस्टीगेशन कहती है, वही इस केस में कई ऐसी बातें हैं जिससे लगता है कि मानो शाह सीबीआई को चला रहे हैं."

कभी गुजरात सरकार के चहेते रहे और अब जेल में बंद गुजरात के निलंबित पुलिस अधिकारी डीजी वंजारा ने पिछले साल इस्तीफ़ा दे दिया था.
वंजारा ने दस पन्नों के अपने इस्तीफ़े में शाह और मोदी पर कई गंभीर आरोप लगाए थे. वंजारा को सोहराबुद्दीन फ़र्ज़ी मुठभेड़ मामले में साल 2007 में हिरासत में लिया गया था.

वंजारा ने कहा है कि उन्होंने जो कुछ किया वो सरकार के कहने पर किया. वंजारा ने लिखा है कि जिस आरोप में वह और उनके बाक़ी पुलिस अफ़सर जेल में बंद हैं, उसकी ज़िम्मेदारी पूर्व गृह राज्य मंत्री अमित शाह की भी बनती है.
उन्होंने लिखा है कि गुजरात सरकार को सलाखों के पीछे होना चाहिए.

'साहेब' के आदेश पर जासूसी
अपनी चिट्ठी में वंजारा लिखते हैं, "मैंने ऐसा कभी नहीं देखा कि किसी राज्य के 32 पुलिस अफ़सर फ़र्ज़ी मुठभेड़ों के आरोप में जेल में बंद हैं, जिनमें छह आईपीएस अफ़सर हैं... जब पूर्व गृह राज्य मंत्री अमित भाई शाह को गिरफ़्तार किया गया तो सरकार अचानक मुस्तैद हो गई. विद्वान, वरिष्ठ और सबसे महंगे वकील राम जेठमलानी ने सबसे निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में उनका बचाव किया और रिकॉर्ड तीन महीने में उन्हें ज़मानत दिला दी."

भाजपा के चुनाव प्रभारी अमित शाह पर एक महिला की किसी 'साहेब' के आदेश पर जासूसी करवाने का भी आरोप है. कहा जाता है निलंबित आईपीएस अधिकारी जीएल सिंघल ने सीबीआई को इस मामले के कुछ सबूत दिए है.
आरोप है कि गुजरात के गृह राज्य मंत्री रहते हुए शाह ने सन 2009 में पुलिस अधिकारियों से अहमदाबाद में ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से बेंगलुरु की एक महिला आर्किटेक्ट की निगरानी करवाई थी.

महिला न तो किसी केस में आरोपी थी और न ही क़ानून व्यवस्था के लिए किसी प्रकार का ख़तरा थी. उस लड़की का पीछा सिर्फ़ इसलिए करवाया गया क्योंकि अमित शाह के 'साहब' ऐसा चाहते थे.

हालांकि, इस मामले में महिला के पिता का बयान भी आया है. उन्होंने कहा, 'मेरी बेटी मां का इलाज कराने अहमदाबाद गई थी. उसे देर रात आना-जाना होता था. इसलिए मैंने मोदी से उसका ध्यान रखने के लिए कहा था."
हालांकि क्या सरकार इस तरह किसी की जासूसी किसी के भी कहने पर भी कर सकती. इस मामले की सच्चाई तो जांच से ही पता चलेगी. 

-अंकुर जैन