Wednesday, February 16, 2011

भारत में भी मिस्र

प्रीतीश नंदी


मिस्र में प्रदर्शनक्या आपको कभी यह महसूस नहीं हुआ कि भारत दुनिया के सर्वाधिक अनदेखे लोगों का देश है? ये अनदेखे-अदृश्य लोग लाखों-करोड़ों की तादाद में हैं, इसके बावजूद उन पर कोई गौर नहीं करता. हम सभी उन्हें नजरअंदाज कर देते हैं, जैसे कि उनका कोई अस्तित्व ही न हो. हां, उनके पास मतदाता परिचय पत्र हैं. उनमें से कुछ के पास पैन कार्ड भी हो सकते हैं. नंदन नीलेकणी जल्द ही उन्हें उनका विशिष्ट पहचान क्रमांक भी दे देंगे, ठीक उसी तरह जैसे टेलीकॉम कंपनियों ने उन्हें सेलफोन मुहैया करा दिए हैं. उनके नाम पर बैंकों में खाते हैं और उन्हें एटीएम कार्ड भी दिए गए हैं. इसके बावजूद वे हमारे गणतंत्र के गुमशुदा लोगों में से हैं.

इनमें से अधिकांश युवा और बेरोजगार हैं. कुछ बुढ़े हैं, जो किसी रोजगार के योग्य नहीं. वे सभी उस भारत के हिस्से हैं, जिसकी उपेक्षा कर दी गई है. नहीं, उन्होंने अपनी इस स्थिति का चुनाव स्वयं नहीं किया है. यह स्थिति एक धूर्त राजनीतिक तंत्र द्वारा निर्मित की गई है, जो एक ऐसा वोट बैंक पाना चाहता है, जिसका वह दोहन कर सके. इसीलिए आजादी के छह दशक बाद भी वे नामहीन और शक्लहीन हैं. वे भारत की उस मुख्यधारा के अंग नहीं हैं, जो तालियों की गड़गड़ाहट में डूबा हुआ है. वे तकनीकी क्रांति का भी हिस्सा नहीं हैं. मोबाइल फोन कभी भी बिजली या पानी का विकल्प नहीं हो सकते. इन लोगों ने कभी आर्थिक सुधारों के बारे में सुना भी न हो, क्योंकि उससे उन्हें कोई लाभ नहीं हुआ है. उन्हें तो यह भी नहीं मालूम कि वे जिस भारत देश में रह रहे हैं, वह दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से है.

क्या वे जानते हैं कि राजा ने जनता के पैसों के एक लाख 70 हजार करोड़ रुपयों का गोलमाल किया है? वे तो यह भी नहीं जानते एक करोड़ रुपयों को गिना कैसे जाता है? उन्हें कॉमनवेल्थ गेम्स के बारे में कुछ नहीं पता. न ही वे आदर्श सोसायटी घोटाले के बारे में जानते हैं. लेकिन वे यह जरूर जानते हैं कि नेताओं पर भरोसा नहीं किया जा सकता, अफसर उनकी मदद नहीं करने वाले और न्याय पाने की उनकी हैसियत नहीं. 

वे बिना किसी उम्मीद के अपना जीवन बिताते हैं. वास्तव में उन्हें इससे भी फर्क नहीं पड़ता कि कलमाडी को जेल भेजा गया या नहीं? उन्हें फिक्र है अपने रोजगार, सार्वजनिक टॉयलेट, अस्पताल के बिस्तरों, चलने के लिये सड़कों, बच्चों के लिये पार्को और जहां बिना अपमान के रिपोर्ट लिखा सकें, ऐसे पुलिस स्टेशनों की. वे स्वाभिमानी भारतीय हैं. वे अपना जीवन सम्मान के साथ बिताना चाहते हैं. शायद उन्हें यह भी नहीं पता हो कि भारत का राष्ट्रपति कौन है. शायद वे तीन कैबिनेट मंत्रियों के नाम भी नहीं गिना पाएंगे. उन्हें पता है कि कोई गांधी इस देश को चला रहा है. आप उनसे पूछें कि कौन सा गांधी तो उनकी आवाज लटपटा जायेगी.

