मुसलमान देश के दुश्मन हैं ग़द्दार हैं इनका सफ़ाया ज़रूरी है । मुसलमानों के धर्म में कोई सच्चाई नहीं है । हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए इसलाम का उन्मूलन आवशयक है । इस तरह की भ्रामक बातों से फैली नफ़रत की दीवारें ढहाने के लिए अकेला अल्लोपनिषद ही काफ़ी है ।लेकिन नफ़रत की दीवारें खड़ी करने वाले जब अपनी मेहनत बर्बाद होते हुए देखते हैं तो व्यथित और व्याकुल हो उठते हैं ।
आदरणीय वेद व्यथित जी
आदरणीय वेद व्यथित जी
आपने वैदिक सम्पत्ति पढ़ने की सलाह दी है । आप उसे उपलब्ध करा दीजिये मैं उसे पढ़ लूंगा। लेकिन क्या आप मैक्समूलर व अन्य वेदविदों का साहित्य पढ़कर मान लेंगे कि वेद ईश्वरीय वचन नहीं हैं और न ही इनकी रचना लगभग एक अरब सत्तानवे करोड़ साल पहले हुई है । आप सूरज चांद तारों पर भी वैदिक लोगों का होना मानते हो । क्या आप आधुनिक वैज्ञानिकों के कथन को स्वीकार करते हुए दयानन्द जी की मान्यता को ग़लत स्वीकार कर लेंगे ? वैदिक सम्पत्ति के लेखक के गुरू का वेदार्थ ही हमारी समझ से बाहर है । आपके पधारने से हमें अपनी जिज्ञासा “शांत करने का दर्लुभ योग मिला है । सो आप से पूछता हूं -
गुदा से सांप ले जाना
‘ हे मनुष्यों , तुम मांगने से पुष्टि करने वाले को स्थूल गुदा इंद्रियों के साथ वर्तमान अंधे सांपों को गुदा इंद्रियों के साथ वर्तमान विशेष कुटिल सर्पों को आंतों से , जलों को नाभि के भाग से , अण्डकोश को आंड़ों से , घोड़ों को लिंग और वीर्य से , संतान को पित्त से , भोजनों को पेट के अंगों को गुदा इंद्रिय से और “व्यक्तियों से शिखावटों को निरन्तर लेओ । ’{ यजुर्वेद 25 ः 7 , दयानन्द भाष्य पृष्ठ 876 }
इस मन्त्र का क्या अर्थ समझ में आता है?
ये कौन सा विज्ञान है जिसपर मनुष्य की उन्नति टिकी हुई है ।
ऐसी बातों को देखकर ही पश्चिमी वेदिक स्कॉलर्स ने वेदों को गडरियों के गीत समझ लिया तो क्या ताज्जुब है ?
