Wednesday, December 01, 2010

दिल्ली के रोहिणी इलाके में मुसलमानों को धार्मिक आज़ादी नहीं - शेष नारायण सिंह

आज़ादी की लड़ाई की एक और विरासत को दिल्ली के रोहिणी इलाके में दफ़न किया जा रहा है . जंगे-आज़ादी के दौरान हमारे नेताओं ने कभी यह अहसास नहीं होने दिया कि वे हिन्दुओं की आज़ादी के लिए लड़ रहे हैं क्योंकि वे भारत की आज़ादी के लिए लड़ रहे थे . अंगेजों की पूरी कोशिश थी के भारत को हन्दू और मुसलमान के बीच खाई के ज़रिये अलग कर दिया जाए लेकिन वे कामयाब नहीं हुए. कोशिश पूरी की लेकिन सफलता हाथ नहीं आई. उस काम के लिए उन्होंने दो संगठन खड़े किये . कभी कांगेस का ही हिस्सा रही मुस्लिम लीग को जिन्ना और लियाक़त अली के नेतृत्व में झाड़ पोछ कर भारत की आज़ादी के खिलाफ मैदान में उतारा और अंग्रेजों से माफी मांग चुके वी डी सावरकर का इस्तेमाल करके हिन्दू धर्म से अलग एक नयी विचारधारा को जन्म दिया जिसे हिंदुत्व कहा गया . सावरकर ने खुद बार बार कहा है कि हिंदुत्व वास्तव में एक राजनीतिक विचारधारा है . बहरहाल १९२४ में सावरकर की किताब , हिंदुत्व छप कर आई और १९२५ में अंग्रेजों ने नागपुर के एक डाक्टर को आगे करके आर एस एस की स्थापना करवा दी. . मुस्लिम लीग तो अपने मकसद में कामयाब हो गयी . जब वह भारत की आज़ादी को नहीं रोक पाई तो उसने भारत का बँटवारा ही करवा दिया और पाकिस्तान की स्थपाना हो गयी. आज जब पाकिस्तान की दुर्दशा देखते हैं तो समझ में आता है कि कितनी बड़ी गलती मुहम्मद अली जिन्ना ने की थी. लगता है कि मुसलमानों को नुकसान पंहुचाने वाला यह सबसे बड़ा राजनीतिक फैसला था. आर एस एस वाले कोशिश करते रहे लेकिन अँगरेज़ उन्हें कुछ नहीं दे सका . बाद में उनके साथियों ने की महात्मा गांधी को मारा लेकिन उसके बाद वे पूरी तरह से राजनीतिक हाशिये पर आ गए. आज़ादी के आन्दोलन के नेताओं के उत्तराधिकारी कांग्रेस और सोशलिस्ट पार्टियों में आबाद हो गए लेकिन वे आज़ादी की लड़ाई वाले कांग्रेसियों जैसे मज़बूत नहीं थे लिहाजा बाद के वक़्त में आर एस एस और उस से जुड़े संगठन ताक़तवर होते गए और अब उनकी ताक़त का खामियाजा हर जगह राष्ट्र को ही झेलना पड़ रहा है .कहीं आर एस एस लोग वाले महिलाओं को पीट रहे हैं तो कहीं और कुछ कारस्तानी कर रहे हैं . आर एस एस की ताज़ा दादागीरी का मामला दिल्ली का है . उत्तरी दिल्ली के छोर पर बसे उप नगर रोहिणी में कोई मस्जिद नहीं थी . वहां रहने वालों ने डी डी ए में दरखास्त देकर करीब ३६० वर्ग मीटर का एक प्लाट ले लिया .जून २००९ में डी डी ए ने दर्सगाहे-इस्लामिया इंतजामिया कमेटी को प्लाट पर क़ब्ज़ा दे दिया . सरकारी चिट्ठी में साफ़ लिखा था कि ज़मीन मस्जिद के निर्माण के लिए दी जा रही है लेकिन जब २६ जून २००९ को मस्जिद के निर्माण का काम शुरू हुआ तो भगवा ब्रिगेड के लोग वहां पंहुच गए और मार पीट शुरू कर दी. वे माइक लेकर आये थे और पूरे जोर शोर से मुसलमानों के खिलाफ ज़हर उगल रहे थे . शुक्रवार का दिन था और वहां नमाज़ पढ़ कर काम शुरू होना था लेकिन हिन्दुत्ववादी गुंडों ने तूफ़ान खड़ा कर दिया. एक मजदूर का गला काट दिया . बाद में उसे अस्पताल ले जाया गया जहां उसकी जान बचा ली गयी . दर्सगाहे-इस्लामिया इंतजामिया कमेटी को आर एस एस के इरादों की भनक लग गयी थी इसलिए उन्होंने पहले ही पुलिस वालों को