दांतेवाड़ा के तीन गांवों तीमापुरम, मोरपल्ली और ताड़मेटला में घुसकर 327 पुलिस के जवानों ने 11 से 16 मार्च के बीच जम कर तांडव मचाते हुए 300 घरों को फूंक दिया। महिलाओं के साथ बड़े पैमाने पर बदसलूकी की और कम से कम तीन लोगों को मौत के घाट उतार दिया। सरकार चुप रही कुछ इस तरह की किसी को कानों कान खबर भी नहीं लगने दी। लेकिन 23मार्च को हिंदू अखबार के माध्यम से यह खबर दुनिया को लग गयी।
सरकार में थोड़ी बेचैनी दिखी लेकिन तब भी वह चुप रही। शायद यह सोचकर कि मामला कुछ दिनों में खुद ठंडा हो जाएगा। लेकिन वहां स्वामी अग्निवेश पहुंच गए। और जब वे राहत सामग्री लेकर मोरपल्ली गांव की ओर जा रहे थे तो रास्ते में उन पर प्राणघातक हमला कर दिया गया। स्वामी अग्निवेश के कथनानुसार हमला करने वाले हठ्ठे कठ्ठे गैर आदिवासी लोग थे और वे गालियां देते कह रहे थे कि जब माओवादियों ने आदिवासियों को जिंदा जलाया था तब ये लोग कहां थे,जब चिंतलनार में 76 जवानों की हत्या माओवादियों द्वारा की गयी थी तब ये लोग कहां थे।
आश्चर्य है यही बातें स्वामी अग्निवेश को उन गांवों में निकलने से पहले छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमण सिंह ने भी कही थी साथ ही चेताया था कि वे वहां नहीं जाएं क्योंकि लोग गुस्से में हैं। क्या इन बातों से रमण सिंह की यह नाराजगी जाहिर नहीं होती है कि माओवादियों के जुल्म के समय तो आप लोग खामोश रहते हैं और जब पुलिस कुछ घरों को जलाती है या महिलाओं के साथ बलात्कार वगैरह कुछ करती है या कुछ लोगों की महज हत्या कर देती है तो आप लोग राहत सामग्री लिए दौड़े चले आते हैं।
यानी कि क्या वे यह नहीं कहना चाह रहे हैं कि जिस तरह माओवादियों द्वारा किये जाने वाले हमले के समय चुप रहते हैं उसी तरह पुलिस ज्यादतियों के समय भी आप चुप रहें। क्या इस तरह वे यह स्वीकार नहीं कर रहे कि इन तीन गांवों को नेस्तनाबूद करने का काम उनकी पुलिस ने ही किया है। ज्ञात हो कि हमला करने वालों ने अंडे भी फेंके थे।
जरा सोचिये कि जिन आदिवासियों को दो समय पेटभर भात भी नसीब नहीं होता है, वे अंडे कहां से लाए फेंकने के लिए। जाहिर है ये अंडे प्रशासन द्वारा गुंडों को मुहैया कराये गए होंगे। अंडे फेंकने वालों में क्या वही गुंडे नहीं थे जो बाद में घातक हमले पर उतर आए थे। वे सब क्या सलवा जुड़ूम के कैंपों में तैयार किये गए गुंडे नहीं थे?आखिर यूं ही नहीं दांतेवाड़ा के कलक्टर और एसपी को हटाया नहीं गया है।
इन सारी घटनाओं पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग केंद्रिय गृह सचिव, छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव और वहां के पुलिस महानिदेशक को नोटिस भेज पूरी घटना का ब्योरा मांग रहा है। स्वामी अग्निवेश ने सर्वोच्च न्यायालय के किसी सेवानिवृत न्यायाधीश से पूरे मामले की न्यायिक जांच कराये जाने की मांग कर रहे हैं। राष्ट्रपति तक को उन्होंने इस बाबत खत लिख डाला है। जहिर है छत्तीसगढ़ सरकार इस मामले में खुद को फंसा हुआ महसूस कर रही है।
वहां के राज्य गृह मंत्री ननकी राम कंवर सदन में बयान दे रहे हैं कि माओवादियों ने इस कांड को अंजाम दिया है। उन्होंने ही आग लगायी उन्होंने ही तीन लोगों की हत्या की। उनके बयान पर सदन में हंगामा मच जाता है। सभी लोग इस कांड के लिए मुख्यमंत्री को जवाबदेह मान रहे हैं। गृहमंत्री के बयान पर कोई यकीन नहीं कर रहा। फिर भी यह समझना किसी के लिए मुश्किल नहीं रहा कि जब गृहमंत्री ऐसा कह रहे हैं तो छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक मानवाधिकार को क्या रिपोर्ट देंगे। सच पूछा जाए तो न्यायिक जांच की मांग भी समय बर्बाद करने जैसा है।
