Wednesday, February 16, 2011

हिन्दूधर्म के भ्रष्टीकरण का चरमोत्कर्ष है संघ परिवार का प्रौपेगैण्डा


मौजूदा दौर सांप्रदायिक ताकतों के आक्रामक रवैय्ये का दौर है। इस दौर को विराट पैमाने पर माध्यमों की क्षमता ने संभव बनाया है। सांप्रदायिक ताकतोंविशेषकर हिंदुत्ववादी (आरएसएस संप्रदाय) संगठनों की सांप्रदायिक विचारधारा को व्यापक पैमाने पर प्रचारित-प्रसारित करने में परंपरागत और इलैक्ट्रॉनिक संचार माध्यमों की प्रभावी भूमिका रही है। हिंदुस्तानी ताकतों ने किस तरह की माध्यम रणनीति आख्तियार कीउसका परिप्रेक्ष्य और विचारधारात्मक पक्ष क्या रहा हैइसका समग्रता में मूल्यांकन किया जाना चाहिए।
हिंदुत्ववादी माध्यम रणनीति पर विचार करते समय पहला प्रश्न यह उठता है कि अयोध्यामथुरावाराणसी का ही चयन क्यों किया गयाइनमें से अयोध्या को ही सांप्रदायिक आंदोलन का केंद्र क्यों चुना गयाक्या यह चयन किसी वैचारिक योजना का अंग हैमेरा मानना है कि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की दिशा में यह महत्वपूर्ण कदम है। इसका प्रेरक तत्व हिटलर की रणनीति से लिया गया है। हिटलर ने मीन कॉम्फ में लिखा था कि किसी आंदोलन के लिए स्थान विशेष की भौगोलिकराजनीतिक महत्ता का महत्वपूर्ण स्थान होता है। स्थान विशेष के कारण ही मक्का या रोम का महत्वपूर्ण स्थान है। किसी स्थान विशेष को केंद्र में र¹कर ही एकता को स्वीकृति मिलती है। इस एकता को अर्जित करने के लिए हिटलर ने म्यूनि¹ का चयन किया।
कैनेथ बुक ने ‘ रेहटोरिक ऑफ हिटलर्स बैट्ल्स’ में रेखांकित किया कि म्यूनि का चयन धार्मिक दृष्टि एवं पद्धति के आधार पर किया गया। यह भयानक प्रभावकारी औजार साबित हुआ। खासकर जब कई देशों में पूंजीवादी कमजोर हो रहा था। हिटलर ने जब म्यूनि को केंद्र बनाया तो आर्य श्रेष्ठता को जर्मनों से जोड़ा और स्वत:स्फूर्त ढंग से यहूदी विरोधी भावनाओं को उभारा और संसदीय प्रणाली पर हमला किया। हिटलर का मानना था कि धार्मिक महत्व के स्थान को आंदोलन का केंद्र चुनने से आर्य एकतासम्मानश्रेष्ठत्व अर्जित करने के लिए आंदोलन सफलता अर्जित करेगा।
हमारे यहां हिंदुत्ववादियों ने इसी धारणा से प्रेरणा लेकर हिंदू एकता के लिए धार्मिक स्थानों का चयन किया इसीलिए धार्मिक तीर्थस्थान का प्रतीक होने के कारण बन गया। हिटलर ने आर्यों की मर्यादा एवं सम्मान को धार्मिक एवं मानवीय स्तर पर अर्जित करने एवं इनके श्रेष्ठत्व की धारणा पर बल दिया। हमारे यहां हिंदुत्ववादियों ने हिंदू सम्मान एवं हिंदुओं की मर्यादा की रक्षा को मुद्दा बनाया।
