Wednesday, November 03, 2010

घोटालेबाजो की चांदी

सेंट्रल विजिलेंस कमीशन (केन्द्रीय सतर्कता आयोग) सरकारी क्षेत्र में भ्रष्टाचार पर निगरानी रखने वाले देश के सर्वोच्च संस्थानों में से है और उसका सर्वोच्च पदाधिकारी होता है चीफ विजिलेंस कमिश्नर ( मुख्य सतर्कता आयुक्त)। निसंदेह इस पद पर किसी ऐसे अधिकारी की नियुक्ति की जानी चाहिए जिसकी ईमानदारी पर कोई ऊँगली न उठा सके।

टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाले के सम्बन्ध में स्वयं सीएजी के अनुसार 60-70 हजार करोड़ रुपये का घोटाला हुआ है। कुछ लोगों के अनुसार तो यह 1.40 लाख करोड़ रुपये का घोटाला है और इसे देश का सबसे बड़ा घोटाला कहा जा सकता है। इस घोटाले के मुख्य आरोपियों में संप्रग सरकार के मंत्री ए.राजा का नाम लिया जा रहा है। जाहिर है इस घोटाले में संचार मंत्रालय के सर्वोच्च अधिकारी भी शामिल रहे हैं। संचार मंत्रालय के सचिव, जो इस मंत्रालय के सर्वोच्च अधिकारी हैं, इस मामले में अपने मंत्री और अपने मंत्रालय का बचाव करते आये हैं। हालाँकि घोटाला इतना स्पष्ट है कि उसका बचाव करना ही संभव नहीं। स्वयं सीएजी ने भी इस घोटाले को कई बार उठाया है और संचार मंत्रालय के इस तर्क को ख़ारिज कर दिया है कि स्पेक्ट्रम आवंटन सरकार द्वारा निर्धारित निति के अनुसार किया गया है।

यदि संचार मंत्रालय के उसी सचिव को- जो इस घोटाले में बचाव की भूमिका निभाता आया है- भारत के चीफ विजिलेंस कमिश्नर के पद पर नियुक्त कर दिया जाए तो इस के सिवा क्या कहा जा सकता है कि बिल्ली को दूध की रखवाली पर बैठा दिया गया है।

संचार मंत्रालय के इस सचिव का नाम है पीजे थामस। थामस टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाले से ही नहीं जुड़े रहे हैं बल्कि जब वह केरल में खाद्य एवं आपूर्ति मंत्रालय के सचिव थे तो वह पामोलीन में उन्हें चार्जशीट दी गयी थी और उस घोटाले के सम्बन्ध में आज भी केरल की अदालत में मुकदमा चल रहा है।

ऐसे दागदार अधिकारी को चीएफ़ विजिलेंस कमिश्नर बनाने का मकसद टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाले में जांच को प्रभावित करने के अलावा और क्या हो सकता है ? चीफ विजिलेंस कमिश्नर की सिफारिश के आधार पर ही सी.बी.आई के डायरेक्टर और अन्य उच्च पदाधिकारियों की नियुक्ति की जाती है। यानी थामस अब अपने मनचाहे अधिकारीयों को सी.बी.आई के सर्वोच्च पदों पर नियुक्त भी करा सकते हैं, और वाही अधिकारी टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच में शामिल हो सकते हैं। यानी सरकार ने टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले को रफा दफा करने का पूरा इंतजाम कर दिया है। वह हैं एक दागदार अधिकारी । उनकी नियुक्ति से पूर्व ही यह आपत्ति प्रधानमंत्री के सामने उठाई गयी थी तो भी सभी मानदंडो को ताक पर रखकर उनकी नियुक्ति की गयी। यह नियुक्ति स्वयं प्रधानमंत्री और इसके लिए सलाह देने वाले उनके सलाहकारों की इंटेग्रिटी पर प्रश्नचिन्ह लगाती है।

थामस की चीफ विजिलेंस कमिश्नर के रूप में नियुक्ति ऐसे उच्च पद पर नियुक्ति के मानदंडो की इस तरह की जानबूझ कर की गयी अवहेलना है कि पूर्व चीफ इलेक्सन कमिश्नर जे.एम लिंगदोह एवं कुछ अन्य भूतपूर्व उच्च अधिकारीयों ने 6 अक्टूबर 2010 को सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका ही दायर कर दी जिसमें कहा गया है कि "टेलिकॉम सचिव के पद पर काम करते हुए तामस टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाले के - जिससे सरकारी खजाने का 70000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ और जिसे भारत में भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा घोटाला समझा जाता है- रफा-दफा करने की कोशिश बमें लिप्त रहे हैं।" याचिका में सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया गया है कि विजिलेंस कमिश्नर के उच्च पद के इस तरह के अध : पतन से रोकने के लिए हस्तक्षेप करें।

 
लोकसंघर्ष !

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