बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य और पार्टी की प्रदेश इकाई के पूर्व अध्यक्ष निर्मल सिंह ने ६ जनवरी २०११ को संवाददाताओं को बताया, 'हम श्रीनगर में तिरंगा फहराने की अपनी योजना के साथ आगे बढ़ेंगे।' यह ध्यान देने की बात है कि सिर्फ राजस्थान से इसमें दस हजार कार्यकर्ता शरीक होंगे।
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से श्रीनगर में तिरंगा फहराने की योजना छोड़ने का आग्रह किया है। उन्होंने कहा कि इससे घाटी में हिंसक प्रतिक्रिया हो सकती है और इसके लिए बीजेपी जिम्मेदार होगी। कश्मीर में यदि इसकी कोई प्रतिक्रिया हुई तो उन्हें मुझे जिम्मेदार नहीं ठहराना चाहिए। कश्मीर शांत है तो वे (बीजेपी) फिर से क्यों आग भड़काना चाहते हैं। यदि प्रतिक्रिया हुई तो मैं उन्हें निजी रूप से उत्तरदायी ठहराऊंगा। वह बीजेपी की युवा शाखा के 'श्रीनगर चलो' अभियान के सवाल पर प्रतिक्रिया दे रहे थे। बीजेपी 26 जनवरी के दिन श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराने की योजना बना रही है।
राज्य के मुख्यमंत्री ने इस बात पर भी सवाल उठाया है कि बीजेपी लाल चौक पर तिरंगा क्यों फहराना चाहती है जबकि राज्य के मंत्री, अधिकारी पहले ही गणतंत्र दिवस के मौके पर अपने अपने कार्यालयों पर तिरंगा फहराएंगे ही।
गौरतलब है कि १९४७ में प्रजा परिषद ने कश्मीर के राजा का उस वक़्त साथ दिया था जब वह भारत से अलग रहना चाहता था। उस वक़्त भी प्रजा परिषद् राजा के साथ थी जब वह भारत के खिलाफ पाकिस्तान से मिलना चाहता था । बाद में यही प्रजापरिषद जम्मू-कश्मीर में जनसंघ की शाखा बन गयी। इसी प्रजा परिषद के नेताओं ने डॉ श्यामा प्रसाद मुख़र्जी का इस्तेमाल शेख अब्दुल्ला के खिलाफ किया। प्रजा परिषद् की वारिस पार्टी, बीजेपी ने कश्मीर समस्या के हल के लिए की जा रही सर्वदलीय पहल में अडंगा डालने की कोशिश की । इसी चक्कर में 21 सितंबर 2010 को सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के सदस्य के रूप में श्रीनगर पंहुची सुषमा स्वराज ने हालात को बिगाड़ने में अपनी पार्टी लाइन के हिसाब से भूमिका निभाई थी। खबरों में बने रहने के चक्कर में उन्होंने असदुद्दीन ओवैसी, सीताराम येचुरी, राम विलास पासवान आदि की उस कोशिश का विरोध किया जिसमें हुर्रियत नेताओं से संपर्क साधा गया था। लगभग सभी नेताओं की इच्छा रहती है कि वे ही सबके ध्यान का केंद्र बने रहें। भारतीय राजनीति और राजनेता किस कदर गैर-जिम्मेदार हैं यह इस बात से साफ जाहिर है। वे मात्र विरोध करने के लिए विरोध करते हैं, जनहित और राष्ट्रहित बस सस्ती लोकप्रियता अर्जित करने के औजार मात्र हैं।
सुषमा स्वराज ने अलगाववादी नेताओं से हुई मुलाक़ात को विवाद के घेरे में लाकर अखबारी सुर्ख़ियों में अपना नाम दर्ज करवा लिया । इसी पार्टी के नेता, अरुण नेहरू और जगमोहन ने जम्मू-कश्मीर की हालात को सबसे ज्यादा बिगाड़ा । आज हर समझदार आदमी कश्मीर की हालात बिगाड़ने के लिए प्रजापरिषद, जनसंघ, डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी और जगमोहन को ज़िम्मेदार मानता है।
