Sunday, September 27, 2015

क्या अंधविश्वास का विरोध नहीं होना चाहिए?


चूंकि मेरी कोई सुनता नहीं फिर भी मेरा सुझाव है इस देश में एक राष्ट्रीय आस्था आयोग बने और इसका चेयरमैन मुझे बनाया जाए। मैं तभी ज्वॉइन करूंगा जब ब्लैक कैट कमांडो और बुलेट प्रूफ जैकेट भी दिया जाएगा। तभी मैं बिना किसी राग, द्वेष और भय के कंप्यूटर द्वारा प्रमाणित कर पाऊंगा कि कौन सी बात कहने पर किसकी आस्था भंग हुई और किसकी नहीं।

अखबारों और चैनलों में बंगाली और रूहानी बाबा के विज्ञापनों से तो लगता है कि देश को प्रधानमंत्री नहीं, यही चला रहे हैं। इनके विज्ञापनों से समस्याओं की कुछ कैटगरी इस प्रकार है : पति पत्नी अनबन, लव मैरिज, लव मैरेज खोया प्यार, प्यार में धोखा खाए प्रेमी प्रेमिका एक बार ज़रूर संपर्क करें। माता-पिता मनाए भी एक आइटम है और बेटा आपकी बात नहीं मानता है, यह भी एक कैटगरी है। मनचाहा प्यार का समाधान है लेकिन सौतन से छुटकारा दिला देते हैं। किया-कराया भी एक कैटगरी है।

अखबारों के अलावा इनके विज्ञापन बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन और बाज़ारों में दिख जाते हैं। ऑटो रिक्शा और माल ढोने वाले टेम्पो के पीछे भी इनका पोस्टर लगा होता है। सार्वजनिक शौचालयों और प्याऊ के ऊपर तो इनका ही पता होता है। ये किसी बंगाली बाबा की वेबसाइट है जो ब्लैक मैजिक का दावा करते हैं। खुद को वशीकरण स्पेशलिस्ट बताने वाले बंगाली बाबा ने अपनी इस साइट पर 17 प्रकार की सेवाओं का ज़िक्र किया है। जैसे जादू टोना, लव प्रॉब्लम और लव वशीकरण। लव वशीकरण इज़ अ पावरफुल टूल टू अचीव द डिज़ायर्ड पर्सन ऑफ च्वाइस। मतलब आप इसके ज़रिये जिसे पसंद करते हैं वो आपको प्यार करने लगेगा। भाग के जाएगा कहां। वशीकरण के बारे में लिखा है कि वशीकरण एक ऐसी टेकनिक है जिसके इस्तमाल से आप एक आदमी को कंट्रोल कर सकते हैं और जैसा चाहे उससे वैसा करवा सकते हैं। दो प्रकार के वशीकरण हैं। वशीकरण फॉर गर्ल और वशीकरण फॉर ब्वॉय। बदला और वीज़ा में भी वशीकरण यूज़ होता है।

महाराष्ट्र में दो साल से ब्लैक मैजिक के खिलाफ कानून है। हमारे तमाम न्यूज़ चैनलों पर सुबह सुबह बताया जाता है कि पीला रूमाल लेकर दफ्तर जायेंगे तो आपका बॉस सैलरी बढ़ा देगा और लाल तकिये पर सोयेंगे तो रुका हुआ काम बन जाएगा। एनडीटीवी इंडिया पर इस तरह का कार्यक्रम नहीं आता है। जो भी इस तरह के अंधविश्वास के खिलाफ बोलता है उसे निशाना क्यों बनाया जाता है।

नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पानसरे, एम.एम. कलबुर्गी की हत्या कर दी जाती है। नरेंद्र नायक, जोसेफ एडामराकू, जयंत पांडा इन सबको मारा पीटा जाता है। सभी धर्मों के नाम पर बने संगठन अंधविश्वास के खिलाफ किसी भी अभियान को धर्म के खिलाफ बना देते हैं। संविधान के अनुच्छेद 51A(h) में कहा गया है कि सभी नागरिकों की यह ज़िम्मेदारी बनती है कि वो वैज्ञानिक सोच, मानवतावाद, सुधार और जिज्ञासा की भावना का विकास करे। 2011 की जनगणना में 21 लाख लोगों ने खुद को नास्तिक बताया है।

गोवा में हिप्नोथैरपिस्ट कहे जाने वाले डॉक्टर जयंत बालाजी अठावले सनानत संस्था की स्थापना की है, इन्हें देवता या देवदूत भी कहा जाता है जो हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए साधना कर रहे हैं। इसी संस्था के एक सदस्य समीर गायकवाड को पुलिस ने गोविंद पानसरे की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया है। सनातन संस्था समीर को निर्दोष मानती है और उसकी पैरवी भी कर रही है।

