पिछले पांच अप्रैल से दिल्ली के जंतर-मंतर पर आमरण अनशन कर रहे अन्ना हजारे की ओर से जन लोकपाल बिल को लेकर कुछ सुझाव आये हैं। उन सुझावों को कल शाम मीडिया से साझा करते हुए आंदोलन के मुख्य सहयोगी अरविंद केजरिवाल ने बताया कि ‘अन्ना चाहते हैं,जन लोकपाल के मसौदा समिति का अध्यक्ष सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायधीष जेएस वर्मा या सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीश रह चुके संतोष हेगड़े को बनाया जाये।’
गौरतलब है कि अन्ना ने यह राय आंदोलन समर्थकों के उस मांग के बाद रखी,जिसमें कहा गया था कि अन्ना को ही जन लोकपाल बिल के मसौदा समिति का प्रमुख बनाया जाये। कर्नाटक में लोकपाल पद पर तैनात एन संतोश हेगड़े ने खनन माफियाओं के हित में जुटी राज्य सरकार के खिलाफ व्यापक माहौल बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वहीं पूर्व मुख्य न्यायाधीश जेएस वर्मा की छवि साफ-सुथरी मानी जाती है। वह राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष भी रहे चुके हैं।
मगर सवाल ये है कि आखिर इन दो नामों पर ईमानदारी की मूहर किसने लगायी। किस सर्वेक्षण के जरिये अन्ना को पता चला कि न्यायाधीश जेएस वर्मा ईमानदार हैं। कारण कि जनता भ्रष्टाचार खत्म कर बेहतर लोकतंत्र चाहती है,उसमें अपनी भागीदारी चाहती है। इसी भरोसे वह अन्ना आंदोलन का समर्थन भी कर रही है।
लेकिन जनता जब जानेगी कि अन्ना हजारे के पहली पसंद वह न्यायधीश हैं जो दुनिया की सबसे कुख्यात कंपनी के फाउंडेषन में षामिल है,तो उसे कैसा महसूस होगा। अन्ना कहते हैं नेता भ्रष्ट हैं इसलिए वे जन लोकपाल बिल के मुखिया के तौर पर वरिश्ठ कांग्रेसी नेता और मंत्री प्रणब मुखर्जी को नहीं चाहते हैं। जाहिर तौर पर अन्ना की इस राय का कोई विरोध नहीं है। मगर विकल्प अगर सांपनाथ की जगह, नागनाथ बनने लगे तो नुकसान आखिरकार उसी का होता है,जिसके भरोसे आज अन्ना सर आंखो पर हैं।
गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायधीश जेएस वर्मा कोका कोला फाउंडेशन के उन मुख्य सदस्यों में हैं,जो भारत में कोका कोला कंपनी के खिलाफ बन रहे माहौल को रोकने के लिए बनाया गया है। दुनिया भर में कोका कोला किस तरह साम्राज्यवादी सरकारों के लिए काम करती है, यह अन्ना हजारे के जागरूक टीम से बेहतर और कौन जान सकता है।
सामाजिक संगठनों के मुख्य नेटवर्क एनएपीएम जिसमें मेधा पाटकर, अरविंद केजरीवाल, संदीप पांडेय और बहुतेरे लोग हैं जो अन्ना आंदोलन के मुख्य लोगों में हैं,यह वही लोग हैं जो इतने ही षानदार तरीके से (जितना आजकल) कोका कोला के खिलाफ भी मुखर होते रहे हैं। और तो और अन्ना ने बाबा रामदेव से ही जान लिया होता कि कोका कोला या विदेषी कंपनियां ने मुल्क में नेताओं से लेकर नौकरशाहों, समाजसेवियों को कैसे अपना जेबी बना रखा है। हालांकि कोका कोला तो सरकार बदलवाने की वकत रखती है, यह दुनिया जानती है।
अन्ना खुद एक गांधीवादी हैं, इसलिए देशी और विदेशी के अंतरविरोधों और अंतरसंबंधों को वह भी बेहतर जानते होंगे। केरल के एक गांव में कोका कोला कंपनी एक प्लांट के बंद होने के मामले में किस तरह ग्राम पंचायत के फैसले के खिलाफ अपने समर्थन में अदालत का फैसला ले आयी, इसकी खबर तो अन्ना को होगी।
राजस्थान के कालाडेरा में कोका कोला के कारण कितने सौ फिट पानी नीचे गया और फसलें बरबाद हुईं,यह तो कभी मेधा या संदीप पांडेय ने जिक्र किया होगा। कम से कम बनारस के मेहदीगंज कोका कोला प्लांट द्वारा नदी को जहरीला बनाने से लेकर खेतों में पानी छोड़ने से बंजर खेतों की कहानी तो किसी ने अन्ना से कही होगी। फिर भी यह चूक, अचंभित करती है और संदेह की एक सनसनी पैदा कर जाती है। खासकर तब जबकि भ्रश्टाचार के मकड़जाल में फंसी जनता उन्हें विकल्प के तौर पर देख रही है।
ऐसे में सवाल है कि कई न्यायालयों के मुख्य रह चुके जेएस वर्मा इतने मासूम तो रहे नहीं होंगे कि कोका कोला जनकल्याण के नाम पर जो फाउंडेषन बना रही है,उसका मकसद समझने में चूक गये हों। बहरहाल,अगर वो माननीय चूक भी गये हों तो हमारा आग्रह है कि अन्ना और उनकी टीम अधिक से अधिक लोकतांत्रिक प्रक्रिया अपनाकर नामों का चुनाव करे। यही एकमात्र रास्ता है जिससे कोई आंदोलन दो कदम आगे बढ़ सकता है और जनता एक बार फिर गहरे निराषा में जाने से बच सकती है।
(यह विज्ञप्ति कोका कोला के खिलाफ बन रही डाक्यूमेंट्री 'कलर ब्लैक- इंडिया ऑफ़ माय ड्रीम्स' फिल्म की रिसर्च टीम से प्राप्त हुई है.)
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