Thursday, November 25, 2010

स्त्री को हम कुल्टा साबित करने की कोशिश करते हैं

मुजफ्फरनगर में अभी कुछ दिन पूर्व एक सर्वजातीय पंचायत हुई। पंचायत ने लड़कियों को मोबाइल इस्तेमाल करने पर रोक लगा दी। इस फैसले से समाज में यह सन्देश गया कि लडकियां मोबाइल का उपयोग गलत कार्यों के लिए ही करती हैं। इसके विपरीत लड़के मोबाइल का सही उपयोग करते हैं। जितना यह फैसला गलत है, उतनी ही पंचायत की समझ भी गलत है। न लड़के गलत हैं न लडकियां हमारी पुरुषवादी मानसिकता ही गलत है। संविधान की दृष्टि से लिंगभेद का कोई औचित्य नहीं। व्यवस्था असफल है इसलिए काबिले टाइप की यह पंचायतें मानवीय संवेदनाओं से हटकर अनाप-शनाप फरमान जारी करती रहती है अन्यथा सरकार को ऐसी पंचायतों के ऊपर ही रोक लगा देना चाहिए।

सरकार महिलाओं के खिलाफ हिंसा रोकने में असमर्थ है। हमारे देश में हर तीन मिनट पर एक महिला हिंसा का शिकार हो जाती है। प्रतिदिन 50 से अधिक दहेज़ उत्पीडन के मामले होते हैं। हर 29 वें मिनट पर एक महिला बलात्कार का शिकार होती है। सरकार 25 नवम्बर से 10 दिसम्बर तक उत्तर प्रदेश के 12 व उत्तराखंड के 5 जिलों में घरेलु हिंसा के खिलाफ अभियान चलने जा रही है।

आज जरूरत इस बात की है कि लडकियों को शिक्षित दीक्षित किया जाए और उनको स्वावलंबी बनाया जाए। समाज को भी अपने आदिम नजरिये बदलने की जरूरत है। आधुनिक समाज में या परिवार में लड़का और लड़की का भेद जारी रखने का भी कोई औचित्य नहीं है। भाषणों में हम स्त्री को हम दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी कहते हैं और व्यवहार में हम उसको कुल्टा साबित करने की कोशिश करते हैं। यही दोहरा माप दंड इस तरह के फैसले जारी करने को विवश करता है।



-लो क सं घ र्ष !

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