Friday, February 25, 2011

राह भटके योग के ब्राण्ड रामदेव



लेखक अमलेन्दु उपाध्याय राजनीतिक समीक्षक हैं। इस समय हस्तक्षेप.कॉम के संपादक

राह भटके योग के ब्राण्ड रामदेवबाबा रामदेव बहुत गुस्से में हैं, भारतीय जनता पार्टी के सहयोग से विदेश में काला धन देश में ले आयेंगे. बहरहाल बाबा कांग्रेस के बक-बक पुरुष दिग्गी राजा के एक प्रहार से ही पस्त हैं. बाबा कह रहे हैं कि उनके पास उनकी कमाई का एक-एक पाई का हिसाब है. जाहिर सी बात है बाबा जब एक दशक में साइकिल से अपने हवाई जहाज  पर आ गए तो उनके पास एक-एक पाई का हिसाब होगा ही. बाबा कोई हमारी तरह कंगले थोड़े ही न हैं कि जेब में दो रुपए हों और पता ही न चले.
बहरहाल २१अगस्त  २००९ को लिखा अपना एक पुराना लेख बाबा के श्री चरणों में सादर समर्पित कर रहा हूँ. बाबा उत्तराखंड से छपने वाले एक छोटे से साप्ताहिक पत्र के मालिक के पास परोक्ष रूप से समझौता करने गए थे कि वो उनके खिलाफ खबरें न छापे, बहाना था अखबार के एक कार्यक्रम ’टॉक ऑन टेबल‘ का. आइये देखते हैं क्या था मामला…

August 21, 2009


राह भटके योग के ब्राण्ड रामदेव



अमलेन्दु उपाध्याय -
२०१४ बहुत नजदीक है, जिसके चलते योग गुरू कहलाए जाने वाले बाबा रामदेव बहुत जल्दी में हैं। चूंकि साढे चार साल का समय बचा है और देश बहुत बडा है। इसीलिए बाबा रामदेव जल्दबाजी में आदि शंकराचार्य के सिद्धान्त ”ब्रह्म सत्यम, जगत मिथ्या“ को भारत की सदियों की गुलामी का कारण बता रहे हैं, शास्त्रों में लिखी संन्यास की परिभाषा को गलत बता रहे हैं, भ्रष्टाचारियों की जमात में लालू प्रसाद यादव का नाम लेने पर कुपित हो रहे हैं, उन्हें अपने असली नाम ’रामकृष्ण यादव‘ के नाम से पुकारे जाने पर भी आपत्ति है और वह अभिनेत्रियों को वेश्या बता रहे हैं।

