हम इस बार 15 अगस्त
2012को अपनी स्वतंत्रता का 66 वां जश्न मनाने जा रहे है. इस दरमियाँ करीब 6 -7 पीढ़ियों
बीत चुकी है. विगत वर्षों में हमने क्या पाया और क्या खोया, इसका
जायजा लेते हैं. आईये मिलते हैं कुछ आज़ाद चेहरों से-
१. मेरा नाम गूजरी है, जिला
सिरोही की रहने वाली हूँ. डायन होने के शक में भोपा ने मेरे हाथ पूरे गांव के सामने
खौलते तेल में डलवाए। हाथ झुलसने ही थे, झुलसने पर सभी ने मुझे
डायन मान लिया और पत्थरों की बारिश शुरू कर दी. बाद में लोहे के गर्म सरिए से मेरे
सिर को दाग दिया गया. शरीर के घाव तो भर गए पर अब तक मेरे जीवन का वो क्षण,
वह शब्द, मुझे डायन कहा गया उसका दर्द मेरी आत्मा
व मन से अभी तक नहीं गया है.
२. मैं तुलसी, छन्नूलाल
की विधवा गाँव नाचना जिला जैसलमेर. पति किसान थे. उन्होंने क़र्ज़ और गरीबी से तंग आकर
पिछले महीने खेत में लगे नीम से लटककर आत्महत्या करली. अब अपनी 5 संतानों सहित रहगुज़र
ढूँढ रही हूँ.
३. मैं ज्योति हूँ. निवास
मंगोलपुरी, दिल्ली. मेरे सगे भाइयों ने
मेरे पति को चाकू गोदकर मार डाला, जुर्म था- जातिवाद के
खिलाफ आर्य समाज में विवाह. नतीजा परिवार के सम्मान के नाम मेरे भाइयों ने ही मेरा सुहाग और मेरी दुनिया उजाड़
दी.
४. मैं प्रेमबाई हूँ.
गांव कानिया, थाना गुलाबपुरा, जिला भीलवाड़ा. जमीन पर
कब्जा करने की नीयत से मुझे वृद्ध असहाय महिला की समाज के उच्च वर्ग कहे जाने वाले
सभ्य लोगों ने डायन बताकर सरेराह मेरी निर्मम हत्या कर दी.
५. मैं लक्ष्मी हूँ.
उम्र 18 वर्ष. मेरा विवाह मात्र एक वर्ष की उम्र में कर दिया गया था. मेरा पति उस वक्त
तीन वर्ष का था. मेरे पति ने 6 माह पूर्व दूसरी शादी कर ली. मैं पहले भी माता-पिता
के पास पली-बढ़ी अब पुनः उन्ही के पास हूँ.
ये तो महज़ चंद ही नाम हैं. लिस्ट और भी बड़ी है, इतनी
बड़ी कि गिनाते-गिनाते हम अगले स्वाधीनता दिवस तक पहुँच जायेंगे फिर भी ये गिनती जहां
शुरू करेंगे, शायद वहीं से पहली होगी.
आज़ादी मिलने के उपरांत
हमारे लोकतंत्र के मीज़ान में एक तरफ हमारी सड़ी-गली अमानवीय रूढ़िवादी मानसिकता और
दूसरी तरफ २१ वीं सदी का भारत, किसका पलड़ा भारी है? किसकी ज़म्मेदारी है? क्या ये सवालिया निशान कभी हट पाएगा?
स्वाधीनता दिवस पर आप
सभी को बहुत-बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएँ.
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