एनडीटीवी इंडिया के सुनील सिंह और सांतिया डूडी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सनातन संस्था ने निखिल वाघले, वरिष्ठ पत्रकार युवराज मोहिते, मराठी दैनिक प्रहार के पत्रकार श्याम सुंदर सोनार को धर्मद्रोही करार दिया है। हमारे सहयोगी श्रीनिवासन जैन ने http://www.ndtv.com/ पर लिखा है कि पुलिस को संकेत मिले हैं कि पत्रकार निखिल वाघले को मारने की योजना थी। संस्था कहती है कि ऐसी कोई हिटलिस्ट नहीं है। हम लोकतांत्रिक संवाद में यकीन करते हैं। संस्था के दो सदस्य 2008 में मुंबई में हुए तीन धमाकों के आरोप में गिरफ्तार किये गए थे। दोनों 'जोधा अकबर' फिल्म और एक मराठी नाटक दिखाये जाने के खिलाफ थे। मुंबई की एक अदालत ने दोनों को दस साल की सज़ा सुनाई लेकिन बाद में वो ज़मानत पर रिहा हो गए। अभी ये मामला चल ही रहा है। अक्टूबर 2009 में गोवा में हुए एक स्कूटर धमाके में मारे गए दो लोग कथित रूप से संस्था के सदस्य बताये गए। पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार कृष्ण की प्रतिमा के साथ हुए कथित अपमान का बदला लेने के लिए स्कूटर में विस्फोटक ले जाया जा रहा था। आठ लोगों के खिलाफ चार्जशीट भी हुई जिसमें से तीन फरार हैं। पांच पर्याप्त सबूतों के अभाव में छोड़ दिये गए।

सनातन संस्था की वेबसाइट पर गया तो वहां पर कैसे कपड़े पहनने हैं, बाल कैसे होने चाहिए, त्योहार कैसे मनाए जाएं, यह सब लिखा गया है। आध्यात्म के प्रसार का दावा किया गया है। संस्था ने वेबसाइट पर लंबे बालों वाली महिला का फोटो देते हुए लिखा है कि नारी के लंबे बालों से जो ऊर्जा पैदा होती है उससे पर्यावरण में शक्ति की तरंगें फैल जाती हैं। आजकल की औरतें जो छोटे बाल रखने लगी हैं उसकी वजह से पूरी मानवता नकारात्मकता की तरफ जा रही है। हिन्दू धर्म में कहा गया है कि नारी को लंबे बाल रखने चाहिए। मर्द को छोटे बाल रखने चाहिए। मर्दों के लंबे बालों से जो तरंगे निकलती हैं उससे पर्यावरण प्रदूषित होता है। सनातन संस्था मानती है कि जो शादियां रजिस्ट्री से होती हैं वो अर्थहीन होती हैं। धार्मिक कर्मकांडों से होने वाली शादी ही सर्वोच्च है। छोटे कपड़े, टाइट जिंस और मल्टी कलर कपड़े नहीं पहनने हैं। काले रंग के कपड़े भी नहीं पहनने चाहिए। वेबसाइट पर बताया गया है कि क्या क्या पहनना है। औरतें ये पहनेंगी और मर्द ये पहनेंगे। इस तरह की बातें आए दिन स्कूल कॉलेज के प्रिंसिपल भी करते रहते हैं।

2011 में महाराष्ट्र सरकार ने केंद्र सरकार को सनातन संस्था पर एक विस्तृत रिपोर्ट भेज कर केंद्र से प्रतिबंध लगाने की मांग की थी। यूपीए की सरकार ने नहीं किया। मंगलवार को गोवा के बीजेपी के विधायक विष्णु वाग ने हमारे सहयोगी तेजस मेहता से कहा है कि सनातन संस्था एक आतंकवादी समूह है। गोवा सरकार और मोदी सरकार को इसे बैन कर देना चाहिए। विष्णु वाग ने यह भी कहा है कि गोवा सरकार के मंत्री और बीजेपी के सहयोगी दल सनातन संस्था को राजनीतिक संरक्षण दे रहे हैं। महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी के एक नेता इस संस्था को वित्तीय सहायता दे रहे हैं। सनातन संस्था के मैनेजिंग ट्रस्टी वीरेंद्र मराठे ने मुंबई मिरर अखबार से कहा है कि प्रतिबंध लगाने से क्या होगा। हम बिना नाम के भी काम करते रहेंगे। वीरेंद्र मराठे ने माना कि अपने साधक को सैनिक प्रशिक्षण देते हैं और संविधान में हिन्दू राष्ट्र लिखा जाना चाहिए। यही भी कहा कि महाराष्ट्र में हमारे एक लाख साधक हैं, हम सर्बिया, ऑस्ट्रेलिया और बाकी कई देशों से इंटरनेट से जुड़े हैं। हमारे पास घर-घर जाने वाले मज़बूत प्रचारक हैं। हम हिन्दू राष्ट्र की रक्षा का काम करते रहेंगे।

