Monday, April 11, 2011

क्यों बनायेंगे अन्ना हजारे लोकपाल


लोकपाल बिल में वे  सुझाव शामिल करने  चाहिये जो अन्ना हजारे एवं अन्य की ओर रखे गए हैं, लेकिन निर्वाचित प्रतिनिधि कानून बनाने से पहले  समाज के उन लोगों से पूछे,  जिन्हें समाज ने कभी नहीं चुना, यह कैसी उटपटांग   मांग है...

इस बात में कोई शक नहीं है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई जानी चाहिये.  इस मद्देनजर  समाजसेवी अन्ना हजारे और  उनके साथियों की ओर से लोकपाल बिल की कमियों के बारे में कही गयी बातें पूरी तरह से न्यायोचित भी हैं, जिनका हर भारतवासी को समर्थन करना चाहिये.


महाराष्ट्र नवनिर्माण  सेना प्रमुख राज ठाकरे और अन्ना
 बावजूद इसके किसी भी दृष्टि से यह न्यायोचित नहीं है कि-‘सरकार अकेले लोकपाल बिल का मसौदा तैयार करती है तो यह लोकशाही नहीं,निरंकुशता है’. ऐसा कहकर तो हजारे एवं उनके साथी सरकार की सम्प्रभु शक्ति को ही चुनौती दे रहे हैं. 

हम सभी जानते हैं कि भारत में लोकशाही है और संसद लोकशाही का सर्वोच्च मन्दिर है. इस मन्दिर में जिन्हें भेजा जाता है,वे देश की सम्पूर्ण जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं. निर्वाचित सांसदों द्वारा ही संवैधानिक तरीके से सरकार चुनी जाती है. ऐसे में सरकार के निर्णय को ‘निरंकुश’ या ‘अलोकतान्त्रिक’ कहना असंवैधानिक है.

लोकपाल बिल के बहाने लोकतन्त्र एवं संसद को चुनौती देना और गॉंधीवाद का सहारा लेना-नाटकीयता के सिवा कुछ भी नहीं है. यह संविधान का ज्ञान नहीं रखने वाले देश के करोड़ों लोगों की भावनाओं के साथ खुला खिलवाड़ है. यदि सरकार इस प्रकार की प्रवृत्तियों के समक्ष झुक गयी तो आगे चलकर किसी भी बिल को सरकार द्वारा संसद से पारित नहीं करवाया जा सकेगा.

परोक्ष रूप से यह मांग भी की जा रही है कि लोकपाल बिल बनाने में अन्ना हजारे और विदेशों द्वारा सम्मानित लोगों की हिस्सेदारी और भागीदारी होनी चाहिये. आखिर क्यों हो इनकी भागीदारी ? हमें अपने निर्वाचित प्रतिनिधियों पर विश्‍वास क्यों नहीं है. यदि विश्‍वास नहीं है तो हमने उन्हें चुना ही क्यों? हजारे की यह जिद उचित नहीं कही जा सकती.

यदि सरकार एक बार ऐसे लोगों के आगे झुक गयी तो सरकार को हर कदम पर झुकना होगा. कल को कोई दूसरा अन्ना हजारे जन्तर-मन्तर पर जाकर अनशन करने बैठ जायेगा और कहेगा कि-इस देश का धर्म हिन्दु धर्म होना चाहिये,कोई दूसरा कहेगा कि इस देश से मुसलमानों को बाहर निकालना चाहिये, कोई स्त्री स्वतन्त्रता का विरोधी मनुवादी कहेगा कि महिला आरक्षण बिल को वापस लिया जावे और इस देश में स्त्रियों को केवल चूल्हा चौका ही करना चाहिये,इसी प्रकार से समानता का तार्किक विश्‍लेषण करने वाला कोई अन्य यह मांग करेगा कि सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों का आरक्षण समाप्त कर दिया जाना चाहिये. जाहिर है ऐसी सैकड़ों प्रकार की मांग उठाई जा सकती है जिससे आखिरकार अराजकता ही फैलेगी.

इसलिए सरकार को लोकपाल बिल में वे सभी बातें शामिल करनी चाहिये जो हजारे एवं अन्य लोगों की ओर से प्रस्तुत की जा रही है. लेकिन इस प्रकार की मांग ठीक नहीं है कि निर्वाचित प्रतिनिधि कानून बनाने से पूर्व समाज के उन लोगों से पूछें, जिन्हें समाज ने कभी नहीं चुना. यह संविधान और लोकतन्त्र का खुला अपमान है और हमेशा-हमेशा के लिए  संसद की सर्वोच्चता समाप्त करना है.


(जयपुर से प्रकाशित हिन्दी पाक्षिक समाचार-पत्र 'प्रेसपालिका' के सम्पादक. समाज एवं प्रशासन में व्याप्त नाइंसाफी,गैर-बराबरी के विरुद्ध 1993 से सेवारत.उनसे पर  dr.purushottammeena@yahoo.in संपर्क  किया  जा सकता है.)  

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