Wednesday, August 29, 2012

काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूँ



काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूँ ,
गीत नया गाता हूँ |
कहना तुम्हारा है इसमें क्या हमारा है,
नारा तुम्हारा है, गीत भी तुम्हारा है,
रोज रोज लिखों तुम रोज तुम मिटाओ,
करना क्या चाहते हो यह तो बताओ,
जिन्दा रहें हम या हम भी मिट जायें,
ऐसे में कैसे हम गीत नया गायें।
हमको तो भूख ने गरीबी ने मारा है,
उपर से राम का चलता दुधारा है,

मन्दिर को बनना है जहॉं वहॉं बन जाये
पर अपनी छोटी सी झुग्गी बस बच जाये।
आपके हिन्दुत्व के बेलगाम स्वयंसेवक,
त्रिशूल तानकर जमा रहे अपना हक।

फूल सी बिटिया की अस्मत को रोंद रहे,
प्रश्न कुछ मेरे भी मस्तिष्क में कोंध रहे।
अबला के मान की सुरक्षा के कारण,
वनवासी राम जब शस्त्र कर धारण,
रावण की लंका को राख कर आये,
मर्यादा पुरूषोत्तम तब वह कहाये।
और यह तुम्हारे जो हैं रामसेवक,
मर्यादा सारी ही तोड रहे अब तक,
ऐसे ही रामराज क्या तुमको लाना है?
काल के कपाल पर गीत नया गाना है।

लेकिन यह याद रहे बहुत दिन न गाओगे।
काल के कपाल पर क्या लिखकर मिटाओगे।

काल ने मिटाये हैं सीजर सिकन्दर
काल ने मिटाये हलाकू और हिटलर।
काल ने मिटाये हैं बडे बडे योद्धा,
सोच लो सितमगर तुम्हारा क्या होगा?

काल ऑंख फेरे जब करवटे बदलता है
कहॉं गये ताज ओ तख्त पता नहीं चलता है।
इसलिये काल से बेवजह मत उलझो
पीछे न लौटेगा काल कभी ये समझो
और ये नहीं समझो हम सिर्फ देखेंगें

काल के कपाल पर जिस दिन हम लिखेंगें।
तुम क्या कोई भी मिटा नहीं पायेगा।
राजभवन कॉंपेंगा इन्कलाब आयेगा।
गद्दी पर अच्छी हैं धर्म की चिन्तायें
गद्दी पर बैठकर देश प्रेम समझायें।
देशप्रेम का भी हो अपना ही पैमाना,
और धर्म वह है जो तुमने माना।
बाकी सब देशद्रोही, धर्मद्रोही बसते हैं,
इसलिये तो दुनियॉं में सब तुम पर हॅंसते हैं।
देश यह कलकिंत हो क्या हक तुम्हारा है,

हमने बनाया है देश यह हमारा है।
खेत कारखानों में सडकों,खदानों में
झील में,समन्दर में,फौज में विमानों में।
हम ही कमेरे हैं हम ही सिपाही हैं।
सारी तरक्की हम ही से तो आयी है।
तुमने तो हमको बस फरमान दिये हैं,
धोखे में रखने को भगवान दिये हैं।
जिनका नाम ले लेकर हमको डराया है
नफरत फैलायी है हमको लडाया है।
पर अब तो हमने लडना भी छोड दिया
धर्म की दुकानों से नाता ही तोड लिया।
फिर भी जिसका मन हो वह उनमें हो आये,
गीता कुरान पढे गुरू ग्रन्थ साहिब गाये।
या कुछ भी न करे अपना कुछ जोर नहीं,
आखिर इन्सान इतना कमजोर नहीं।

कोई मुसीबत हो हाथ वह उठाये
अपनी हिफाजत की मॉंगे दुआये।
जैसे अकेला कोई बोझ न उठा पाये,
अपने कुछ साथी इकट्ठा कर ले आये।

फिर सबके सब मिलकर जोर लगाते हैं,
बोझा उठाते हैं हार नहीं जाते हैं।

ऐसे ही मिलकर हर उलझन को सुलझाना
अब हमको आता है अब कैसा घबराना।
अब तो घबरायेंगें, अस्मत के सौदाई,
राम नामी चादर में लिपटे भगवाई।

संघी, हुडदंगी, बदरंगी, बजरंगी,
नेकर में रहती है जिनकी मर्दानगी।
किस मद में मोदी है अटलबिहारी है,
बिल्कुल न ये सोचे जनता बेचारी है

जनता जब बिगडेगी संभाले न संभलेगी,
कोई हुकुमत हो क्या उसका कर लेगी?
किसलिये काले कानून बनाते हो,
काल के कपाल पर क्या लिखकर मिटाते हो।
नाम तुम्हारा खुद ऐसा मिट जायेगा
ढूंढें भी कोई तो ढूँढ नहीं पायेगा।
-अमर नाथ मधुर

2 comments:

  1. यार आप न हिंदू लगे, न मुसलमान, न देशभक्त, न ईमानदार, न बेईमान। तो आप चीज़ क्या हो? पहले अपने बारे में लिखो फिर कुछ और लिखना।

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    1. एक सच्चा हिन्दुस्तानी.....!

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