हो सकता है इसका कुछ और अच्छा सा अर्थ हो जो दयानन्द जी को न सूझा हो लेकिन वैदिक सम्पत्ति आदि किसी अन्य साहित्य में दिया गया हो । यदि आपकी नज़र में हो तो हमारी जिज्ञासा अवय “शांत करें । और अगर कोई भी इसका सही अर्थ और इस्तेमाल न जानता हो तब भी कोई बात नहीं । इसके बावजूद हम वेदों का आदर करते रहेंगे । करोड़ों साल पुरानी किसी किताब की सारी बातें समझ में आना मुमकिन भी नहीं है। इसकी कुछ बातें तो समझ में आ रही हैं , ये भी कुछ कम नहीं है ।
बहरहाल किसी के न मानने से अल्लोपनिषद सबके लिए असत्य और अमान्य नहीं ठहरता । जो लोग उसमें आस्था रखते हैं उनके लिए तो वह प्रमाण माना ही जाएगा । हिन्दू भाइयों में कोई किसी एक ग्रन्थ को मानता है और कोई किसी दूसरे ग्रन्थ को । आपको वेदों में आस्था है तो आप वेद संबंधी प्रमाण देख लीजिये।
श्री सौरभ आत्रेय जी ने भी पुराणों को लेकर यही आपत्ति की थी । उनसे भी हमने यही विनती की थी । आप समेत आपत्ति करने वाले सभी ब्लॉगर भाइयों के लिए अपने “शिघ्र प्रकाश्य उस लेख का एक अंश शेष है -
वैदिक साहित्य में अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद साहब सल्ल. का वर्णनआपत्ति- इसके साथ-2 मुहम्मद साहब को हिन्दू धर्मग्रन्थों के अनुसार अंतिम अवतार घोशित करने लगे ताकि हिन्दू भी उनके छलावों में आकर उनके असत्य को सत्य मान ले । ये लोग हिन्दू धर्म ग्रन्थों में से कुछ “शब्द और वक्तव्य ऐसे निकालते हैं जैसे ’मकान’ और ’दुकान’ में से कान “शब्द निकाल कर उसकी व्याख्या करने लगे ।निराकरण- हिन्दू धर्म ग्रन्थों में पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद का नाम ही नहीं बल्कि अल्लाह का नाम भी साफ़ साफ़ लिखा हुआ है । ऐसे में “शब्दों को तोड़ मरोड़ कर हिन्दुओं को छलने की हमें क्या ज़रुरत है ?
अल्लो ज्येष्ठं श्रेष्ठं परमं पूर्ण ब्रहमाणं अल्लाम् ।। 2 ।।
अल्लो रसूल महामद रकबरस्य अल्लो अल्लाम् ।। 3 ।।
अर्थात ’’ अल्लाह सबसे बड़ा , सबसे बेहतर , सबसे ज़्यादा पूर्ण और सबसे ज़्यादा पवित्र है । मुहम्मद अल्लाह के श्रेष्ठतर रसूल हैं । अल्लाह आदि अन्त और सारे संसार का पालनहार है । (अल्लोपनिषद 2,3)
आपत्ति- क्या इसलाम के जन्म से पहले कोई ऐसा विद्वान नहीं हुआ जो वैदिक पुस्तकों के इस मंतव्य को समझ सका कि अहमद या मोहम्मद नाम का अवतार होगा ?
निराकरण- असल सवाल पहले या बाद का नहीं है बल्कि मंतव्य समझने का है। ऐसे लोग हमेश रहे हैं और आज भी हैं। डा. वेदप्रकाष उपाध्याय, डा. एम.ए. श्रीवास्तव, डा. गजेन्द्र कुमार पण्डा, श्री आचार्य राजेन्द्र प्रसाद मिश्र, श्री दुर्गाशंकर महिमवत सत्यार्थी और गुजरात के महान वेद भाष्यकार श्री आचार्य विष्ण्ु् देव पण्डित जी ऐसे ही प्रबुद्ध और ईमानदार विद्वान हैं। प्रथम दो विद्वानों द्वारा इस विषय पर लिखित पुस्तकें वदसपदम उपलब्ध हैं। देखें- antimawtar.blospot.com
