जब मानव अंतरिक्ष के बाहर जीवन के लक्षणों की तलाश करता है, तो सबसे पहले क्या देखता है? वह देखता है जल का अस्तित्व। किसी भी ग्रह में जल की उपस्थिति से यह संकेत
मिलता है कि वहां जीवन संभव है। जाहिर है कि जल का अर्थ जीवन है और जीवन का अर्थ जल।
हमारी पृथ्वी का 70 प्रतिशत भाग जल में डूबा है, लेकिन इस जल
का अधिकांश हिस्सा खारा है। 97 प्रतिशत जल समुद्र के रूप में है, जो पीने के योग्य नहीं है। शेष तीन प्रतिशत जल ही मीठा है, जो बर्फ के रूप में है। दूसरे शब्दों में कहें तो मात्र एक प्रतिशत जल ही सात
अरब की मानव आबादी के लिए पेयजल के रूप में उपलब्ध है। केवल मानव आबादी ही नहीं,
बल्कि सभी जीव-जंतुओं के लिए भी यही जल जीने का सहारा है।
भारत के बारे में यह माना जाता है कि यहां पानी पर्याप्त मात्रा
में उपलब्ध है। इसका अर्थ है कि हम जितना चाहें उतना पानी हासिल कर सकते हैं, लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू ये भी है कि प्रति
वर्ष पानी की यह उपलब्धता घटती जा रही है। अब लगभग पूरे देश में जल संकट की आहट महसूस
की जाने लगी है। एक अनुमान के अनुसार ग्रामीण भारत में रहने वाली एक महिला को पानी
हासिल करने के लिए वर्ष में 1400 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। यहां तक कि शहरी क्षेत्रों
में भी अब कुछ मिनटों की ही जल आपूर्ति एक सामान्य बात हो गयी है। अक्सर इसको लेकर
लोगों के बीच हिंसक झड़पें होती हैं और कभी-कभी इनमें लोगों को अपनी जान भी गंवानी
पड़ती है। देश के अनेक भागों में अब टैंकर संस्कृति पनपने लगी है। यह सब क्यों हो रहा
है? जब हमें पर्याप्त पानी मिल रहा है, तो यह जा कहां रहा है? परंपरागत रूप से हम इससे परिचित
हैं कि अपने पानी को कैसे संचित और संरक्षित किया जाए। हमारे देश के प्रत्येक भाग में
इस काम के लिए अपने-अपने तरीके हैं। इसका अर्थ है कि बारिश के रूप में आसमान से गिरने
वाले जल को एक निश्चित ढांचे में इकट्ठा किया जाता है ताकि पूरे वर्ष उसका अलग-अलग
कामों में इस्तेमाल किया जा सके। अलग-अलग परिस्थितियों के लिहाज से यह तरीका अलग-अलग
है। लोग इस पानी को सही तरह से संचित करने के लिए अपना-अपना योगदान देते हैं। मतलब
टैंक को साफ रखना, दीवारों का समुचित रख-रखाव आदि। इसके परिणामस्वरूप
पानी से हमारा सीधा संबंध कायम हो जाता है।
अंग्रेजों के आगमन के साथ पानी पर नियंत्रण और मालिकाना हक सामान्य
आदमी के हाथ से निकल कर प्रशासन के पास चला गया। सामुदायिक स्वामित्व के बजाय अब सरकारी
विभाग इसका नियंत्रण करने लगे। झील और टैंक सामुदायिक सहयोग के बजाय सरकारी तंत्र द्वारा
बनवाये जाने लगे और लोगों से इस काम के लिए टैक्स वसूला जाने लगा। विशेषज्ञ इसे स्थितियों
में बदलाव का महत्वपूर्ण बिंदु मानते हैं, क्योंकि
इसके बाद रखरखाव के कामों में लापरवाही बरती जाने लगी। अनगिनत टैंक और झीलें धीरे-धीरे
बर्बाद हो गयीं। शहरी क्षेत्रों में जल निकायों द्वारा अधिग्रहित की गयी जमीनों का
दूसरे कामों में इस्तेमाल किया जाने लगा। आजादी के बाद इस प्रवृत्ति में और तेजी आ
