विधानसभा चुनाव से ठीक पहले उप्र में अल्पसंख्यकों
के आरक्षण का मुद्दा उठ गया है। मुख्यमंत्री मायावती ने अल्पसंख्यकों और विशेषकर
मुसलमानों को उनकी आबादी के अनुपात में आरक्षण की वकालत की है।
उन्होंने इस संबंध में शनिवार को प्रधानमंत्री
को पत्र लिखा है। पत्र में मुख्यमंत्री ने कहा है, मुसलमानों को आबादी के अनुपात में आरक्षण देने के लिए अगर संविधान में संशोधन की
जरूरत पड़ती है तो संशोधन किया जाए। उनकी पार्टी समर्थन करेगी।
सरकारी प्रवक्ता के अनुसार मुख्यमंत्री ने पत्र
में लिखा है,
‘मुस्लिम समुदाय की स्थिति में यदि परिवर्तन लाना
है तो उन्हें शिक्षा, सेवायोजन तथा जीवन के अन्य सभी क्षेत्रों में
आगे बढ़ने के लिए अधिक अवसर उपलब्ध कराने की आवश्यकता है। भारतीय संविधान में सभी धर्मो
के लोगों के लिए जीवन में आगे बढ़ने के लिए अवसरों की नीव रखी गयी है, लेकिन देश के स्वतंत्र होने के 64 वर्षों के बाद भी मुस्लिम समुदाय जिसकी आबादी
बहुत अधिक है, अभी भी पिछड़ा हुआ है। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट
में भी इसका उल्लेख किया गया है।'
अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए सच्चर कमेटी द्वारा
उनके उत्थान के कई सुझाव दिए गए, जिनमें शिक्षा के अवसरों को बढ़ावा देना, आर्थिक कार्यकलापों और रोजगार में समुचित हिस्सेदारी, अल्पसंख्यक समुदाय के व्यक्तियों के जीवन स्तर की दशा में सुधार करना तथा साम्प्रदायिक
एवं हिंसा पर नियंत्रण एवं रोकथाम करना शामिल है।’
नोट: विपक्ष की प्रतिक्रिया ।
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मुख्यमंत्री मायावती बसपा की डूबती नाव को बचाने
के घटिया प्रयास कर रही है। मुस्लिम आरक्षण को लेकर प्रधानमंत्री को पत्र लिखते समय
उन्हें बाबा साहब अम्बेडकर और कांशीराम की भावनाओं का ध्यान नहीं रखा। धार्मिक आधार
पर आरक्षण देने से देश के एक और विभाजन का खतरा बढ़ेगा। अलगाववादी तत्वों को ताकत मिलेगी।
सूर्यप्रताप शाही
प्रदेश अध्यक्ष भाजपा
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विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही बसपा प्रमुख मायावती
को मुस्लिमों की याद आना चुनावी ढ़ोंग से अलहदा कुछ नहीं। उलेमा पर लाठी बरसाने वाली
बसपा को यह भी जवाब देना होगा कि साढ़े चार वर्ष से अधिक शासन में मुस्लिमों का कितना
भला किया? वक्फ संपत्तियों पर कितने कब्जे कराए? कितने मुस्लिमों को नौकरी दी? मुस्लिम संस्थाओं की कितनी और किस स्तर पर मदद की गई?
राजेंद्र चौधरी
प्रवक्ता सपा
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