फिर भारतीय सेना क्या करेगी। आईएसआईस में भर्ती होने के आरोप में कुछ मुस्लिम नौजवान सीरिया जाते हुए पकड़े गए हैं तो कुछ हिन्दू नौजवानों पर हिन्दू राष्ट्र के नाम पर आतंकी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप लग रहे हैं। अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक राजनीति के कारण ऐसे मामलों की ठोस और पेशेवार जांच नहीं हो पाती है। इनके ख़िलाफ़ सख्त कार्रवाई करने में जितना ख़राब रिकॉर्ड बीजेपी का है उससे ज्यादा कांग्रेस का है। कांग्रेस यही सोचती रह जाती है कि ऐक्शन लेंगे तो हिन्दू वोट नाराज़ हो जाएगा और बीजेपी सरकार में ऐसे तमाम संगठन बेलगाम हो जाते हैं यह सोचकर कि हिन्दुओं की सरकार है, कोई कुछ नहीं बोलेगा।

रवीश कुमार

Saturday, September 26, 2015

मिस्ड कॉल पार्टी: सैय्यद हैदर इमरान रिज़वी



ताज़ी खबर यह है कि बीजेपी दुनिया का सबसे बड़ा राजनैतिक दल बन गयी है, कोई भी देशवासी महज़ एक मिस्ड कॉल के माध्यम से पार्टी का सदस्य बन सकता है और पार्टी की गतिविधियों में शामिल हो सकता है,पार्टी का दावा है कि लगभग 8 से 9 करोड़ लोगों ने पार्टी की सदस्यता मिस्ड कॉल के माध्यम से हासिल की,

उधर कांग्रेस के एक प्रवक्ता ने आरोप लगाया कि उनके मोबाइल पर पहले एक नंबर से मिस्ड कॉल आई,जब प्रवक्ता जी ने पलट कर जानना चाहा कि किसकी कॉल है तो उधर से कंप्यूटर महोदय ने एक सुरीली सी महिला की आवाज़ बनाकर नेताजी को बीजेपी सदस्यता की मुबारकबाद दी, एक तो महिला की आवाज़ वो भी सुरीली,वो कांग्रेसी ही क्या जो फिसल न जाये, एक कांग्रेसी भाजपा से या किसी भी विरोधी से चाहे जितनी चिढ क्यों न रखता हो लेकिन सुरीली आवाज़ों पर वो चित्त हो ही जाता है,मेरा ऐसा विचार है कि प्रवक्ता जी उस समय तो मंत्रमुग्ध होकर सुरीली आवाज़ सुनते रहे होंगे लेकिन बाद में छले जाने का अहसास होने पर उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस बुला डाली...

कांग्रेस से याद आया, राजनैतिक दलों की सदस्यता की भी बड़ी अजीब  अजीब प्रक्रियाएं हुआ करती हैं... एक बार लखनऊ के मेरे एक निकट मित्र जो उम्र में मुझसे काफी बड़े और शहर कांग्रेस के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के अध्यक्ष भी थे,को पार्टी की ओर से वार्षिक सदस्य बनाने का टारगेट मिला, 
उन्हें तक़रीबन दो सौ के लगभग सदस्य बंनाने थे, पूरा कुनबा,आस पड़ोस और सहकर्मी मिलकर भी उनसे हो नही पा रहा था,एक शाम वो मेरे पास भी फॉर्म लेकर आ धमके,
मैंने ज़रा चौंकते हुए उनसे कहा "लेकिन मैं तो साम्यवादी विचारधारा रखता हूँ इसे आप मेरे पास क्यों लाये हैं", जवाब जो मिला वो सन्न कर देने वाला था,नेताजी बोले-'आप समझे नही रिज़वी साहब,आप चाहे जिस विचारधारा से हों,बस मेरा टारगेट पूरा करवा दीजिए उसके बाद सदस्यता पर्ची चाहे आप फाड़ कर भी फेंक देंगे मुझे कोई फर्क नही पड़ता'
मैंने हैरान परेशान देखकर उनकी बात मान ली और चाय पिलाकर किसी तरह उन्हें विदा किया,

अक्सर कॉलेजों विश्वविधालयों के बाहर कैम्प लगाये राजनैतिक दलों के कार्यकर्त्ता दिख जाते, हर आने जाने वाले छात्र छात्रा को आग्रहपुर्वक बुलाकर उनकी "पर्ची काट" कर दी जाती रहती, 
इन कैम्पों में सत्ताधारी दल के शिविर के आसपास सबसे ज़्यादा भीड़ रहती है, 
उत्तर प्रदेश में तो विशेषकर समाजवादी पार्टी के सदस्यता कैंपो में अच्छी खासी भीड़ हो जाती, लड़के पहले सदस्यता रसीद कटाते हैं और उसके बाद चौड़े होकर कहते "अब चलेंगे खुलकर बिना हेलमेट,देखते हैं कौन स्साला पुलिसवाला...."

