Thursday, February 17, 2011

सभ्यताओं के संघर्ष में किसका स्वार्थ छिपा है?


सन -   २००१ में ९/११  को   ट्विन टॉवर-  वर्ल्ड  ट्रेड सेंटर अमेरिका  पर हुए   आत्मघाती आतंकी हमले में जो  २९९६  लोग मारे गए थे  वे सभी पूर्णरूपेण कामकाजी और निर्दोष मानव थे. उनमें  से  शायद    ही  कोई निजी तौर पर उन हमलावरों की कट्टरवादी सोच या उनके आतंकी संगठन से दूर का भी नाता रिश्ता रखता हो. दिवंगतों के प्रति परोक्ष रूप से इस्लामिक आतंकवाद को जिम्मेदार माना गया और  इस बहाने बिना किसी ठोस सबूत के ईराक को बर्बाद कर दिया गया, क्या अब दुनिया भर के शांतिकामी लोग संतुष्ट हैं कि ट्विन टावर   के दोषियों पर कार्यवाही की जा चुकी  है ?
क्या अब यह मान लिया जाये कि जो कुछ भी ९/११ को और ३०-१२- {सद्दाम को फांसी] को जो हुआ उसमें तादात्मयता वास्तव में पाई गई? क्या मुद्दई, मुद्दालेह, और गवाह सब इतिहास में च्न्हित किये जा चुके हैं? इन सवालों के जवाब जब तक नहीं दिए जायेंगे भावी पीढियां भी तब तलक इतिहास से सबक सीखना पसंद नहीं करेंगी.
वैसे तो यह प्राकृतिक स्थाई नियम है कि  दुनिया के हर देश में, हर समाज में, हर मजहब -कबीले में, हर पंथ में -उसे ख़त्म करने के निमित्त उसका शत्रु उसी के गर्भ से जन्म लेता है. यह सिद्धांत इतना व्यापक है कि अखिल ब्रह्मांड में कोई भी चेतन -अचेतन  पिंड या समूह इसकी मारक रेंज से बाहर नहीं है. इस थ्योरी का कब कहाँ प्रतिपादन हुआ मुझे याद नहीं किन्तु इसकी स्वयम सिद्धता पर मुझे कोई संदेह नहीं .भारत के पौराणिक आख्यान तो   अनेकों सन्दर्भों के साथ चीख-चीख कर इसकी गवाही दे ही रहे हैं; अपितु वर्तमान २१ वीं शताब्दी में व्यवहृत अनेकों घटनाएँ  भी इसे प्रमाणित करती हुई इतिहास के पन्नों में दर्ज होती जा रहीं हैं.
मार्क्स -एंगेल्स की  यह स्थापना  कि सामंतवाद के गर्भ से पूंजीवाद का जन्म होता है और यह पूंजीवाद ही सामंतशाही को खत्म करता है. इसे तो सारी दुनिया ने देखा -सुना -जाना है, इसी तरह उनकी यह स्थापना कि पूंजीवाद के गर्भ से साम्यवाद का उदय होगा जो पूंजीवाद को खा जायेगा यह  अभी कसौटी पर खरे उतरने के लिए बहरहाल तो प्रतीक्षित है किन्तु यह एक दिन अवश्य सच होकर रहेगी. अधुनातन वैज्ञानिक भौतिक अनुसंधानों की रफ्तार तेज होने, संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी के अति उन्नत होते जाने. लोकतान्त्रिक, अभिव्यक्ति सम्पन्न उदारवादी पूंजीवाद  के लचीलेपन ने उसे दीर्घायु तो बना दिया किन्तु अमरत्व पीकर तो कोई भी नहीं जन्मा.एक दिन आएगा तब ये व्यवस्था  भी नहीं  रहेगी. तब हो सकता है कि साम्यवादी व्यवस्था का स्वरूप वैसा न हो जो सोवियत संघ में था, या जो आज चीन में -क्यूबा -वियतनाम -उत्तर कोरिया में है. किन्तु वह जो भी होगी इन सबसे बेहतर और सबसे मानवीकृत ही होगी. साम्यवाद से नफरत करने वाले चाहें तो उसे कोई और नाम देकर तसल्ली कर सकते हैं.
यह सर्व विदित है कि एक बेहतर शोषण विहीन -वर्ग विहीन -जाति विहीन  समाज व्यवस्था के हेतु से दुनिया भर के मेहनतकश  निरंतर संघर्षरत हैं ,इस संघर्ष को विश्वव्यापी बनाये जाने कि जरुरत है. अभी तो सभी देशों और सभी महाद्वीपों में अलग-अलग संघर्ष और अलग-अलग उदेश्य होने से कोई दुनियावी क्रांति कि संभावना नहीं है. इस नकारात्मक अवरोधी स्थिति के लिए जो तत्व जिम्मेदार हैं वे सभ्यताओं का संघर्ष आर्थिक मंदी ‘ ‘लोकतंत्र ‘-                                 श्रीराम तिवारी

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