चौकन्ना कर दिया था लेकिन मामूली संख्या में मौजूद पुलिस वालों को भी भीड़ ने मारा पीटा और काम रुक गया. तुर्रा यह कि पुलिस ने दर्सगाहे-इस्लामिया इंतजामिया कमेटी की ओर से एफ आई आर तक नहीं लिखा . जब इन लोगों ने कहा तो साफ़ मना कर दिया और कहा कि पुलिस ने अपनी तरफ से ही रिपोर्ट लिख ली है . वह रिपोर्ट हल्की थी , उसमें मजदूर के गले पर धारदार हथिआर से वार करने की बात का ज़िक्र तक नहीं किया गया था. लेकिन इसके बाद जो हुआ वह बहुत ही शर्मनाक है. डी डी ए ने दर्सगाहे-इस्लामिया इंतजामिया कमेटी को सूचित किया कि मुकामी रेज़ीडेंट वेलफेयर अशोसिशन के विरोध के कारण मस्जिद निर्माण के लिए किया गया अलाटमेंट रद्द किया जाता है . यह नौकरशाही में भगवा ब्रिगेड की घुसपैठ का एक मामूली उदाहरण है . बहर हाल मामला माइनारिटी कमीशन में ले जाया गया और उनके आदेश पर एक बार फिर प्लाट तो मिल गया है लेकिन आगे क्या होगा कोई नहीं जानता . अब बात अखबारों में छप गयी है तो मुसलमानों के वोट के चक्कर में राजनीतिक पार्टियों के नेता लोग हल्ला गुला तो ज़रूर करेगें लेकिन नतीजा क्या होगा कोई नहीं जानता . आर एस एस के लोगों की कोशिश है कि ऐसे मुद्दे उठाये जाएँ जिस से साम्प्रदायिकता का ज़हर फैले और हिन्दू उनकी तरफ एकजुट हों . यह देश का दुर्भाग्य है कि आज देश में धर्म निरपेक्षता की लड़ाई लड़ने वाला कोई संगठन नहीं है . आर एस एस की रणनीति है कि इस तरह के मुद्दों को उठाकर वे अपने आपको हिन्दुओं का नेता साबित कर दें . ठीक उसी तरह जैसे जिन्ना ने १९४६ में किया था. हुआ यह था कि जिन्ना ने मांग की कि देश की आज़ादी के बारे में फैसला लेने के लिए जो कमेटी बन रही है ,उसमें मुसलमानों का नामांकन करने का अधिकार केवल जिन्ना को होना चाहिए . महात्मा गाँधी, सरदार पटेल और नेहरू ने साफ़ मना कर दिया . नतीजा यह हुआ कि अपने कोटे के चार मुसलमानों को जिन्ना ने नामांकित किया जबकि कांग्रेस ने अपने कोटे से ३ मुसलमानों को नामांकित कर दिया . और जिन्ना का मुसलमानों का खैरख्वाह बनने का सपना धरा का धरा रह गया. बहरहाल जिस तरह से संघी ताक़तें लामबंद हो रही हैं वह बहुत ही खतरनाक है और देश की एकता को उस से ख़तरा है . कांग्रेस समेत सभी धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक पार्टियों को चाहिए उसे फ़ौरन लगाम देने के लिए जागरूकता अभियान चलायें. भारत के संविधान में भी लिखा है कि इस देश में हर आदमी को अपने धर्म का पालन करने की आज़ादी है. और अगर रोहिणी के मुसलमान अपने धर्म का पालन न कर सके तो संविधान के अनुच्छेद २५ का सीधे तौर पर उन्लंघन होगा . अनुच्छेद २५ में साफ़ लिखा है कि भारत के हर नागरिक को अपने धर्म के पालन की पूरी आज़ादी है . इसलिए देश की आबादी के बीस फीसदी को हम उनके अधिकारों से वंचित नहीं रख सकते.

2 comments:

  1. bhaayi jb hmare netaa inke tlve chaatte hen to fir hmare saath to aesa hona hi he qom ki fikr he inhen aaram ke saath kofi pite hen bde aaram se haakmon ke saath . akhtar khan akela kota rajsthan

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  2. अख्तर भाई, आप ने बिल्कुल सही कह रहें हैं. बस अल्लाह से दुवा है की अल्लाह इन्हे हिदायत दे.

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