हाँ इस मामले में बहनजी का कैडर बड़ा स्ट्रांग रहता है, बहनजी सदस्यता अभियानों पर कोई ख़ास ज़ोर भी नही देतीं, उन्हें मालूम है की उनका वोटर फिक्स है, कार्यकर्त्ता पूरे चुनाव घर से बाहर भी न निकले, प्रत्याशी की जगह बहनजी एक गुम्मा ही क्यों न खड़ा कर दें,  "समाज" का वोट तो बहनजी को ही पड़ना ही है,उसे कोई नही हिला सकता,

इक्का दुक्का "संसदीय कमनिस्टिए" भी भगत सिंह का पोस्टर मय लाल लाल झोला के बगल में टांगे और लंबे लंबे क्लिष्ट भाषा वाले पर्चे हाथों में लिए दिख जाते हैं....

एक बार ऐसे ही कुछ "कामरेड" एक कॉलेज के बाहर अपनी पार्टी के बारे में जानकारी देने के उद्देश्य से शिविर लगाये बैठे थे, एक दो छात्र भगत सिंह का पोस्टर देख उत्सुकतावश उनके पास गए, उनसे सदस्यता के बारे में पूछने लगे,

एक वरिष्ठ कामरेड ने उन्हें एक लम्बा सा खर्रा टिकाना शुरू कर दिया जिसमे वर्तमान राजनैतिक दलों के वर्गचरित्र और दुनिया पर आसन्न आर्थिक संकट का सविस्तार तकनीकी वर्णन था.....

पर्चे पर यह भी लिखा था की "भारत में मार्क्सवादी दृष्टिकोण की एकमात्र सही लाइन केवल उनकी पार्टी के पास ही है और उनकी कोई अन्य शाखा नहीं है...संशोधनवादियों से होशियार"

एक छात्र पर्चा लेकर उसको पढ़ने लगा,अभी 2-4 लाइन ही पढ़ी होगी उसने और मुस्कुराते हुए पर्चा वापस लौटा दिया, उसने उन से उसमे लिखा लेख मर्म सहित समझाने को कहा, एक कामरेड ने समझाना शुरू किया लेकिन उनकी भाषा और पर्चे की भाषा में कोई ख़ास अंतर नज़र न आते देख छात्र आगे बढ़ गए, बाकियों ने भी सर खुजाना शुरू कर दिया,

भाषा पर्चे की इतनी क्लिष्ट थी की छात्रों ने अपने पूरे जीवन में इतने खतरनाक शब्द ना पढ़े होंगे, एक छात्र जो ज़रा जल्दी में था और पर्चा लेकर कॉलेज में दाखिल हो गया, उसको पर्चा बड़ा सुंदर लग रहा था, उसपर भगत सिंह की तस्वीर बनी थी,उसके पड़ोस में रहने वाले आरएसएस के एक अंकल उसे अक्सर समझाया करते "सरदार भगत सिंह" एक सच्चे "राष्ट्रवादी" और "माँ भारती के सच्चे लाल थे" भगत सिंह का व्यक्तित्व उसे बड़ा आकर्षित करता,

बस उनके विचार उसे नही मालूम थे उसने सोचा वो उन्ही अंकल से भगत सिंह के विषय में भी पूछ लेगा...
पर्चे पर हंसिए हथौड़े का चिन्ह भी मौजदू था,बस भाषा इतनी तकनीकी किस्म की थी कि उसका तात्पर्य उसके पल्ले नही पड़ रहा था,
छात्र ने अपने एक गुरु की सहायता से उनको समझना चाहा, गुरूजी पर्चा देखकर बोले -"अभी मुझे स्टाफ हॉल में एक बैठक में शामिल होने जाना है,बाद में समझाता हूँ"

छात्र को समझते देर न लगी की गुरूजी की चिकनी टंट से ये शब्द उसी तरह फिसल चुके हैं जैसे उसके सर से स्टैट्स की क्लास का लेक्चर निकलता है...अक्सर कक्षा में भी किसी छात्र के कोई तकनीकी विषय को एकर प्रश्न पूछ लेने पर गुरूजी इसी तरह विचलित हो जाया करते थे और कभी छात्रों को विषय ने ना भटकने और कभी विषय से सम्बंधित होने पर "कल बताऊंगा" कहकर टाल दिया करते थे..
छात्र अब तक चिढ गया था,उसने पर्चा फेंका और आगे बढ़ गया.. 
थोड़ा आगे जाने पर एक दिवार के खम्भे के ऊपर उसकी नज़र पड़ी, वहां पीएम की खूबसूरत तस्वीर के साथ एक सुन्दर सा पोस्टर लगा था,पोस्टर पर लिखा था, "बीजेपी के सदस्य बनें,सिर्फ एक मिस्ड कॉल दें और जुड़ें सीधे मोदी के साथ"

छात्र ने जेब से मोबाइल निकाला और नंबर डायल करना शुरू कर दिया....

