निवेदन
यह आलेख आजकल नरेन्द्र मोदी नामक व्यक्ति के पक्ष में किए जा रहे कुप्रचार का उत्तर है. यहाँ प्रस्तुत सभी फोटो विश्वस्त सूत्रों से प्राप्त किए गए हैं. ये फोटो हिंदुत्व के ठेकेदारों द्वारा गुजरात में अहिंदू लोगों पर किए गए संगठित और कातिलाना हमलों के साक्षी है. जिन्हें मारा गया उनका गोधरा काण्ड से कोई सम्बन्ध नहीं था. यह नीच हमला गोधरा काण्ड की आड़ लेकर अहिंदू लोगों को सदा के लिए नष्ट कर देने की साजिश साबित हो चुका है.
'अपनी औकात पर पहुंचा हिंदुत्व' नामक प्रस्तुत आलेख 'हंस' के जून, 2002 अंक में प्रकाशित हुआ था.
लेखक मानता है कि यह आलेख हिन्दुओं को बहुत बुरा लगा था.
प्रस्तुत लेख दरअसल हिन्दू या मुसलमान नामक भीड़परस्त अहमकों को खुश करने के लिए लिखा भी नहीं गया था. मेरे ऐसे लेखों पर अक्सर मुक़दमे चले हैं, और आठ-आठ साल के बाद सर्वोच्च न्यायालय की ही कृपा से मैं जेल जाने से वंचित रह गया हूँ. प्रस्तुत लेख के छपने पर इस्लाम के ठेकेदार तालिबान जैसे खौलते खून से संपन्न हिन्दुत्त्व के ठेकेदारों ने मुझे मारने के लिए बाकायदा मुझ पर हमला किया था. तब मुझे लगा था कि मैं वाकई अपना सच लिख रहा हूँ, वानर-बुद्धियों का हनुमान चालीसा नहीं बांच रहा हूँ, और ये हमले मेरा वास्तविक पुरस्कार हैं.
लेखक का मानना है कि इन अहमकों के कारण दंगों की स्थिति आते ही हर कहीं सबसे ज्यादा कहर औरत और निरपराध लोगों पर ढाया जाता है, क्योंकि संगठित धर्म में पलने वाले कायर और घरघुसड़ जाहिलों को वही आसानी से हाथ लगते हैं.
मुझे किसी को सुधारना नहीं है, क्योंकि मेरी मान्यता है कि हिन्दू या मुसलमान नामक बीमारियों से मुक्त होने के लिए हर व्यक्ति को सिर्फ और सिर्फ खुद ईमानदारी से कोशिश करनी होगी. बहुत थोड़े से लोग हैं जो इंसान होकर सोच-समझ सकते हैं. बाकियों को अपनी-अपनी भीड़ में रहते भाड़ में जाना है और जाना चाहिए, चाहे वे अपने वोटों से कितने भी भेड़िए-सियार पैदा करते हों. इन मूर्खों को सदा अपने-अपने गिरोह के पक्ष में ज़िन्दगी बर्बाद करनी ही है. करें.
इसलिए मैं बड़े आराम से 9 साल पहले के इस लेख को सिर्फ इस ख़याल से पेश कर रहा हूँ कि मैं अकेला नहीं हूँ, भारत नामक देश की श्रेष्ठतम समझ मेरे साथ है. वह बहुत थोड़ी है, मगर टनों भूसा जलाने के किए ज़रा-सी चिंगारी ही काम आती है, रावण को हर साल जलाने वाली ढोंगी आतिशबाज़ आग नहीं, जिस से तुलसीकृत श्रीमान रामचन्द्र के ढोंग की लाश हर साल कुछ और सड़ कर गंधाने लगती है.
जहां भी हिदू या मुसलमान मान कर निरपराधों को मारा जाएगा, वहाँ अगर सच्चा लेखक नहीं बोलेगा तो क्या बाबा रामदेव, अन्ना हजारे या उनके हक में भीड़ जमा करने वाले नासमझ नपुंसक बोलेंगे?
क्योंकि यह आलेख 9 साल पहले का है, इसलिए, कृपया, 'किन्तु-परन्तु' के शब्द गढ़ने से पहले लेखक की नीयत को देखें.
हिन्दू होकर पढ़ने और गुस्से में आने, या मुसलमान होकर पढ़ कर खुश होने से कुछ नहीं होने वाला.आप महानुभावों के कारण संगठित धर्म बनते हैं, और आपकी गुलाम स्त्रियाँ और मजबूर बच्चे किसी 'धर्म' यानी अधर्म-विशेष में होने के कारण मुफ्त में मारे जाते हैं. आप जीवित मुर्दे नहीं तो और क्या हैं?
मुझे जानने वाले लोग मुझे मौजी और हरफन मौला कहते है, इसलिए कूढ़मगज़ और धर्म को अत्याचार बनाने वाले अधर्मजीवी लोग मुझसे ऐसी कोई उम्मीद न करें कि हत्यारों के खिलाफ मेरे निवेदन को वे अपशब्द कहेंगे तो मेरे कान पर जूँ भी रेंगेगी. इस देश के लोगों के तमाम कुकर्मों के बावजूद मैं अपने अकंप दीये के साथ मैं मस्त हूँ. बहुत रो-धो लिए दो कौड़ी के गिरोहों के कारनामों से बार-बार जन्म लेने वाले हालात पर.
बहरहाल, हाल-चाल यह है...
बाकी जय राम जी की.
जय राम जी की!
दशरथ-पुत्र रामचन्द्र नामक व्यक्ति को गड्ढे खोद कर ढूँढना आसान है. साबित करना भी!
कण-कण में रमे सच्चे राम को किस गड्ढे में खोजोगे? वह तुम्हारी समझ से परे का मामला है.
तुम अपना नीच धंधा करो.
जय श्री राम !
जय श्री राम !
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