कितना
अच्छा दिन है आज। हम गणतंत्र दिवस का जश्न मना रहे हैं। लाल किले से लेकर
स्कूल-कॉलेजों में और मुहल्लों से लेकर अपार्टमेंटों तक में तिरंगा फहराया जा रहा
है बच्चों में मिठाइयां
बांटी जा रही हैं। मेरे अपार्टमेंट में भी देशभक्ति से भरे गाने बज रहे हैं और मैंने
उस शोर से बचने के लिए अपने फ्लैट के सारे दरवाज़े बंद कर दिए हैं। मैं नीचे झंडा
फहराने के कार्यक्रम में भी नहीं जा रहा जहां अपार्टमेंट के सारे लोग प्रेज़िडेंट
साहब और लोकल नेताजी का भाषण सुनने के लिए जमा हो रहे हैं। मैं इस छुट्टी का आनंद
लेते हुए घर में बैठा बेटी के साथ टॉम ऐंड जेरी देख रहा हूं।
आप
मुझे देशद्रोही कह सकते हैं। कह सकते हैं कि मुझे देश से प्यार नहीं है। मुझपर
जूते-चप्पल फेंक सकते हैं। कोई ज़्यादा ही देशभक्त मुझपर पाकिस्तानी होने का आरोप
भी लगा सकता है।
मैं
मानता हूं कि मेरा यह काम शर्मनाक है लेकिन मैं क्या करूं ? मैं जानता हूं कि जब मैं नीचे जाऊंगा और लोगों को बड़ी-बड़ी देशभक्तिपूर्ण
बातें बोलते हुए देखूंगा तो मुझसे रहा नहीं जाएगा। वहां हमारे लोकल एमएलए होंगे
जिनके भ्रष्टाचार के किस्से उनकी विशाल कोठी और बाहर लगीं चार-पांच कारें खोलती हैं वह हमारे बच्चों को गांधीजी के
त्याग और बलिदान की बात बताएंगे। वहां हमारे सेक्रेटरी साहब होंगे जिन्होंने मकान
बनते समय लाखों का घपला किया और आज तक जबरदस्ती सेक्रेटरी बने हुए हैं, वह देश के
लिए कुर्बानी देनेवाले शहीदों की याद में आंसू बहाएंगे। वहां अपार्टमेंट के वे
तमाम सदस्य होंगे जिन्होंने नियमों को ताक पर रखकर एक्स्ट्रा कमरे बनवा लिए हैं और
कॉमन जगह दखल कर ली है ऐसे भी कई होंगे जिन्होंने बिजली के मीटर रुकवा दिए हैं। ये
सारे लोग वहां तालियां बजाएंगे कि आज हम आज़ाद हैं।
क्या
करूं अगर मुझे ऐसे लोगों को देशभक्ति की बात करते देख गुस्सा आ जाता है। इसलिए
मैंने फैसला कर लिया है कि मैं वहां जाऊं ही नहीं। हालांकि मैं जानता हूं कि मैं
उनसे बच नहीं पाऊंगा। ये सारे लोग आज गणतंत्र दिवस का जश्न मनाने के बाद कल शहर की
सड़कों पर निकलेंगे और हर गली हर चौराहे हर
दफ्तर हर रेस्तरां
में होंगे। मैं उनसे बचकर कहां जाऊंगा ?
