Wednesday, December 01, 2010

कब तक केवल मुसलमान पकड़े जाते रहेंगे ?


An Indian Muslim

पुणे की जर्मन बेकरी के विस्फोट के मामले में महाराष्ट्र पुलिस ने मुंह की खाई है। राज्य के पुलिस महानिदेशक डी शिवनंदन ने बयान दे दिया है कि जर्मन बेकरी केस में पुलिस का काम बिलकुल गलत ढर्रे पर चल रहा था और अब तक जो कुछ भी जांच हुई है, उसका केस से कोई मतलब नहीं है। जांच फिर से करनी होगी। जांच का काम एटीएस को दिया गया था। राज्य के सबसे बड़े पुलिस अधिकारी ने ऐलानिया कहा है कि अब तक की जांच को कूड़ेदान के हवाले करके नये सिरे से तफ्तीश होगी। उन्होंने अखबार वालों को बताया कि एटीएस को केस का ठीक से अध्ययन करना पड़ेगा, वैज्ञानिक तरीके से सबूत हटाना पड़ेगा और तब उन लोगों के पहचान करनी पड़ेगी जो जर्मन बेकरी कांड के लिए वास्तव में जिम्मेदार हैं। यानी अब तक पुलिस ने जो भी किया, उसमें पेशागत ईमानदारी बिलकुल नहीं है। इस बात की जांच की जानी चाहिए कि जिन लोगों को भी पुलिस ने पकड़ रखा था, उनके खिलाफ केस क्यों बनाया गया।

वैसे भी महाराष्ट्र पुलिस आजकल तरह तरह के गैरकानूनी काम के सिलसिले में खबरों में है। उनके एक इंसपेक्टर को गिरफ्तार किया गया है क्योंकि उसने सुपारी लेकर एक बिल्डर को जान से मारने की कोशिश की थी। ऐसे और भी बहुत से मामले सामने आ चुके हैं, जिसमें पुलिस के तथाकथित इनकाउंटर स्पेशलिस्टों ने निरीह लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। जर्मन बेकरी का मामला थोड़ा पेचीदा है। जिस आदमी के बारे में सर्वोच्च पुलिस अधिकारी ने बताया है कि उसके खिलाफ कोई मामला नहीं है, जब उसे एटीएस वालों ने पकड़ा था तो क्या माहौल था, उस पर नजर डाल लेने से पुलिस की मानसिकता ठीक से समझ में आ जाएगी।

पुणे की जर्मन बेकरी में हुए धमाके में 17 लोग मारे गये थे। पुलिस ने अब्दुल समद उर्फ भटकल नाम के एक आदमी को 24 मई को कर्नाटक से गिरफ्तार किया था। बताया गया कि समद इंडियन मुजाहिदीन के सदस्य यासीन भटकल नाम के आदमी का भाई है। तो क्या पुलिस किसी प्रतिबंधित संगठन के सदस्य के भाई को बिना किसी बुनियाद के गिरफ्तार करने के लिए आजाद है? अब्दुल समद की गिरफ्तारी के बाद तो माहौल ही बदल गया। पुलिस ने दावा किया कि जर्मन बेकरी में लगे क्लोज सर्किट टीवी की तस्वीरें देखने के बाद यह गिरफ्तारी हुई थी और वास्तव में जो आदमी बेकरी के अंदर बम रख रहा था, वह भटकल ही है और उसे गिरफ्तार करके एटीएस वालों ने बड़ी वाहवाही बटोरी थी। हद तो तब हो गयी जब केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम ने महाराष्ट्र एटीएस को सार्वजनिक रूप से बधाई दी और कहा कि समद जर्मन बेकरी धमाके का एक प्रमुख संदिग्ध है और उसको पकड़ कर पुलिस ने बहुत बड़ा काम किया है। आज जब पुलिस ने खुद यह स्वीकार कर लिया है कि उसके खिलाफ कोई केस नहीं है, तो समद के नागरिक अधिकारों का मलीदा बनाने वालों के साथ क्या सलूक किया जाना चाहिए?

किसी भी आतंकवादी मामले में किसी भी मुसलमान को पकड़ लेने की पुलिस की मानसिकता का इलाज किये जाने की जरूरत है। समद को गलत तरीके से हिरासत में ले लेने का यह कोई इकलौता मामला नहीं है। मुंबई में ही ऐसे कई नौजवान बंद हैं, जनके ऊपर पोटा का केस बनाकर पुलिस ने पकड़ लिया था लेकिन बाद में पता चला कि उन पर कोई मामला ही नहीं था। इन हालात को दुरुस्त करने की जरूरत है। जब से गुजरात में नरेंद्र मोदी का राज आया है, वहां की पुलिस अपने राजनीतिक आका को खुश करने के लिए किसी भी मुसलमान को पकड़ लेती है और उसे प्रताड़ना देकर छोड़ देती है। गुजरात पुलिस ने मुंबई की लड़की इशरत जहां को भी इसी तरह के मामले में पकड़ा था और बाद में फर्जी मुठभेड़ दिखा कर मारा डाला था। उसी मामले में पुलिस वाले आजकल जेल की हवा खा रहे हैं। लेकिन वह तब संभव हुआ, जब मामला सुप्रीम कोर्ट तक पंहुचा।

जरूरत इस बात की है कि शक की बिना पर लोगों को गिरफ्तार करने की पुलिस की ताकत की कानूनी समीक्षा की जाए। वरना मुंबई और गुजरात की जेलों में ऐसे सैकड़ों मुसलमान बंद हैं, जिनके ऊपर जो दफाएं लगायी गयी हैं, उनमें कहीं तीन साल, तो कहीं सात साल की सजा होती है लेकिन ये लड़के पिछले 8-10 सालों से बंद हैं और बाद में उन्हें बाइज्जत बरी कर दिया जाएगा। यह न्याय व्यवस्था की एक बड़ी कमी है और इस पर फौरन सिविल सोसाइटी, मीडिया और राजनीतिक बिरादरी की नजर पड़नी चाहिए और अंग्रेजों के वक्त की नजरबंदी की पुलिस की ताकत को कम करके देश को एक सभ्य प्रशासन देने की कोशिश करनी चाहिए।

(शेष नारायण सिंह। मूलतः इतिहास के विद्यार्थी। पत्रकार। प्रिंट, रेडियो और टेलिविज़न में काम किया। 1992 से अब तक तेज़ी से बदल रहे राजनीतिक व्यवहार पर अध्ययन करने के साथ साथ विभिन्न मीडिया संस्थानों में नौकरी की। महात्‍मा गांधी पर काम किया। अब स्‍वतंत्र रूप से लिखने-पढ़ने के काम में लगे हैं। उनसे sheshji@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है। 

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