इनमें से अधिकांश गरीब-गुरबे हैं. इतने गरीब कि यदि आपको उनके बारे में पता चले तो आप असहज हो जाएंगे. ये लोग वे आंकड़े हैं, जिन्हें हम अखबारों में पढ़ते हैं. वे उन 65 फीसदी में से हैं, जो रात को भूखे सोते हैं, या वे उन 68 फीसदी में से हैं, जो पढ़ या लिख नहीं सकते, या वे उन 74 फीसदी लोगों का ही एक हिस्सा हैं, जिन्हें चिकित्सा सुविधाएं मुहैया नहीं हैं. हम उन्हें वास्तविक लोग नहीं मानते. इसीलिए जब वे मदद के लिए हमारी कार का शीशा खटखटाते हैं तो हम उन पर ध्यान नहीं देते. हमारा ड्राइवर उन्हें दूर भगा देता है. पुलिस उन्हें उठा ले जाती है और शहर से बाहर फेंक आती है. हमें उनसे दिक्कत होती है. हम चाहते हैं कि वे हमारी नजरों से ही ओझल हो जाएं.

हम इन लोगों को नजरअंदाज करना चाहते हैं. हमें लगता है, टैक्स चुका देने भर से हमारी तमाम जिम्मेदारियां पूरी हो जाती हैं और टैक्स की रकम से उनके लिए आकर्षक योजनाएं बनाना सरकार का काम है. लेकिन क्या हम नहीं जानते कि हमारे यहां योजनाएं अमल में नहीं आतीं? इन लोगों तक पहुंचने से पहले ही मदद की राशि उड़नछू हो जाती है. लेकिन सबसे बुरी बात यह है कि कोई इसकी परवाह तक नहीं करता. शायद इसीलिए भ्रष्टाचार करना इतना आसान हो गया है, क्योंकि आज किसी के पास इतना वक्त ही नहीं है कि वह किसी गरीब देहाती की इस बात को सुने कि जिन रोजगार और पैसों का वायदा किया गया था, वो उन तक नहीं पहुंची. 

शहर के गरीबों की स्थिति तो इससे भी बदतर है. कोई उनकी मदद नहीं करना चाहता, क्योंकि उन पर अवांछित प्रवासी होने का ठप्पा लगा दिया गया है. हां, वे प्रवासी हैं, लेकिन वे अनजानी दुनिया से आए लोग नहीं हैं. उनकी जमीनें उनसे छिन चुकी हैं और गरीबी ने उन्हें शहरों की खाक छानने को मजबूर कर दिया है. 

ये वे लोग हैं, जिन्हें हम दुनिया की नजरों से छुपा देना चाहते हैं और अपनी निगाहों से भी. क्योंकि दुनिया के सभी बड़े मुल्कों की ही तरह हमने भी अपने गरीब लोगों के लिए शर्मिदा होना सीख लिया है. वे हमें हमारी नाकामियों की याद दिलाते हैं. 

हम दुनिया से अपने महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष कार्यक्रमों, एटमी विशेषज्ञताओं, रक्षा की क्षमताओं, आर्थिक ताकत और आईटी क्षेत्र की उपलब्धियों के बारे में बात करना चाहते हैं. हम गर्व से यह बताना चाहते हैं कि दुनिया के दस सबसे अमीर लोगों में से चार भारतीय हैं और इसमें हमारे राजनेताओं का नाम नहीं शामिल है, जिनकी बेनामी संपत्ति अकूत है.

लेकिन भारत जब तक अपने इन अनदेखे लोगों की उपेक्षा करता रहेगा, तब तक वह सही मायनों में आगे नहीं बढ़ सकता. क्योंकि यदि हम इसी तरह उनकी उपेक्षा करते रहे तो एक दिन वे सड़कों पर उतर आएंगे और मिस्रवासियों या टयूनिशियाइयों या लीबियाइयों की ही तरह विरोध प्रदर्शन करने लगेंगे. 

सरकार की उपेक्षा और नेताओं के भ्रष्टाचार को सहन करने की एक सीमा होती है. एक बार पानी नाक के ऊपर आ गया तो चीजें अस्त-व्यस्त होनी शुरू हो जाएंगी. महात्मा गांधी ने ठीक ही कहा था: देश के भविष्य का निर्धारण वही व्यक्ति करता है, जो समाज की आखरी पायदान पर खड़ा है. लेकिन जिस तरह से हम आगे बढ़ रहे हैं, वह दिन दूर नहीं, जब हम गांधीजी की शिक्षा को भी उसी तरह नजरअंदाज करना शुरू कर देंगे, जिस तरह हम अपने इन देशवासियों को करते हैं.

1 comment:

  1. बहुत ही बेहतरीन लेख सत्य लेकिन कड़वा ऐसे ही लिखते रहिये , लोगों में जागरूकता बढ़ेगी

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