अच्छा खाना, उचित स्वास्थ्य
सेवा और ढंग की शिक्षा- इस महंगाई के समय में एक शख्स के लिए ये सब पाने के लिए 25 रुपए ही काफी हैं। आपको यह अविश्वसनीय लग सकता है, लेकिन योजना आयोग को ऐसा नहीं लगता।
मंगलवार को आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा
दायर किया है। इसके मुताबिक, गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) का दर्जा पाने के लिए एकमात्र शर्त यह है कि एक परिवार की न्यूनतम आय 125 रुपए रोजाना हो। आमतौर पर एक परिवार में औसतन पांच लोग माने जाते हैं। इस तरह प्रति
व्यक्ति रोजाना आय मात्र 25 रुपए।
गौरतलब है कि अधिकतर सरकारी योजनाओं का लाभ केवल
गरीबी रेखा से नीचे के लोग ही उठा सकते हैं। आयोग ने यह हलफनामा अदालत के कई बार कहने
के बाद दायर किया है। आयोग के मुताबिक, प्रधानमंत्री कार्यालय भी इस
हलफनामे पर विचार कर चुका है। हलफनामा सुरेश तेंडुलकर समिति की रिपोर्ट पर आधारित है।
इसमें कहा गया है, ‘प्रस्तावित गरीबी रेखा भोजन, शिक्षा और स्वास्थ्य पर प्रति व्यक्ति खर्च के वास्तविक आकलन पर जीवनयापन के न्यूनतम
संभव स्तर पर आधारित है।’
यूपीए ने ‘आमआदमी’ के प्रति अपनी चिंता कई बार जाहिर की है और 2004 व 2009 में इसे अपना चुनावी एजेंडा भी बनाया था। लेकिन इस हलफनामे से साफ है कि देश में
गरीबी रेखा केवल अत्यंत गरीबों और पिछड़ों के लिए ही रह जाएगी। इस समय जब सब्जी की
कीमतें आसमान पर हैं, तेल कंपनियां आए दिन पेट्रो उत्पाद महंगे कर रही
हैं और एलपीजी सिलेंडर से सब्सिडी खत्म करने की बात चल रही है, तब यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि सरकार बीपीएल दर्जा पाने के लिए लोगों को भूखे
मरते हुए ही देखना चाहती है।
सुप्रीम कोर्ट की ओर से नियुक्त खाद्य आयुक्त
एनसी सक्सेना ने इस हलफनामे पर कड़ी प्रतिक्रिया जताते हुए कहा कि यह असंवेदनशील है।
उन्होंने कहा कि यह पैमाना तो उन परिवारों के लिए सही है जो भुखमरी के कगार पर हैं, न कि गरीबी के। उन्होंने कहा कि अगर आयोग का बस चले तो देश के अधिकतर गरीबों की
कई सरकारी कल्याणकारी योजनाओं से हाथ धोना पड़ेगा।
उन्होंने कहा,‘ देश में 80 फीसदी से ज्यादा लोग 80 रुपए रोजाना से कम पर जीते हैं। आयोग ने इस बात को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया
है। नतीजतन हमारे पास एक खराब तरीके से लिखा गया हलफनामा है।’
सक्सेना के सहकर्मी बृज पटनायक ने भी इस हलफनामे
पर कड़ा प्रहार किया। उन्होंने कहा, ‘यह सरकार और आयोग
का नैतिक दिवालियापन दिखाता है। वे गरीबों के बारे में नहीं सोचते, यह बेहद असंवेदनशील है।’ उन्होंने कहा,‘सांसदों के लिए कैंटीन में सब्सिडी वाला भोजन है लेकिन जब गरीबों की बात आती है
तो सरकार न्यूनतम सुविधाएं भी कम से कम लोगों तक सीमित रखना चाहती है।’
सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी इस मुद्दे पर सरकार
की आलोचना की है। उनके मुताबिक, उचित स्वास्थ्य सेवा तो भूल जाइए आजकल तो एक रुपए
में एस्प्रिन की गोली तक नहीं मिलती
हलफनामे की प्रमुख बातें
>हर महीने शहरी इलाके में 965 रुपए और ग्रामीण इलाके में 781 रुपए खर्च करनेवाला गरीब नहीं। शहरों में रोज 32 रुपए और गांव में रोज 26 रुपए से ज्यादा खर्च करने वाला केंद्र और राज्य
सरकार की गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों के लिए कल्याण योजनाओं का लाभ नहीं उठा सकता। >हर रोज अनाज पर 5.5 रुपए का खर्च व्यक्ति को सेहतमंद रखने के लिए काफी। इस तरह रोज दाल पर 1.02 रुपए, दूध पर 2.33 रुपए, सब्जियों पर 1.95 रुपए और खाद्य तेल पर 1.55 रुपए का खर्च करने वाला गरीबी रेखा के नीचे नहीं।
>दवाओं और स्वास्थ्य पर हर महीने 39.70 रुपए का खर्च काफी।
शिक्षा पर 99 पैसा रोज यानी 29.60 रुपए प्रति माह (शहरों में) खर्च करने वाला गरीब नहीं।
साफ है कि सरकार इस आकलन से गरीबी रेखा के नीचे
रहने वालों की संख्या अवास्तविक रूप से कम करना चाहती है, ताकि गरीबों पर सरकारी खर्च कम किया जा सके।
अरुणा राय,सदस्य्र,राष्ट्रीय सलाहकार परिषद
पत्रकार-अख्तर खान "अकेला"
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