कल को जब मैं ऑफिस के लिए निकलूंगा और देखूंगा कि टंकी में तेल नहीं है तो
मेरी पहली चिंता यही होगी कि तेल कहां से भराऊं क्योंकि ज़्यादातर पेट्रोल पंपों
में मिलावटी तेल मिलता है (पेट्रोल पंप का वह मालिक भी आज गणतंत्र दिवस का जश्न
मना रहा होगा अगर वह
खुद नेता होगा तो शायद भाषण भी दे रहा होगा)। खैर अपने एक विश्वसनीय पेट्रोल पंप
तक मेरी गाड़ी चल ही जाएगी इस भरोसे के साथ मैं आगे बढ़ूंगा और चौराहे की लाल
बत्ती पर रुकूंगा। रुकते ही सुनूंगा मेरे पीछे वाली गाड़ी का हॉर्न जिसका ड्राइवर
इसलिए मुझपर बिगड़ रहा होगा कि मैं लाल बत्ती पर क्यों रुक रहा हूं। मेरे आसपास की
सारी गाड़ियां रिक्शे बस सब लाल बत्ती को अनदेखा करते
हुए आगे बढ़ जाएंगे क्योंकि
चौराहे पर कोई पुलिसवाला नहीं है। मैं एक देशद्रोही नागरिक जो आज गणतंत्र दिवस के
समारोह में नहीं जा रहा कल उस चौराहे पर भी अकेला पड़ जाऊंगा जबकि सारे देशभक्त अपनी मंज़िल
की ओर बढ़ जाएंगे।
अगले
चौराहे पर पुलिसवाला मौजूद होगा इसलिए कुछ गाड़ियां लाल बत्ती पर रुकेंगी। लेकिन बसवाला नहीं। उसे
पुलिसवाले का डर नहीं क्योंकि या तो वह खुद उसी पुलिसवाले को हफ्ता देता है या फिर बस का मालिक
खुद पुलिसवाला है या
कोई नेता है। नेताओं पुलिसवालों और पैसेवालों के लिए इस आज़ाद देश में कानून न मानने की आज़ादी
है। मैं देखूंगा कि मेरे बराबर में ही एक देशभक्त पुलिसवाला बिना हेल्मेट लगाए
बाइक पर सवार है लेकिन
मैं उसे टोकने का खतरा नहीं मोल ले सकता
क्योंकि वह किसी भी बहाने मुझे रोक सकता है मेरी पिटाई कर सकता है मुझे गिरफ्तार कर सकता है। आप
मुझे बचाने के लिए भी नहीं आएंगे क्योंकि मैं ठहरा देशद्रोही जो आज गणतंत्र दिवस
का जश्न मनाने के बजाय कार्टून चैनल देख रहा है।
आगे
चलते हुए मैं उन इलाकों से गुज़रूंगा जहां लोगों ने सड़कों पर घर बना दिए हैं लेकिन उन घरों को तोड़ने की
हिम्मत किसी को नहीं है क्योंकि वे वोट देते हैं। वोट बेचकर वे सड़क को घेर लेने की आज़ादी खरीदते
हैं और वोट खरीदकर
ये एमएलए-एमपी विधानसभा और संसद में पहुंचते हैं जहां एक तरफ उन्हें कानून बनाने
का कानूनी अधिकार मिल जाता है दूसरी तरफ कानून तोड़ने का गैरकानूनी अधिकार भी। कोई उनका बाल भी बांका
नहीं कर सकता। इसलिए वे अपने वोटरों से कहते हैं रूल्स आर फॉर फूल्स। मैं भी कानून तोड़ता हूं तुम भी तोड़ो। मस्त रहो बस मुझे वोट देते रहो मैं तुम्हें बचाता रहूंगा।
इसको
कहते हैं लोकतंत्र। लोग अपने वोट की ताकत से नाजायज़ अधिकार खरीदते हैं अपनी आज़ादी खरीदते हैं - कानून
तोड़ने की आज़ादी। यह तो मेरे जैसा देशद्रोही ही है जो लोकतंत्र का महत्व नहीं समझ
रहा जिसने अपने
फ्लैट में एक इंच भी इधर-उधर नहीं किया
और उसी तंग दायरे में सिमटा रहा जबकि देशभक्तों ने कमरे मंजिलें सब बना दीं सिर्फ इस
लोकतंत्र के बल पर। आज उसी लोकतांत्रिक देश की गणतंत्र होने की सालगिरह पर लोक और
