वह दलित होते हुए भी साफ-सफाई से रहता है। वह ब्राह्मण नहीं होने के बावजूद विद्वान है। वह हिन्दू होते हुए भी देशद्रोही है। मोदी के अहम मंत्री महेश शर्मा के मुताबिक अब्दुल कलाम मुसलमान होने के बावजूद महान राष्ट्रवादी और मानवतावादी थे। इन बातों में छुपी श्रेष्ठता की ग्रंथि, पूर्वाग्रह, सांप्रदायिकता और सामंती प्रवृत्ति को आसानी से समझा जा सकता है। संघियों और भगवाधारियों को दलितों का साफ-सुथरा रहना, गैर ब्राह्मणों का पढ़े-लिखे होना भी चौंकाता है। इनसे सहमति रखने वाले मुसलमान राष्ट्रवादी हैं और जो इनसे सहमति नहीं रखते हैं वे जानवर और देशद्रोही हैं। जैसे कोई कहे कि वह हिन्दू होते हुए भी देशद्रोही है, इसका मतलब यह हुआ कि हिन्दू घर में जन्म लेना ही देशभक्त होने का सर्टिफिकेट है।
आरएसएस और बीजेपी के राष्ट्रवादी खांचे में मोदी भक्त, बेवकूफ, कट्टर हिन्दू और मुस्लिमों के खिलाफ आग उगलने वाले ही फिट बैठ सकते हैं। संघ और बीजेपी के का राष्ट्रवाद उन्माद के करीब की अवधारणा है। इनके राष्ट्रवाद में फिट बैठने के लिए आपको पाकिस्तान को गाली देनी होगी, मुसलमानों पर शक करना होगा, रामायण और महाभारत को इतिहास मानना होगा, वेद-पुराण को विज्ञान मानना होगा, गाय की पूजा करनी होगी और गोमूत्र को पवित्र मानना होगा। नेहरू को भला-बुरा कहना होगा, गांधी को जरूरत के हिसाब से इस्तेमाल करना होगा, गोडसे को इज्जत देनी होगी, ईसाई बच्चे को जिंदा जलाने के बाद चुप रहना होगा, मोदी राज्य में मुस्लिमों को जिंदा जलाने को सहज प्रतिक्रिया के रूप में देखना होगा, मुस्लिम को ही आतंकवादी बताना होगा, असीमानंद की दरिंदगी को देशहित में बताना होगा और प्रज्ञा ठाकुर को इज्जत देनी होगी। इस खांचे में जो फिट बैठेंगे वे महेश शर्मा के लिए राष्ट्रवादी हैं, बाकी सब देशद्रोही। आप मुसलमान हैं तो बहुत सतर्क रहना होगा। गुस्से और नाराजगी के भी धर्म होते हैं। हिन्दू नाराजगी सिस्टम को लेकर हो सकती है लेकिन मुस्लिम नाराजगी आतंकवाद और देशद्रोह की तरफ ही रुख करती है।
क्या महज हिन्दू होना राष्ट्रवादी और मानवतावादी होने का प्रमाण है और मुसलमान हैं तो खुद को राष्ट्रवादी और मानवतावादी साबित करना होगा? मोदी कैबिनेट के मंत्री महेश शर्मा का ऐसा ही मानना है। महेश शर्मा ने इंडिया टुडे को दिये इंटरव्यू से न केवल देश के 17 करोड़ मुसलमानों को शर्मिंदा किया है बल्कि पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम को भी बेइज्जत किया है। जब शर्मा से दिल्ली में औरंगजेब रोड के नाम बदलने पर उठे विवाद को लेकर पूछा गया कि उन्होंने कहा कि कलाम के नाम पर रखना बिल्कुल सही फैसला था। शर्मा ने कहा, 'औरंगजेब रोड का नाम बदलकर एक ऐसे महापुरुष के नाम पर किया है जो मुसलमान होते हुए भी इतना बड़ा राष्ट्रवादी और मानवतावादी इंसान था। एपीजे अब्दुल कलाम, उनके नाम पर किया गया है।'
महेश शर्मा मोदी कैबिनेट में अहम मंत्री हैं। आरएसएस के प्रयोगशाला में वह तैयार हुए हैं। आरएसएस खुद को जन्मजात राष्ट्रवादी मानता है और दूसरों को इसका सर्टिफिकेट देता है। मानवतावादी होना एक इंसानी प्रवृत्ति है। इसका धर्म से कोई वास्ता नहीं है। एक हिन्दू यदि सहज मानवीय स्वभाव के कारण किसी की हत्या और रेप देखकर आहत और क्रोधित होता है तो क्या मुस्लिम खुश होकर हंसता है? महेश शर्मा ने तो यही कहा कि कलाम मुसलमान होने के बावजूद मानवतावादी थे। किसी मुस्लिम का मानवतावादी होना संघियों को चौंकाता है। दरअसल कलाम बीजेपी को इसलिए प्रिय लगते रहे कि उन्होंने बीजेपी और मोदी के पाप के खिलाफ कभी मुंह नहीं खोला। वह राष्ट्रपति होने के दौरान भी बीजेपी की सांप्रदायिक नीतियों पर खामोश रहे। बीजेपी को इसीलिए कलाम राष्ट्रवादी दिखते हैं। गुजरात में जब मुसलमानों का कत्लेआम हुआ तब कलाम ही राष्ट्रपति थे। उन्होंने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश नहीं की थी। उन्होंने न ही कभी सार्वजनिक तौर पर इसकी आलोचना की।
जो पीएम गरजते हुए लगातार 'सबका साथ और सबका विकास' की बात करता है उसी का मंत्री देश के करोड़ों लोगों पर संदेह करता है। उसकी वफादारी को संदिग्ध बनाता है। ऐसे में फिर से मोदी का अतीत याद आता है। 15 महीने की मोदी सरकार के दो काम याद नहीं आते लेकिन हिन्दू सात बच्चे पैदा करो, लव जिहाद, एआर रहमान घर वापसी कर लो, पाकिस्तान में घुस कर मारो, असम में मुसलमानों की बढ़ती आबादी देश के लिए खतरा, एक दिन इस देश में हिन्दू अल्पसंख्यक हो जाएंगे और अयोध्या में राम मंदिर बनाओ चौतरफा सुनने को मिल रहे हैं। ऐसी बातें कभी मंत्री कहता है तो कभी सांसद लेकिन प्रधानमंत्री खामोश रहता है। महेश शर्मा ने कलाम पर जो टिप्पणी की है वह कुछ इसी तरह की हास्यास्पद टिप्पणी है कि 'वह मुसलमान होकर भी पेशाब करता है'।
आखिरी मोर्चा
No comments:
Post a Comment