मोदी की अगली पारी के लिए संघ प्रमुख ने आरक्षण समीक्षा का शिगूफ़ा छोड़ा है!


RSS के स्वयंसेवकों को तमाम नेताओं की तरह ज़ुबानी तीर चलाने (Verbal Diarrhea) की बीमारी कभी नहीं होती. संघ में ऐसे संक्रमण से बचाव के लिए नियमित टीकाकरण होता रहता है, ताकि ज़ुबान कभी बेलग़ाम न हो. संघ के ऐसे आन्तरिक अनुशासन का कोई अपवाद नहीं होता. वहाँ से हरेक बात लम्बे चिन्तन, विचार-विमर्श और दूरगामी नफ़ा-नुक़सान को परखने के बाद ही सामने आती है. मोहन भागवत ने ‘आरक्षण नीति की समीक्षा’ का शिगूफ़ा किसी टुटपुंजिए नेता की तरह नहीं छोड़ा था. उनकी ज़ुबान फिसलने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता. तो फिर क्या वजह थी कि संघ और बीजेपी के प्रवक्ताओं को अपने ‘आदर्श पुरुष’ के बयान पर सफ़ाई देने के लिए आगे आना पड़ा? अगर आपको लगता है कि ये सारी क़वायद सिर्फ़ बिहार चुनाव को लेकर माहौल बिगड़ने की आशंका को देखते हुए की गयी, तो आप आंशिक सत्य ही जानते हैं. इसीलिए भागवत के बयान को गहराई से समझना ज़रूरी है.
  


राम-मन्दिर, अनुच्छेद 370 और समान नागरिक संहिता जैसे तीन मुद्दों के बाद भागवत ने अब ‘राष्ट्रीय महत्व’ के जिस चौथे मुद्दे पर अपनी मोहर लगायी है उसे आप ‘आरक्षण नीति की समीक्षा’ कह सकते हैं. ‘ग़ैर-सरकारी सामाजिक संगठन’ संघ के अघोषित काम चाहे जो हों, लेकिन घोषित काम सिर्फ़ ‘राष्ट्रीय महत्व’ के मुद्दों को तलाशना और जागरूकता फ़ैलाना ही है. इसीलिए जब इसका मुखिया ‘आरक्षण नीति की समीक्षा’ की बात करता है, तो वो बहुत बड़ी हो जाती है. क्रीमी-लेयर, आर्थिक आधार और समीक्षा की बातें नयी तो हैं नहीं, तो फिर भागवत को बोलने की क्या पड़ी थी?

काँग्रेस के मनीष तिवारी आज पार्टी के प्रवक्ता नहीं हैं. उनका बयान काँग्रेस का नज़रिया नहीं है. मनीष ने 2014 में ख़राब सेहत के नाम पर लुधियाना सीट से कन्नी काट ली थी. शायद, मोदी लहर उन्हें दिख गयी थी. वर्ना, क्या नेता जेल में रहकर चुनाव नहीं लड़ते हैं? मनीष की ही तर्ज़ पर काँग्रेस के पूर्व मीडिया प्रभारी और महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने भी 2014 के चुनाव से पहले ‘आरक्षण नीति की समीक्षा’ का मुद्दा छेड़ा था. उनका बयान भी निजी राय थी, पार्टी का नज़रिया नहीं. थोड़े समय बाद जनार्दन, मीडिया प्रभारी नहीं रहे. लेकिन तब न तो मायावती ने तीखे तेवर दिखाये थे, न जेडीयू ने और न ही लालू यादव ने संस्कृत-निष्ठ ग़ाली दी थी कि ‘माँ का दूध पीया है तो ख़त्म करके दिखाओ, किसकी कितनी ताक़त है, पता लग जाएगा’ यानी  ‘If you’re the true son of your mother, go ahead and end it, you’ll learn whose strength is stronger.’


