वह एक ऐसा उपन्यासकार है जो क्रान्तिकारियों को फांसी देने वाले अंग्रेजों का वेतनभोगी सेवक था। उसका रचा हुआ कोई भी गीत देशप्रेम का पैमाना कैसे बन सकता है?-- (संपादकीय मासिक पत्रिका 'वन्दे ईश्वरम')
दारूल उलूम के आलिमों ने देश की आज़ादी के लिए लड़ाई लड़ी है और अपनी जानें कुर्बान की हैं। उनके देशप्रेम पर वे लोग उंगली उठा रहे हैं जिन्होंने आज़ादी की लड़ाई में न कभी भाग लिया और न ही कोई क़ुर्बानी दी, बड़ी हास्यास्प्द सी बात है।
बंकिमचन्द्र चटर्जी कौन है?
वह एक ऐसा उपन्यासकार है जो क्रान्तिकारियों को फांसी देने वाले अंग्रेजों का वेतनभोगी सेवक था। उसका रचा हुआ कोई भी गीत देशप्रेम का पैमाना कैसे बन सकता है?
और वह गीत भी ऐसा हो जो ‘ज्ञान’ के विपरीत हो और वह गीत एक ऐसे उपन्यास का हिस्सा हो जिसमें ‘वन्दे मातरम् गाने वाले सन्यासी बेक़सूर मुसलमानों के घर जला रहे हों, उन्हें लूट रहे हों, उन्हें क़त्ल कर रहे हों।
इसलाम सलामती का दीन है। वह मिथ्या कल्पनाओं और समाज में नफ़रत फैलाने वाली बातों को कहने-गाने की इज़ाज़त नहीं देता। वेदमत भी यही है- मा चिदन्यद्विशंसत (ऋग्वेद 8:1:1)
उसके अतिरिक्त किसी अन्य की उपसना न करो।
य एक इत्तमुष्टुहि (ऋग्वेद 6:45:16)
वह एक ही है उस ही की स्तुति करो।
क्या इस प्रमाण के बाद भी मुसलमानों से ‘वन्दे मातरम्’ गाने का आग्रह किया जाएगा?
जबकि इसे गाने के लिए खुद के पास ही ज्ञान का कोई आधार न हो।
मुसलमानों के मुँह से एक पालनहार की महानता की बात सुनकर तो उन्हें भी अपना भूला हुआ ज्ञान याद आ जाना चाहिए था और इनसानियत को बांटने वाली हरेक मिथ्या परम्परा और अज्ञान को छोड़ देना चाहिए था। सत्य का इनकार करना भारत की ज्ञान परम्परा से द्रोह करना है, मानवता को अज्ञान के अंधेरों में भटकाना है और खुद अपनी आत्मा का भी हनन करना है।
‘जो मनुष्य जीते हुए अपनी आत्मा का हनन करते हैं वे मरने के बाद अंधकारमय असुरों के लोक को जाते हैं।’ (यजुर्वेद 40:3)
‘और जिस किसी ने मेरी स्मृति से मुँह मोड़ा तो उसका जीवन संकीर्ण होगा और क़ियामत के दिन हम उसे अंधा उठाएंगे। वह कहेगा:’’ ऐ मेरे पालनहार! तूने मुझे अंधा क्यों उठाया, जबकि मैं आँखों वाला था?’’
वह बताएगाः ‘‘इसी तरह (तू संसार में अंधा रहा था) तेरे पास मेरी आयतें आई थीं, तो तूने उनहें भुला दिया था। उसी तरह आज तुझे भुलाया जा रहा है।’’ इसी प्रकार हम उसे बदला देते हैं जो मर्यादा का उल्लंघन करें और अपने पालनहार के आदेशों पर विश्वास न करे। और परलोक की यातना तो अत्यन्त कठोर और अधिक स्थायी है। (पवित्र कुरआन, ता॰हाः124-127)
ईश्वर के आदेशों को भुलाने का नतीजा लोक परलोक में संकीर्ण जीवन, अंधकार और कठोर यातना के रूप में निकलता है। आज लड़कियों को योग्यवर नहीं मिलते, विवाहिताएं दहेज के लिये जला दी जाती हैं, कन्या भ्रूण गर्भ मे ही मार डाला जाता है, विधवाएं बेसहारा भटकती हैं, बुढ़ापे में माँ-बाप धुत्कार दिए जाते हैं बच्चों के अपहरण हो रहे हैं, मिलावट और बेईमानी आम है, चोरी डाके हत्या बलात्कार की ख़बरों ने चैंकाना भी छोड़ दिया है, दंगे-फसाद मानो हरदम तैयार खड़े हैं। जातिवाद के अपमान का बोझ पहले से ही है।
...
'वन्दे ईश्वरम'
अर्थात वन्दना करो उसकी जिसने सारी सृष्टि बनाई
bahut badiya ali bhai mujhe naaz he ki mai aapka bhai hu.
ReplyDelete@ अफ़ताब भाई, बहुत बहुत सुक्रिया, आप हमारे भाई हैं और मैं का भाई हुं और सदा रहुंगा.
ReplyDeleteआपका भाई,
-अली सोहराब.
bahut khoob Ali bhai , beshak hal hai ye is masle ka, aur aisi hi kuch cheeje hai jinhe dhalna hai hame apne hisaab se to badhao apne jajbaato ko age aur muhtod jawab do kafiro ka, ham tayyar hai vande ishwaram kehne ke liye.........
ReplyDeleteशुक्रिया.
ReplyDelete‘‘आनन्द मठ’’ के यह वाक्य हम सब अपने हमवतन भाईयों के सामने भी ससम्मान अवश्य रखें और उनसे निवेदन करें कि कृप्या इन्हें ईमानदारी की कसौटी पर परखें, उपन्यासकार की मानसिकता का अन्दाज़ा करें, फिर वंदेमातरम पर बात करें, उसके राष्ट्रगीत होने पर गौर करें, मुसलमानों की आपत्ति के कारण को समझें, तब सम्भवतः हम राष्ट्रहित में किसी नतीजे पर पहुंच सकें।
ReplyDelete‘‘आनन्द मठ’’ के पृष्ठ-77 पर तीसरी और चैथी पंक्ति में लिखा हैः
‘‘हम राज्य नहीं चाहते- हम केवल मुसलमानों को भगवान का विद्वेषी मानकर उनका वंश-सहित नाश करना चाहते हैं।’’पृष्ठ-88-89 पर बंकिम चन्द चटोपाध्याय ने अपने उपन्यास ‘‘आनन्द मठ’’ में लिखा हैः