सत्ता के इस गठजोड़ को और मज़बूती देने के लिए जगह-जगह ऐसे ही कानूनतोड़क लोग अपने
कानूनतोड़क नेता को बुला रहे है।
जनता
के ये सेवक आज अपने-अपने इलाकों में तिरंगा फहराएंगे। एक एमएलए-एमपी और बीसियों
जगह से आमंत्रण। लेकिन देशसेवा का व्रत लिया है तो जाना ही होगा। आखिरकार जब भाषण
देते-देते थक जाएंगे तो रात को किसी बड़े व्यापारी-इंडस्ट्रियलिस्ट के सौजन्य से
सुरा-सुंदरी का सहारा लेकर अपनी थकान मिटाएंगे। यह तो मेरे जैसे देशद्रोही ही
होंगे जो अपने फ्लैट में दुबके बैठे है और जो रात को दाल-रोटी-सब्जी खाकर सो
जाएंगे।
नीचे
देशभक्ति के गाने बंद हो गए हैं भाषण शुरू हो चुके हैं। जय हिंद के नारे लग रहे हैं। मेरा मन भी करता है
कि यहीं से सही मैं
भी इस नारे में साथ दूं। दरवाज़ा खोलकर बालकनी में जाता हूं। नीचे खड़े लोगों के
चेहरे देखता हूं। चौंक जाता हूं अरे यह मैं
क्या सुन रहा हूं ऊपर
से हर कोई जय हिंद बोल रहा है लेकिन मुझे उनके दिल से निकलती यही आवाज़ सुनाई दे रही है - मेरी मर्ज़ी।
मैं लाइन तोड़ आगे बढ़ जाऊं मेरी मर्जी। मैं रिश्वत दे जमीन हथियाऊं मेरी मर्ज़ी। मैं हर कानून को
लात दिखाऊं मेरी
मर्ज़ी...
मैं
बालकनी का दरवाज़ा बंद कर वापस कमरे में आ गया हूं। ड्रॉइंग रूम में बेटी ने टीवी
के ऊपर प्लास्टिक का छोटा-सा झंडा लगा रखा है। मैं उसके सामने खड़ा हो जाता हूं।
झंडे को चूमता हूं और बोलने की कोशिश करता
हूं - जय हिंद। लेकिन आवाज़ भर्रा जाती है। खुद को बहुत ही अकेला पाता हूं। सोचता
हूं क्या और भी लोग होंगे मेरी तरह जो आज अकेले में गणतंत्र दिवस का यह त्यौहार
मना रहे होंगे। वे लोग जो इस भीड़ का हिस्सा बनने से खुद को बचाये रख पाए होंगे ? वे लोग जो अपने फायदे के लिए इस देश के कानून को रौंदने में विश्वास नहीं
करते ? वे लोग जो रिश्वत या ताकत के बल पर दूसरों का हक नहीं
छीनते ?
क्या अंदाज़ - ए- बयानी है भाई मज़ा आ गया जी चाहता है के अपने अखबार में आप के नाम से ऐसा का ऐसा ही छाप दूं
ReplyDeleteAli ji,Sukriyaa Bahut hi Achha or badiyaa lekh,
ReplyDeletePadkar eaisa lagaa kiyaa waqi hum Azad bharat ke Nagrik
Azad hai?Mai Apne dosto ko batane padhhne ke liye is blog ke
apne group 'Dill ki Batey'me Share karne ki Lalach Rok na paaya
Sukriya..........................
Bahut sahi kaha ,lekin sach ki sunvai kaha . jo sachcha vahi deshdrohi. jo bhrasht vo matrabhakt. Kya kare ge janab havaye hi badali huyi hai. avashyakta hai inke rukh ko badalne ki.
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा तहरीर किये हैं भाई, जिस तरह से बयान किये हैं सीधा दिल पे असर किया है, काश इस तहरीर को किसी अखबार में जगह मिल जाती।
ReplyDeleteशोहराब भाई क्या लिखते हो यार
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