लालू का ये तेवर अत्यधिक तीखा है. अँग्रेज़ी अनुवाद से इसका सही भाव नहीं समझा जा सकता. क्योंकि अँग्रेज़ी में ‘माँ के दूध’ की महिमा वैसी नहीं है, जैसी भारतीय संस्कृति में पन्ना धाय ने स्थापित की है. हिन्दी में ‘माँ के दूध’ को ललकारने से बड़ी कोई और चुनौती नहीं होती. यहाँ पुत्र का सबसे बड़ा कर्त्तव्य ‘माँ के दूध’ का ही क़र्ज़ उतरना होता है. भारतीय सैनिक भी जब सर्वोच्च बलिदान की राह पर होता है तो वो आँखों ही आँखों में तिरंगे को चूमकर ‘माँ के दूध’ का क़र्ज़ उतरता है. इसीलिए लालू ने मोदी को ललकारा है कि वो बताएँ कि संघ प्रमुख के बयान पर उनकी क्या राय है? नरेन्द्र मोदी ने पार्टी से सफ़ाई दिलवा दी कि वो ‘आरक्षण’ पर वैसे ही चूँ तक नहीं करेंगे, जैसे उन्होंने ललित मोदी काँड और व्यापम घोटाले पर अपने होठ सिल लिये थे. ख़ामोशी भी हथियार है. नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह ने इसे बखूबी आज़माया. अब मोदी उनसे इतना तो सीख ही सकते हैं.

आरक्षण नीति को बदलने की बात मोहन भागवत ने अनायास नहीं की. 1981 में संघ ने प्रतिनिधि सभा में आरक्षण पर जो प्रस्ताव पारित किया, हूबहू वही बातें अब भागवत ने दोहरायी हैं. उस दौर में बीजेपी और संघ को लगा कि आरक्षण की मुख़ालफ़त से उसकी दाल नहीं गलेगी. तब काँग्रेस का वोट-बैंक हथियाने वाली पार्टियाँ जैसे जनता दल, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का जन्म नहीं हुआ था. इसीलिए तब संघ ने राम मन्दिर का मुद्दा ढूँढा. इससे बीजेपी के दिन फिर गये थे. लेकिन अब संघ को ये चिन्ता सता रही है कि अगली बार मोदी लहर की सवारी तो मुमकिन होगी नहीं, क्योंकि राजनीति में एक ही मुद्दा बार-बार परवान नहीं चढ़ता. मोदी विकास की चाहे जितनी डुगडुगी बजा लें लेकिन अगले चुनाव तक उनके बहुत सारे सपने टूट चुके होंगे. ‘अच्छे दिन’ की कलई खुल चुकी होगी. लिहाज़ा, नया नारा ज़रूरी है.

‘आरक्षण नीति की समीक्षा’ में संघ को नया नारा दिख रहा है. इसीलिए हार्दिक पटेल जैसे नौसिखिए को रातों-रात नायक बनाया गया. गुजरात के उस पटेल समुदाय को पूरी ताक़त से आरक्षण विरोधी मुहिम को चमकाने के काम पर लगा दिया गया, जो बीजेपी और संघ के साथ है और जिसके ज़्यादातर लोग सम्पन्न हैं. नारा गढ़ा गया कि ‘हमें भी दो, नहीं तो किसी को नहीं’. रणनीति देश को ये दिखाने की बनी कि आरक्षण से कमज़ोरों का भला तो हुआ नहीं, सम्पन्न और ‘लूटे’ जा रहे हैं. लिहाज़ा, उन्हें संगठित होने की ज़रूरत है, जिन्हें लूटा जा रहा है. संघ चाहता है कि अगले चुनाव तक ये तबक़ा संगठित होकर उबलने लगे और वो उसकी तपिस से अपनी सियासी रोटियाँ सेंककर वैसे ही आगे बढ़ जाए जैसे कभी ‘राम मन्दिर’ के सहारे बढ़ी थी.

राजनीति में ‘सब जायज़ है’ का नुस्ख़ा चलता है. जिसका नुस्ख़ा हिट हो जाए, वही सिकन्दर. नुस्ख़े और वोट-बैंक की ऐसी ही मजबूरी ने विश्वनाथ प्रताप सिंह को सताया था. बोफ़ोर्स तोप सौदे को गरमाकर वो प्रधानमंत्री तो बन गये लेकिन जल्द ही उन्हें अहसास हुआ कि उनके पास कोई वोट-बैंक नहीं है. तब मंडल आयोग की रिपोर्ट को झाड़-पोंछकर निकाला गया. इससे OBC का नया वोट-बैंक बना. वैसी ही ज़रूरत और चुनौती आज संघ को सता रही है. ऐसी ही तकलीफ़ ने अरविन्द केजरीवाल को बेचैन कर रखा है, तभी तो वो पहले दिन से ही पूर्ण राज्य की माँग को लेकर नरेन्द्र मोदी से टकराने लगे. इसीलिए मोहन भागवत का बयान बहुत दूरदर्शी है. अब ये जनता पर है कि वो उनके या केजरीवाल के नुस्ख़ों पर कैसे प्रतिक्रिया करती है? लेकिन ये तो तय है कि आरक्षण का शिगूफ़ा आने वाले दौर में खूब गुल खिलाएगा. ये आग अब रोके नहीं रूकेगी. भीतर ही भीतर इसे लगातार सुलगाये रखा जाएगा.