भाजपा ने उमर अब्दुल्ला के बयान की निंदा की है। राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरूण जेटली के अनुसार “हमारा उद्देश्य घाटी में हिंसा फैलाना नहीं है।" बीजेपी ने कश्मीर समस्या के समाधान के लिए राष्ट्रवादी दृष्टिकोण अपनाने और देश की संप्रभुता कायम रखने के लिए दृढ़ संकल्प की जरूरत पर जोर देते हुए कहा है कि घाटी में आतंकवाद और हिंसा का माहौल खत्म होना चाहिए। सवाल यह है कि भाजपा के पास ऐसा कौन सा सूत्र, समाधान या हल है जिससे कश्मीर समस्या का उचित समाधान हो सकता है और अपने शासनकाल में उसने तब वह क्यों नहीं किया ? जब सरहद पर से आतंकवादी कश्मीर में घुसते हैं तब भाजपा के ये उत्साही सेवक उनसे दो-चार हाथ करने के लिए क्यों नहीं निकलते, तब वे बिस्तरों में क्यों दुबके रहते हैं ? अंध राष्ट्रवाद और धार्मिक कट्टरता का क्या हस्र होता है इसका जीता जगता उदहारण पाकिस्तान और अफगानिस्तान हैं क्या भारत को भी उसी रस्ते पर धकेल दिया जाये ? चीन, जापान, क्यूबा, वियतनाम,फ़्रांस और जर्मनी से हमें स्वस्थ और जन- धर्मी राष्ट्रवाद सीखना चाहिए न कि पाकिस्तान, इजराइल और अमेरिका से।
हमेशा की तरह बीजेपी ने राज्य के तीन में से दो क्षेत्र- जम्मू और लद्दाख के साथ पक्षपात खत्म करने और कश्मीरी पंडितों व सिखों की राज्य में वापसी सुनिश्चित करने की मांग की है । राज्य में शक्तियों के विकेंद्रीकरण की जरूरत बताते हुए पार्टी ने कहा कि तीनों क्षेत्रों के बीच संसाधनों में बराबर की हिस्सेदारी होनी चाहिए। जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को अस्थायी बताते हुए उसे समाप्त करने की मांग दोहराई। बीजेपी ने जम्मू-कश्मीर के हालात के लिए नेहरू सरकार के गलत दृष्टिकोण और उसके बाद की कांग्रेस सरकारों की कमजोर नीतियों को दोष दिया। लेकिन अपनी गैर-जिम्मेदार भूमिका और असफलता पर चुप्पी साध ली। कमजोर नीतियों को दोष दिया। लेकिन अपनी गैर-जिम्मेदार भूमिका और असफलता पर चुप्पी साध ली। सस्ती लोकप्रियता और भड़काऊ भाषा के इस्तेमाल से क्या कश्मीर समस्या सुलझ सकती है ?
इसकी प्रतिक्रिया में जम्मू एवं कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के प्रमुख मोहम्मद यासीन मलिक लाल चौक पर तिरंगा न फहराने की चेतावनी पहले ही दे चुके हैं। मलिक ने कहा था, 'हम देखेंगे कि 26 जनवरी को लाल चौक पर तिरंगा कौन फहराता है।'
उल्लेखनीय है कि आज जब चीन और अमेरिका भी कश्मीर पर बहुत सधे हुए कूटनीतिक बयान देते हैं तब हमें भी बहुत सूझ-बूझ तथा परिपक्वता का परिचय देना होगा। ऐसे संवेदनशील मसले को बच्चों की तरह बिना बुद्धि-विवेक के इस्तेमाल के, अब यूं और अधिक नहीं बिगाड़ा जा सकता है।
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