Sunday, February 27, 2011

भय, भूख और भ्रष्टाचार के मकड़जाल मे बुरी तरह फ़ंसे अनुमोदित शिक्षकों की अपील

गुरु का स्थान भारतीय संस्कृति में ईश्वर से भी ऊंचा माना गया है। इसकी पुष्टि इस मंत्र से होती है। गुरु ब्रम्हा गुरु विष्णु गुरु साक्षात महेश्वर अर्थात सच्चा गुरु शिष्य के लिए उसका सृजनकर्ता, पालनकर्ता तथा मोक्षदाता होता है। भारतीय जन मानस में गुरु के लिए बहुत ऊंचा स्थान है। क्योंकि सच्चा गुरु ही मानव जीवन की पूर्णता के लिए शिष्य को सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
पर आज के गुरु की हाला ऐसी हो गया है के खाने-खाने को मोहताज हैं, उन का सुध लेने वाला कोई नही है
ये अपील है अनुदानित महाविधालय/विश्वविधालय अनुमोदित शिक्षक संघ उत्तर प्रदेश के शिक्षकों की जो भय, भूख और भ्रष्टाचार के मकड़जाल मे बुरी तरह से फ़स गये हैं.
आज इनकी अवाज को सुनने वाला कोई नही है, फ़रवारी ७, २०११ से धरने पर गांधीवदी बन कर बैठें हैं. पर अभी शासन/प्रशासन के तरफ़ से इनकी कोई सुध लेने नही अया अब ये सहयोग के लिये आम जनता और पत्रकारों से अपील कर रहें हैं,
कहने को तो ये उत्तर प्रदेश की उच्च शिक्षा के सारथी हैं, विधा के महादान एवं अपने ईमानदार शैक्षिक सेवा के अवदान से एक नये समाज के सर्जक हैं, कहने को तो ये "गुरु" जैसे महत्वपूर्ण पद के नैष्ठिक दायित्व के संवाहक हैं पर  ये भूख और भय की मकडजाल मे इसकदर फ़ंसा दिये गये हैं के इनका विश्वास तो नाथों के नाथ विश्वनाथ से भी उठ गया है.
ये सभी शिक्षक अनुमोदित स्ववित्तपोषित शिक्षक हैं, इनका महाविधालय स्थायी है, विभाग स्थायी है, पर ये शिक्षक अस्थायी हैं, समान कार्य और समान योग्यता होने के बावजूद एक ही महाविधालय परिसर मे अनुदानित शिक्षक रु० ८०,०००/- वेतन पा रहें हैं पर ये स्ववित्त पोषित शिक्षक मात्र दो हाजार/तीन हाजार रुपये मासिक वेतन निष्ठापूर्वक दायित्व निर्वहन कर रहें हैं, शिक्षा के दुकानदारों के आगे ये बिकने के लिये असहाय और मजबूर हैं.

इनकी गलतियां ये हैं के ये शिक्षक अपने दायित्वों का निर्वाहन पूरी निष्ठा के साथ कर रहें हैं, यू०.जी०.सी० के आधुनिक युग के समस्त मानकों को पूरा करने वाले सर्वोच्च डिग्रीधारी हैं, बाकयदा चयनित और अनुमोदित पूर्णकालिक शिक्षक हैं, अनुदानित महाविधालयों की गरिमा में श्रीवृद्धि के सर्वोत्त्म कर्यकर्ता हैं, उच्च शिक्षा की गुणवत्ता और महत्ता बनाये रखने हेतु सफ़ल साधक की भूमिका निभाते हैं, नये-नये छात्र प्रतिभा को उभारने हेतु नित नये आयाम गढते हैं, इन समस्त गल्तियों की सजा / दण्ड है कि इनको असहाय, अनाथ, भूखे-नंगे बना कर बिलखने के लिये सदा-सदा के लिये छोड दिये गया हैं.

उमिद और आशा करतें हैं के इन असहाय शिक्षकों कि अपील जल्द से जल्द सुनी जायेगी.

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