आपात्ति- हाल तो हमारी किसी भी मान्य प्रमाणिक पुस्तक में अवतारवाद को ही मान्यता ही नहीं है।निराकरण- आप पुराणों को झूठ का पुलिन्दा बताते हैं, फिर जब आपकी मान्य पुस्तकों में पुराण “शमिल ही नहीं हैं तो आपको अवतारवाद का जि़क्र मिलेगा कैसे ? आपकी मान्य धर्मपुस्तकों की सूची बहुसंख्यक परम्परावादी हिन्दुओं से अलग है । आप वेदों के अर्थ भी प्राचीन भाष्यों के विपरीत करते हैं।
आपात्ति- हाल तो हमारी किसी भी मान्य प्रमाणिक पुस्तक में अवतारवाद को ही मान्यता ही नहीं है।निराकरण- आप पुराणों को झूठ का पुलिन्दा बताते हैं, फिर जब आपकी मान्य पुस्तकों में पुराण “शमिल ही नहीं हैं तो आपको अवतारवाद का जि़क्र मिलेगा कैसे ? आपकी मान्य धर्मपुस्तकों की सूची बहुसंख्यक परम्परावादी हिन्दुओं से अलग है । आप वेदों के अर्थ भी प्राचीन भाष्यों के विपरीत करते हैं।
आपत्ति- और जिस भविष्य पुराण कि ये व्याख्या करते फिरते हैं वो वैसे भी कोई हिन्दुओं की प्रमाणिक पुस्तक नहीं है तो उसमें या अन्य पुराणों का उदाहरण देना ही ग़लत है।
निराकरण - पुराण होने के कारण भविष्य पुराण दयानन्द जी को चाहे मान्य न हों परन्तु बहुसंख्यक सनातनी हिन्दू संस्थाएं इसे सदा से प्रकाशित करती आ रही हैं। “शान्ति कुन्ज हरिद्वार के संस्थापक श्रीराम आचार्य जी द्वारा अनूदित भविष्य पुराण आज भी सुलभ है। अतः उससे प्रमाण देना ग़लत नहीं कहा जा सकता।
आपत्ति - किन्तु मुझे इतना आभास भी है कि इन पुराणों में भी ऐसा नहीं लिखा।
निराकरण - आभास से काम चलाने की ज़रूरत नहीं है। न तो स्वयं भ्रम के शिकार बनिये और न ही भ्रम की धुंध से दूसरों की बुद्धि ढकने की कोशिष कीजिये। हाथ कंगन को आरसी क्या ? भविष्य पुराण खोलकर डा. वेद प्रकाश उपाध्याय जी की पुस्तकों के हवालों का मिलान कर लीजिये। अल्लोपनिषद की तरह उसमें भी सब कुछ स्पष्ट है । इतने स्पष्ट प्रमाण देखने के बाद आप यह नहीं कह सकते कि हज़रत मुहम्मद साहब स. का नाम वैदिक साहित्य में कहीं भी नहीं पाया जाता । अलबत्ता अपने इनकार पर डटे रहने के लिए अब आपके सामने इन महान ग्रन्थों को ही झुठलाने के अलावा कोई उपाय नहीं बचता । इसके बावजूद भी आप न तो लोगों की आंखों में धूल झोंक सकते हैं और न ही सत्य को झुठला सकते हैं क्योंकि हज़रत मुहम्मद साहब स. का वर्णन तो वेदों में भी है जिनको आप असन्दिग्ध रूप से सत्य मानते हैं । देखें-
‘‘ नराशंस और अन्तिम ऋषि ‘‘ लेखक :डा. वेद प्रकाष उपाध्यायभारत और स्वयं के बेहतर भविष्य के लिए हमें अपने धर्म ग्रन्थों की उन शिक्षाओं को सामने लाना ही होगा जिनसे नफ़रत और दूरियों का ख़ात्मा होता है । भले ही यह बात उन एकाधिकारवादियों को कितनी ही बुरी लगे जो अपना वर्चस्व खोने के डर से लोगों को प्रायः भरमाते रहते हैं ।
डिवाइड एन्ड रूल के दिन अब लदने वाले हैं ‘युनाइट एन्ड रूल‘ के ज़रिये बनेगा अब भारत विश्व गुरू ।
आओ मिलकर चलें कल्याण की ओर
आओ मिलकर चलें कल्याण की ओर
very funny ...In our culture we have total 108 upnishad and allahopnishad is not present in this list...Allopanishad, is a book of uncertain origin written during Muslim rule in India during 15th to 16th century in the time of Mughal Emperor Akbar's reign.
