गत 11 वर्षों से मणिपुर में विशेष सशस्त्र बल अधिकार
अधिनियम के विरूध्द भूख-हड़ताल करने वाली इरोम चानू शर्मीला भारतीय महिलाओं के लिए
मिसाल है। उन्होंने अपने निरक्षर मां के साथ यह अनुबंध कर लिया है कि जब तक वह इस सामाजिक-राजनीतिक
लक्ष्य को पर्याप्त नहीं कर लेतीं, तब तक एक-दूसरे से नहीं मिलेंगी।
प्रश्न यह उठता है कि देश के भिन्न-भिन्न भागों
में सशस्त्र बलों को दिए जाने वाले विशेषाधिकार मानवाधिकारों का हनन क्यों करते? वे निर्दोष, निरपराध व्यक्तियों की हत्या, संपत्ति की लूट तथा महिलाओं
के साथ बलात्कार का अधिकार क्यों देते? यदि इस प्रकार के कानून-अधिनियम
सरकार द्वारा बनाए गए हैं तो सरकार को एक समिति का गठन कर विचार करना चाहिए,
क्योंकि इस प्रकार के कानून सामाजिक समरसता को हानि ही पहुंचाते हैं।
इरोम चानू शर्मीला ने सत्याग्रह के इन साधनों का
प्रयोग क्यों किया? यह
इसलिए कि भारतीय संस्कृति में इसका बार-बार प’योग किया गया है।
2 नवम्बर, 2000 को असम रायफल्स ने मणिपुर की राजधानी इंफाल के समीप मलोम
कस्बे में बस की प्रतीक्षा कर रहे दस निर्दोष नागरिकों की अंधाधुंध गोलियों की वर्षा
करके हत्या कर दी। इसमें सीनियर सिटिजन 62 वर्षीया लेसंगबम इबेतोमी तथा सिनम चंद्रमणि
भी मारी गयीं। इन दस व्यक्तियों की हत्या ने इरोम चानू शर्मीला को हिलाकर रख दिया।
वे कवयित्री, पत्रकार तथा समाजसेवी के साथ स्त्री भी है। बड़ी
परेशान रही शर्मीला ने अध्ययन किया कि भारतीय सुरक्षा बलों को यह विशेषाधिकार पर्याप्त
है कि वे कहीं भी किसी भी समय बिना वारंट के घुसकर तलाशी और गोलियां चला सकते हैं तथा
वे निरपराध जनों को गिरफ्तार कर सकते हैं। एक नवम्बर, 2000 को
यह घटना घटी। लगातार मंथन के बिना 3 नवम्बर, 2000 को इन्होंने
अन्न जल ग’हण किया और 4 नवम्बर, 2000 को भूख हड़ताल पर बैठ गयीं।
सरकार ने उन्हें तीसरे दिन गिरफ्तार कर लिया तथा धारा-309 के तहत आत्महत्या करने के
आरोप मढ़ते हुए जवाहरलाल नेहरू अस्पताल के वार्ड में रखा है और वहीं उनके नाक में जबरन
तरल पदार्थ दिया जाता है।
जब सन् 2004 में मणिपुर लिबरेशन आर्मी की सदस्या
होने के आरोप में थंगियम मनोरमा के साथ सामूहिक बलात्कार तथा नृशंस हत्या हुई तो इसकी
चर्चा सारे भारत में हुई। मणिपुरी महिलाओं ने असम रायफल्स के मुख्यालय कांग्ला फोर्ट
पर नग्न होकर विशाल प्रदर्शन किया तथा उन्होंने त’तियों पर लिखा था – ”भारतीय सेना
आओ, हमारा बलात्कार करो”। इस प्रदर्शन
ने दुनिया का ध्यान अन्यायी और अत्याचारी विशेषाधिकार सशस्त्र बल अधिनियम की तरफ खींचा।
दिल्ली के रामलीला मैदान में अन्ना हजारे का जनलोकपाल
बिल के लिए होने वाला अनशन तो प्रमुखता से मीडिया में स्थान पा जाता है पर पूर्वोत्तर
पर क्यों नहीं? इरोम चानू शर्मीला
पर मीडिया कवरेज क्यों नहीं? क्योंकि वह पूर्वोत्तर से है या
वो एक स्त्री है? यह सवाल देश की आधी आबादी तथा बुध्दिजीवियों
से किया जा सकता है।
यह भी बता दूं कि इरोम चानू शर्मीला के आदर्श राष्ट्रपिता
महात्मा गांधी हैं जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत को अपने सत्याग्रही साधनों द्वारा सास्टांग
दंडवत करा दिया था। जब उन्होंने महात्मा गांधी की समाधि पर श्रध्दांजलि अर्पित की तो
उन्हें गिरफ्तार कर दिल्ली के एक अस्पताल में ले जाकर तथा पुन: मणिपुर भेज दिया गया।
अहिंसक सत्याग्रह के माध्यम से क्रांति का बिगुल फूंकने वाली यह महिला नारीवादियों
के लिए क्रांति की मिसाल है।
शर्मीला के अहिंसक सत्याग्रह का ही परिणाम है कि
भारत सरकार ने सन् 2004 में उच्चतम न्यायालय के पूर्व जज जीवन रेड्डी की अध्यक्षता
में एक आयोग का गठन किया कि क्या इस कानून को समाप्त कर दिया जाना चाहिए या इसमें संशोधन
की जरूरत है। 2005 में आयोग ने यह सुझाव दिया कि इसे समाप्त कर दिया जाना चाहिए तथा
इसके कई प्रावधानों को समायोजित किया जाना चाहिए। लेकिन सरकार ने इस आयोग की अनुशंसा
पर ध्यान नहीं दिया। अत: जरूरी है कि सरकार का ध्यान इस ओर आकृष्ट किया जाए।
इरोम चानू शर्मीला का कहना है कि जब तक भारत सरकार
विशेषाधिकार अधिनियम – 1958 को समाप्त नहीं कर देती, तब तक मेरा यह आंदोलन जारी रहेगा। उसका यह भी कहना है कि यह कानून
वर्दीधारियों को बिना किसी सजा के भय के बलात्कार, अपहरण और हत्या
करने का अधिकार देता है। यह कानून 1958 में नगालैंड में लागू था तथा यह 1980 से मणिपुर
में भी लागू है।
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