हिंदुत्ववादी सांप्रदायिक ताकतों के माध्यमों का अध्ययन करें तो पाएंगे कि वे भी हिंदुओं की उपेक्षातिरस्कार एवं अपमानजनक स्थितियों का बार-बार वर्णन करते रहे हैं। वे हिंदू को भारत का आदिम निवासी मानते हैं और गैर हिंदुओं कोविशेषकर अल्पसंख्यकों को हिंदूराष्ट्र से एकात्म स्थापित करने का आह्वान करते हैं। आरएसएस के अखबार पांचजन्य के अपना ‘भारत अंक’ (21 मार्च 1993) में आरएसएस के प्रमु सिद्धांतकार के .सी.सुदर्शन का ‘अगली सदी का हिंदूराष्ट्र’ शीर्षक ले छपा है। इसमें वे लिते हैं‘मुसलमान और ईसाई भी अपने आपको इस धरती के और यहां के पूर्वजों के साथ जोड़ें। देश के सांस्कृतिक प्रभाव में अपने आपको समरस कर लें। हिदूराष्ट्र की गौरव वृद्धि में योगदान दें।’
आरएसएस एवं उसके सहयोगी संगठन दीनदयाल उपाध्याय के एकात्मवाद का बार-बार प्रचार करते रहे हैं। सुदर्शन ने अपने ले में लिखा कि ‘जहां तक व्यक्ति के स्वतंत्र अस्तित्व और अधिकार का प्रश्न हैहिंदू चिंतन नहीं मानता कि व्यक्ति का कोई सर्वतंत्र स्वतंत्र अस्तिव है।’
    उल्लेखनीय है हिटलर भी व्यक्ति के स्वतंत्र अस्तित्व को अस्वीकार करता था और दीनदयाल उपाध्याय का भी यही दृष्टिकोण था। व्यक्ति के स्वतंत्र अस्तित्व को अस्वीकार करने का अर्थ है भारतीय नवजागरण की उपलब्धियों का अस्वीकार एवं विरोध करना। भारतीय नवजागरण एवं यूरोपीय नवजागरणदोनों के प्रभाववश व्यक्ति की स्वतंत्र पहचानअधिकार एवं ज्ञान-विज्ञान की उपलब्धियां सामने आई। हिटलर ने उन सबको नष्ट किया। सांप्रदायिक ताकतें भारत में भी ऐसा करने का सपना देख रही हैं। एकात्मवाद मूलत: सांस्कृतिकजातीयभाषायी वैविध्य को अस्वीकार करता है। वह हिंदू सांप्रदायिक चेतना के साथ एक रस हो जाने का संदेश देता है।
सांप्रदायिक ताकतों की माध्यम रणनीति की धुरी है धर्म का भ्रष्टीकरण। इनकी धार्मिक धारणाओं का धर्म की बुनियादी धारणाओं से दूर-दूर तक संबंध नहीं है। फासिज्म की यह रणनीति जर्मनी में भी थी। उसने धर्म का ‘डि स्टैंडराजइजेशन’ किया था। कैनेथ बुक ने लिखाकि भ्रष्टाचार उसकी धुरी था। हिटलर मानता था कि जो सबसे अच्छी चीज है उसे भ्रष्ट कर दो तो वह सबसे घृणित कार्य भी होगा। कैनेथ बुक की राय है कि धर्म को भ्रष्ट करने वाले आज दुनिया में सबसे भयानक माने जाते हैं। वे धार्मिक सिद्धांतों के अंदर विकृतियां पैदा करके नई-नई व्याख्याओं को जन्म देते हैं।
    हिंदू धर्म का भ्रष्टीकरण सांप्रदायिक ताकतों का मूल लक्ष्य है इससे धार्मिक एवं सामाजिक परंपराओं को विद्रूपीकरण की दिशा में ले जाने में मदद मिलती है। वे हिटलर की तरह ही धर्म को जीवन में सर्वोच्च स्थान देते हैं। हिटलर लोकतंत्र विरोधी था हिंदू सांप्रदायिक ताकतें भी लोकतंत्र का विरोध करती हैं। सुदर्शन ने लिखा ‘धर्म के नियम का उल्लंघन करने से यह सामंजस्य टूटता है और अव्यवस्था फैलती है।’ वे यह भी मानते हैं कि ‘दसवीं सदी के आसपास पुन: पतन की प्रक्रिया आरंभ होती है और 15 अगस्त 1947 को यह प्रक्रिया पतन के निम्नतम बिंदु पर पहुंचती है जब वेद काल से लेकर आज तक संजोई भारत माता की मूर्ति खंडित होती है।’यानी सार्वभौम स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में भारत का उदय पतन का निम्नतम बिंदु है। वे माध्यमों और समाज में संविधान एवं उसके बुनियादी सिद्धांतों की अवमानना व्यक्त करते हैं।