मुकेश कुमार सिंह

Tuesday, September 22, 2015

वह मुसलमान होकर भी पेशाब करता है


वह दलित होते हुए भी साफ-सफाई से रहता है। वह ब्राह्मण नहीं होने के बावजूद विद्वान है। वह हिन्दू होते हुए भी देशद्रोही है। मोदी के अहम मंत्री महेश शर्मा के मुताबिक अब्दुल कलाम मुसलमान होने के बावजूद महान राष्ट्रवादी और मानवतावादी थे। इन बातों में छुपी श्रेष्ठता की ग्रंथि, पूर्वाग्रह, सांप्रदायिकता और सामंती प्रवृत्ति को आसानी से समझा जा सकता है। संघियों और भगवाधारियों को दलितों का साफ-सुथरा रहना, गैर ब्राह्मणों का पढ़े-लिखे होना भी चौंकाता है। इनसे सहमति रखने वाले मुसलमान राष्ट्रवादी हैं और जो इनसे सहमति नहीं रखते हैं वे जानवर और देशद्रोही हैं। जैसे कोई कहे कि वह हिन्दू होते हुए भी देशद्रोही है, इसका मतलब यह हुआ कि हिन्दू घर में जन्म लेना ही देशभक्त होने का सर्टिफिकेट है। 

आरएसएस और बीजेपी के राष्ट्रवादी खांचे में मोदी भक्त, बेवकूफ, कट्टर हिन्दू और मुस्लिमों के खिलाफ आग उगलने वाले ही फिट बैठ सकते हैं। संघ और बीजेपी के का राष्ट्रवाद उन्माद के करीब की अवधारणा है। इनके राष्ट्रवाद में फिट बैठने के लिए आपको पाकिस्तान को गाली देनी होगी, मुसलमानों पर शक करना होगा, रामायण और महाभारत को इतिहास मानना होगा, वेद-पुराण को विज्ञान मानना होगा, गाय की पूजा करनी होगी और गोमूत्र को पवित्र मानना होगा। नेहरू को भला-बुरा कहना होगा, गांधी को जरूरत के हिसाब से इस्तेमाल करना होगा, गोडसे को इज्जत देनी होगी, ईसाई बच्चे को जिंदा जलाने के बाद चुप रहना होगा, मोदी राज्य में मुस्लिमों को जिंदा जलाने को सहज प्रतिक्रिया के रूप में देखना होगा, मुस्लिम को ही आतंकवादी बताना होगा, असीमानंद की दरिंदगी को देशहित में बताना होगा और प्रज्ञा ठाकुर को इज्जत देनी होगी। इस खांचे में जो फिट बैठेंगे वे महेश शर्मा के लिए राष्ट्रवादी हैं, बाकी सब देशद्रोही। आप मुसलमान हैं तो बहुत सतर्क रहना होगा। गुस्से और नाराजगी के भी धर्म होते हैं। हिन्दू नाराजगी सिस्टम को लेकर हो सकती है लेकिन मुस्लिम नाराजगी आतंकवाद और देशद्रोह की तरफ ही रुख करती है।

क्या महज हिन्दू होना राष्ट्रवादी और मानवतावादी होने का प्रमाण है और मुसलमान हैं तो खुद को राष्ट्रवादी और मानवतावादी साबित करना होगा? मोदी कैबिनेट के मंत्री महेश शर्मा का ऐसा ही मानना है। महेश शर्मा ने इंडिया टुडे को दिये इंटरव्यू से न केवल देश के 17 करोड़ मुसलमानों को शर्मिंदा किया है बल्कि पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम को भी बेइज्जत किया है। जब शर्मा से दिल्ली में औरंगजेब रोड के नाम बदलने पर उठे विवाद को लेकर पूछा गया कि उन्होंने कहा कि कलाम के नाम पर रखना बिल्कुल सही फैसला था। शर्मा ने कहा, 'औरंगजेब रोड का नाम बदलकर एक ऐसे महापुरुष के नाम पर किया है जो मुसलमान होते हुए भी इतना बड़ा राष्ट्रवादी और मानवतावादी इंसान था। एपीजे अब्दुल कलाम, उनके नाम पर किया गया है।' 