गयी। दिल्ली का ही उदाहरण लें, एक समय यहां 800 झीलें थीं,
लेकिन अब दस से भी कम बची हैं। दूसरे शहरों में भी स्थितियां कोई भिन्न
नहीं हैं। वर्षा जल के संचयन के इंतजाम ध्वस्त होने का ही दुष्परिणाम यह है कि अब बारिश
में हमारे अधिकांश शहर तालाब में बदल जाते हैं और कुछ समय के लिए लोगों का जीवन ठप
पड़ जाता है। फिर हमारे शहरों को पानी कहां से मिल रहा है? भारत
के बड़े शहरों को पानी उपलब्ध कराने के लिए आस-पास के गावों से लंबी पाइपलाइन बिछायी
गयी है, जो वहां के जल को शहरों तक पहुंचाती है। मुंबई जहां मैं
रहता हूं, वहां हर वर्ष भारी बारिश होती है, लेकिन वह सारा पानी बर्बाद हो जाता है और फिर हम अपने दबदबे का फायदा उठाकर
आस-पास के क्षेत्रों से बाधों का पानी खींच लेते हैं। इससे बड़ी त्रासदी और क्या होगी
कि जो शाहपुर मुंबई को उसकी जरूरत का 52 प्रतिशत पानी उपलब्ध कराता है, वहां के लोग अपनी जरूरतों के लिए टैंकरों पर आश्रित हैं।
अगर हम अपने वर्षाजल का सही तरह से संचयन नहीं कर पा रहे हैं, तो यह भी हकीकत है कि अपनी जल संपदा को प्रदूषित
करने में भी लगे हैं। देश की अधिकांश नदियां इसीलिए प्रदूषण से कराह रही हैं,
क्योंकि हम उन्हें हर तरह की गंदगी बहाने का जरिया मानते हैं। यह निराशाजनक
है कि अनेक नदियां एक प्रकार से मर चुकी हैं। इसका अर्थ है कि उनमें आक्सीजन का स्तर
शून्य पर पहुंच गया है। यमुना का 800 किलोमीटर लंबा भाग आधिकारिक रूप से मृत घोषित
किया जा चुका है। पवित्र गंगा की कहानी भी कोई अलग नहीं है। कानपुर जैसे शहरों में
गंगा का प्रदूषण हद से अधिक बढ़ चुका है और यह तब है जब गंगा को प्रदूषण से मुक्त बनाने
के नाम पर अब तक अरबों रुपये फूंके जा चुके हैं।
इस मामले में सबसे अधिक चिंताजनक है कि अनेक उद्योग अपने दूषित
जल को साफ-स्वच्छ बनाने में आने वाले खर्च से बचने के लिए गंदा पानी पृथ्वी के बहुत
अंदर पहुंचा रहे हैं। इससे वह भूगर्भ जल भी प्रदूषित हो रहा है, जिसे सबसे अधिक स्वच्छ माना जाता है। हमें न
केवल अपने जल स्रोतों को प्रदूषण से मुक्त बनाने के लिए, बल्कि
वर्षा जल की बर्बादी रोकने के लिए भी तत्काल ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। हमें यह
समझ लेना चाहिए कि अगर सब कुछ ऐसे ही चलता रहा तो जो पानी आज हमारे पास है वह हमेशा
हमारे साथ नहीं रहेगा। हमें खतरे की आहट सुन लेनी चाहिए और जीवन को बचाने के लिए जुट
जाना चाहिए।
आमिर खान बॉलीवुड एक्टर हैं। उन्होंने होली नाम की फिल्म
से अपने कैरियर की शुरुआत की और कयामत से कयामत तक, रंगीला होते हुए फना और गजनी तक आते आते अपनी एक अलग तरह पहचान
बनायी। वे हिंदी सिनेमा में नये विषय पर काम करने वाले निर्देशकों को प्रोत्साहित
भी करते हैं। इसकी शुरुआत उन्होंने लगान से की और पीपली लाइव, धोबी घाट और डेल्ही बेली जैसी फिल्में प्रोड्यूस की। सामाजिक मुद्दों पर
आधारित उनके रियलिटी शो सत्यमेव जयते की इन दिनों बहुत चर्चा है।
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