सांप्रदायिक माध्यम रणनीति का एक पहलू यह भी है कि वे अपने विरोधियों के मंतव्य,दृष्टिकोण आदि को विकृत रूप में पेश करते हैं। साथ हीपत्र-पत्रिकाओं में ज्यादा से ज्यादा जगह घेरने के लिए प्रतिदिन विभिन्न संगठनों के नामों से ढेर सारी प्रेस विज्ञप्तियां देते हैं। इंटरनेट पर उनके स्वयंसेवक गंदी-गंदी टिप्पणियां लिखते हैं। सांप्रदायिक माध्यम रणनीति का एक अन्य पक्ष यह है कि वे अफवाहों एवं तथ्यहीन बातों का सघन प्रचार अभियान के तौर पर प्रयोग करते हैं और इसके लिए ‘पुनरावृत्ति की शक्ति’ का इस्तेमाल करते हैं। ‘पुनरावृत्ति‘ एवं नारेबाजी की शैली का जन सभाओं एवं माध्यमों में प्रयोग करते हैं। ‘पुनरावृत्ति की शक्ति’मूलत: विज्ञापन की पर्सुएशन क्षमता का अनुकरण है। हिटलर ने अपनी कृति मीन कॉम्फ एवं जनसभा के भाषणों में इसका प्रभावी प्रयोग किया थासाथ हीनाजी माध्यमों को पुनरावृत्ति शक्ति के प्रयोग का आदर्श नमूना माना जाता है।
हिंदू सांप्रदायिक ताकतों के द्वारा माध्यमों एवं जनसभाओं में मूलत: दो विषयों का वर्णन रहा है। प्रथममुसलमानों के बर्बर अत्याचारों का वर्णन और मुगल शासकों की असहिष्णुता का आख्यान।  दूसराहिंदू एकता।
हिंदुत्ववादी अपने नेतृत्व को ‘नार्मल’ और विपक्ष को ‘एबनार्मल’ कहते हैं। वे आर्थिक कठिनाइयों से ज्यादा महत्वपूर्ण ‘हिंदू एकता’ एवं ‘हिंदू गौरव’ को स्थान देते हैं। ‘हिंदू’ को वे रचनात्मक मानते हैं। यह भी बताते हैं कि हिंदुओं की परंपरा में रचनात्मक भूमिका रही है। मुसलमानों की विध्वसंक भूमिका रही है। हिंदू ‘सहिष्णु’ और मुसलमान ‘असहिष्णु’ हैं। हिटलर ने ‘नई जीवन शैली’ की बात की थी। हिंदू सांप्रदायिक ताकतें भी नई हिंदू जीवन पद्धति की वकालत करती हैं।
   सांप्रदायिक माध्यम रणनीति का यह मुख्य तत्व है कि समाचारउसकी संरचना एवं कथ्य की प्रस्तुति इस तरह की जाए जिससे भयअसुरक्षा और संवैधानिक अवमानना के भाव की अभिव्यक्ति हो। साथ हीपाठकों श्रोताओं को वह धार्मिक इकाई के रूप में देते हैं। इस रणनीति को पांचजन्यआर्गेनाइजर के किसी भी अंक और उनके नेताओं के मीडिया बयानों में देख सकते हैं, और जो पत्र-पत्रिकाएं इन पत्रों पर निर्भर हैं या इनका प्रभाव ग्रहण करती हैं उनमें भी यह दृष्टिकोण व्यापक रूप में प्रसारित होता रहा है।

4 comments:

  1. dhrm to thik hotaa he lekin maanne vaale agr aese hote hen to fir dhrm ki tsvir adhrmi or ljjajanak ho jaati he . akhtar khan akela kota rajsthan

    ReplyDelete
  2. @ अख्तर भाई, आपने बिलकुल सही कहा, और ऐसे से कुंठित बुद्धि के लोग धर्म के बदनाम करते हैं.

    ReplyDelete
  3. जगदीश जी बहुत अच्‍छा लिखते हैं, आपकी कोशिशें भी लाजवाब हैं, अल्‍लाह से दुआ है आपको कामयाबी मिले

    ReplyDelete
  4. शुक्रिया, आमिर भाई,

    ReplyDelete