महेश शर्मा मोदी कैबिनेट में अहम मंत्री हैं। आरएसएस के प्रयोगशाला में वह तैयार हुए हैं। आरएसएस खुद को जन्मजात राष्ट्रवादी मानता है और दूसरों को इसका सर्टिफिकेट देता है। मानवतावादी होना एक इंसानी प्रवृत्ति है। इसका धर्म से कोई वास्ता नहीं है। एक हिन्दू यदि सहज मानवीय स्वभाव के कारण किसी की हत्या और रेप देखकर आहत और क्रोधित होता है तो क्या मुस्लिम खुश होकर हंसता है? महेश शर्मा ने तो यही कहा कि कलाम मुसलमान होने के बावजूद मानवतावादी थे। किसी मुस्लिम का मानवतावादी होना संघियों को चौंकाता है। दरअसल कलाम बीजेपी को इसलिए प्रिय लगते रहे कि उन्होंने बीजेपी और मोदी के पाप के खिलाफ कभी मुंह नहीं खोला। वह राष्ट्रपति होने के दौरान भी बीजेपी की सांप्रदायिक नीतियों पर खामोश रहे। बीजेपी को इसीलिए कलाम राष्ट्रवादी दिखते हैं। गुजरात में जब मुसलमानों का कत्लेआम हुआ तब कलाम ही राष्ट्रपति थे। उन्होंने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश नहीं की थी। उन्होंने न ही कभी सार्वजनिक तौर पर इसकी आलोचना की।

जो पीएम गरजते हुए लगातार 'सबका साथ और सबका विकास' की बात करता है उसी का मंत्री देश के करोड़ों लोगों पर संदेह करता है। उसकी वफादारी को संदिग्ध बनाता है। ऐसे में फिर से मोदी का अतीत याद आता है। 15 महीने की मोदी सरकार के दो काम याद नहीं आते लेकिन हिन्दू सात बच्चे पैदा करो, लव जिहाद, एआर रहमान घर वापसी कर लो, पाकिस्तान में घुस कर मारो, असम में मुसलमानों की बढ़ती आबादी देश के लिए खतरा, एक दिन इस देश में हिन्दू अल्पसंख्यक हो जाएंगे और अयोध्या में राम मंदिर बनाओ चौतरफा सुनने को मिल रहे हैं। ऐसी बातें कभी मंत्री कहता है तो कभी सांसद लेकिन प्रधानमंत्री खामोश रहता है। महेश शर्मा ने कलाम पर जो टिप्पणी की है वह कुछ इसी तरह की हास्यास्पद टिप्पणी है कि 'वह मुसलमान होकर भी पेशाब करता है'।

आखिरी मोर्चा 

Monday, September 21, 2015

संघ से लेकर कांग्रेस तक ने नेताजी से गद्दारी की है शायद इसलिए रहस्य से पर्दा उठाने में हिच्चक रहें हैं....??

 

10+2 की परीक्षा देने के बाद काका के पास समय ही समय था, तो ले आया
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस पर लिखी किताबें और पढ़ना शुरू किया, कई महिना अध्ययन करने के बावजूद रहस्य रहस्य ही रह गया, और अभी तक रहस्य ही है.....

इतना ज़रूर समझ आया नेताजी ने देश की आज़ादी के लिए हर तरीके को अपनाया, जहाँ से मदद मिलने की थोड़ी भी आस थी वहां वहां चक्कर लगाया, वर्मा, अफगानिस्तान से लेकर यूरोप तक, सेना बनाया, बैंक बनाया, विश्व के कई देश के दुश्मन भी हो गए, पर हार नहीं माने....नेताजी पर आज़ादी का जुनून सवार था.

सबसे बड़ी दुःख कि बात ये लगी कि नेताजी को अपने ही देश के लोगों ने इग्नोर कर दिया, आज के बुद्धिजीवियों कि सोच जहाँ ख़त्म हो जाती है, वहां से नेताजी कि सोच शुरू होती थी, बड़े ही दुःख की बात है कि इतने बड़े स्वतंत्रता सेनानी के जीवन व मौत को सभी ने मिलकर रहस्य बना डाला है, मेरी नज़र में नेताजी की भूमिका आज़ादी दिलाने में किसी में मायने में गांधीजी से कम नहीं था.

आखिर कुछ तो रहस्य है जो कांग्रेस सरकर से लेकर मोदी सरकार तक बताने से कतरा रहीं है, अब तो सुप्रीम कोर्ट ने भी कंधे जुआठ फेंक दिया....(नेताजी की फाइल से जुड़ी जनहित याचिका पर सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट का इनकार) अब तो सच में रहस्य से पर्दा उठता देखने कि लालसा बढती जा रही है....!!

नेताजी को जिसे जो कहना है कहे, हम दिल की गहराइयों से इज्ज़त करतें हैं, और करते रहेंगें, नेताजी के सम्मान में आज के राजनीतिज्ञों को कभी भी दिल नहीं करता कि नेता कहा जाये..!!

अब तो लगने लगा है कि मोटी चमड़ी वाले संघ से लेकर कांग्रेस तक ने ही नेताजी से गद्दारी की है शायद इसलिए रहस्य से पर्दा उठाने में हिच्चक रहें हैं....!!