साध्वी चिदर्पिता गौतम द्वारा शुरू की गयी जंग का
कानूनी हश्र क्या होगा? यह
तो आने वाला समय ही निश्चित करेगा, जो भी हो, पर मुझे न्याय के लिए कानून से अधिक ईश्वर पर विश्वास है, क्योंकि उसकी अदालत से कथित स्वामी चिन्मयानंद उर्फ कृष्ण पाल सिंह का बचना
संभव ही नहीं है, इसलिए मैं कथित स्वामी के पाप ईश्वर पर छोड़
कर साध्वी को बीती जिंदगी भूल जाने के लिए प्रेरित कर सकता था, लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया, क्योंकि परिचय होने के बाद
साध्वी चिदर्पिता की नरकीय जिंदगी की मुझे जिस दिन जानकारी हुई, उसी दिन मैंने यह संकल्प ले लिया था कि गेरुआ वस्त्रों के अंदर छिपे,
इस वहशी दरिंदे का असली चेहरा जनता के सामने अवश्य लाऊंगा, वो संकल्प पूरा हो गया है। हालांकि कानून अपना काम कर रहा है और साध्वी को
अदालत से भी न्याय मिलेगा, पर वास्तव में मुझे व्यक्तिगत तौर
पर सुखानुभूति हो रही है।
स्थानीय, प्रांतीय या राष्ट्रीय स्तर के हर क्षेत्र से जुड़े खास लोग कथित
स्वामी के चरित्र और व्यवहार की सच्चाई पहले से ही जानते हैं, पर अब देश का बच्चा-बच्चा जान गया है, इसलिए अब जनता
फैसला करे कि ऐसे अधार्मिक व्यक्ति को गेरुआ वस्त्र धारण करने का अधिकार है,
क्या ऐसे चरित्रहीन व्यक्ति को जनप्रतिनिधि बनने का अधिकार है,
क्या ऐसे भ्रष्ट व्यक्ति को देश की प्रतिष्ठित संस्थाओं का अध्यक्ष बने
रहने का अधिकार है? चाल, चरित्र और चेहरे
की बात करने वाली भाजपा में वरिष्ठ नेता के तौर पर प्रतिष्ठित इस पेशेवर धंधेबाज को
भाजपा में रहने का अधिकार है? संत समाज में शिखर पर माने जाने
वाले सरस्वती संप्रदाय में ऐसे लोगों को रहने का अधिकार होना चाहिए और सबसे बड़ा सवाल
यह कि क्या इस वहशी को हम सब से सम्मान पाने का अधिकार है? यह
ऐसे सवाल हैं कि जिनका कानून से कोई लेना-देना नहीं है, इसलिए
पूरा घृणित मामला आपकी अदालत में ला दिया गया है। अब मंथन के बाद आप स्वयं निर्णय लें।
आपकी आत्मा से जो आवाज आये, वह परिणाम सुना देना, उसे मैं क्या स्वयं भगवान भी मानने को बाध्य होंगे, क्योंकि
पंच ही परमेश्वर होते हैं।
मेरी महान कहलाने की या बनने की भी कोई इच्छा नहीं
है। मैं आम आदमी वाली ही जिंदगी जीने का पक्षधर हूं और मरने के बाद भी कलम के सिपाही
के रूप में जाना जाऊं, इसके
लिए ही रात-दिन मेहनत करता हूं, पर लडऩे की आदत शुरू से ही है,
जो पूज्य पिता से खून में मिली है। सच्चाई के लिए किसी भी हद तक जाने
का साहस पूज्य मां से मिला है, जो अंतिम सांस तक रहेगा। यह संयोग
ही है कि सामने देश का पूर्व गृह राज्यमंत्री है, पर लडऩे से
पहले मेरे मन में एक क्षण को भी नहीं आया कि लड़ाई किससे शुरू करने जा रहा हूं?
मैंने किसी से सलाह भी नहीं ली, क्योंकि मेरे परिजन,
रिश्तेदार और मित्र अच्छी तरह जानते हैं कि यह सच के लिए किसी से भी
भिड़ जाता है, तो सच के लिए लडऩे से कौन मना करेगा?
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