ReplyDeleteHere the list of 108 upnishad in which your fake allohupnishad is not present
Isha Upanishad [1]
Kena Upanishad [2]
Katha Upanishad [3]
Prashna Upanishad [4]
Mundaka Upanishad [5]
Mandukya Upanishad [6]
Taittiriya Upanishad [7]
Aitareya Upanishad [8]
Chandogya Upanishad [9]
Brihadaranyaka Upanishad [10]
Brahmopanishad [11]
Kaivalyopanishad [12]
Jabalopanishad [13]
Shvetashvatara Upanishad [14]
Hamsopanishad
Aruneyopanishad
Garbhopanishad
Narayanopanishad
Paramahamsopanishad
Amritabindu Upanishad
Nada-bindupanishad
Siropanishad
Atharva-sikhopanishad
Maitrayaniya Upanishad
Kaushitaki Upanishad
Brihaj-jabalopanishad
Nrisimha-tapaniyopanishad
Kalagni-rudropanishad
Maitreyy-upanishad
Subalopanishad
Kshurikopanishad
Mantrikopanishad
Sarva-saropanishad
Niralambopanishad
Suka-rahasyopanishad
Vajra-sucikopanishad
Tejobindu Upanishad
Nada-bindupanishad
Dhyana-bindupanishad
Brahma-vidyopanishad
Yoga-tattvopanishad
Atma-bodhopanishad
Narada-parivrajakopanishad
Trisikhy-upanishad
Sitopanishad
Yoga-cudamany-upanishad
Nirvanopanishad
Mandala-brahmanopanishad
Dakshina-murty-upanishad
Sarabhopanishad
Skandopanishad
Mahanarayanopanishad
Advaya-tarakopanishad
Rama-rahasyopanishad
Rama-tapany-upanishad
Vasudevopanishad
Mudgalopanishad
Sandilyopanishad
Paingalopanishad
Bhikshupanishad
Mahad-upanishad
Sarirakopanishad
Yoga-sikhopanishad
Turiyatitopanishad
Sannyasopanishad
Paramahamsa-parivrajakopanishad
Malikopanishad
Avyaktopanishad
Ekaksharopanishad
Purnopanishad
Suryopanishad
Akshy-upanishad
Adhyatmopanishad
Kundikopanishad
Savitry-upanishad
Atmopanishad
Pasupatopanishad
Param-brahmopanishad
Avadhutopanishad
Tripuratapanopanishad
Devy-upanishad
Tripuropanishad
Katha-rudropanishad
Bhavanopanishad
Hridayopanishad
Yoga-kundaliny-upanishad
Bhasmopanishad
Rudrakshopanishad
Ganopanishad
Darsanopanishad
Tara-saropanishad
Maha-vakyopanishad
Panca-brahmopanishad
Pranagni-hotropanishad
Gopala-tapany-upanishad
Krishnopanishad
Yajnavalkyopanishad
Varahopanishad
Satyayany-upanishad
Hayagrivopanishad
Dattatreyopanishad
Garudopanishad
Kaly-upanishad
Jabaly-upanishad
Saubhagyopanishad
Sarasvati-rahasyopanishad
Bahvricopanishad
Muktikopanishad
Your translation of yajurved is also fake
ReplyDeletesee real
जि॒ह्वा। मे॒ भ॒द्रम् वाक् महः॑ मनः॑ म॒न्युः।
स्व॒राडिति॑ स्व॒ऽराट्। भामः॑ मोदाः॑।
प्र॒मो॒दा इति॑ प्रऽमो॒दाः। अ॒ङ्गुलीः॑।
अङ्गा॑नि। मि॒त्रम्। मे॒। सहः॑ ॥६ ॥
यजुर्वेद » अध्याय:20» मन्त्र:6
भावार्थभाषाः -जो राजपुरुष ब्रह्मचर्य, जितेन्द्रियता और धर्माचरण से पथ्य आहार करने, सत्य वाणी बोलने, दुष्टों में क्रोध का प्रकाश करनेहारे, आनन्दित हो अन्यों को आनन्दित करते हुए, पुरुषार्थी, सब के मित्र और बलिष्ठ होवें, वे सर्वदा सुखी रहें ॥६ ॥