जब परिस्थितिजन्य साक्ष्य की मजबूत कड़ी इतने पुख्ता ढंग से अपराधकर्मियों की ओर इशारा कर रही हो तो फिर न्यायिक जांच की जरूरत क्या है। न्यायिक जांच अगर की ही जानी है तो इस बात की होनी चाहिए कि उन ग्रामीणों का कितना नुकसान हुआ और यह कि जब उनके अनाज जला दिये गए हों और उनके पास खाने को कुछ भी नहीं हो तो ऐसी परिस्थिति में राहत सामग्री लेकर जा रहे स्वामी अग्निवेश को रोककर उन्हें भूखे मर जाने को छोड़ देने के पीछे सरकार के जो हिंसक इरादे काम कर रहे हैं क्या उसके बाद भी इस सरकार को संवैधानिक रूप से बने रहने का हक है।
अब तो वहां से भूखों मरने की खबर भी आने लगी है। और इस खबर पर जब सर्वोच्च न्यायालय ने अपने दो आयुक्तों एनसी सक्सेना और हर्ष मंदर को कहा कि वे वहां जाएं और स्थिति का जायजा लेकर कोर्ट को रिपोर्ट सौंपें तो अदालत में उपस्थित छत्तीसगढ़ के वकील उछल पड़े, उन्होंने कहा कि वहां भूख से कोई मौत नहीं हुई है। अखबारों में जो खबरें आ रही है वे गलत हैं और उस पर कोर्ट को संज्ञान लेने की जरूरत नहीं है।
गनीमत कि कोर्ट ने उनकी नहीं सुनी लेकिन सरकार की मंशा देखिए वह सर्वोच्च न्यायालय को रोकना चाहती है वहां किसी को भेजने से, घटनास्थल पर जाने से वह पत्रकारों को रोकती है, सामाजिक कार्यकर्ताओं को पीटती है और सदन में झूठा बयान देती है,गरीब आदिवासी की जमीन हड़पने के लिए इस तरह खून खराबे पर उतर जाती है क्या ऐसी सरकार को बने रहने देना चाहिए। वे विकास दर दिखाते हैं लेकिन इसके पीछे जो हत्याएं हो रही है उसका कौन हिसाब देगा।
गृहमंत्री ननकी राम सीडी लेकर घूम रहे हैं जिसमें अग्निवेश को लाल सलाम का नारा लगाते दिखाया गया है और कहते फिर रहे हैं कि देखिये यह आदमी तो माओवादी निकला,इसे हम लोग स्वामी समझ रहे थे। वह कुछ इस तरह ये बातें कह रहे हैं मानो माओवादी होना काफी है मारे जाने के लिए। इस पर शोर क्यों। यह तो वैदिक हिंसा की तरह है जो हिंसा नहीं होती। कार्पोरेट घरानों के चाटुकारों ने सत्ता की बागडोर अपने होथों में ले ली है अगर उनसे जल्द ही बागडोर नहीं छीनी गयी तो समझिये कि आगे आने वाले दिन और भी भयानक होंगे और भी प्राण सुखाने वाले।
विधि मामलों के टिप्पणीकार और लेखक.कविता को जनता के बीच ले जाने के प्रबल समर्थक और दिल्ली में शुरू हुई कविता यात्रा के संयोजक.उनसे verma.ranjeet@gmail.comपर संपर्क किया जा सकता है
दरअसल, स्वामी अग्निवेश ही नहीं, देश की राजधानी में बैठकर सामाजिक सक्रियता दिखाने वाले बहुत से सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ दिक्कत यही है कि उन्होंने सामाजिक आन्दोलनों को अपने लिए यशप्राप्ति की सीढ़ी बना लिया है। अपने आन्दोलनों के लिए उन्हें दूरदराज तक के इलाकों में साथियों की जरूरत पड़ती है, लेकिन जब काम निकल जाता है तो इन साथियों को आसानी से भुला दिया जाता है। हमारे ऐसे सामाजिक कायकर्ता अपने व्यवहार में उन राजनेताओं से भिन्न नहीं हैं जो चुनाव जीतने के बाद मतदाताओं को भुला देते हैं।
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