बाबा रामदेव पिछली दस अगस्त को नौएडा में थे। साप्ताहिक समाचार पत्र ’दि संडे पोस्ट‘ के कार्यालय में आयोजित कार्यक्रम ’टॉक ऑन टेबल‘ में उन्होंने शिरकत की और अपने एजेन्डे पर खुलकर बोले। रौ में बोलते हुए बाबा कह गए कि ”शास्त्रों में संन्यास की परिभाषा ही गलत लिखी है।’ब्रह्म सत्यम जगत मिथ्या‘ वैसा संन्यास नहीं है।“ बाबा इतने पर ही नहीं रूके। जब ’नई दुनिया‘ के राजनीतिक संपादक विनोद अग्निहोत्री ने उनसे पूछना चाहा कि ” यह जो ’ब्रह्म सत्यम जगत मिथ्या‘ का सिद्धान्त दिया गया…“ तो उनका प्रश्न पूरा सुने बिना बात बीच में ही काट कर बाबा बोले- ”इसी ने देश का बहुत नुकसान किया है। आज भारत का जो आघ्यात्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनीतिक क्षरण हुआ है, वह इसी से हुआ है। सात्विक लोगों ने ’ब्रह्म सत्यम जगत मिथ्या‘ कहकर जैविक संसाधनों का संचय नहीं किया। अधर्म, असत्य, अन्याय, शोषण, अपराध, दुराचार, व्यभिचार का विरोध नहीं किया। हम ठीक हैं तो , बाकी चीजों से हमें क्या लेना देना। इस दर्शन ने भारत को सदियों की गुलामी की तरफ ढकेल दिया।“
जब अगले दिन एक समाचार पत्र में यह खबर छपी कि बाबा रामदेव ने आदि शंकराचार्य के सिद्धान्त को चुनौती दी, तो बखेडा खडा होने पर बाबा ने कह दिया कि उन्होंने ऐसा नहीं कहा। लेकिन ’दि संडे पोस्ट‘ ने पूरी बात अक्षरशः प्रकाशित कर दी। अब बाबा के पास कहने को क्या है?
अब बाबा से प्रश्न पूछा जा सकता है कि अगर ’ब्रह्म सत्यम जगत मिथ्या‘ सिद्धान्त गलत है और शास्त्रों में लिखी हुई संन्यास की परिभाषा गलत है तब बाबा रामदेव संन्यासियों की वर्दी भगवा कपडे पहने क्यों घूम रहे हैं? क्या बाबा को जो मान सम्मान, धन देश भर से मिल रहा है वह एक संन्यासी होने के कारण नहीं मिल रहा है? और अगर बाबा संन्यास के लिए घर-बार छोडना जरूरी नहीं मानते हैं तो उन्हें उनके असली नाम ’रामकृष्ण यादव‘ पुकारे जाने पर आपत्ति क्यों है और क्यों उन्होंने अपना घर-बार छोडकर संन्यासियों की परंपरा के अनुसार बाबा शंकरदेव से दीक्षा क्यों ली?
बाबा रामदेव योग के जरिए तनाव, ब्लड प्रेशर, डाइबिटीज, कैंसर, सबकी दवा बट रहे हैं लेकिन वह नुस्खा नहीं बता रहे हैं जिस नुस्खे से बाबा पिछले दस वर्षों में २७०० करोड रूपए के आदमी बन गए? बाबा इस सबके बीच भ्रष्टाचारियों के खिलाफ आंदोलन करने की बात करते हैं लेकिन लालू प्रसाद यादव उनके परम शिष्यों में से एक हैं और बाबा इस बात पर बिफर पडते हैं जब टॉक ऑन टेबल में कोई उनसे लालू के विषय में पूछ लेता है। याद है न कि बाबा ने चुनाव के दौरान भाजपा के विदेशों में जमा धन वापिस लाने के नारे में ताल से ताल मिलाई थी। लेकिन आश्चर्य है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लडने का दावा करने वाले बाबा की दिव्य फार्मेसी के मजदूर न्यूनतम मजदूरी दिलाए जाने की माँग करते हैं। हां बाबा को इस बात का श्रेय दिया जा सकता है कि जिस तेजी से कई बडी बहुराष्ट्रीय कम्पनियां अपने प्रोडक्ट्स को लोकप्रिय नहीं बना पाईं बाबा ने बहुत कम समय में योग की जबर्दस्त मार्केटिंग की और पिछले एक दशक में योग जबर्दस्त प्रोडक्ट बन कर उभरा है। बाबा संन्यासी भी हैं, योगी भी हैं, आयुर्वेद के डॉक्टर भी हैं और जिसे कबीर ने ’माया महाठगिनी‘ कहा था उस माया के बडे साधक भी हैं और उनका संघर्ष भी भ्रष्टाचार के खिलाफ है। है न हैरानी वाली बात! फिर भी बाबा का योग धर्मशास्त्रों में बताया गया योग नहीं है। बाबा स्वयं कहते हैं कि ”योग को धर्म सम्प्रदायों, पूजा पद्धतियों से जोडने का कोई मतलब नहीं है।….ओम कोई मजहबी शब्द नहीं है।“ बाबा सदियों से तपस्या करते आ रहे भारतीय मनीषियों की तपस्या पर एक झटके में पानी फेर देते हैं
इसी काय्रक्रम में बाबा रामदेव ने सारे पढे लिखे लोगों को अपसंस्कृति वाला घोषित कर दिया। बाबा ने कहा कि- ” आप सुबह से शाम तक जो भी देखते हो उसको अपसंस्कृति के तौर पर नहीं ले रहे हो। उसे सभ्यता के तौर पर ले रहे हो। वे तो पढे लिखे लोग हैं, वे तो ऐसा करेंगे। इसे ही करने के लिए तो वे पैदा हुए हैं। १७६० में इस नशा का व्यापार अंग्रेजों ने शुरू किया था। उससे पहले भारत बहुत अच्छा था। १७६० में इसको वैधानिकता दी गई नशा और वासना को। अंतर क्या है पैसे के लिए एक कोठे में बैठकर अपने शरीर को बेचती है। एक सेट और पर्दे पर बैठकर शील और शरीर को। अंतर क्या है? नाम का ही तो अंतर है। एक को वेश्या कहते हैं दूसरी को अभिनेत्री। अंतर क्या है? खाली नाम का अंतर है।“
हैं न बाबा महान जो सारे पढे लिखे लोगों को बता रहे हैं कि वे तो पैदा ही अपसंस्कृति फैलाने के लिए हुए हैं और अभिनेत्रियां वेश्या हैं। बाबा का अभिनेत्रियों को वेश्या कहना नारी जाति का अपमान है। बाबा मद में अन्धे होकर अपना विवेक खो बैठे हैं और भूल जा रहे हैं कि वह क्या क्या बक रहे हैं। अगर अभिनेत्रियां वेश्या हैं तो पैसे के लिए अध्यात्म, धर्म, योग और लोगों की भावनाओं को बेचने वाला क्या है? आप तय करें।

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