Tuesday, November 02, 2010

सांप्रदायिक ताकतें नंगा नृत्य करती रहती हैं, और हम चुप बैठे रहते हैं, कियों?

जो लोग भारत में पैदा हुए तथा यहाँ के ब्राहमणों ने अपने-अपने चरित्र से पृथ्वी के समस्त मानव-प्राणी को शिक्षा दी।
 
उपर्युक्त श्लोक को पढ़ा तो मेरा मन बाग़-बाग़ हो उठा, मन-मयूर नृत्य करने लगा। मुझे इस बात का गर्व था कि हमारे पूर्वज दुनिया में सबसे अच्छे थे। वे चरित्रवान थे, मानवीय मूल्यों से परिपूर्ण थे। ज्यादा समय नहीं बीता, मैं निराश होने लगा, मेरा मनका ढह गया। अब विश्वास ही नहीं होता कि हम बहुत अच्छे थे। यदि हम बड़े मानवीय मूल्यों से युक्त थे, इंसानियत पसंद थे, आज क्या हो गया है। सन् 1949 में बाबरी मस्जिद में मूर्तियाँ रख दी गयीं, 6 दिसम्बर 1992 में यह मस्जिद नारा लगते हुए सरेशाम तोड़ दी गयी। इंदिरा गाँधी की हत्या के पश्चात सिखों का संहार, गुजरात में गोधरा-कांड के पश्चात मुस्लिमो का संहार तथा महिलाओं के गर्भ में पल रहे बच्चे को धारदार हथियार से पेट चीर मार देना, उड़ीसा के कंधमाल में दलित ईसाईयों का संहार तथा उनके घर-झोपड़ियों को आग के हवाले कर देना आदि घटनाएं क्या यही दर्शाती हें कि हम बड़े कुलीन हैं, हम अच्छे हैं, चरित्रवान हें, सभी हैं ?

इस देश में फसिस्टवादियों की संख्या 20 प्रतिशत से भी कम है। आज भी हम अपने कर्तव्यों से पूरी दुनिया को शिक्षा देने में सक्षम हैं, परन्तु हमारी अच्छाइयों को कट्टरपंथियों ने गहरे धुंध में धकेल दिया है। दुर्योधन द्वारा भरी सभा में द्रौपदी का चीरहरण किया जा रहा था, उनको नग्न करने का प्रयास चल रहा था। उस समय भीष्म पितामह मौन थे। युधिष्ठिर धर्मराज कहे जाते थे, इन्होने भी प्रतिकार नहीं किया। आज हम उन्ही लोगों जैसे धर्मधुरंधर हो गए हैं। सांप्रदायिक ताकतें नंगा नृत्य करती रहती हैं, मानवीय मूल्यों का गला घोटती रहती हैं। इंसानों को मौत के घाट उतारती रहती हैं, फिर भी हम चुप बैठे रहते हैं।

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